Tuesday 11 October 2022

हेमिंग्वे !

 



“मनुष्य ध्वस्त हो सकता है परन्तु पराजित नहीं” 

यह कथन नोबेल पुरस्कार विजेता उपन्यासकार “अर्नेस्ट हेमिंग्वे” ने अपनी किताब ‘द ओल्ड मैन एंड द सी’ में लिखा है। 

हेमिंग्वे को पहली बार मैंने इसी किताब से जाना था। उस साल साहित्य का नोबेल पुरस्कार बॉब डिलन को मिला था। मैं उनके गाने सुन रही थी और इसी बीच गूगल न्यूज़ में अर्नेस्ट हेमिंग्वे की कोई खबर दिखी। वैसे मैंने इनके बारे में थोड़ा बहुत पढ़-सुन रखा था पर कोई रुचि नही जगी थी इनमें। इनकी कोई किताब या इनकी लिखी कहानी भी नही पढ़ी थी अब तक। पर उन दिनों नोबेल के हल्ला के बीच सोचा क्यों ना इस नोबेल विजेता की कोई किताब पढ़ी जाए। अगले दिन लाईब्रेरी पहुँची और वहाँ से उठा लाई, द ओल्ड मैन एंड द सी। 

किताब में एक बूढ़े मछुआरे की निराशा, अकेलेपन, साहस के बारे में रोचक तरीक़े से लिखा गया है। 

लेकिन दोस्तों लिखना, उपदेश देना, किसी की मृत्यु की आलोचना( हेमिंग्वे के पिता ने भी आत्महत्या की थी। जिसे इन्होंने पलायनवाद कहा था) करना आसान है पर उसे खुद जीना शायद बहुत मुश्किल। तभी तो इन्होंने कहा है, 

“दुनिया सभी को तोड़ती है लेकिन टूटी हुई जगहों पर कुछ लोग ज़्यादा मज़बूत हो जातें हैं।”

“कुछ” लोग 

सभी नही। और ना ही यह कथन कहने वाला इंसान। 

हेमिंग्वे ने खुद को गोली मार कर आत्महत्या कर ली। 

अर्नेस्ट मिलर हेमिंग्वे एक अमेरिकी लेखक और पत्रकार थे। उनका जन्म 21 जुलाई, 1899 को ‘इलिनोइस के ओक पार्क’ में हुआ था और 2 जुलाई, 1961 को केचम, इडाहो में उनका निधन हो गया। जीवन यात्रा इनकी मुश्किल और निराशा की कहानी है। 

मेरा संयोग यह रहा की मैं उस शहर ( इडाहो ) गई जहाँ इनकी मृत्यु हुई थी। मैं वहाँ गई जहाँ इन्होंने अपने जीवन का अधिकांश समय बिताया (की वेस्ट ) यहाँ भी एक बड़ा म्यूज़ियम है इनके घर का। पर मैं जा पाई सर्फ़ इनके जन्मस्थान (ओक पार्क) 

तो आज हम चलते है, हेमिंग्वे के जन्मस्थान। एक घर जहाँ उनका जन्म हुआ। आज यह जगह एक म्यूज़ियम है। यहाँ इनकी बुक रीडिंग क्लब भी है। इस घर रूपी म्यूज़ियम का टूर 45मिनट का है। दो फ़्लोर के इस घर को बहुत सुंदर तरीक़े विक्टोरियन स्टाइल से रखा गया है। एक -एक चीज़ को गाइड क्रिस बड़ा प्रेम से दिखलाते है। हेमिंग्वे के प्रति उनका प्रेम उनकी आँखों में, उनकी बातों से झलकता है। जब क्रिस इनकी मौत की बात करते हैं, एक पल को उनका गला रुंध जाता है…16 लोग उन्हें चुपचाप देख रहें होते हैं और वे कुछ रुक कर कहते है, द एंड… आप लोगों को कुछ पूछना हो तो पूछ सकते हैं। 

मैं क्या पूछती ? मैं तो बस एक इंसान में प्रेम देख रही थी… और फिर ज़्यादा कुछ पढ़ा भी तो नही इनका लिखा। 

नोट- घर रूपी म्यूज़ियम का टिकट ऑनलाइन लेने से आप अपना स्लॉट बुक कर सकते हैं। टिकट वहाँ जा कर भी ले सकते हैं पर हो सकता है आपको अगली टूर का इंतज़ार करना पड़े। टिकट का दाम 20 डॉलर पर अडल्ट है। पार्किंग रोड साइड है पर जगह मिल जाती है। और हाँ, इतना अच्छा टूर गाइड मुझे याद नही कब मिला था किसी म्यूज़ियम का। सच में यहाँ लोग किसी भी काम को बड़ा मन से करते है। 


Friday 7 October 2022

अटका आँसू !

