Wednesday 22 December 2021

कोरोना डोज़

देह ऐसा हुआ है मानो वीपिंग चेरी ट्री। हल्की गुलाबी फूलों की लड़ी सी झुकती, पसरती,  टूटती और हौले से बिखरती… तनिक भी हाथ इधर-उधर करो और मानो सारे फूल बिखर जाए। फूलों को समेटती हाथ में पड़े किताब को सुला देती हूँ। एक किताब जो बोझिल पलो में भी मुस्कान बिखेर जाता है। 

डॉक्टर तुलसीराम , मुर्दहिया में लिखते है , “ अरे रामा परि गय बलुआ रेत, चलब हम कईसे ये हरी” यह लोकगीत अकाल के दिनों में खेती करती कुछ महिलायें गा रही है। यह एक ऐसी किताब जो मैं जब-तब पलटती रहती हूँ। ख़ास कर तब, जब कुछ और पढ़ने का मन ना हो और कुछ करने को भी ना हो। पर आज इसे भी पढ़ कर माथा भारी हो रहा है। 

गले में हल्की ख़राश सी होती है। चाय पीने की इक्षा हो रही है पर रात के तीन बजे चाय कौन बनाए ?  ऊह आह के साथ जलते हुए तलवों को कार्पेट पर रखती हूँ। नज़र पैरों के नाख़ूनों पर अटक गई। essie forever yummy का लाल रंग नाख़ूनों पर धारी सी रह गई है। कितना वक्त हो गया ना पैरों पर ध्यान दिए। ठीक होते ही पहले पैरों की सेवा होगी, बुदबुदाते हुए मैं रसोई की तरफ़ बढ़ चली। 

कॉफी उतनी पसंद ना होते हुए भी आसानी की वजह से बना ली गई। उसकी हल्की कड़वी चुस्कियाँ लेते हुए मैं अपनी पहली किताब के नायक से जा टकराई। नायक, जिसे अपने बुख़ार से, अपनी ताप से प्रेम हो गया था… बुख़ार का इंतज़ार वह ऐसे करता जैसे कोई अपनी प्रेमिका का इंतज़ार करता हो। तभी तो वह “मनलहरी” था । 

अचानक हँसी आई, तब यह किरवना, कोरोना जो नही था। यह होता तो क्या नायक को इसके रूप से वैसा ही प्रेम होता जैसा टाईफ़ाईड के साथ हुआ ?  यूँ तो कई बार टाईफ़ाईड भी जानलेवा है और कई बार कोरोना के जीव भी अपना शिकार छोड़ देते है। 

ख़ैर, देह की ऐठन में भी दिमाग़ बिना ऐंठे सोच-विचार कर रहा है, कमाल है ना। यह दिमाग़ ही तो है जो बीमार पड़े किट्स से कविताएँ लिखवा लेता है। जॉर्ज ओरवेल से 1984 लिखवा लेता है। काफ़्का से चिट्ठियों द्वारा बात करवा लेता है और वर्जिन्या वुल्फ़ से , “अ रूम ओफ़ वंज़ ओन” लिखवा सकता है…

ना कॉफी ख़त्म हुई ना सोच-विचार कि मेरे इश्क़ तोशू के रोने की आवाज़ कानों में पड़ी। उफ़्फ़ ! एक माँ तबियत से बीमार भी नही पड़ सकती। तब तो और भी नही जब नवजात का जीवन छाती से सींचा जा रहा हो। 

कॉफी सोफ़े के साइड टेबल पर अधूरी रह गई… माँ बच्चे का डाइपर चेंज करने लगी। भला हो “मैरिऑन डोनवेंन” का जिन्होंने ने डिस्पोजिबल डाइपर बनाई। 

भला से याद आई आज की नर्स। जाने किस सोच में पड़ी उस सुंदरी ने सुई को भाला समझ घोंप दिया। भारत में होती तो बूँद-बूँद रिसता खून कब का मुँहा-मूही एक बोतल में तब्दील हो गया होता, सोच कर हाथ का दर्द छन भर को ग़ायब और चेहरे पर मुस्कान खिल गई। 

PS - यह कथा, कोरोना के दूसरे डोज़ का असर है। वैसे मैंने इस साल दो चमत्कारी काम किया। पहला तो प्लेट में दीया रख तस्वीर खिंचा ली जो इतनी उम्र बीतने के बाद अब तक नही ली गई थी और दूसरा सुई का आनंद लेते हुए, ज़माने के साथ कदम मिलाते, उसकी तस्वीर जबरन लिवाई पर्सनल फ़ोटोग्राफ़र से। 

