गाँव पहुँचे और गाँव ना घूमे तो क्या मजा ? तो चलिए आज आपलोग को "ईनारबरवाँ" की सैर कराती हूँ।ईनारबरवाँ मेरे गाँव का नाम है।मुझे नहीं मालूम इस गाँव का नाम ईनारबरवाँ क्यों पड़ा ? वैसे मुझे ऐसा लगता है कि ,इस गाँव में लगभग हर घर के आगे एक कुआँ है।और भोजपुरी में कुआँ को ईनार कहते है।तो शायद इस वजह से पूर्वजो ने इस गाँव का नाम ईनारबरवाँ रखा होगा।गाँव की बात हो और खेत का जिक्र ना हो ? भाई खेत से ही तो हमारे गाँव की सुंदरता में चार चाँद लग जाते है।हमारे यहाँ मुख्यत: गन्ने और धान की खेती होती है।कुछ लोग गेंहू और मक्का भी बोने लगे है।पर अभी भी इनकी तादात कम है। गेंहू तो फिर भी ठीक है ,पर मक्का तो एक दो लोग ही लगाते।उसपे भी मक्के की ईतनी रखवारी की पूछो मत।बच्चों का आम खेल होता मक्का चोरी करना।मालिक ने भी परेशान होकर एक मचान बना ली है खेत के बीच।पहले मेरे गाँव की मुख्य फसल गन्ने की एक तस्वीर -
पर मेरे घरवाले अभी भी मालिक -मलकिनी ही बने है।इसका एक उदाहरण -मेरा भाई गाँव में घर बनावा रहा था।मैं ,शतेश ,भाई और चाचा की लड़की शाम को घर देखने गए।वहाँ कुछ कुम्हार खड़े थे।भाई को देख के बोले सब ठीक बा नु बाबू।भाई बोला हाँ।दीदी ,जीजा जी आये है ,तो घर दिखाने ले जा रहा हूँ।उनलोगो ने मुझे प्रणाम किया।मैंने भी जबाब में प्रणाम कर दिया और हाल चाल पूछ लिया।मेरे चाचा की लड़की को मेरा उनलोगो को प्रणाम करना अच्छा नहीं लगा।उनको कहती है -अब इससे प्रणाम करवाओगे तुमलोग।उनलोगो ने कुछ नहीं बोला।मुझे शर्म आ गई अपनी बहन की बात से।मैंने बहन को घर चलने को कहा।घर आकर मैंने उसे डाँटा तो कहती है, तुमलोग गाँव का रिवाज़ ख़राब कर रहे हो।मैंने उसे समझने की कोशिश की।पर उसका जबाब था ,तुमलोग तो यहाँ रहते नहीं ,तुमलोग क्या समझोगे गाँव और गाँव के लोग को।
गन्ने की खेती जनवरी -फरवरी महीने में शरू होती है।मैं मार्च -अप्रैल में गाँव गई थी।तबतक गन्ने की फसल का शैशव काल शुरू हो गया था।आह कितना खूबसूरत नज़ारा था।एक तरफ गन्ने की हल्की पीली और हरे रंग से मिश्रित पत्तियां।दूसरी तरफ मक्के के गहरी हरी रंग की पत्तियां और सामने सोने जैसे गेंहू की बालियां।उफ्फ ये धरती भी ना कितनी अदा दिखाती है।एक साथ इतनी खूबसूरती ,प्रकृति के अलावा किसी की हो ही नहीं सकती।चलिए एक तस्वीर मक्के के खेत और मचान के साथ।
तस्वीर निकलवाने के दरमियाँ वहाँ खेत में कुछ बच्चे और दो औरते काम कर रही थी।काम छोड़ कर वो लोग हमें देखने लगे।मैं भी उनकी तरफ देख के मुस्कुराई।एक बच्चा बहुत प्यारा लगा मुझे।मैंने उससे उसका नाम पूछा ? शरमाते हुए उसने अपना नाम बताया।ओह !मेरी मंद बुद्धि या जीवन की व्यस्ता मैं उसका नाम और उसे भूल गई।इस बार जब मैं घर गई थी ,तो उसके बारे में अपने चाचा की लड़की से पूछा।उसने बताया वो कही कमाने चला गया है।
जो नील रंग के कमीज में है ,वही वो बच्चा है।जो औरत मेरे साथ है ,वो शायद उसकी माँ थी।मुझसे बोली- ये मलकिनी हमार भी फोटो ले ली।कभी फोटो खिचवयले नईखी हमनी के।उसका ईतना कहना था ,कि मेरी चाचा की लड़की उसपे गुस्सा हो गई।मुझे भी डाँटते हुए बोली क्या जरुरत छोट जात से बात करने का ?मैंने कहा जाने दो ना एक तस्वीर की ही तो बात है ,निकाल देती हूँ।वो गुस्से में बोली मैं नहीं निकालूंगी। मैंने कहा कोई बात नहीं मेरी तस्वीर तो निकालोगी ना ? और फिर मैं जा के उनके साथ खड़ी हो गई।मेरी चचेरी बहन ने तस्वीर तो निकाल दी ,पर रास्ते भर मुझसे दूर -दूर रही।घर आ कर दादी और चाची को भी बता दिया कि, मैंने छोटी जात के साथ सट के फोटो निकाली।मुझे नहाने का ऑडर मिला।अब गुस्सा मुझे आ रहा था ,पर दादी की वजह से मैं नहाने चली गई।
जब पहली औरत के साथ मैंने तस्वीर निकलवाई तो ,दूसरी औरत को भी हिम्मत आई जो पास ही घास काट रही थी।बोली मलकिनी खाली उनके फोटो हमार ना ? मैंने उनके साथ भी एक फोटो ली।फिर डिज़िटल कैमरे में उनकी फोटो उनको दिखने लगी।बच्चे तो खुशी से नाच रहे थे।और तरह -तरह से पोज़ से फोटो निकलवा रहे थे।अफ़सोस की वो सारी तस्वीरें लैपटॉप फॉर्मेट के साथ डिलीट हो गई।ये कुछ कैमरे की मेमोरी में थी ,जो की मेरी यादो का हिस्सा बानी रही।
ये गेंहू का खेत ,जो मक्के के खेत से थोड़ी दूर पर था।इसकी सुंदरता से मैं खुद को रोक नहीं पाई।ढ़लते हुए सूरज की रौशनी में गेंहू की बालियाँ ,मानो धरती पे किसी ने सुनहरी रौशनी बिछा दी हो।आपको बता दूँ ,ये तस्वीर मक्के के खेत में जाने के पहले की है।देखिये जरा यहाँ हम दोनों बहनो में कितना प्यार है :)
और ये रही उस घास कटती महिला के साथ तस्वीर लेने के बाद का नज़ारा।दोनों बहनों का मुँह फुला हुआ हा -हा -हा।अच्छा हुआ कैमरा मेरी एक और बहन के पास था।हमदोनो को हँसाने के लिए वो कुछ -कुछ बातो के साथ तस्वीरें लेने लगी।पर हमारी दुरी कायम रही :) इस बार भी जब गाँव गई थी ,तो तस्वीरें थोड़ी बदली है ,
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