Thursday, 29 August 2019

सुनो, अब मैं जाऊँ सोने ... नींद आ रही है।
इतनी जल्दी ? अभी तो ध्रुव तारा भी नही निकला....ना ही चाँद बादलों के आँचल में सोने गया। और फिर मैं भी तो जाग रहा हूँ।
तुम्हारी बात और है। मैं ठहरी कल्पनाओं के झूले पर झूलने वाली। जागते-जागते ये कल्पनाएँ झूठी सी लगती है। और तुम्हें तो मालूम है.....
हाँ बाबा मालूम है तुम्हें झूठ पसंद नही पर ये भी तो सच है कि नींद में आती हुई कल्पनाएँ भी तो झूठ हीं है।
यहीं तो है बाबू, झूठ पसंद नही पर प्यारे झूठ और ख़्वाबों  से कब इनकार है मुझे।

तुम्हें समझना सच में पहेली है मेरे लिए.....
अब प्यारा झूठ क्या होता है ? और तुमने झूठ पर भी ख़्वाब देख डाले हा-हा-हा.....

हो गया तुम्हारा हाँ ? तो सुनो,  प्यार झूठ वो जो तुम कहते हो कि, सोती हुई मैं नींद की बेटी सी लगती हूँ।
प्यारा झूठ वो, जब तुम कहते हो कि, तुम्हारे चेहरे के फ़्रीकलस अच्छे लगते हैं मुझे। प्यारा झूठ वो जब तुम कहते हो कि वाह “मालिनी राजुरकर” जी क्या गा रही है। ऐसे तमाम वो बातें जो हमने एक दूसरे में बदल लिया, चाहे वो मन से हो आत्मा से हो या शरीर से वो सब एक ख़ूबसूरत झूठ हीं तो है। ठीक उसी तरह जैसे  मेरी जाँ... मुझे जाँ ना कहो मेरी जाँ मेरी जाँ......... जान सदा रहती है कहाँ.....

चुप क्यों हो गई। पूरा करो ना इसे।
ना, मुझे नींद आ रही है फिर कभी। ओह, ऐसा भी क्या गुनगुना हीं दो, मेरी जाँ....
अच्छा तो लो सुनो,
 लाला ला ला ..हम्म हम्म ह ह .....मेरी जाँ ला-ला....हूँहूँ....
होंठ झुके जब होंठों पर..साँस उलझी हो साँसों में ....
दो जुड़वाँ होंठों की, बात कहो आँखों से
मेरी जाँ ला ..लाला हूँहूँ......
अब क्या आज्ञा है सोने जाने की रात के डेढ़ बज गए हैं। या आज भी ध्रुव तारा देखना हीं होगा हा-हा-हा....
 क्या हीं कहूँ तुम्हें मैं नींद की बेटी...
 अच्छा सो जाओ पर सोने पहले एक और गीत।
उफ़्फ़ ! अब नही गाऊँगी। अरे, तुम्हें कौन कह रहा है गाने को ? रुको एक मिनट।
हे भगवान ! तो इस भारी रात में तुम हुंकार लगाओगे हा-हा-हा.... माफ़ करो मैं जाग हीं जाती हूँ।
हो गया अब तुम्हारा तो लिए मेरी तरफ़ से ये ख़ूबसूरत गीत का लिंक आपके लिए। और हाँ डरिए नही इस बार आप मेरी पसंद पर जाने क्या कर बैठे....
अच्छा तो ये बात है ? फिर पेश किया जाए..
लिंक भेजा है..
हाँ मिला। तो साथ सुने ?
ठीक है चलो, स्टार्ट......
स्टार्ट।
जाग दिल-ए-दीवाना रुत जागी वस्ल-ए-यार की
बसी हुई ज़ुल्फ में आयी है सबा प्यार की
जाग दिल-ए-दीवाना......
ओह .... तुमने तो सच में नींद उड़ा दी। देखो तो कैसे रफ़ी साहब अंधेरी रात में हौले- हौले प्रेम को जगा रहें है। इतने साधना से जागना कि उसकी पुकार सिर्फ़ धीरे से दिल तक पहुँचे और दुनिया सोती रह जाए। कैसे कोई गा कर ज़ुल्फ़ से प्यार पहुँचा सकता है। क्या हीं कहूँ मैं तुम्हें... काश अभी इस वक़्त रफ़ी मेरे सामने होते तो मैं उनका गला चूम लेती।
और मैं होता तो....
तो क्या कुछ नही हा-हा-हा....
हाय रे निर्मोही,  रफ़ी को भी चूमा तो गले पर। क्या प्रेम है तुम्हारा मान गया....
किसी के प्राणवायु के द्वार को चूमना उसके आत्मा तक पहुँचने का रास्ता है बाबू। इसे सिर्फ गला ना समझो। एक द्वार है मन का आत्मा का ज्ञान का और जीवन का। यहाँ एक चुम्बन की गाँठ सारी मन्नते पूरा कर देंगी जनाब.....

