Saturday, 5 March 2022

दोनों के दिल हैं मजबूर प्यार से 
हम क्या करें मेरी जां तुम क्या करो

इस ग़ज़ल को मैंने पहली बार पटना से बसंतपुर जाने वाली बस में सुना था। यह मुझे इतनी अच्छी लगी कि मुझसे रहा नही गया और पहली सीट पर बैठी मैं, बस के गेट से झूल रहे खलासी से पूछा , “ यह किस फ़िल्म का गीत है ?” 

खलासी कुछ मेरी ही उम्र का होगा। मेरे इस सवाल से बेफ़िक्री में लाज को घोल कर बोला, “ फ़िलीम के नाम मालूम नही, कसेट में भरवाए है गीत सब”

“अच्छा” कह कर मैं खिड़की से बाहर देखने लगी। थोड़ी देर में गाना ख़त्म हुआ। वह धीरे से आगे बढ़ा और री प्ले कर दिया। गाना फिर से बजता देख मैंने स्पीकर की तरफ़ देखा। वहाँ खड़ा वह कुछ ढूँढ रहा था। मैं फिर से गाने में खोई हुई खिड़की से बाहर देखने लगी। तभी वह एक कैसेट मेरी तरफ़ करते हुए बोला , “ मैडम, हेमे देख लीजिए, एही में ई गीतवा भरवाए हुए है।” 

कैसेट का कवर एक सफ़ेद काग़ज़ जो पीली-मटमैली पड़ गई थी वह थी। उसपर सुंदर अक्षरों में 1 से 10 तक के नम्बर लाल स्याही से लिखे हुए थे। हर एक नम्बर के आगे नीली स्याही से गीत के बोल लिखे थे। हाँ , शब्दों के माथे को ऐसा बांधा गया था जैसे कोई नदी बह रही हो… मैंने उन्हें देखा और कहा, इस पर सिर्फ़ गाने के नाम है और कैसेट उसकी तरफ़ बढ़ा दिया।

कुछ घंटों में मेरा पड़ाव आ गया और मैं उतर पड़ी। कुछ दिनों बाद भाई एक कैसेट लाया अपने दोस्त के यहाँ से। कैसेट पर लिखा था “अदा” यह जगजीत सिंग और लता जी की गाई ग़ज़लों का कलेक्शन था। मैंने जैसे कैसेट को पीछे पलटा मेरी आँखें ख़ुशी से चमक उठी। उस पर सबसे ऊपर लिखा था, 

“दोनो के दिल है” 

उन दिनों के अजब -ग़ज़ब खलासियों में एक संगीत प्रेमी खलासी का मिलना कितना सुखद था ना। आज यतिश जी की पोस्ट पर यह ग़ज़ल सुना तो उसकी याद आई। जाने अब खलासी नामक कोई प्राणी बस में होता भी है या नही ? होता भी होगा तो हनी सिंह या पवन सिंह में डूबा होगा ….

वैसे जिन्हें ना मालूम हो उनके लिए, खलासी बस में कंडक्टर के अलावा एक एक्स्ट्रा हेल्पिंग हैंड होता था। इनका काम समान चढ़ाना, उतारना, सवारियों को आवाज़ दे कर बुलाना, बस के गेट पर झूलते हुए आस -पास से गुजर रही गाड़ियों को दाएँ -बाएँ करवाना और गाने के कैसेट या अगर सी डी प्लेयर हो तो फ़िल्म बदलना।

 भला हो उस लड़के का जिसकी वजह से मुझे इतनी अच्छी ग़ज़ल सुनने को मिली। और कमाल यह कि इसी अल्बम की एक दूसरी ग़ज़ल मुझे इतनी भाई कि उसे कई दफ़ा रिपीट मोड़ में सुना। अब भी इन्हें सुनती हूँ पर आज बहुत दिन बाद सुना। ग़ज़ल है ; 

मैं कैसे कहूँ जाने जा …



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