Sunday 12 December 2021

डायरी

 अभी पाँच-छह दिन पहले ही केंटकी के बारे में लिखा था। वही जहाँ अब्राहम लिंकन का जन्म हुआ, मोहम्मद अली का जन्म हुआ और मेरे पसंदीदा अभिनेता में से एक जॉनी डेप का जन्म हुआ। यहीं इस वीकेंड को टोरनाड़ो आया था। वैसे तो यह चक्रवात अमेरिका के पाँच-छह राज्यों में आया था। पर सबसे ज़्यादा नुक़सान केंटकी में हुआ। 80 से  ज़्यादा लोगों की मरने की ख़बर है। केंटकी के इतिहास का यह सबसे भयंकर तूफ़ान रहा। लूईविल केंटकी का सबसे बड़ा शहर है।इंडियापोलिस ख़त्म होते ही लूईविल में प्रवेश होता है। ऐसे में हमारे यहाँ भी सचेत रहने का मैसेज आया। हमने ख़राब मौसम देखा और लिट्टी लगा ली। लिट्टी -चोखा खाने के बाद गर्मागर्म चाय पी और ठोक-पीट कर बच्चों को सुलाने लगी। कमरतोड़ मेहनत के बाद छोटका सोया ही था कि मानो, हवाएँ खिड़की पर झूलने लगी।  गोंऽऽऽ…गोंऽऽऽ करती वे जड़ काँच पर थपेड़े बरसाने लगी कि तुम्हारी इतनी हिम्मत, हम ठंढ से काँप रहें और तुम अपना द्वार नही खोल रही। बेचारी खिड़की पराधीन, वह काँपते हुए बोली, माफ़ करो बहन ऐसे मौसम में तुम्हारा किसी भी घर में प्रवेश वर्जित ही है। उग्र हवा और काँच की खिड़की के विवाद में मेरा बच्चा डर कर जग गया। मैं खीज उठी और इन हवाओं को कोसने लगी। शायद मेरा ताना उन तक पहुँचा और वे धीमी चलने लगी। मेरी खिड़की से लड़ना छोड़ बादल से टकराने लगी। उनकी टकराहट इतनी बढ़ गई कि एक सफ़ेद चिंगारी फूटी और तेज गर्जना के साथ  वे दोनों एक दूसरे पर बरस पड़ी। उनकी बरसात, धरती के साथ मेरे घर को भीगो रही थी। 

मैंने फिर से कमर कसा, बेटे को सुलाने लगी। बेटा राम मेरी गोद में सावन का झूला झूल रहे थे। इधर मैंने पढ़ रही एक किताब का pdf खोला और आगे पढ़ना शुरू किया। 

किताब है, “The book of  Mirdad” किताब अब तक जितनी पढ़ी वह और आगे पढ़ने की लालसा जगाती जाती है पर रात्रि जागरण और नींद प्रेम के कारण किताब धीरे-धीरे मुझमें घुल रही है। मिखाइल नईमी लिखते हैं, 

प्रेम प्रभु की रचना है।
तुम जीते हो ताकि तुम प्रेम करना सीख लो।
तुम प्रेम करते हो ताकि तुम जीना सीख लो।
मनुष्य को और कुछ सीखने की आवश्यकता नहीं।
साथ ही यह भी कि , जीने के लिए मरे या मरने के लिए जिए।
हर अगली लाइन पढ़ने के बाद कुछ देर ठहरने का मन करता है। इसी पढ़ने, ठहरने के बीच मेरा इश्क़ तोशू फिर से जगता है। उसे भूख लग आई है। मैं उसका मुख देखती हूँ तो अपना बचपन जीती हूँ। ऐसे में किताब रख अब लाड़-प्यार पर अटकी हुई थी। लेकिन रात के साढ़े तीन भी तो बज रहे थे। पलकों पर नींद झूलने लगी। ऐसे में मैंने संगीत का मुँह देखा और जो हिस्ट्री में पहला गीत दिखा वह हौले से बजा दिया। 
गीत, चिट्ठियों वाला प्यार है। यह गीत जाने कितने दिनों बाद सुना। इसकी याद आई बीते दिनों डाकघर जाने के बाद। तो चलिए आप भी सुनिए इसे चिट्ठियों के नाम। 



Monday 6 December 2021


आज हम फिर से केंटुकी घूमने चलते है। याद है ना, इससे पहले हमलोग “मोहम्मद अली” का जन्म स्थान देखने यहाँ पहुँचे थे। kfc चिकेन की भी बात हुई थी पर आज आपको जो देखना है वह है “अब्राहम लिंकन” का जन्म स्थान।

12 फरवरी, 1809 को  लिंकन का जन्म केंटुकी के हार्डिन काउंटी में हुआ था। पर आज यहाँ जाने के लिए आपको जी पी एस में,  2995 लिंकन फार्म रोड, हॉजगेनविले, केंटकी, पता डालना होगा।

