कान्हा का जन्म हो गया अब माता यशोदा के धैर्य की बारी है। यहां तो कभी -कभी मेरा धैर्य खोने लगता है। आपको सलूट है यशोदा माँ। आप कैसे कान्हा को इतना तैयार करती थी। मेरा बेटा तो डायपर पहने में भी मेरी माँ याद करवा देता है।
वैसे प्यार मुझसे बहुत करता है। प्यार का आलम ये है कि ,जब भी मैं खाने बैठूँ तो रोने लगता है व फिर पोट्टी करने। उसके बरहिया (जन्म के बारहवें दिन की पूजा ) में राहुल सांस्कृयान की वोल्गा से गंगा क्या छुआ दिए ,अभी से घुमड़ शास्त्री बनने लगा है। शाम को बाहर नहीं लेकर जाओ तो युद्ध की स्थिति बन जाती है।
एक दोस्त ने कहा -तुम्हारी सोहबत का ही असर है। मैंने कहा सोहबत का नहीं खून का असर है। अब समस्या ये भी है कि इसका क्या उपाय हो।
आज शाम मैं बहुत फ्रस्टेट हो गई थी। बाहर बारिश जैसा मौषम था ।जनाब रोये जा रहें थे। कहाँ ले जाय। शतेश बोले चलो कहीं चल लेते है। मेरा बिल्कुल जाने का मन नहीं था। शतेश और इशू की जिद्द से निकल पड़ी। गाड़ी में बैठते ही इशू महराज चुप हो गए। शतेश बाबू मॉल ऐरिया की तरफ गाड़ी ले लिए। गाड़ी " बार्नेस एंड नोबल " के पास गाड़ी रोक दिए। बोले चलो कोई बुक ले लो ।मूड ठीक हो जायेगा। गुस्सा तो था ही पर ये शॉप देखकर थोड़ा शांत हो गई। बोली लेकर भी क्या फायदा जो पढ़ ही नहीं पाती।
खैर दुकान के अंदर गई। ना -ना करते हुए दो किताब ले ली। थैंक यू मेरा राजदुलारा ,मेरा सोना,मेरा मीर मस्ताना ,मेरा बदमाश खून सत्यार्थ ,तुम्हारी वजह से कितने दिनों की सोची किताबें ले पाई ।
पहली किताब -"द आर्ट ऑफ वॉर " और दूसरी -"द मेटामॉर्फोसिस एंड अदर्स स्टोरीज। "
द आर्ट ऑफ़ वॉर काफी समय से पढ़ने का मन था। देखते ही ले लिया। माहौल भी अनुकूल है ।बेटा घर में पानी पीला रहा है । इधर उत्तर कोरिया बम दाग़ने को तैयार है । वही मातृभूमि को चीन डरा रहा है। ऐसे में चाइनीज़ माल ओह्ह सॉरी चाइनीज़ लेखक को पढ़ना ठीक नहीं तपस्या । देशद्रोह जैसा कुछ फील होगा ।उम्म्म ,ना नहीं हुआ ।,चाइनीज़ खाना और कोई अच्छी किताब कहाँ से देशद्रोह टाइप फिलिंग लाएगा । एक पेट भर रहा है एक दिमाग ।दोनों संतुष्ट तो हम संतुष्ट ।
दूसरी किताब - फ्रैंज काफ़्का के कुछ कोट और "इन द पेनल कॉलोनी "शार्ट फिल्म की वज़ह से लिया ।
*मैं आज़ाद हूँ यही वज़ह है की खोया हूँ ।
*प्यार विरोधाभास का नाटक है ।
वैसे प्यार मुझसे बहुत करता है। प्यार का आलम ये है कि ,जब भी मैं खाने बैठूँ तो रोने लगता है व फिर पोट्टी करने। उसके बरहिया (जन्म के बारहवें दिन की पूजा ) में राहुल सांस्कृयान की वोल्गा से गंगा क्या छुआ दिए ,अभी से घुमड़ शास्त्री बनने लगा है। शाम को बाहर नहीं लेकर जाओ तो युद्ध की स्थिति बन जाती है।
एक दोस्त ने कहा -तुम्हारी सोहबत का ही असर है। मैंने कहा सोहबत का नहीं खून का असर है। अब समस्या ये भी है कि इसका क्या उपाय हो।
आज शाम मैं बहुत फ्रस्टेट हो गई थी। बाहर बारिश जैसा मौषम था ।जनाब रोये जा रहें थे। कहाँ ले जाय। शतेश बोले चलो कहीं चल लेते है। मेरा बिल्कुल जाने का मन नहीं था। शतेश और इशू की जिद्द से निकल पड़ी। गाड़ी में बैठते ही इशू महराज चुप हो गए। शतेश बाबू मॉल ऐरिया की तरफ गाड़ी ले लिए। गाड़ी " बार्नेस एंड नोबल " के पास गाड़ी रोक दिए। बोले चलो कोई बुक ले लो ।मूड ठीक हो जायेगा। गुस्सा तो था ही पर ये शॉप देखकर थोड़ा शांत हो गई। बोली लेकर भी क्या फायदा जो पढ़ ही नहीं पाती।
खैर दुकान के अंदर गई। ना -ना करते हुए दो किताब ले ली। थैंक यू मेरा राजदुलारा ,मेरा सोना,मेरा मीर मस्ताना ,मेरा बदमाश खून सत्यार्थ ,तुम्हारी वजह से कितने दिनों की सोची किताबें ले पाई ।
पहली किताब -"द आर्ट ऑफ वॉर " और दूसरी -"द मेटामॉर्फोसिस एंड अदर्स स्टोरीज। "
द आर्ट ऑफ़ वॉर काफी समय से पढ़ने का मन था। देखते ही ले लिया। माहौल भी अनुकूल है ।बेटा घर में पानी पीला रहा है । इधर उत्तर कोरिया बम दाग़ने को तैयार है । वही मातृभूमि को चीन डरा रहा है। ऐसे में चाइनीज़ माल ओह्ह सॉरी चाइनीज़ लेखक को पढ़ना ठीक नहीं तपस्या । देशद्रोह जैसा कुछ फील होगा ।उम्म्म ,ना नहीं हुआ ।,चाइनीज़ खाना और कोई अच्छी किताब कहाँ से देशद्रोह टाइप फिलिंग लाएगा । एक पेट भर रहा है एक दिमाग ।दोनों संतुष्ट तो हम संतुष्ट ।
दूसरी किताब - फ्रैंज काफ़्का के कुछ कोट और "इन द पेनल कॉलोनी "शार्ट फिल्म की वज़ह से लिया ।
*मैं आज़ाद हूँ यही वज़ह है की खोया हूँ ।
*प्यार विरोधाभास का नाटक है ।
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