Sunday, 12 December 2021

डायरी

 अभी पाँच-छह दिन पहले ही केंटकी के बारे में लिखा था। वही जहाँ अब्राहम लिंकन का जन्म हुआ, मोहम्मद अली का जन्म हुआ और मेरे पसंदीदा अभिनेता में से एक जॉनी डेप का जन्म हुआ। यहीं इस वीकेंड को टोरनाड़ो आया था। वैसे तो यह चक्रवात अमेरिका के पाँच-छह राज्यों में आया था। पर सबसे ज़्यादा नुक़सान केंटकी में हुआ। 80 से  ज़्यादा लोगों की मरने की ख़बर है। केंटकी के इतिहास का यह सबसे भयंकर तूफ़ान रहा। लूईविल केंटकी का सबसे बड़ा शहर है।इंडियापोलिस ख़त्म होते ही लूईविल में प्रवेश होता है। ऐसे में हमारे यहाँ भी सचेत रहने का मैसेज आया। हमने ख़राब मौसम देखा और लिट्टी लगा ली। लिट्टी -चोखा खाने के बाद गर्मागर्म चाय पी और ठोक-पीट कर बच्चों को सुलाने लगी। कमरतोड़ मेहनत के बाद छोटका सोया ही था कि मानो, हवाएँ खिड़की पर झूलने लगी।  गोंऽऽऽ…गोंऽऽऽ करती वे जड़ काँच पर थपेड़े बरसाने लगी कि तुम्हारी इतनी हिम्मत, हम ठंढ से काँप रहें और तुम अपना द्वार नही खोल रही। बेचारी खिड़की पराधीन, वह काँपते हुए बोली, माफ़ करो बहन ऐसे मौसम में तुम्हारा किसी भी घर में प्रवेश वर्जित ही है। उग्र हवा और काँच की खिड़की के विवाद में मेरा बच्चा डर कर जग गया। मैं खीज उठी और इन हवाओं को कोसने लगी। शायद मेरा ताना उन तक पहुँचा और वे धीमी चलने लगी। मेरी खिड़की से लड़ना छोड़ बादल से टकराने लगी। उनकी टकराहट इतनी बढ़ गई कि एक सफ़ेद चिंगारी फूटी और तेज गर्जना के साथ  वे दोनों एक दूसरे पर बरस पड़ी। उनकी बरसात, धरती के साथ मेरे घर को भीगो रही थी। 

मैंने फिर से कमर कसा, बेटे को सुलाने लगी। बेटा राम मेरी गोद में सावन का झूला झूल रहे थे। इधर मैंने पढ़ रही एक किताब का pdf खोला और आगे पढ़ना शुरू किया। 

किताब है, “The book of  Mirdad” किताब अब तक जितनी पढ़ी वह और आगे पढ़ने की लालसा जगाती जाती है पर रात्रि जागरण और नींद प्रेम के कारण किताब धीरे-धीरे मुझमें घुल रही है। मिखाइल नईमी लिखते हैं, 

प्रेम प्रभु की रचना है।
तुम जीते हो ताकि तुम प्रेम करना सीख लो।
तुम प्रेम करते हो ताकि तुम जीना सीख लो।
मनुष्य को और कुछ सीखने की आवश्यकता नहीं।
साथ ही यह भी कि , जीने के लिए मरे या मरने के लिए जिए।
हर अगली लाइन पढ़ने के बाद कुछ देर ठहरने का मन करता है। इसी पढ़ने, ठहरने के बीच मेरा इश्क़ तोशू फिर से जगता है। उसे भूख लग आई है। मैं उसका मुख देखती हूँ तो अपना बचपन जीती हूँ। ऐसे में किताब रख अब लाड़-प्यार पर अटकी हुई थी। लेकिन रात के साढ़े तीन भी तो बज रहे थे। पलकों पर नींद झूलने लगी। ऐसे में मैंने संगीत का मुँह देखा और जो हिस्ट्री में पहला गीत दिखा वह हौले से बजा दिया। 
गीत, चिट्ठियों वाला प्यार है। यह गीत जाने कितने दिनों बाद सुना। इसकी याद आई बीते दिनों डाकघर जाने के बाद। तो चलिए आप भी सुनिए इसे चिट्ठियों के नाम। 



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