Wednesday, 18 March 2015

Rishto ke naam !

सम्बन्धो  के  बीच
पहले  एक दिवार
हम खुद
खड़ी करते है
फिर उसमे
एक  खिड़की
लगते है
पर  ज़िंदगी भर
करीब रह कर भी
हम खुल कर
कहाँ मिल पाते है ?
जब भी ये पंक्तिया पढ़ती हू तो लगता है कितना सच है ये। आज कल भाग दौड़ की जिन्दगी  में सब कुछ कितना सपाट और बनावटी हो गया है। मेरा पहला ब्लॉग़ सरे प्यारे रिश्तो को समर्पित है। लिखना कितनी बार शुरू किया ,कुछ पूरा हुआ कुछ अधूरा ही रह गया। पर अब कोशिश  यही रहेगी की नियमित लिखू। 

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