Wednesday, 21 August 2019

बादल की प्रेम कहानी !!!

उफ़्फ़ ! अब क्या है ? क्यों तुम ऐसे हो मुझे समझ नही आता....
जब भी बालों को मेंहदी से रंगती हूँ, जाने कहाँ से तुम आ धमकते हो। अच्छा ये तो बताओ कि तुम्हें ख़बर कैसी होते है ? 
ख़बर.... 
ख़बर तुम्हारे बालों की मेंहदी मुझ तक पहुँचाती है। काले केश और हरी मेंहदी कुछ ऐसे सुगंध भर देते हैं फ़िज़ाओं में की मानो नई श्रिसती का जन्म हो रहा हो। विनाश से हरियाली की तरफ़ खिंचतीं ये कुछ अलग सी ख़स्बू से मैं ख़ुद को रोक नही पाता और आ जाता हूँ तुम्हें सींचने...
मेरी तो कुछ समझ नही आती तुम्हारी ये बातें। सच में पागल हो तुम। 
पागल.... हाँ हूँ तो तभी तो तुम्हें ख़ुद को सौंपते हुए गाने का मन कर रहा है...

आप की महकी हुई ज़ुलफ को कहते हैं घटा
आप की मदभरी आँखों को कंवल कहते हैं

अच्छा जी तो फिर मेरी भी सुन लो,
मैं तो कुछ भी नही तुम को हसीन लगती हूँ
इस को चाहत भरी नज़रो का अमल कहते हैं....
 
तुम तो कहती हो मेरी नज़र काजल की डिबिया है फिर आज तुम्हें इनमे चाहत का असर कैसे दिखा? मुझसे आँखमिचोनी खेलने वाली लड़की, सच बताऊँ तो मन मेरा ख़ुशी से बावरा हुआ जा रहा है। मैं झूमना चाहता हूँ, चमकना चाहता हूँ, बरसना चाहता हूँ। जैसे “मीठा सा शोर दिल से कुछ और आता है कहते है लोग सावन में बौर आता है”

वैसे सच कहूँ तो मुझे भी तुम्हारा साथ अच्छा लगता है। बहुत प्यारा.... कई यादें, कई अरमान लेकर आते हो तुम। सबकुछ भूल, मन मेरा भींगने को करता है तुम्हारे साथ। एक नए लोक की कल्पना से भरी मैं तुम्हारे एक-एक अस्पर्स को महसूस करती हूँ। “ज़िन्दगी जब भी तेरी बज़्म में लाती है हमें ,ये ज़मीं चाँद से बेहतर नज़र आती है हमें “

तो फिर सुनो तपस्या, 
आज हम इश्क़ का इज़हार करे तो क्या हो
भरी महफ़िल में तुम्हें प्यार करें तो क्या हो

हा-हा-हा....अच्छा, जान पहचान से इनकार करें तो क्या हो। कोशिशे आप की बेकार करे तो क्या हो...

अरे सुनो तो,मस्तियाँ सी फ़िज़ा पे छाई है
वादियाँ राग में नहाई है। नर्म सब्ज़ पेड़ शोख़ फूलों ने 
मखमली चादरें बिछाई है।
आ छोड़ो शरमाना ऐसे मौसम में तबियत क्यों निहाल करती हो.....

तबियत निहाल से याद आया अब मुझे जाना होगा। वरना तबियत सच में निहाल हो जाएगी।

सुनो तो ,ज़िंदगी अब इन्हीं क़दमों पे लुटा दूँ तो सही
ऐ हसीन बुत मैं ख़ुदा तुझको बना दूँ तो सही
और कुछ देर ठहर और कुछ देर न जा
और कुछ देर ठहर ...

ना-ना अब और नही मुझे जाना हीं होगा।
ठीक है जाओ पर जाने से पहले दो पल को रुक जाओ। मैं तुम्हारा “बादल” अपनी बूँदों से तुम्हारे पाँव तो भर दूँ। देखूँ तो सही जाते हुए तुम्हारे पाँव मुझ में भींग कर क्या अल्पना बनाते है.... देखूँ तो सही मेरी बूँदे जो तुम्हारे पाँव की पायल बनी वो टूट के बिखर तो नही गई.... देखूँ तो सही तुम्हारे केश की गीली मेंहदी मेरी बूँदों के साथ क्या रंग ला रही है तुमपर....

तुम चली जाओगी परछाईँयां रह जाएँगी 
कुछ न कुछ हुस्न की रानाईयाँ रह जाएँगी |
धुल के रह जाएगी झोंको में बदन की खुशबू 
जुल्फ का अक्श घटाओं में रहेगा सदियों....


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