अमेरिका में नॉर्मल डिलीवरी हो या सी सेक्शन, बच्चे के जन्म के बाद माँ को कुछ दिनों में डॉक्टर को दिखाना होता है। यह नॉर्मल रूटीन चेक अप जैसा होता है। जिसमें आपकी जाँच के साथ कुछ सवाल पूछे जाते है जैसे,
कोई तकलीफ़, ब्लीडिंग , पेन, स्टीचेज कैसी है, कमजोरी, यूट्रस का पोजिशन, ब्रेस्ट फ़ीडिंग या फ़ॉर्म्युला और “डिप्रेशन” की समस्या।
डिप्रेशन ?
जी हाँ, डिप्रेशन के लक्षण के बारे में पूछे जाते है। आप चौंक गए होंगे ना कि माँ बनने का डिप्रेशन से क्या लेना- देना ? मैं भी चौंक गई थी , जब पहली बार सत्यार्थ के होने पर नर्स का कॉल आया था। किसी-किसी जगह डॉक्टर विजिट से पहले उसकी नर्स का कॉल आता है, सारी जानकारी लेने के लिए। तब मैं “कनेक्टिकट” में रहती थी। मैंने चौंकते हुए नर्स से कहा , “ नही तो, मुझे तो कोई डिप्रेशन के लक्षण नही पर आप ऐसा क्यों पूछ रही है ?”
उसने कहा, “ यह हमारा प्रोटोकल है, पूछना। फिर उसने समझाया कि, माँ बनने के दौरान एक स्त्री के शरीर में कई हार्मोनल चेंज होते है। इसमें एस्ट्रोजन, प्रोजेस्ट्रोन, टेस्टोस्टेरोन जैसे हार्मोन्स में बदलाव का असर उसके व्यवहार पर पड़ता है। शरीर का कमजोर होना और अचानक नवजात की देख भाल करना अपने आप में एक बड़ा काम है। ऐसे में किसी -किसी माँ में डिप्रेशन की समस्या देखी गई है। हालाँकि यह रेशियो बहुत कम है, 10 से 15% माँ में ही यह लक्षण देखने को मिले है।” इसके बाद उसने फोन रख दिया।
मुझे बड़ी हँसी आई कि देखो ना, यहाँ कितना ड्रामा है। माँ बनने से भी कहीं डिप्रेशन होता होगा क्या ? अपने भारत में तो कभी ऐसा देखा या सुना नही।
बात आइ-गई हो गई। फिर मैं जब भारत आई तो एक पुरानी दोस्त से बातों के दरम्यान एक बचपन की बात सामने आई। उसने एक महिला के बारे में बताया , “ अरे तुझे मालूम नही था, वह पागल थी। अपने छोटे-छोटे बच्चों को कहीं भी पटक देती, दूध नही पिलाती, खाना नही देती। दिन भर पड़ी रहती। कहती कि तबियत ठीक नही लगती। घरवालों को लगता कि वह काम से जी चुराने का बहना करती है। फिर धीरे-धीरे उसकी तबियत ज़्यादा बिगड़ी तो घरवालों ने डॉक्टर को दिखाया पर बीमारी का पता नही लगा। बात दवा से हट कर दुआ और झाड़-फूँक तक पहुँच गई।”
मैने हँसते हुए कहा , “ अब एक के बाद एक छह बच्चे पैदा होंगे तो कितनों को वह देखेगी, सम्भलेगी। यहाँ तो एक बच्चे के रोने से दिमाग़ ख़राब हो जाता है।”
उस वक्त तो हँसी-मज़ाक़ , ओहो -हो हो … तक बात रह गई। फिर एक दिन मैं बच्चों से जुड़ी डोक्यूमेंट्री देख रही थी, इसी बीच मुझे एक ऐसी डोक्यूमेंट्री दिखी जो पोस्टपार्टम डिप्रेशन के बारे में थी। मुझे अचानक से नर्स की बात याद आई, पोस्टपार्टम डिप्रेशन” और मैं इसे देखने लगी। इसे देखते हुए मुझे वह महिला याद आई, जिसके बारे में दोस्त ने बताया था।
हो सकता हो वह भी इस परेशानी से जूझ रही होंगी पर किसी को समझ नही आया। जाने ऐसी कितनी महिलाएँ भारत में भी होंगी पर हमें मालूम ही नही चलता होगा। यूँ भी दिमाग़ी बीमारी को लोग सहज नही ले पाते। वे समझ नही पाते कि जैसे हाथ-पैर-फेफड़े-गुर्दे में बीमारी/तकलीफ़ हो सकती है वैसे दिमाग़ में भी हो सकती है। यह भी तो शरीर का ही एक भाग है।
बाक़ी, डिलीवरी के बाद जो महिलाएँ इस पीड़ा से गुजरती होंगी सोचिए उन पर क्या बीतती होगी। पर घबराने की बात नही, इसका निदान है। आप अपने डॉक्टर से इस बारे में बात करे। क्योंकि यह आपका शरीर है, इसकी देख -भाल आपके ज़िम्मे है जैसे आपके नवजात की ज़िम्मेदारी आपकी है।
अगर पोस्टपार्टम डिप्रेशन के बारे में जानना चाहते है तो थोड़ा गूगल करिए और ना हो तो एक डिक्यूमेंटी देख डालिए , “ when the bough Breaks “
इस पोस्ट का मेन उद्देश्य यह है कि, “यह ना समझे कि, माँ ने बच्चे को जन्म दे दिया बस हो गया। अगर ऐसी कोई भी लक्षण माँ में दिखे तो तुरंत डॉक्टर से सम्पर्क करें नही तो यह माँ और बच्चे दोनों के लिए घातक है।”
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