Thursday 28 July 2016
KHATTI-MITHI: संवेदना की देवी -महाश्वेता जी !!!
KHATTI-MITHI: संवेदना की देवी -महाश्वेता जी !!!: आप किसलिए आई हैं यहाँ ? मैं ब्रती चैटर्जी की माँ।मुझे उससे मिलना है।कुछ पन्नो देख कर पुलिस वाला कहता है -लाश "नंबर 1084" के पास ...
संवेदना की देवी -महाश्वेता जी !!!
आप किसलिए आई हैं यहाँ ? मैं ब्रती चैटर्जी की माँ।मुझे उससे मिलना है।कुछ पन्नो देख कर पुलिस वाला कहता है -लाश "नंबर 1084" के पास ले जाओ।आह !उस वक़्त उस माँ की पथराई आँखे ,कैसे अपने मृत बेटे को देखती है और कहती है -हाँ ये मेरा बेटा है।मैं बात कर रही हूँ -"हजार चौरासी की माँ", फिल्म की।आज से 4 साल पहले जब मेरे भाई ने मुझे ये फिल्म देखने को कही थी।मै इसके शीर्षक को लेकर बहुत तरह के कयास लगा रही थी।पर सोचा ना था ,ईतना संवेदन पूर्ण ये शीर्षक होगा।ईस फिल्म की कई बाते थी ,जो आपको सोचने पर ,रोने पर मजबूर कर देंगी।पर मेरी जहन में सिर्फ तीन बाते घर कर गई थी।पहला तो ब्रती की लाश को लेने उसकी माँ का जाना।दूसरा उसकी माँ का उसकी बहन को समझाना कि - ब्रती खुद में विश्वास करता था।बाहरी ताकतों(भगवान ,साधु -संतो ) पर नही।तीसरा जो मुझे समझ आया कि- नक्सलाईट लोगो के पास एक लीडरशीप की कमी थी।ज्यादातर ब्रती के दोस्त भटके हुए थे ,इमोशनल थे।आम आदमी तक उनकी पहुँच ही नही थी।जो भी हो पर फिल्म समाज पर चोट कर रही थी।कई बार ऐसा लगता है कि,क्या जो हम न्यूज़ में पढ़ते या फिल्मो में देखते है सच में ही नक्सलियों की जिंदगी ऐसी होगी ? इस साफ -सुथरे समाज के कितने चेहरे है भाई ? कोई ब्रती बन भी जाए पर हज़ार चौरासी की माँ बनना कोई आसान बात नही।आज फिर से ईस फिल्म का ख़्याल "महाश्वेता देवी " जी की वजह से आया।महाश्वेता जी ही ऐसा सोच और लिख सकती थी। 23 जुलाई 2016 को वो हमलोग को छोड़ कर चली गई।पर माफ़ कीजिये मेरा ये कहना सिर्फ व्यावहारिक भर है।मुझे ऐसा लगता है, ऐसे लोग हमेशा जीवित रहते है।हमारी सोच में,हमारी प्रेरणा के रूप में।महाश्वेता जी एक लेखिका के साथ समाज सेविका भी थी।उन्होंने कहा था -उनके लिखने की प्रेरणा शोषित और दबे हुए लोग है।जो ईतना सताने के बाद भी समाज में अपना अधिकार ना पा सके।मुझे दुःख है कि, मैंने उनकी एक भी किताब नही पढ़ी।हाँ एक दो फिल्मो(रुदाली ,संग्राम ) के माध्यम से या गाहे -बगाहे न्यूज़ या भाई से उनके बारे में सुना जरूर है।आह ! कितनी करुणा ,रोष और बदलाव की भावना से भरी थी महाश्वेता जी।आप जैसे लोग जहाँ भी रहे हमें आशीर्वाद देते रहे ,सोचने -समझने की ताकत देते रहे।आप सदा हमारे बीच रहेंगी।आप के ही शब्दो में भारत जैसा भी है ,आखिर हमारा है।
Saturday 23 July 2016
KHATTI-MITHI: आतंकवादी सपने और मै !!!
