Thursday 7 July 2016

फिर तुम्हारे साथ !!!

कविता चाहे जिस भाषा में हो ,आपके दिल को छू ही जाती है।ये कवी की कल्पना ही तो होती है ,कि कभी आपके हाथो में धुप मलने की ख़्वाइश हो या फिर कैनवास पर रंग बनके बिछ जाने की।या फिर तुम होती तो ऐसा होता तुम होती तो वैसा होता।इन्हीं कवितओं की खूबसूरती बिखेर रहा है यू टुब।यू टुब पे आप अगर हिंदी कविता सर्च करते है ,तो आपको बहुत सी ऐसी कविताएँ मिलेंगी जो आपके दिल को छू जाएँगी।चाहे पाश की कविताएँ हो ,या रामधारी सिंह दिनकर की ,या फिर भवानीप्रसाद मिश्र हो या मानव कॉल की कविता या फिर विस्लावा सिम्ब्रोस्का की।करीब सात -आठ  महीनों से मैं इन कवितओं पर कुछ लिखना चाह रही थी ,पर हर बार ही रह जाता था।इन कविताओं को बड़ी ही खूबसूरती के साथ कुछ लेखक तो कुछ नायक-नायिका ,तो कोई पत्रकार या कोई डांसर पढ़ते है।मुझे  "स्वरा भाष्कर" (नायिका ) की पढ़ी हुई कविता बहुत पसंद आई थी।इन्ही कविताओं के संग्रह में मुझे "प्रेमचंद गाँधी "की कविता भी सुनने को मिली।वैसे मैंने इनकी कुछ ही कविता पढ़ी है। जिसमे "इस सिम्फोनी में ,अगर हर्फ़ों में ही है ख़ुदा और अंतिम कुछ भी नहीं होता शामिल है।बात आज की कविता की तो -ये कविता "फिर तुम्हारे साथ " कोई बहुत ही जबरदस्त  कविता तो नहीं ही है ,पर सुन कर अच्छा लगा।वो क्या है ना प्रेम एक ऐसी भावना है जो सबसे ऊपर।सारे ज्ञान से ऊपर है।ये एक ऐसा टॉपिक है ,जो किसी के चेहरे पर मुस्कान ला सकता है।वैसे कविता के भाव को हर कोई अलग -अलग अपनी समझ के अनुसार अपनाता है।मसलन किसी को वही प्यारी कविता दुःख और वेदना देती है ,तो किसी को ख़ुशी।आज जिस कविता की बात कर रही हूँ ,उसका सार कुछ यूँ है -क्या होता है ,जब दो जन जो एक दूसरे के बिना रह ही नहीं पाते थे ,अचानक बहुत सालो बाद मिलते है तो -

"एक अर्से के बाद देखा तुम्हे ,तुमसे जी भर के बातें की। 
दिल खोल कर आँखों में भर लिया मैंने तुम्हे ,थोड़ी कमज़ोर लग रही थी तुम 
लेकिन आँखों में वही चमक कायम थी ,जो मुझे खींचती है हर बार तुम्हारी ओर। 
आधा दिन गुजारा साथ हमने। 
तुम्हे ख़्याल ही नहीं रहा या जानबुझ कर ,तुमने दुपट्टा नहीं डाला इस दौरान। 
ना ही गीले बालों में कंघी की तुमने ,ना ख़ुशबूदार तेल लगाया 
याकि तुम्हे याद था ,मुझे अच्छे लगते है तुम्हारे लम्बे केशु ऐसे ही। 
एक बार फिर मैं चकित था तुम्हारे ज्ञान पर ,और तुम खुश थी मेरी कामयाबी पर। 
कितनी बार हँसे हम एक साथ ,कितनी बार गूंजे हमारे ठहाके कोई हिसाब नहीं 
मैं याद रखूँगा उस स्पर्श को ,जो चाय की कप के साथ दिया तुमने 
उस वक़्त की सिहरन याद रहेगी मुझे,
जैसे याद है! पहली बार तुमसे गले मिलना और मारे शर्म के एकदम से छूट जाना। "

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