अब सो जाए... गुड नाइट....
आहम्म....
जाग दिल -ए-दीवाना........




Wednesday, 21 August 2019

बादल की प्रेम कहानी !!!

उफ़्फ़ ! अब क्या है ? क्यों तुम ऐसे हो मुझे समझ नही आता....
जब भी बालों को मेंहदी से रंगती हूँ, जाने कहाँ से तुम आ धमकते हो। अच्छा ये तो बताओ कि तुम्हें ख़बर कैसी होते है ? 
ख़बर.... 
ख़बर तुम्हारे बालों की मेंहदी मुझ तक पहुँचाती है। काले केश और हरी मेंहदी कुछ ऐसे सुगंध भर देते हैं फ़िज़ाओं में की मानो नई श्रिसती का जन्म हो रहा हो। विनाश से हरियाली की तरफ़ खिंचतीं ये कुछ अलग सी ख़स्बू से मैं ख़ुद को रोक नही पाता और आ जाता हूँ तुम्हें सींचने...
मेरी तो कुछ समझ नही आती तुम्हारी ये बातें। सच में पागल हो तुम। 
पागल.... हाँ हूँ तो तभी तो तुम्हें ख़ुद को सौंपते हुए गाने का मन कर रहा है...

आप की महकी हुई ज़ुलफ को कहते हैं घटा
आप की मदभरी आँखों को कंवल कहते हैं

अच्छा जी तो फिर मेरी भी सुन लो,
मैं तो कुछ भी नही तुम को हसीन लगती हूँ
इस को चाहत भरी नज़रो का अमल कहते हैं....
 
तुम तो कहती हो मेरी नज़र काजल की डिबिया है फिर आज तुम्हें इनमे चाहत का असर कैसे दिखा? मुझसे आँखमिचोनी खेलने वाली लड़की, सच बताऊँ तो मन मेरा ख़ुशी से बावरा हुआ जा रहा है। मैं झूमना चाहता हूँ, चमकना चाहता हूँ, बरसना चाहता हूँ। जैसे “मीठा सा शोर दिल से कुछ और आता है कहते है लोग सावन में बौर आता है”

वैसे सच कहूँ तो मुझे भी तुम्हारा साथ अच्छा लगता है। बहुत प्यारा.... कई यादें, कई अरमान लेकर आते हो तुम। सबकुछ भूल, मन मेरा भींगने को करता है तुम्हारे साथ। एक नए लोक की कल्पना से भरी मैं तुम्हारे एक-एक अस्पर्स को महसूस करती हूँ। “ज़िन्दगी जब भी तेरी बज़्म में लाती है हमें ,ये ज़मीं चाँद से बेहतर नज़र आती है हमें “

तो फिर सुनो तपस्या, 
आज हम इश्क़ का इज़हार करे तो क्या हो
भरी महफ़िल में तुम्हें प्यार करें तो क्या हो

हा-हा-हा....अच्छा, जान पहचान से इनकार करें तो क्या हो। कोशिशे आप की बेकार करे तो क्या हो...

अरे सुनो तो,मस्तियाँ सी फ़िज़ा पे छाई है
वादियाँ राग में नहाई है। नर्म सब्ज़ पेड़ शोख़ फूलों ने 
मखमली चादरें बिछाई है।
आ छोड़ो शरमाना ऐसे मौसम में तबियत क्यों निहाल करती हो.....