डूबते सूरज की तरह डूब रहे मन का हाल वह दहलीज़ क्या जाने जिसके पार समुंदर ना था। बर्फ़ से भारी, जमे चार पैर घिसट रहे थे खुद को। समय की गति धीमी… इतनी धीमी की घड़ी के काटें तक रुक गए। बहती आँखों के बीच जम गया था मन और उसी बीच एक बूँद खून के आँसू…

वह एक बूँद आँसू ना जाने देह में कहाँ भटक रही है। एक बूँद जो अटक गई है मन में या कभी दिमाग़ में, गले के नाल को निचोड़ कर छाती के पर या सुखी आँखों के परदे के भीतर। 

वह कौन सी घड़ी थी जब देह का रक्त सिर्फ़ लाल रंग था… रंग जो जाने कैसे झक पीला हो गया और फिर नारंगी…अचानक नीला… हे परमेश्वर! इस नीले का रंग मिलता है आसमाँ से जो फटने के पहले गरजता है, चमकता है, बरसता है… भीतर धड़कनों की मरोड़ उठी, एक आह देह का रोआ-रोआ बन पसर गई और सब शून्य हो गया। 

थावे मंदिर !

 नवरात्रि की बिहार और बंगाल में अलग ही रौनक़ होती है। माता के आने की तैयारी इतने धूम-धाम से होती है की नव दिन कैसे बीत जाते है मालूम ही नही चलता। जब मैं छोटी थी तो इस दस दिन का कितना इंतज़ार होता। स्कूल की छुट्टी से लेकर दस दिन माता के लिए फूल तोड़ना, घर में हो रहे रामायण पाठ को कई बार सुनना। भाग कर पंडाल तक जाना और उसमें बन रही मूर्तियों को देखना। ओ, आज हाथ बन गया, अरे सिर लगा दिया है, उफ़्फ़् मुख को ढँक दिया अब सप्तमी का इंतज़ार करना होगा। 

दुर्गा की पूजा घर-घर होती। कोई मंदिर जाता तो कोई घर पर ही पूजा -पाठ कर लेता। मेरी माँ घर पर पूजा पाठ करने वाली में से है। लोग इन दिनों थावे खूब जाते। माता के दर्शन करके आते और वहाँ की बातें बताते। मैं चकित होकर इन क़िस्सों को सुनती। सोचती की काश मैं भी थावे जाती…

तो चलिए आज हम थावे चलते हैं और रास्ते में थावे वाली मईया का क़िस्सा भी सुनते चलते हैं। 

 चेरो वंश के राजा मनन सिंह खुद को मां दुर्गा का बड़ा भक्त मानते थे। एक बार उनके राज्य में अकाल पड़ गया। उसी दौर में थावे में माता रानी का एक भक्त रहषु भगत था। रहषु पर माँ की कृपा थी। वह आकल से पीड़ित लोगों को माँ के चमत्कार से निकला अन्न देता था। वह घास को बाघ से दौनी करवाता और उससे चावल निकलने लगते। यह बात राजा तक पहुंची लेकिन राजा को इस बात पर विश्वास नही हुआ। वह रहषु के विरोध में उसे ढोंगी कहने लगा और उसे अपने दरबार में बुलाया। राजा ने रहषु से कहा कि अगर ऐसा है तो तुम मां को यहां बुलाओ। इस पर रहषु भगत ने राजा से कहा, राजा, यदि मां यहां आईं तो आपका राज्य को बबार्द कर देंगी लेकिन राजा नहीं माना। 

रहषु भगत के आह्वान पर देवी मां कामाख्या से चलकर पटना और सारण के आमी होते हुए गोपालगंज के थावे पहुंची और रहषु भगत का मस्तक चिर कर अपना सिर हाथ भर दिखाया की राजा के सभी भवन गिर गए। सारे लोग मर गए और राजा भी मर गया।  

 थावे वाली देवी के मंदिर को सिद्धपीठ के तौर पर माना जाता है। यहाँ हर साल हज़ारों भक्त आते है माता के दर्शन को। पहले तो माता के मंदिर में प्रवेश आसानी से मिल जाता था पर अब भीड़ की वजह से गेट के बाहर से ही इनका दर्शन करना पड़ता है। या फिर आपका कोई जुगाड़ हो तो शुक्रवार- सोमवार को छोड़ आप भीतर जा कर माँ का दर्शन कर सकते हैं। 

यहाँ भीड़ की एक बड़ी वजह शादी-विवाह भी है। लोग यहाँ शादी-विवाह, देखा-देखौकी के लिए भी आते है। मंदिर परिसर अब पहले से काफ़ी संयोजित ढंग से बन गया है। कभी बिहार जाए तो एक बार माता के दर्शन को ज़रूर जाए। यहाँ का प्रसिद्ध पीडिकिया खाए और पेड़ों से घिरे तालाब के किनारे कुछ पल बैठे। साथ ही एक छोटा पार्क भी है पर बिहार के पार्क के बारे क्या ही कहना…



Monday 3 October 2022

गढ़देवी मईया !

