मैं हमेशा की तरह नास्ता करके फोन -फोन खेल रही थी।मेरी एक दोस्त का मैसेज आया।तपस्या आज बुद्ध पूर्णिमा थी।हमलोग गंगा स्नान के लिए बनारस गए थे।साथ ही भोले बाबा के दर्शन भी हो गए।मैंने कहा अरे वाह !चलो पाप धोने के क्रम में गंगा को तो गन्दा किया ही ,ये बुद्ध पूर्णिमा के दिन भोले बाबा को क्यों परेशान कर दिया :)वो बोली अरे ना रे, एक हमारे पाप से गंगा क्या गन्दी होंगी।तू अपना सोच।फिर बोली - घरवालों ने सोचा नहान के साथ भोले बाबा के दर्शन भी हो जायेगे।हम भी बहती गँगा में हाथ धो लिए।पता नहीं अब कब काशी विश्वनाथ के दर्शन हो ?वैसे ये बता- अमेरिका में जैसे होली ,दुर्गा पूजा ,दिवाली मनाती हो ,वैसे नहान का भी कोई उपाय है क्या ? मैंने कहा -यार ऐसी तो कोई सुबिधा नहीं है यहाँ।कोई गंगा कहाँ से लेकर कर आऐ ? हाँ इंडियन राशन की दूकान पर ,गंगा जल छोटी-छोटी शीशियों में बिकती जरूर है।कौन जाने पानी है या गंगा जल।थोड़ा दुखी होकर मैंने कहा -देखो ना मैंने तो बिना नहाए ,पूजा किये ही नास्ता कर लिया।उसने कहा कोई बात नहीं।तुझे मालूम थोड़े था।मेरे घर वाले भी ना ,भगवान राम ,कृष्ण ,भोलेनाथ ,हनुमान जी ,दुर्गा जी ,लक्ष्मी जी ,सरस्वती माता के पूजा के दिन एक महीने पहले से बताने लगते है।लभली ये पर्व आने वाला है।और देखो आज।बुद्ध सिर्फ किताबो तक ही सिमटे है मेरे समाज में।बाद बाकी घूमने- फिरने ,कभी -कभार बोध गया या राजगीर चले जाते है।याद रहे सिर्फ घूमने के लिहाजे से जाते है।हाँ कोई -कोई पिंड दान के लिए भी गया चला जाता है।दोस्त से बात होने के बाद मैंने सोचती रही ,बुद्ध जब भगवान विष्णु के नवें अवतार के रूप में जाने जाते है ,तो उन्हें विष्णु सा सम्मान क्यों नहीं ? जबकि विष्णु से ठीक उलट उन्होंने शांति और अहिंसा को माना।कही इसका कारण ये तो नहीं कि ,शांति और अहिंसा को समाज में दब्बूपन के रूप में समझा जाता रहा है।शाम की सैर का विषय भी आज यही था।शतेश ने कहा -ऐसा नहीं है तपस्या ,एशिया पेसिफिक रीजन में बुद्ध के फॉलोवर भरे पड़े है।नार्थ अमेरिका में भी कुछ पर्सेंट है।मैंने कहा तो फिर दीखते क्यों नहीं ? शतेश बोले -क्योकि हमलोग ढूंढते या जानने की कोशिश नहीं करते।ये भी देखो ना, बोध गया में दुनिया भर से लोग आते है ,बुद्ध पूर्णिमा के दिन और हम ही कभी नहीं गए वहाँ।वैसे सुना नहीं है -"ओम शांति ओम" का डायलॉग -अगर किसी चीज़ को दिल से चाहो तो सारी कायनात उससे मिलाने कोशिश में लग जाती है।तुम भी दिल से चाहो बुद्ध मिल जायेंगे हा -हा हा।मैंने कहा हो गया ? पहली बात तो ये कि ,ये "द अलकेमिस्ट "की लाईन है।दूसरी मैंने ये मूवी नहीं देखी।शतेश बोले कुछ भी।मैंने कहा बुक पढ़ लेना।"एंड ,व्हेन यू वांट समथिंग ,आल द यूनिवर्स कनस्पिर्स इन हेल्पिंग यू टू अचीव ईट" बाई "पाउलो कोएल्हो" मैंने कहा छोडो ये सब बातें।