कुथी जांदा चंद्र माँ, कुथी जांदे तारे हो
ओ अम्मा जी कुठी जांदे दिलां दे प्यारे हो…
एक बेटी अपनी माँ से पूछती है, “माँ ये चाँद, तारे कहाँ जाते हैं, ओ मेरी माँ दिल के क़रीब लोग कहाँ जाते हैं…”
इंद्रधनुष सी माँ-बेटी की बातों का रहस्य वे ही जाने… वे ही जाने अपने जने का दुःख और आँसू से भरी मुस्कान का सुख… बेटी के नाज़ुक कंधों की मालिश कर धीरे-धीरे गुनगुनाती, “तुम्हें कोयल नहीं बया पक्षी बनाना है… ओ मेरी हिम्मती बेटी तुम्हें अपना घोंसला ख़ुद बनाना है… जुगनुओं की चमक और आस-नीरस की बदली में सदा मेरी बात याद रखना, “तुम मेरी बेटी हो ,तुम कहाँ जाओगी और मैं कहाँ जाऊँगी तुमसे अलग…याद रखना जब प्रसव की घड़ी हो तो उस वक़्त बिल्कुल नहीं डरना…मुझे याद करना और देखना एक साथ खिले दो इंद्रधनुष… जिसके एक सिरे पर मैं तुम्हें दूसरा सिरा थमा कर साथ रंग बिखेरने को इशारा करती हूँ…तुम और हम दो कहाँ… दो पहाड़ जैसे मन टूट रहे है… आँखों के झरने के बीच एक बाधा है बना ली है दोनों ने कि दोनों को डर है वे एक दूसरे को डूबा ना दें… भोर की बेला और उन टूटते पहाड़ो के बीच माँ धीरे-धीरे गा रही है…विदाई हो रही है…
छुपी जांदा चन्द्रमा छुपी जांदे तारे हो,हो धीये भला नाइयों छुपदे दिलां दे प्यारे हो,
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