Monday 2 May 2016

बहू ,बियाह व् बाता -बाती !!!

गुलाबी रँग की अनारकली ड्रेस।बेतरतीब बालो का जुड़ा।उसके ऊपर नेट का दुपट्टा और लगभग शाम होने को थी।घर के बाहर बाजे की आवाज ,तो घर में लोगों की।बीच -बीच में कोई आवाज देता -तपस्या ये सामान कहाँ रखा है ?तो वो चीज़ देना तो।मुझे भी बहुत ख़ुशी हो रही थी ,इतनी बड़ी जिम्मेदारी का हिस्सा बनकर।ये आलम था मेरे देवर के तिलक के दिन का।गुलाबी रँग की अनारकली और वो नेट का दुपटा मेरी ही व्यस्तता की शोभा बढ़ा रहे था।मेहमान आने लगे थे।इधर -उधर के चक्कर में मुझे तैयार होने का समय नहीं मिल रहा था।बीच-बीच में आने वाले मेहमानों की गोड लगाई (पाई छूना )का कार्यक्रम भी जारी था।मै पियरी धोती निकाल रही थी ,तभी एक ननद आके मुझसे कहती है -भाभी नास्ता लेकर चलिए।मौसी जी आई है।ससुराल में आस -पड़ोस ,इधर -उधर की सब लड़कियाँ ननद और लड़के एक तरह से आपके देवर बन जाते है।मैंने उनसे कहा ठीक है ,आप चलिए मै आती हूँ।नास्ता लेकर मैं गेस्ट रूम में पहुँची।सामने कुर्सी पे मौसी जी बैठी हुई थी।नास्ता एक तरफ रख कर, मैंने उनके पैर छुए।मुझे आशीर्वाद देते हुए वो बोली -अरे तपस्या तैयार क्यों नहीं हुई अभी तक ? सब लोग आ रहे है।मैंने कहा थोड़े देर में हो जाऊँगी मौसी जी।कुछ काम था ,इसलिए देर हो गई।मौसी जी हँसते हुए कहती है -मालूम बा जब हम आवत रहनी ह ,हमार बेटी कहलसिय कि देखिए त मम्मी ,तपस्या भाभी कही मिनी स्कॉर्ट त न पहिनले होईहे।मुझे भी उनकी बात पर हँसी आ गई।मैंने भी हँसते हुए कहा - हा -हा मौसी जी माना कि बहू हूँ ,पर इस अवसर के लिए ये एक्सपेक्टेशन कुछ ज्यादा नहीं हो जायेगा :P पर लगता है ,उन्हें मेरा विटी जोक समझ नहीं आया।वो बोली -अरे ननद के त कामे बा मजाक करके।तू त ऐसे ही सुंदर बाड़ू।एहू कपड़ा में केतना सुन्दर लागत बाडू।खैर उनसे तैयार होने की अनुमति लेकर, मैं सजने-सवरने चली गई।वैसे शादी -ब्याह में कितने तरह के लोग आते है ना।जितने तरह के लोग उतनी तरह की बाते ,उतना ही हँसी-मजाक।कई किस्से -कहानियाँ।फलनवां के दूल्हा ऐसा तो, उसकी बहु वैसी।किसके भाई की शादी हुई तो किसकी बहन कुँवारी है।भगवान इस चक्कर में ,आधा टाइम तो मेरे भाई की ही चर्चा होती थी।भाई के शादी के लिए लोग मुझसे कहते कि ,ये लड़की है बात चलाओ।मैंने सबसे माफ़ी माँग कहती -लड़का यानि कि मेरा भाई आ ही रहा है तिलक में।आपलोग खुद उससे बात कर ले।सबसे मज़ेदार बात तो तब हुई ,जब मेरा भाई मुझसे मिलने घर में आया।मेरे कमरे में मेरी एक मौसेरी ननद और भाभी बैठी थी।मेरी ननद ने मेरे भाई से पूछा -क्या हाल है चुलबुल जी ? मेरा भाई बोला -सब बढ़िया पूजा(परिवर्तित नाम )।तुम बताओ एग्जाम ठीक से बीत गया ना? वो बोली अरे एग्जाम मेरा नहीं था।मेरी एक दोस्त को एग्जाम दिलाना था।भाई बोला अच्छा।फिर वो मुझसे बात करने लगा।मै कुछ काम कर रही थी तो उसने, मेरी ननद को बोला पानी लेकर आने को बोला।तभी भाभी बोली -अरे चुलबुल सिर्फ पूजा क्यों बोल रहे हो ? नाम के साथ जी लगाकर बात करो।हँसी -मजाक का रिस्ता है तुम्हारा।थोड़ा मजाक तो करो।तुम तो बहन जैसा बात कर रहे हो इनसे।