तबियत निहाल से याद आया अब मुझे जाना होगा। वरना तबियत सच में निहाल हो जाएगी।

सुनो तो ,ज़िंदगी अब इन्हीं क़दमों पे लुटा दूँ तो सही
ऐ हसीन बुत मैं ख़ुदा तुझको बना दूँ तो सही
और कुछ देर ठहर और कुछ देर न जा
और कुछ देर ठहर ...

ना-ना अब और नही मुझे जाना हीं होगा।
ठीक है जाओ पर जाने से पहले दो पल को रुक जाओ। मैं तुम्हारा “बादल” अपनी बूँदों से तुम्हारे पाँव तो भर दूँ। देखूँ तो सही जाते हुए तुम्हारे पाँव मुझ में भींग कर क्या अल्पना बनाते है.... देखूँ तो सही मेरी बूँदे जो तुम्हारे पाँव की पायल बनी वो टूट के बिखर तो नही गई.... देखूँ तो सही तुम्हारे केश की गीली मेंहदी मेरी बूँदों के साथ क्या रंग ला रही है तुमपर....

तुम चली जाओगी परछाईँयां रह जाएँगी 
कुछ न कुछ हुस्न की रानाईयाँ रह जाएँगी |
धुल के रह जाएगी झोंको में बदन की खुशबू 
जुल्फ का अक्श घटाओं में रहेगा सदियों....


Sunday, 18 August 2019

तपस्या:- गंगा मईया के ऊँची अररिया तिवई एक रोयेली हो
हे गंगा मईया अपनी लहर मोहे दिहतू त हम डूबी मरती हो.......
हे गंगा अपनी लहर हू...... त हम...ला-ला....

तेज बाबू:- आई दादा, अमेरिका में आजे छठ था का जी?  हई देखिए हमरो गंगा किनारे का फ़ोटू। घुमने गए थे तो फ़ोटोग्राफ़र खैंच लिया। 
तपस्या:- कभी -कभी हमको लगता है कि एश्वर्या ठीके की। 

तेज बाबू:- कौन एसवरीया? हमार एक्स पत्नी?
तपस्या:- ना , ऐश्वर्या राय। अभिषेक की करेंट पत्नी। बोका.....

तेज बाबू:- अच्छा छोड़ो ना ये सब। ये बताओ कि क्या वहाँ भी गंगा है?  क्या वहाँ भी छठ होता है? अरे होता हीं होगा अबकि तो हमलोग जम्मू में भी छठ करने जाएँगे।
तपस्या:- हम्म, यहाँ गंगा तो नही पर कहीं-कहीं छठ होता ज़रूर  है। वैसे जम्मू में कौन सी गंगा है?

तेज बाबू:- है नही। अभी पिछले दिनो तुम्हारे कहने पर नोटबूक फ़िल्म देखी। ऊ जो बच्चा सब का स्कूल था वो गंगा नदी पर ही तो लग रहा था।
वईसे भी  छठ पूजा से गंगा जी का क्या मतलब।  कोई नदी, पोखर हो, कुछ केला का थम और घाट तैयार । लेकिन  तुम ई डूबने -मरने  वाला गीत क्यों गा रही थी।
तपस्या:- आपके अद्भुत ज्ञान और जम्मू में छठ करने की ख़ुशी से......

तेज बाबू:- अरे हम जादूगर है। भगवान भोले और राधा दोनो हम में वास करते हैं। बस ई तेजस्वीया हमरी बात नही समझता। समझायेंगे किसी दिन उसको ठीक से। सच बताएँ तो जब से सुशील चाचा बोले हैं कि, अब हमलोग को जम्मू में भी रोज़गार मिलेगा तबे से हमरी पार्टी भी उधर पहुँच रही है। शुरुआत छठें पूजा से होगा। वहीं पर एक ठेकुआ का भी स्टोल लगवा देंगे। बाक़ी स्टेशन पर चाय और लिट्टी तो बिकेगा हीं।

तपस्या:- हम्म, ठीक हीं है अपने यहाँ स्टेशन कहाँ?  रोज़गार कहाँ? रही बात छठ पूजा की तो वो यहीं हो तो ज़्यादा अच्छा हो तेज बाबू।
नज़र उठाइए तो ज़रा, अभी हर तरफ़ नदी ही नदी। घाट ही घाट दिखेगा। इतनी नदी की किसी का घर, किसी के पशु , किसी का खेत तो किसी की जान डूबी मरती सी जा रही होगी। ध्यान से सुनिएगा तो छठ का यहीं गीत आपको हर तरफ़ हाहाकाररूप में सुनाई दे रहा होगा।

कोई गा रहा होगा;
ना ही मोरा घर दुःख ना ही संतान दुःख हे ,
ये गंगा मईया देश हमार अति पिछड़ा, त बाढ़ ह सूखाड ह सरकार दुःख दोसर हे......