लिंकन के जन्म स्थान तक पहुँचे, इससे पहले क्यों ना ड्राइव करते-करते इनके बारे में थोड़ा जान ले। वैसे तो आप सब इनके बारे में जानते ही होंगे पर मुझे इनकी जीवनी, रोलर कोस्टर राइड की तरह लगती है। इनके संघर्ष को देख कर लगता है कि क्यों हम छोटे-छोटे दुखों से इतनी जल्दी हार मान जाते है। वैसे लिंकन ने ही कहा है , “जिसका जीवन जितना संघर्षपूर्ण रहा, उसने उतना ज़्यादा सीखा” 

गरीब परिवार में जन्में लिंकन का घर लकड़ी का एक छोटा सा कमरा भर था। बाद के दिनों में ज़मीन की लड़ाई-झगड़े में इनके परिवार को यह घर भी छोड़ना पड़ा और केंटुकी से इंडिआना के “पैरी काउंटी” में आना पड़ा। लिंकन ने तीन घर बदले और उनके हर घर को एक स्मारक का रुप दिया गया है। 

जब ये 21 साल के थे तब अपने पिता से अलग हो गए थे। पिता चाहते थे कि बेटा, पढ़ाई-लिखाई, कविता-कहानी छोड़, उनके साथ मज़दूरी में हाथ बटाए पर लिंकन को यह मंज़ूर ना था। 

जैसे -तैसे थोड़ी पढ़ाई हुई। नौकरी की पर वहाँ से भी निकाल दिए गए। फिर इन्होंने बिजनेस शुरू किया। वह भी कुछ समय के बाद पूरी तरह से ठप हो गया। इस बीच जिस लड़की से प्रेम करते थे, उसका देहांत हो गया। लिंकन डिप्रेशन में चले गए। 

ब्याह हुआ जिस लड़की से उससे कभी मन ना मिला। चार बच्चे हुए पर तीन की मृत्यु बचपन में ही हो गई और चौथा 18 साल की उम्र में नही रहा। 

इधर समाज में ऊँच-नीच का भेद मिटाने को वह राजनीति में घुसे तो वहाँ भी इन्हें करारी हार मिली। सीनेट के चुनाव में 11 असफलताओं के बाद उन्हें शानदार जीत मिली। इसके बाद उन्होंने अमेरिका का प्रेसिडेंट चुनाव लड़ा और अमेरिका के 16 प्रेसिडेंट बने।  

लिंकन के संघर्ष से हार ना मनाने की प्रेरणा लेकर अब हम इनके जन्म स्थान को देखते है। इस जगह को अब “Abraham Lincoln Birthplace National Historical Park” नाम दिया गया है। यहाँ इनके लड़की के घर का हमशक्ल बना कर एक मेमोरीयल के रूप में रखा गया है। कहते है कि इसकी कुछ लकड़ियाँ लिंकन के पुराने घर से ली गई है पर वहाँ बैठा गाइड बताता है कि, लकड़ियाँ लाई ज़रूर गई थी पर वह बहुत पुरानी होने की वजह से ठीक से काम ना आ सकी तो ये सारी नई लकड़ियाँ है। 

इसके अलावा यहाँ, “नैन्सी लिंकन “ जो लिंकन की माँ थीं, उनका भी केबिन बना है। एक छोटा सा झरना है जिसे कहते है कि इससे लिंकन के पिता खेतों की सिंचाई करते थे। साथ ही एक छोटा सा म्यूज़ियम है जिसमें घर के कुछ बर्तन, कुछ अवज़ार, लिंकन की मूर्ति, एक छोटा सा प्रोजेक्टर हॉल भी है। जिसमें लिंकन की जीवनी दिखाते है। 

तो चलिए, तस्वीरों के साथ आप भी सैर पर निकले और हाँ सीढ़ियाँ चढ़ते हुए थकिएगा नही क्योंकि मैं भी चढ़ी थी जबकि, मैं माँ बनने वाली थी। 




Wednesday 1 December 2021

पोस्टपार्टम डिप्रेशन को जाने !!!

अमेरिका में नॉर्मल डिलीवरी हो या सी सेक्शन, बच्चे के जन्म के बाद माँ को कुछ दिनों में डॉक्टर को दिखाना होता है। यह नॉर्मल रूटीन चेक अप जैसा होता है। जिसमें आपकी जाँच के साथ कुछ सवाल पूछे जाते है जैसे, 

कोई तकलीफ़, ब्लीडिंग , पेन, स्टीचेज कैसी है, कमजोरी, यूट्रस का पोजिशन, ब्रेस्ट फ़ीडिंग या फ़ॉर्म्युला और “डिप्रेशन” की समस्या। 

डिप्रेशन ? 