मेरी ननद बेचारी शर्मा के लाल हो गई।हँसते हुए बोली कोई बात नहीं।चुलबुल कहता है -ये मेरे बहन जैसी ही होगी भाभी।मैं तो हँसते -हँसते पागल।मेरी सासु माँ ने सोचा था ,उस लड़की से चुलबुल की शादी की बात करेंगी।हो गया बंटाधार।बेचारी लड़की भी बहन वाली बात सुनकर झेंप गई।पानी लाकर दे दिया।भाई भी पानी पीकर बाहर चला गया।ननद बेचारी बस यही बोली कि भाभी आपके भाई बहुत शरीफ है।और मै मुस्कुरा के रह गई।बात एक और वाक्ये की।इसे खट्टी -मीठी कहना ज्यादा अच्छा होगा।शादी तक बहुत से मेहमान घर पर रुके थे।मेरे कमरे में मै ,भाभी और उनका बेटा सोते थे।बच्चे की वजह से हमलोग दरवाज़े की चिटकनी(डोर लच )नहीं लगाते थे।मै और भाभी सोने ही जा रहे थे कि ,रात 11 :30/45 के आस -पास कोई मेरे कमरे के दरवाजे को खोलता है।दरवाजा खुला और सामने मेरी एक चचेरी ननद खड़ी थी।वो बोली भाभी आपलोग से एक जरुरी काम है।मेरे बोलने से पहले भाभी ने कहा -हाँ बताईए क्या बात है ? मेरी ननद बोली आप दोनों में से कोई 10 /12 कप चाय बना दीजिये।ऊपर वाले कमरे में हमलोग जाग रहे है।बातचीत के दौरान चाय पीनी है सबको।भाभी ने इतनी रात को चाय वाली बात की उम्मीद नहीं कि थी ,इसलिए तपाक से बोली थी बोलिए।चाय की बात सुनकर वो चुप हो गई।बोली मेरी तो तबियत ठीक नहीं शाम से और चादर से मुँह ढँक के सो गई।अब बारी मेरी थी -मैंने कहा सॉरी सोनिया जी(परिवर्तित नाम )।बर्तन सारे जूठे पड़े है।रसोईया तो सो चूका है।इतनी ठंढ में मै तो उन्हें धोने से रही।साथ में पानी भी नहीं है।मैं नहीं बना सकती।शतेश के घर पर टंकी के पानी से खाना नहीं बनता है।चापाकल से पानी लाना होता है।मेरे साथ एक ये भी अच्छा था कि ,मुझसे अब तक चापाकल की पूजा नहीं कराई गई थी।तो मै चापाकल चलाती ही नहीं थी।बिहार में शादी के बाद लगभग हर चीज़ की पूजा कराई जाती है ,तभी बहू उसे इस्तेमाल करती है।मेरा ये रस्म रह गया था।मेरी ननद बोली -आई डोंट नो ,चाय तो पीनी है।अब जो भी बनाए।भाभी तो तबियत का एक्सक्यूज़ दे चुकी थी।मेरी ननद दरवाजे पे खड़ी थी।मैंने बोला अगर आप बर्तन साफ़ कर दे, पानी ला दे तो मैं बना सकती हूँ।मेरी ननद थोड़े गुस्से में बोली -भाभी यू नो मैंने आज तक एक चम्मच भी साफ़ नहीं किया।अब मुझे भी गुस्सा आ गया।मैंने भी रुडली बोला-यू नो डिअर मेरे माँ के यहाँ भी दो -दो नौकर है।वो भी फुल टाइम।मैने भी कभी पानी तक ले के नहीं पीया।(शायद बहुत लोगो को ये बात बुरी लगे कि पानी ना लेके पीना क्या बहादुरी हुई ?पर हाँ ये सच है कि ,पहले मैं बहुत आलसी और दुलारे आँधर टाइप थी।जो कि गलत था)पता नहीं क्या सोच कर मेरी ननद बोली -ठीक है ,मैं पानी ला देती हूँ।आप चाय वाले बर्तन में ही चाय बना दे।मैंने कहा ठीक है।वो पानी लेकर आई।मैं उसी चाय बने बर्तन को हल्का रिंस करके, उसमे ही चाय बनाने लगी।थोड़ी देर तक ख़ामोशी थी हम दोनों के बीच।फिर मेरी ननद बोली -भाभी आई एम सॉरी।पर मुझे आपसे इस तरह के जबाब की उम्मीद नहीं थी।आप घर में किसी और से ऐसे बात मत कीजियेगा।इस घर का रिवाज़ है ,जो छोटा होता है उसको सब करना पड़ता है।ख़ास कर बहुओं को।