भारत देश सच में चमत्कारों और क़िस्सों का देश है। आज अष्टमी के दिन माता गौरी की पूजा के बाद कुछ कथाएँ याद आई और एक रोचक बात भी। 

आपने सुना होगा या पढ़ा होगा, राजा दक्ष प्रजापति ने एक यज्ञ का अनुष्ठान किया था। उस यज्ञ मे बिना बुलाये उनकी पुत्री सती भी अपने पति से जिद्द करके वहाँ पहुंची, लेकिन वहाँ अपने पति भगवान शिव का कहीं स्थान नहीं देखकर, वह यह अपमान सहन नहीं कर पाई और यज्ञशाला के हवन कुंड में कूदकर अपने प्राणों की आहुति दे दी। 

इसके बाद वियोगी-क्रोधित महादेव, सती के शव को कंधे पर उठाकर तांडव करने लगे। उनका यह रौद्र रूप देख समस्त ब्रह्मांड भयभीत हो गया। प्रलय की स्तिथि हो गई। यह देख देवता गणों के आग्रह पर भगवान विष्णु ने प्रिया वियोग से भगवान शिव का ध्यान भटकाने के लिए सुदर्शन चक्र से आकाश में ही सती के शव के कई टुकड़े कर दिए। और फिर इनहि सती का जन्म “माता गौरी पार्वती” के रूप में हिमालय के यहाँ हुआ। 

कथा तो हो गई पर जो रोचक बात रही वह यह की, सती के शव के टुकड़े जब हुए तो उनके खून के छींटे बिहार के मढ़ौरा में भी पड़े। जहां बाद में “गढ़ देवी मंदिर” की स्थापना हुई। 

लोक कथा यह भी है कि शक्ति पीठ मंदिर थावे, जिसके बारे में पिछले पोस्ट में बताया था कि माता के भक्त “रहसू भगत” के बुलावे पर माता कौड़ी कामाख्या से चलकर जगह-जगह विश्राम करते हुए थावे पहुँची थी।  इस दौरान माता ने थावे पहुंचने से पहले मढ़ौरा के इसी गढ़देवी मंदिर के पावन स्थल पर विश्राम किया था। यहीं वजह है कि यहां माता की दो-दो पिंडिया स्थापित हैं और यह स्थल भी सिद्ध शक्तिपीठ के रूप में जाना जाता है। 

वैसे तो छपरा ज़िला के मढ़ौरा के गढ़ देवी मंदिर का इतिहास बहुत पुराना है और सालो भर यहाँ भक्तों का भीड़ लगी रहती है। यहाँ का प्रांगण पहले की तुलना में थोड़ा बड़ा और साफ़-सुथरा हुआ है। हाँ, यहाँ आने पर आपको एक और रोचक चीज़ देखने को मिलेगी,

वैसे तो सभी मंदिरों के मुख्य दरवाजे पूरब की ओर होती है, लेकिन मढौरा के गढदेवी मंदिर में पूजा करने वाली मुख्य मंदिर का गेट पश्चिम की तरफ है। कहते हैं यह भारत देश का पहला मंदिर है, जहाँ पूजा करने वाली गेट “पश्चिम” की तरफ है। 

इसके बारे में यह सुना है कि जब अंग्रेज यहां आये तो मढौरा में उद्योग लगाने की इच्छा से यहां की मन्दिर और मान्यताओं से अंजान थे। वे मंदिर को अनदेखा कर यहाँ आस-पास काम करने लगे पर वह कार्य सफल नही होता। ऐसे में अंग्रेज अफ़सर परेशान-परेशान। 

एक रात एक अंग्रेज को माता ने सपने में मंदिर के पास कार्य कराने से मना किया। अंग्रेजों ने इसे मानने से इंकार किया और यह सन बातें बकवास बताई। लोगों की आस्था और मज़दूरों का विश्वास देख फिर उस अफ़सर ने कहा, “यदि तुम्हारी माता स्वयं शक्ति है तो चमत्कार करें।” और फिर मंदिर का जो गेट खुद ब खुद सुबह होने से पहले पूरब से पश्चिम हो गया। सुबह अंग्रेजों ने यह देखा तो उनके होश उड़ गए और उन्होंने माता से माफ़ी माँग वहाँ से थोड़ी दूर हटकर मढौरा में चीनी मिल, मोर्टन मिल, सारण इंजीनियरिंग और डिस्ट्रिल वाटर की चार फैक्ट्रियां स्थापित की। 

बिडंबना यह की बिहार सरकार इन चारों फैक्टरियों में से किसी को भी बाद के समय बचा नही पाई। मंदिर के सिवा ये सब अब खंडहर है…