इंडिया चले क्या ? शतेश हँसते हुए बोले -कही बौद्ध भिक्षु बनने का इरादा तो नहीं कर लिया तुमने।मैंने कहा ऐसा कुछ नहीं है।शतेश बोले वैसे ,बुद्ध तक जाने का रास्ता तुम ही हो।मैंने पूछा वो कैसे ? शतेश हँसते हुए बोले क्योकि तुम तपस्या हो।मुझे भी हँसी आ गई, कहा इतना बकवास जोक कुछ तो तरस खाओ।फिर मैंने कहा- बुद्ध द्वारा तपस्या से ,बुद्ध को आत्मबोध हो गया था ,और मैं ! मैं तपस्या द्वारा बुद्ध -"आत्मबोध प्राप्त करने के लिए प्रयास हूँ"।शतेश बोले हम्म ,एफर्ट टू अचीव सेल्फ रेअलाजसन।मैंने कहा अबकी सही समझे बाबू।वाक करते- करते हमलोग वही लेक के किनारे पहुँचे।बुद्ध से बिहार ,बिहार से गाँव तक पहुँच गए।फिर पुरानी बातों का सिलसिला।कभी खुश होते तो कभी उदास।मुझे बुद्ध की एक कहानी याद आई।मैंने शतेश को सुनना शुरू किया -किसी गाँव में बुद्ध उपदेश दे।कह रहे थे -हर किसी को धरती माता की तरह सहनशील और क्षमाशील होना चाहिए।क्रोध एक ऐसी आग है ,जिसमे क्रोध करने वाला दूसरो को जलायेगा और खुद भी जल जायेगा।उपदेश सुनने वालो में एक अत्यन्त क्रोधी स्वाभाव का व्यक्ति बैठा था।उसको ये सब बाते बकवास लगी।थोड़ी देर तक वो सुनता रहा ,फिर गुस्से में लाल -पीला होकर बुद्ध को कहा - तुम पाखंडी हो।बड़ी -बड़ी बातें करना ,लोगो को भ्र्मित करना यही तुम्हारा काम है।आज के समय में ऐसी बातों का कोई मायने नहीं।ऐसे कड़वे वचन सुनकर भी बुद्ध शांत रहे।बुद्ध ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी।ये देख कर वो व्यक्ति और क्रोधित हो गया।गुस्से में बुद्ध के ऊपर थूक कर वो वहाँ से चला गया।अगले दिन जब उस व्यक्ति का क्रोध शांत हुआ तो ,वो बुद्ध को ढूँढ़ने निकला।बुद्ध दूसरे गाँव उपदेश देने चले गए थे।दूसरे गाँव पहुँच कर उसने बुद्ध को ढूँढा और उनके पैर पकड़ कर माफ़ी माँगने लगा।बुद्ध बोले -तुम कौन हो भाई ? उसने कल वाली घटना बताई।बुद्ध प्रेमपूर्वक बोले -भाई बिता हुआ कल तो मैं वही छोड़ कर आ गया ,और तुम अभी तक वही अटके हो।तुम्हे अपनी गलती का अहसास हो गया।तुमने पश्चाताप कर लिया।अब तुम निर्मल हो चुके हो।बुरी बाते और बुरी घटनाएँ याद करने से वर्तमान और भविष्य दोनों बिगड़ जाते है।बीते कल या आने वाले कल के बारे में मत चिंतित रहो।वर्तमान को जियो।आओ अपने वर्तमान में कदम रखो।और इस तरह वो व्यकि बुद्ध की शरण में आ गया।तो शतेश बाबू कथा गईल बन में सोचअ अपना मन में।शतेश बोले सच में अगर बुद्ध को अपना लिया जाय तो विश्व में शांति और सुख चैन कायम हो सकता है।कोई दुखी ना हो।मैंने कहा नहीं बाबू दुःख तो जब तक सुख है ,जीवन पर्यन्त रहेगा।पर हाँ उनके बचने के उपाय भी है।जैसा कि बौद्ध धर्म का आधार है -1 संसार में दुःख है।
2 दुःख का प्रमुख कारण तृष्णा (तीव्र ईक्षा ) है।
3 दुखो का समुदाय है।
4 दुखो से बचने के उपाय है।
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