KHATTI-MITHI: आतंकवादी सपने और मै !!!: आलसी तो मैं शुरू से रही इसमें कोई नई बात नहीं थी मेरे लिए।पर इस बार ब्लॉग की देरी की वजह मेरा दिमागी रूप से आलसी हो जाना था।इसी बीच एक दो द...
आतंकवादी सपने और मै !!!
आलसी तो मैं शुरू से रही इसमें कोई नई बात नहीं थी मेरे लिए।पर इस बार ब्लॉग की देरी की वजह मेरा दिमागी रूप से आलसी हो जाना था।इसी बीच एक दो दोस्तों का मसेज भी आया था कि, तपस्या खट्टी -मीठी क्यों सुना पड़ा है ? शतेश ने भी टोका आजकल लिख नहीं रही हो?मैंने कहा शुभ्रांशु जी तुम तो पढ़ते नहीं मेरा ब्लॉग ,नोटिस कब कर लिया।वो बोले कमेंट नहीं करता इसका मतलब ये नहीं कि पढता नहीं जानेमन।तुम लिखती रहा करो।आज का ब्लॉग मेरी दिमागी परेशानी से जुड़ा है।मैं आपको पहले ही बता दूँ ,मुझे ना तो कभी डिप्रेशन की बीमारी हुई ना अभी तक पागल हुई हूँ और ना कभी नींद की कमी हुई।निद्रा माता कि कृपा है मुझ पर।जब चाहूँ चैन की नींद सो सकती हूँ।पर इन दिनों कुछ अजीब हो रहा था मेरे साथ।मै सोती तो ठीक ही थी ,पर अचानक डर के जग जाती थी।होता यूँ था ,मेरे सपने अब प्यार ,ख़ुशी ,किताबे या घूमने-फिरने तक नहीं रहे।इनपर भी आतंकवादी हमले शुरू हो गए थे।कहने का मतलब ये हुआ ,अब सपने में खून -खराबा देखने लगी था।सपने में मै लोगो से लड़ रही होती या फिर जान बचा के भाग रही होती।हर बार मै बच तो जाती ,पर मेरे शरीर का कोई अभिन्य अंग मेरे साथ ना होता।एक अपाहिज की जिदंगी ,और मै घबरा के जग जाती।पता नहीं मेरा मन इतना विचलीत क्यों था ?मैंने अपनी परेशानी शतेश को बताई।शतेश बोले अरे डरो मत मेरी शेरनी।कितनी बार कहा है रात को न्यूज़ पढ़ के सोना बंद करो।ऐसा भी होता है कि ,हम जो सोचते है वही हमारे सपने का हिस्सा बन जाता है।मैंने भी सोचा सही ही कह रहे है शतेश।इन दिनों कितना कुछ घट रहा है विश्व में।कभी बांग्लादेश ,कभी कश्मीर ,तो कभी फ़्रांस यहाँ तक की जहाँ हमलोग रहते है टेक्सास (डलास )में भी रँग भेद के कारण गोलीबारी और मौत।डरावने सपनो का सिलसिला लगभग रोज ही चल रहा था,पर एक रात तो हद ही हो गई।मैं डर के जगी और काफी देर तक सो नहीं पाई।अगले दिन मै सुबह जग गई थी।ये शतेश के लिए एक शॉक जैसा था।मुझसे पूछे -तपस्या सब ठीक है ना ? आज इतनी सुबह क्यों जग गई ? मुझे मालूम था कि ,आज शतेश के ऑफिस में इम्पोर्टेन्ट मीटिंग है।मैंने इस वजह से ज्यादा कुछ बताया नहीं।बस कहा -क्या तुम घर से मीटिंग नहीं कंडक्ट कर सकते ? आज वर्क फ्रॉम होम कर लेते।शतेश बोले -कोई परेशानी है क्या ,तो प्लीज बताओ।कुछ ज्यादा जरुरी है तो छुट्टी ही ले लूँगा।