तेज बाबू:- हमको तो कुछ सुनाई नही दे रहा।
तपस्या:- देता तो यहाँ बैठे नदी का नज़ारा देख रहे होते.....
अच्छा है कुछ दिखाई नही देता, कुछ सुनाई नही देता, नही तो मेरी तरह गा रहे होते,

ये गंगा मईया अपनी लहर मोहे दिहतू त हम डूबी...  .......

Friday, 16 August 2019

किरदार !!!


किताबों से कभी गुज़रो तो यूँ किरदार मिलते हैं
गए वक़्तों की ड्योढ़ी में खड़े कुछ यार मिलते हैं

जिसे हम दिल का वीराना समझकर छोड़ आये थे
वहाँ उजड़े हुए शहरों के कुछ आसार मिलते हैं.....

जगजीत जी की आवाज़ से शुरू होती कुछ कहानियाँ। कुछ ऐसी जो दर्द को दर्द से काटती सी। बीते दिनों सुख रोग से पीड़ित रही। ऐसे में साँस लेना भी दूभर हो रहा था। खीज कर मैंने नाक को रगड़ कर कहा, भाड़ में जा ....
लाल-पीले हुए नाक को यू  हीं छोड़ उसका काम मैंने मुँह को दे दिया। पर होता है ना जिसका बंदर वहीं नचाए। अब जो नाक की नासिका हवा के साथ खेल खेलती वो भला कंठ की घंटी से जुड़ा मुँह कैसा कर सकता? हवा जाती और कंठी बज कर काँप जाती। इस मुँह ने तो अपनी घंटी बजा-बजा कर गले में दर्द पैदा कर दिया। अब गर्दन मुँह फुला कर कहने लगा की, मैं ऐसी ज़्यादती नही सहूँगा। एक तो तुमने मेरे दोस्त को भाड़ में जाने को कहा दूसरा कंठ को तुमने एक्स्ट्रा काम दे दिया। माना आत्मा रूपी देव का शरीर मंदिर है पर इसका मतलब क्या बार-बार घंटी बजेगा?  जाओ तपस्या अब तुम्हारा दाना-पानी बंद।

मैंने कहा ये बात है? अभी तुम्हें मालूम नही किससे पाला पड़ा है। रुको अभी बताती हूँ। जिस वायरस के दम पर तुम नाक -देह उछल रहे हो उसी का सफ़ाया कर देती हूँ। फिर देखती हूँ.......
ग़ुस्से में दराज़ खोला। सामने से एक डिब्बी निकाली। डिब्बी का ढक्कन खोला और एक पीच रंग की एक गोली निकाल गर्दन में धकेल दिया। लगभग एक घंटे बाद बाप-माई करते, पसीना-पसीना हुए गर्दन जी, नाक जी और ताप जी अपनी औक़ात पर आ रहे थे।

अब बारी थी अपने जीत का जश्न मानने की। निम्बू-पानी और चीनी का पैग बनाया। सोफ़े पर पसर कर टू वॉच लिस्ट देखने लगी। क्या देखूँ? क्या देखना रह गया है?
ऐसे में नज़र गई गुलज़ार की बनाई सीरियल “ किरदार” पर। एक से एक एपिसोड। पर मुझे सबसे अच्छा जगजीत जी की आवाज़ में इसका शुरू होना लग रहा था। जितनी बार उनके शब्दों को सुनती लगता कितना सच है ना......
कई बार तो सिर्फ़ गाने भर सुनती फिर आगे बढ़ती। हर एपिसोड लगभग  बीस-पचीस मिनट का है। सब की अलग कहानी है। मुझे जो सबसे अच्छा एपिसोड लगा वो  “ बेल निम्बू”  “रहमान के जूते” “हाथ पीले कर दो” और मुखबिर।

अगर आप भी देखना चाहतें हो तो यू टूब पर देख सकतें है।