Tuesday, 11 April 2023

जैमिनी रॉय !

अमेरिका में रहने के हिसाब से हम भारतीय डाउंटाउन को कम ही प्रीफ़र करते हैं। इसका पहला कारण महँगें घर और दूसरा सुरक्षा। वैसे इसका एक तीसरा कारण यह भी है कि भारतीय किराना दुकान, मंदिर आदि जगहें भी डाउनटाउन से कई शहरों में दूर पड़ती हैं। पर इन सबके बावजूद अपने भारत जैसी चहल-पहल आपको डाउनटाउन में ही ज़्यादा दिखेगी। अगर कोई भारतीय यहाँ पहली बार आया और अपटाउन में रहने को मिल गया उसे तो उसे लगेगा यह किस सुनसान शहर में आ गया। 

ऐसे में मुझे एक बार डाउनटाउन में रहने का मौक़ा मिला। जगह थी, स्टैमफ़ोर्ड, कनेक्टिकट। पहली बार मैं किसी नव मंजिलें बिल्डिंग में यहाँ रह रही थी। नीचे उतरते ही बाज़ार, चमक-धमक। वॉकिंग- जॉगिंग करते लोग और ऐसे में दिल्ली की याद कि हाँ, यह जगह कुछ-कुछ हमारे भारत सा है। रोज़मर्रा के जीवन में रौनक़ है।

हम घूमते-फिरते कई बार मुख्य बाज़ार के गोलंबर तक पहुँच जाते। यहाँ शाम को खूब चहल-पहल होती। एक छोटा सा पार्क उससे घिरे कई खाने-पीने की दुकानें। खुले में फूलों की डाली से सजी कुर्सियाँ और उनके ऊपर झिलमिल रौशनी की छत जिससे आसमान झांकता, मुझे यह सब बड़ा सुंदर लगता। मैं वही पार्क के बीच किसी बेंच पर बैठ जाती।

पार्क के आस-पास कई छोटी-छोटी दुकानें हैं। इसके ठीक सामने एक सिनेमाघर है। कुछ दुकानों की दूरी पर ही एक खूबसूरत पुस्तकालय। उसके बग़ल में बैंक और कोने में एक चर्च। वैसे कनेक्टिकट के छोटे से डाउनटाउन में तीन-चार खूबसूरत छोटे-छोटे चर्च हैं। 

एक शाम यूँ ही घूमते हुए मुझे कुछ पेंटिंगस दिखी, बैंक और पुस्तकालय के बीच। 



कनेक्टिकट डाऊनटाउन में कुछ -कुछ जगहों पर लोहे की पत्तर जैसा बॉक्स बना हुआ है। हर कुछ महीनों में लोकल या इंटरनेशनल आर्टिस्ट यहाँ अपनी कला का नमूना लगाते रहते हैं। 



हाँ, तो उन पेंटिंग को देख कर मैं चहक पड़ी, “अरे! यह तो किसी भारतीय की कला लग रही है।” पेंटिंग देख इतना तो मालूम हो गया की मधुबनी आर्ट है पर कलाकार का नाम नही मालूम था मुझे। मैं इन पेंटिंग को देख कर बहुत ख़ुश थी। इनकी तस्वीरें ली और घर आकर गूगल की मदद से ऑर्टिस्ट का नाम पता करने लगी। 



कुछ देर बाद ली गई तस्वीर से मिलती-जुलती कुछ तस्वीरें गूगल पर मिली तब जा कर मालूम हुआ कि ये पेंटिंग , “जैमिनी रॉय” की है। उस दिन मैंने इन्हें पहली बार जाना। 

अप्रैल में इनका जन्मदिन बिता है यह आज मुझे यह ध्यान आया। जन्मदिन बीत गया तो क्या ? क्या कभी किसी कलाकार की कला बीतती है …





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