मैं दूध गरम करते हुए सोच रही थी कि ,अगर मै सपने की वजह से ऑफिस जाने से रोक रही हूँ ,तो ये हँस पड़ेंगे।मैंने कहा नहीं बस ऐसे ही कह रही थी।आप जाओ ऑफिस।शतेश के ऑफिस जाने के बाद बार -बार मेरे दिमाग में वही बेकार ,घटिया डरवाना सपना घूम रहा था।मेरा मन खूब रोने को कर रहा था।मैंने भाई को कॉल लगाया।पर शायद उसके गाँव में होने की वजह से नेटवर्क प्रॉब्लम आ रही थी।मैंने सोचा अच्छा ही हुआ ,उससे बात नहीं हुई।वरना वो और परेशान हो जाता।हमेशा की तरह ज्ञान देता।बहिन ये सब बेकार की बात है।डरो मत मेरी शेरनी का बच्चा।फिर मैंने अपने एक दोस्त को कॉल लगाया।वहाँ भी रिंग होके रह गया।मुझसे रहा नहीं गया।मैंने सोचा माँ या सासू माँ से ही बात कर लेती हूँ।मन कुछ हल्का हो जायेगा।मुझे मालूम है ,ये मेरी माँ के शाम की पूजा का टाइम है।कॉल से पूजा डिस्टर्ब होगी।मैंने सासू माँ को कॉल लगाया।उनसे बात करते वक़्त मै अपने आँसू रोकने की पूरी कोशिश कर रही थी।पर वो तो माँ है।बच्चों की तकलीफ़ पहली आवाज़ में ही समझ जाती है।उनका पूछना ही था कि ,तुम ठीक तो हो ना और मै रो पड़ी।ईतना रोई कि सासू माँ का भी गाला भर गया।मुझे वो हर तरह से समझाने लगी।कुछ नहीं होगा तुम बेकार डर रही हो।आप यकीन मानिये इस वक़्त भी मुझे वो याद रुला रही है।सासू माँ मेरी बहुत समझदार है ,पर कभी -कभार थोड़ी सुपरस्टिशउस चीज़े मानने लगती है।फ़ोन रखने के पहले वो बोली अच्छा सुनो -घर में धुप -अगरबत्ती रोज जलाया करो और एक हनुमान जी की तस्वीर घर में लगा लो।साथ ही कुछ दिन कोई लोहे की चीज़ अपने तकिये के नीचे रख कर सोया करो।मैंने उनको हाँ बोल के फ़ोन रख दिया।उधर शायद टेलीपैथी ने काम किया और मेरी माँ का फ़ोन आ गया।बोली लवली सब ठीक है ना ? मेरा मन तुमसे बात करने को कर रहा था।मै रो -धो तो पहले ही चुकी थी।अभी आराम से पर थोड़ी उदास होके माँ से बात कर रही थी।माँ की अलग कहानी शुरू -तुम मारपीट वाली मूवी कम देखा करो ,रोज सोने से पहले हाथ -पैर धो के सोअो ,बेड पे खाना छोड़ दो।माँ को मेरी ये आदतें मालूम है ,और वो इसी सबको लिंक कर रही थी।फिर और ज्ञान देने के बाद बोली -तुम्हे जब भी डर लगे मुझे कॉल कर लिया करो ,कभी भी किसी भी वक़्त।मेरा मन अब थोड़ा शांत था।मैंने न्यूज़ पढ़ना बंद कर दिया था।फेसबुक और व्हाट्सप्प को भी कम कर दिया।एक तो ये ये व्हाट्सप्प पे पचहत्तर ग्रुप जान के दुश्मन थे।स्कूल का ग्रुप अभी तक अपने-अपने रोमियो जूलियट की खोज में लगा है।वही कॉलेज वाले आज़ भी डिबेट के चक़्कर में पड़े हुए है।