मैंने कहा -आई एम सॉरी डिअर आपको मेरी बात बुरी लगी तो।थैंक यू मुझे समझाने के लिए।वैसे मुझे मालूम है बड़ो से कैसे बात की जाती है।रही बात इस रिवाज़ की तो ,मुझे कभी मम्मी (सासु माँ ) या पापा ने इसके बारे में बताया नहीं।फिर हम दोनों चुप थे।तबतक चाय भी बन गई थी।मैंने एक जग में चाय को छाना और थर्मोकोल वाले कप दे दिए चाय पीने को।मैं अपने कमरे में वापस आ गई और वो चाय लेकर ऊपर कमरे में चली गई।मैं सोने ही जा रही थी ,कि भाभी बोली मुझमे तो इतनी हिम्मत नहीं कि मैं ऐसे जवाब देती तपस्या।मैंने उनसे कहा भाभी मुझे तो लगा आप सो गई थी।वैसे इसमें हिम्मत की बात नहीं।बात सही -गलत की थी।चाय बनना इज़ नॉट अ बिग डील।पर सारी परिस्थियाँ अभी गलत थी।कड़ाके की ठण्ड , दिन भर की थकान मेरा भी दिमाग काम नहीं कर रहा था।सो जाइये आप और मैंने बत्ती बुझा दी।दो /चार दिन बीत गए।शादी भी हो गई।एक दिन हॉल में हमलोग बैठे थे।मेरा भाई भी आया था।मै भाई और पापा को खाना दे रही थी।पापा मुझसे पूछते है -तपस्या बेटा सोनिया के साथ कोई लड़ाई हुई थी क्या तुम्हारी ?मैं कहा लड़ाई तो नहीं हुई थी पापा।थोड़ी बहस जरूर हुई थी।पर आपको कैसे मालूम ?पापा बोले की कुछ लोग बोल रहे थे कि, तपस्या ने ननद को चाय बनाने से मना किया और गलत ढंग से बात की।मैंने पापा को सारी बात बताई।मैंने कहा जाने दीजिये पापा मेरे लिए ऐसे लोगो के विचार मायने नहीं रखते ,जिसे मैं ठीक से जानती भी नहीं ,या वो मुझे समझते ही नहीं।पापा हँसने लगे ,बोले ये तो खूब कही हो।बोले तुमने ठीक किया।कभी भी ना गलत करो ना गलत को बढ़ावा दो।वही मम्मी बोली -अगर घर में छोटे को ही सब करना होता है ,तो वो खुद चाय बना लेती।वो तो तुमसे भी छोटी है।मम्मी ऑलवेज रॉक्स।वहीं भाई मेरा आराम से खाये जा रहा था।उसको इनसब से कोई फर्क नहीं पड़ रहा था।ऐसा नहीं है कि इस वाक्ये के बाद भी हम ननद- भाभी की बात नहीं होती।बातचीत जारी है ,सॉरी -सॉरा के बाद।क्या ख़ूब शब्द है ना सॉरी।शब्द बनाने वाले को दिल से थैंक यू।ये वाक्या लिखने के मेरे दो मक़सद थे।पहला -क्या यार डॉक्टर /इंजीनियर बनकर कर भी वही सास -बहु वाली बाते ? पढाई का कुछ अंश तो सामजिक जीवन में लाओ।मॉडर्न होने का मतलब किसी का दिल दुखाना नहीं होता।आज आप किसी की बेटी ,किसी की ननद हो।कल आप किसी की बहू ,किसी की भाभी बनोगी।आपके साथ कोई ऐसा सलूक करे तो ? ख़ुद करो तो मैं लाड़ली हूँ ,कभी कुछ किया नहीं।ससुराल में आपके साथ ऐसा हो तो ससुराल नर्क ,ननद चुड़ैल।यार सोच बदलो ससुराल ख़ुद बदल जायेगा।सच में अब समझ आया ये सेंटेंस -एक औरत का एक औरत से बढ़ कर कोई दुश्मन नहीं हो सकता।कडिशन अप्लाई :) दूसरा मक़सद - किसी भी औरत की हिम्मत  का राज़ उसकी शिक्षा ,उसकी परवरिश और उसके परिवार का साथ होता है।अंत में मुनि क्षमासागर जी की एक कविता जो आपसब को रिस्तो को समझने में मदद करेगा -
सम्बन्धो  के  बीच
पहले  एक दिवार
हम खुद
खड़ी करते है
फिर उसमे
एक  खिड़की
लगाते है
पर  ज़िंदगी भर
करीब रह कर भी
हम खुल कर
कहाँ मिल पाते है ?

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