Friday, 7 October 2022

थावे मंदिर !

 नवरात्रि की बिहार और बंगाल में अलग ही रौनक़ होती है। माता के आने की तैयारी इतने धूम-धाम से होती है की नव दिन कैसे बीत जाते है मालूम ही नही चलता। जब मैं छोटी थी तो इस दस दिन का कितना इंतज़ार होता। स्कूल की छुट्टी से लेकर दस दिन माता के लिए फूल तोड़ना, घर में हो रहे रामायण पाठ को कई बार सुनना। भाग कर पंडाल तक जाना और उसमें बन रही मूर्तियों को देखना। ओ, आज हाथ बन गया, अरे सिर लगा दिया है, उफ़्फ़् मुख को ढँक दिया अब सप्तमी का इंतज़ार करना होगा। 

दुर्गा की पूजा घर-घर होती। कोई मंदिर जाता तो कोई घर पर ही पूजा -पाठ कर लेता। मेरी माँ घर पर पूजा पाठ करने वाली में से है। लोग इन दिनों थावे खूब जाते। माता के दर्शन करके आते और वहाँ की बातें बताते। मैं चकित होकर इन क़िस्सों को सुनती। सोचती की काश मैं भी थावे जाती…

तो चलिए आज हम थावे चलते हैं और रास्ते में थावे वाली मईया का क़िस्सा भी सुनते चलते हैं। 

 चेरो वंश के राजा मनन सिंह खुद को मां दुर्गा का बड़ा भक्त मानते थे। एक बार उनके राज्य में अकाल पड़ गया। उसी दौर में थावे में माता रानी का एक भक्त रहषु भगत था। रहषु पर माँ की कृपा थी। वह आकल से पीड़ित लोगों को माँ के चमत्कार से निकला अन्न देता था। वह घास को बाघ से दौनी करवाता और उससे चावल निकलने लगते। यह बात राजा तक पहुंची लेकिन राजा को इस बात पर विश्वास नही हुआ। वह रहषु के विरोध में उसे ढोंगी कहने लगा और उसे अपने दरबार में बुलाया। राजा ने रहषु से कहा कि अगर ऐसा है तो तुम मां को यहां बुलाओ। इस पर रहषु भगत ने राजा से कहा, राजा, यदि मां यहां आईं तो आपका राज्य को बबार्द कर देंगी लेकिन राजा नहीं माना। 

रहषु भगत के आह्वान पर देवी मां कामाख्या से चलकर पटना और सारण के आमी होते हुए गोपालगंज के थावे पहुंची और रहषु भगत का मस्तक चिर कर अपना सिर हाथ भर दिखाया की राजा के सभी भवन गिर गए। सारे लोग मर गए और राजा भी मर गया।  

 थावे वाली देवी के मंदिर को सिद्धपीठ के तौर पर माना जाता है। यहाँ हर साल हज़ारों भक्त आते है माता के दर्शन को। पहले तो माता के मंदिर में प्रवेश आसानी से मिल जाता था पर अब भीड़ की वजह से गेट के बाहर से ही इनका दर्शन करना पड़ता है। या फिर आपका कोई जुगाड़ हो तो शुक्रवार- सोमवार को छोड़ आप भीतर जा कर माँ का दर्शन कर सकते हैं। 

यहाँ भीड़ की एक बड़ी वजह शादी-विवाह भी है। लोग यहाँ शादी-विवाह, देखा-देखौकी के लिए भी आते है। मंदिर परिसर अब पहले से काफ़ी संयोजित ढंग से बन गया है। कभी बिहार जाए तो एक बार माता के दर्शन को ज़रूर जाए। यहाँ का प्रसिद्ध पीडिकिया खाए और पेड़ों से घिरे तालाब के किनारे कुछ पल बैठे। साथ ही एक छोटा पार्क भी है पर बिहार के पार्क के बारे क्या ही कहना…



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