जब भी मसेज आये मतलब दंगा ,पॉलिटिक्स और आतंकवाद।कभी -कभार अगर मै हार भी मान लूँ तो नहीं ,ऐसे कैसे भाग सकती हो ? तुम तो डरपोक नहीं थी।अरे भाई मैंने मान लिया कि मैं डरपोक हूँ तो तुम्हे क्या प्रॉब्लम है? मुझे नहीं पड़ना बीते प्रेम कहनियों में या इंटेलेक्टुअल बातों में।वही दूसरी ओर फेसबुक ने तो गंध फैला रखी है।अगर भारत माता के भक्त है तो लाइक करे ,सैनिकों को लाईक करे ,भगवान् की ज्यादा लाइक आई या अल्लाह की ,बुरहान भगवान् या शैतान ,ज़ाकिर नाईक बैन और नो बैन ,आदिवासी महिलाओ से बलत्कार।प्यारे दोस्तों क्या मिलता है आपलोग को ऐसे पोस्ट से ?आप तो अपनी अधूरी जानकारी की तेजी दिखाने के चक़्कर में फेसबुक रँग देते ,पर कुछ मुझ जैसे पागल ,इमोशनल इंसान भी होते होंगे जो आपकी पोस्ट से अपनी -अपनी तरीके से आहात होते होंगे।अब आप कह सकते है तो, सोशल मीडिया यूज़ करना बंद कर दो ये तुम्हारी प्रॉब्लम है।फिर तो मै देवदास वाली स्टाइल में यही कहूँगी कि ,इस दुनियाँ में रहने के लिए मुझे क्या -क्या छोड़ना होगा ?वैसे भी ज़ालिम ,कमबख़्त टेक्नोलॉजी ऐसी चीज़ है जिससे आप कोस तो सकते है ,पर आसानी से पीछा नहीं छुड़ा सकते।ये अच्छा नहीं यही होता कि ,हम फेसबुक को अपनी तस्वीरो ,घूमने की जगहों ,खाने ,मूवी का ब्यौरा देने या कुछ अच्छी -भाईचारे , ज्ञान या हँसी मजाक वाले पोस्ट से भरे।अपनी खुद के विचारों से भरे ना की भर्मित सूचनाओं से।यदि फिर भी आप सच में अपने घृणित पोस्ट से इत्तेफाक रखते है तो -उसी दिशा में कुछ करे।मसलन पॉलिटिशन बन के पॉलिटिक्स कि गंदगी को साफ़ करे ,सैनिक बनकर देश की सेवा करे ,कश्मीर से सिम्पैथी है तो ,कुछ साल कश्मीर रह कर वहाँ की सच्चाई जानने की कोशिश करे और उस दिशा में सुधार करे।ना कि सिर्फ पोस्ट करके आराम से बैठ जाए।हमें क्या जरूरत किसी धर्म गुरु की बातों में आने की।हमारे पास ख़ूबसूरत दिमाग है ,प्यारे -प्यारे रिस्ते -नाते है ,बस उसी को फॉलो करे।मुझे तो कभी -कभी ये सोच के डर लगता है कि ,आज से 20 साल बाद जब हमारे आने वाली जेनेरशन युवा होगी तो ,उसके मन के भाव क्या होंगे ? वो डर या खौफ़ से भरे हुए या फिर घृणा ,आक्रोश और मौत की खेल में डूबे हुए।इस वक़्त बुद्ध आपकी बहुत जरूरत है।कहाँ हो बुद्ध ? दुनिया को आपकी जरूरत हैं।
Thursday 7 July 2016
KHATTI-MITHI: फिर तुम्हारे साथ !!!
KHATTI-MITHI: फिर तुम्हारे साथ !!!: कविता चाहे जिस भाषा में हो ,आपके दिल को छू ही जाती है।ये कवी की कल्पना ही तो होती है ,कि कभी आपके हाथो में धुप मलने की ख़्वाइश हो या फिर कैन...
फिर तुम्हारे साथ !!!