जी हाँ, डिप्रेशन के लक्षण के बारे में पूछे जाते है। आप चौंक गए होंगे ना कि माँ बनने का डिप्रेशन से क्या लेना- देना ? मैं भी चौंक गई थी , जब पहली बार सत्यार्थ के होने पर नर्स का कॉल आया था। किसी-किसी जगह डॉक्टर विजिट से पहले उसकी नर्स का कॉल आता है, सारी जानकारी लेने के लिए। तब मैं “कनेक्टिकट” में रहती थी। मैंने चौंकते हुए नर्स से कहा , “ नही तो, मुझे तो कोई डिप्रेशन के लक्षण नही पर आप ऐसा क्यों पूछ रही है ?”

उसने कहा, “ यह हमारा प्रोटोकल है, पूछना।  फिर उसने समझाया कि,  माँ बनने के दौरान एक स्त्री के शरीर में कई हार्मोनल चेंज होते है। इसमें एस्ट्रोजन, प्रोजेस्ट्रोन, टेस्टोस्टेरोन जैसे हार्मोन्स में बदलाव का असर उसके व्यवहार पर पड़ता है। शरीर का कमजोर होना और अचानक नवजात की देख भाल करना अपने आप में एक बड़ा काम है। ऐसे में किसी -किसी माँ में डिप्रेशन की समस्या देखी गई है। हालाँकि यह रेशियो बहुत कम है, 10 से 15%  माँ में ही यह लक्षण देखने को मिले है।”  इसके बाद उसने फोन रख दिया। 

मुझे बड़ी हँसी आई कि देखो ना, यहाँ कितना ड्रामा है। माँ बनने से भी कहीं डिप्रेशन होता होगा क्या ? अपने भारत में तो कभी ऐसा देखा या सुना नही।  

बात आइ-गई हो गई। फिर मैं जब भारत आई तो एक पुरानी दोस्त से बातों के दरम्यान एक बचपन की बात सामने आई। उसने एक महिला के बारे में बताया , “ अरे तुझे मालूम नही था, वह पागल थी। अपने छोटे-छोटे बच्चों को कहीं भी पटक देती, दूध नही पिलाती, खाना नही देती। दिन भर पड़ी रहती। कहती कि तबियत ठीक नही लगती। घरवालों को लगता कि वह काम से जी चुराने का बहना करती है। फिर धीरे-धीरे उसकी तबियत ज़्यादा बिगड़ी तो घरवालों ने डॉक्टर को दिखाया पर बीमारी का पता नही लगा। बात दवा से हट कर दुआ और झाड़-फूँक तक पहुँच गई।” 

मैने हँसते हुए कहा , “ अब एक के बाद एक छह बच्चे पैदा होंगे तो कितनों को वह देखेगी, सम्भलेगी। यहाँ तो एक बच्चे के रोने से दिमाग़ ख़राब हो जाता है।”  

उस वक्त तो हँसी-मज़ाक़ , ओहो -हो हो … तक बात रह गई। फिर एक दिन मैं बच्चों से जुड़ी डोक्यूमेंट्री देख रही थी, इसी बीच मुझे एक ऐसी डोक्यूमेंट्री दिखी जो पोस्टपार्टम डिप्रेशन के बारे में थी। मुझे अचानक से नर्स की बात याद आई, पोस्टपार्टम डिप्रेशन” और मैं इसे देखने लगी। इसे देखते हुए मुझे वह महिला याद आई, जिसके बारे में दोस्त ने बताया था। 

हो सकता हो वह भी इस परेशानी से जूझ रही होंगी पर किसी को समझ नही आया। जाने ऐसी कितनी महिलाएँ भारत में भी होंगी पर हमें मालूम ही नही चलता होगा। यूँ भी दिमाग़ी बीमारी को लोग सहज नही ले पाते। वे समझ नही पाते कि जैसे हाथ-पैर-फेफड़े-गुर्दे में बीमारी/तकलीफ़ हो सकती है वैसे दिमाग़ में भी हो सकती है। यह भी तो शरीर का ही एक भाग है। 

बाक़ी, डिलीवरी के बाद जो महिलाएँ इस पीड़ा से गुजरती होंगी सोचिए उन पर क्या बीतती होगी। पर घबराने की बात नही, इसका निदान है। आप अपने डॉक्टर से इस बारे में बात करे। क्योंकि यह आपका शरीर है, इसकी देख -भाल आपके ज़िम्मे है जैसे आपके नवजात की ज़िम्मेदारी आपकी है। 

अगर पोस्टपार्टम डिप्रेशन के बारे में जानना चाहते है तो थोड़ा गूगल करिए और ना हो तो एक डिक्यूमेंटी देख डालिए , “ when the bough  Breaks “

इस पोस्ट का मेन उद्देश्य यह है कि, “यह ना समझे कि, माँ ने बच्चे को जन्म दे दिया बस हो गया। अगर ऐसी कोई भी लक्षण माँ में दिखे तो तुरंत डॉक्टर से सम्पर्क करें नही तो यह माँ और बच्चे दोनों के लिए घातक है।”