Friday, 2 December 2022

कला !!

 कुथी जांदा चंद्र माँ, कुथी जांदे तारे हो

ओ अम्मा जी कुठी जांदे दिलां दे प्यारे हो…

एक बेटी अपनी माँ से पूछती है, “माँ ये चाँद, तारे कहाँ जाते हैं, ओ मेरी माँ दिल के क़रीब लोग कहाँ जाते हैं…” 

इंद्रधनुष सी माँ-बेटी की बातों का रहस्य वे ही जाने… वे ही जाने अपने जने का दुःख और आँसू से भरी मुस्कान का सुख… बेटी के नाज़ुक कंधों की मालिश कर धीरे-धीरे गुनगुनाती, “तुम्हें कोयल नहीं बया पक्षी बनाना है… ओ मेरी हिम्मती बेटी तुम्हें अपना घोंसला ख़ुद बनाना है… जुगनुओं की चमक और आस-नीरस की बदली में सदा मेरी बात याद रखना, “तुम मेरी बेटी हो ,तुम कहाँ जाओगी और मैं कहाँ जाऊँगी तुमसे अलग…याद रखना जब प्रसव की घड़ी हो तो उस वक़्त बिल्कुल नहीं डरना…मुझे याद करना और देखना एक साथ खिले दो इंद्रधनुष… जिसके एक सिरे पर मैं तुम्हें दूसरा सिरा थमा कर साथ रंग बिखेरने को इशारा करती हूँ…तुम और हम दो कहाँ…  दो पहाड़ जैसे मन टूट रहे है… आँखों के झरने के बीच एक बाधा है बना ली है दोनों ने कि दोनों को डर है वे एक दूसरे को डूबा ना दें… भोर की बेला और उन टूटते पहाड़ो के बीच माँ धीरे-धीरे गा रही है…विदाई हो रही है…

छुपी जांदा चन्द्रमा छुपी जांदे तारे हो,

हो धीये भला नाइयों छुपदे दिलां दे प्यारे हो,

दिस्तों आज मेरी शादी की सालगिरह नहीं फिर भी आपका आशीर्वाद सर आँखों पर। कई यादों के बीच कल मैंने “कला” फ़िल्म देखी। बड़ी उदास सी फ़िल्म है… बर्फ सी ठंढी, चुभने वाली। सोचती हूँ क्या बितती होगी उन बेटियों पर जिनकी उपेक्षा उनकी माँ ही करती है। कैसी होता होगा उस माँ का मन और उसका जीवन जो अपनी अजन्मी को मार देती है… कितना बोझ होता होगा या फिर नहीं कि उन्होंने पंडित को जन्म दिया एक बाई को नहीं… 

इस उदास फ़िल्म में सबसे सुंदर इसका संगीत और दूसरा कुछ बातें जो जानते हुए भी रिवीज़न किया जा सकता है।जिनमें से दो मुख्य ,

* वक्त सबका पलटता है बस उस वक्त तक मेहनत और धीरज से काम लेना चाहिए। 
*प्रेम ही अंत है… 


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