कविता चाहे जिस भाषा में हो ,आपके दिल को छू ही जाती है।ये कवी की कल्पना ही तो होती है ,कि कभी आपके हाथो में धुप मलने की ख़्वाइश हो या फिर कैनवास पर रंग बनके बिछ जाने की।या फिर तुम होती तो ऐसा होता तुम होती तो वैसा होता।इन्हीं कवितओं की खूबसूरती बिखेर रहा है यू टुब।यू टुब पे आप अगर हिंदी कविता सर्च करते है ,तो आपको बहुत सी ऐसी कविताएँ मिलेंगी जो आपके दिल को छू जाएँगी।चाहे पाश की कविताएँ हो ,या रामधारी सिंह दिनकर की ,या फिर भवानीप्रसाद मिश्र हो या मानव कॉल की कविता या फिर विस्लावा सिम्ब्रोस्का की।करीब सात -आठ महीनों से मैं इन कवितओं पर कुछ लिखना चाह रही थी ,पर हर बार ही रह जाता था।इन कविताओं को बड़ी ही खूबसूरती के साथ कुछ लेखक तो कुछ नायक-नायिका ,तो कोई पत्रकार या कोई डांसर पढ़ते है।मुझे "स्वरा भाष्कर" (नायिका ) की पढ़ी हुई कविता बहुत पसंद आई थी।इन्ही कविताओं के संग्रह में मुझे "प्रेमचंद गाँधी "की कविता भी सुनने को मिली।वैसे मैंने इनकी कुछ ही कविता पढ़ी है। जिसमे "इस सिम्फोनी में ,अगर हर्फ़ों में ही है ख़ुदा और अंतिम कुछ भी नहीं होता शामिल है।बात आज की कविता की तो -ये कविता "फिर तुम्हारे साथ " कोई बहुत ही जबरदस्त कविता तो नहीं ही है ,पर सुन कर अच्छा लगा।वो क्या है ना प्रेम एक ऐसी भावना है जो सबसे ऊपर।सारे ज्ञान से ऊपर है।ये एक ऐसा टॉपिक है ,जो किसी के चेहरे पर मुस्कान ला सकता है।वैसे कविता के भाव को हर कोई अलग -अलग अपनी समझ के अनुसार अपनाता है।मसलन किसी को वही प्यारी कविता दुःख और वेदना देती है ,तो किसी को ख़ुशी।आज जिस कविता की बात कर रही हूँ ,उसका सार कुछ यूँ है -क्या होता है ,जब दो जन जो एक दूसरे के बिना रह ही नहीं पाते थे ,अचानक बहुत सालो बाद मिलते है तो -
"एक अर्से के बाद देखा तुम्हे ,तुमसे जी भर के बातें की।
दिल खोल कर आँखों में भर लिया मैंने तुम्हे ,थोड़ी कमज़ोर लग रही थी तुम
लेकिन आँखों में वही चमक कायम थी ,जो मुझे खींचती है हर बार तुम्हारी ओर।
आधा दिन गुजारा साथ हमने।
तुम्हे ख़्याल ही नहीं रहा या जानबुझ कर ,तुमने दुपट्टा नहीं डाला इस दौरान।
ना ही गीले बालों में कंघी की तुमने ,ना ख़ुशबूदार तेल लगाया
याकि तुम्हे याद था ,मुझे अच्छे लगते है तुम्हारे लम्बे केशु ऐसे ही।
एक बार फिर मैं चकित था तुम्हारे ज्ञान पर ,और तुम खुश थी मेरी कामयाबी पर।
कितनी बार हँसे हम एक साथ ,कितनी बार गूंजे हमारे ठहाके कोई हिसाब नहीं
मैं याद रखूँगा उस स्पर्श को ,जो चाय की कप के साथ दिया तुमने
उस वक़्त की सिहरन याद रहेगी मुझे,
जैसे याद है! पहली बार तुमसे गले मिलना और मारे शर्म के एकदम से छूट जाना। "
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