वैसे तो घुमना -फिरना हमारा बारहों महीना लगा रहता है पर, गरमी के दिनो में ये और भी बढ़ जाता है। उन्मे से सब के बारे में तो नही लिख पाती पर जो महत्वपूर्ण हैं या जो मुझे ज़्यादा पसंद आतें हैं उनकी सैर ज़रूर करा देती हूँ।
तो चलिए आज इंडीऐना का एक स्टेट पार्क जिसका नाम “टर्की रन स्टेट पार्क” है वहाँ लेकर चलती हूँ। इसके नाम के पीछे की कहानी तो किसी को ठीक से मालूम नही पर पार्क के इन्फ़र्मेशन सेंटर पर पता लगा कि शायद कभी यहाँ टर्की( एक तरह का पक्षी) यहाँ ख़ूब रहते होंगे। 2382 एकड़ में फैला ये पार्क पहाड़, पेड़-पौधों, छोटे-मोटे जंगली जानवर और पत्थरों का घर है। इसके बीच से एक नदी बहती है जिसका नाम शुगर क्रीक रिवर है। नदी का पानी तो वैसे हीं मीठा होता है पर इसके नाम के पीछे इसके मीठे पानी का योगदान कम इसके किनारे उगे मीठे मेपल ट्रीज़ का योगदान ज़्यादा है।
इस पार्क की ख़ूबसूरती में चार चाँद यहाँ के ट्रेल लगाते हैं। कुल ग्यारह अलग-अलग तरह के ट्रेल है। पथरीले ट्रेल को सुलभ बनाने की हर कोशिश की गई है फिर भी कुछ थोड़े मुश्किल भरे थे। ट्रेल 9 सबसे कठिन था और सत्यार्थ के साथ ये और मुश्किल होता तो इसे छोड़ हमने सारे ट्रेल किए। जब पैरों की हालत थोड़ी पतली होने लगी फिर घड़ी पर नज़र गई, हमारे क़दमों की गिनती सोलह हज़ार के पार पहुँच चुकी थी। हालाँकि ये क़दम नाप लगातार नही था, हम रुकते-रुकाते आगे बढ़ रहें थे। घर आने से पहले हमने साँझ की बेला में घोड़े की सवारी करनी चाही जो की पहाड़ों की सैर अपने ढंग से कराता पर सत्यार्थ की वजह से वो हो ना सका। हुआ यूँ कि, ये लास्ट टूर था और छः साल से छोटे बच्चें को उस पथरीले रास्ते पर घोड़े की सवारी माना थी। अब ऐसे में या तो मैं जाती या फिर शतेश। फिर तय हुआ कि छोड़ो फिर कभी ,अभी अब घर को निकलते हैं।
घर आने से पहले आपको बता दूँ कि यहाँ तक पहुँचने का रास्ता बड़ा ख़ूबसूरत है। वहीं मेरा पसंदीदा कंट्रीसाइड , छोटी सड़के, खेत-खलिहाल, जीव-जानवर और रास्ते में मिला एक क़ब्रिस्तान। हमें जाने वक़्त एक शव यात्रा भी मिली। हम क़ब्रिस्तान के थोड़ी हीं दूर थे। मैंने शतेश को बोला भी की चलो देखते है पर उधर मुड़ने का रास्ता कहीं दिख नही रहा था। क़रीब बीस मिनट के बाद के मोड़ आया तब तक हुआ कि छोड़ो अब और हम पार्क पहुँच गए।
तो चलिए तस्वीरों के ज़रिए सैर पर निकलते हैं,
तो चलिए आज इंडीऐना का एक स्टेट पार्क जिसका नाम “टर्की रन स्टेट पार्क” है वहाँ लेकर चलती हूँ। इसके नाम के पीछे की कहानी तो किसी को ठीक से मालूम नही पर पार्क के इन्फ़र्मेशन सेंटर पर पता लगा कि शायद कभी यहाँ टर्की( एक तरह का पक्षी) यहाँ ख़ूब रहते होंगे। 2382 एकड़ में फैला ये पार्क पहाड़, पेड़-पौधों, छोटे-मोटे जंगली जानवर और पत्थरों का घर है। इसके बीच से एक नदी बहती है जिसका नाम शुगर क्रीक रिवर है। नदी का पानी तो वैसे हीं मीठा होता है पर इसके नाम के पीछे इसके मीठे पानी का योगदान कम इसके किनारे उगे मीठे मेपल ट्रीज़ का योगदान ज़्यादा है।
इस पार्क की ख़ूबसूरती में चार चाँद यहाँ के ट्रेल लगाते हैं। कुल ग्यारह अलग-अलग तरह के ट्रेल है। पथरीले ट्रेल को सुलभ बनाने की हर कोशिश की गई है फिर भी कुछ थोड़े मुश्किल भरे थे। ट्रेल 9 सबसे कठिन था और सत्यार्थ के साथ ये और मुश्किल होता तो इसे छोड़ हमने सारे ट्रेल किए। जब पैरों की हालत थोड़ी पतली होने लगी फिर घड़ी पर नज़र गई, हमारे क़दमों की गिनती सोलह हज़ार के पार पहुँच चुकी थी। हालाँकि ये क़दम नाप लगातार नही था, हम रुकते-रुकाते आगे बढ़ रहें थे। घर आने से पहले हमने साँझ की बेला में घोड़े की सवारी करनी चाही जो की पहाड़ों की सैर अपने ढंग से कराता पर सत्यार्थ की वजह से वो हो ना सका। हुआ यूँ कि, ये लास्ट टूर था और छः साल से छोटे बच्चें को उस पथरीले रास्ते पर घोड़े की सवारी माना थी। अब ऐसे में या तो मैं जाती या फिर शतेश। फिर तय हुआ कि छोड़ो फिर कभी ,अभी अब घर को निकलते हैं।
घर आने से पहले आपको बता दूँ कि यहाँ तक पहुँचने का रास्ता बड़ा ख़ूबसूरत है। वहीं मेरा पसंदीदा कंट्रीसाइड , छोटी सड़के, खेत-खलिहाल, जीव-जानवर और रास्ते में मिला एक क़ब्रिस्तान। हमें जाने वक़्त एक शव यात्रा भी मिली। हम क़ब्रिस्तान के थोड़ी हीं दूर थे। मैंने शतेश को बोला भी की चलो देखते है पर उधर मुड़ने का रास्ता कहीं दिख नही रहा था। क़रीब बीस मिनट के बाद के मोड़ आया तब तक हुआ कि छोड़ो अब और हम पार्क पहुँच गए।
तो चलिए तस्वीरों के ज़रिए सैर पर निकलते हैं,
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