आलसी तो मैं शुरू से रही इसमें कोई नई बात नहीं थी मेरे लिए।पर इस बार ब्लॉग की देरी की वजह मेरा दिमागी रूप से आलसी हो जाना था।इसी बीच एक दो दोस्तों का मसेज भी आया था कि, तपस्या खट्टी -मीठी क्यों सुना पड़ा है ? शतेश ने भी टोका आजकल लिख नहीं रही हो?मैंने कहा शुभ्रांशु जी तुम तो पढ़ते नहीं मेरा ब्लॉग ,नोटिस कब कर लिया।वो बोले कमेंट नहीं करता इसका मतलब ये नहीं कि पढता नहीं जानेमन।तुम लिखती रहा करो।आज का ब्लॉग मेरी दिमागी परेशानी से जुड़ा है।मैं आपको पहले ही बता दूँ ,मुझे ना तो कभी डिप्रेशन की बीमारी हुई ना अभी तक पागल हुई हूँ और ना कभी नींद की कमी हुई।निद्रा माता कि कृपा है मुझ पर।जब चाहूँ चैन की नींद सो सकती हूँ।पर इन दिनों कुछ अजीब हो रहा था मेरे साथ।मै सोती तो ठीक ही थी ,पर अचानक डर के जग जाती थी।होता यूँ था ,मेरे सपने अब प्यार ,ख़ुशी ,किताबे या घूमने-फिरने तक नहीं रहे।इनपर भी आतंकवादी हमले शुरू हो गए थे।कहने का मतलब ये हुआ ,अब सपने में खून -खराबा देखने लगी था।सपने में मै लोगो से लड़ रही होती या फिर जान बचा के भाग रही होती।हर बार मै बच तो जाती ,पर मेरे शरीर का कोई अभिन्य अंग मेरे साथ ना होता।एक अपाहिज की जिदंगी ,और मै घबरा के जग जाती।पता नहीं मेरा मन इतना विचलीत क्यों था ?मैंने अपनी परेशानी शतेश को बताई।शतेश बोले अरे डरो मत मेरी शेरनी।कितनी बार कहा है रात को न्यूज़ पढ़ के सोना बंद करो।ऐसा भी होता है कि ,हम जो सोचते है वही हमारे सपने का हिस्सा बन जाता है।मैंने भी सोचा सही ही कह रहे है शतेश।इन दिनों कितना कुछ घट रहा है विश्व में।कभी बांग्लादेश ,कभी कश्मीर ,तो कभी फ़्रांस यहाँ तक की जहाँ हमलोग रहते है टेक्सास (डलास )में भी रँग भेद के कारण गोलीबारी और मौत।डरावने सपनो का सिलसिला लगभग रोज ही चल रहा था,पर एक रात तो हद ही हो गई।मैं डर के जगी और काफी देर तक सो नहीं पाई।अगले दिन मै सुबह जग गई थी।ये शतेश के लिए एक शॉक जैसा था।मुझसे पूछे -तपस्या सब ठीक है ना ? आज इतनी सुबह क्यों जग गई ? मुझे मालूम था कि ,आज शतेश के ऑफिस में इम्पोर्टेन्ट मीटिंग है।मैंने इस वजह से ज्यादा कुछ बताया नहीं।बस कहा -क्या तुम घर से मीटिंग नहीं कंडक्ट कर सकते ? आज वर्क फ्रॉम होम कर लेते।शतेश बोले -कोई परेशानी है क्या ,तो प्लीज बताओ।कुछ ज्यादा जरुरी है तो छुट्टी ही ले लूँगा।मैं दूध गरम करते हुए सोच रही थी कि ,अगर मै सपने की वजह से ऑफिस जाने से रोक रही हूँ ,तो ये हँस पड़ेंगे।मैंने कहा नहीं बस ऐसे ही कह रही थी।आप जाओ ऑफिस।शतेश के ऑफिस जाने के बाद बार -बार मेरे दिमाग में वही बेकार ,घटिया डरवाना सपना घूम रहा था।मेरा मन खूब रोने को कर रहा था।मैंने भाई को कॉल लगाया।पर शायद उसके गाँव में होने की वजह से नेटवर्क प्रॉब्लम आ रही थी।मैंने सोचा अच्छा ही हुआ ,उससे बात नहीं हुई।वरना वो और परेशान हो जाता।हमेशा की तरह ज्ञान देता।बहिन ये सब बेकार की बात है।डरो मत मेरी शेरनी का बच्चा।फिर मैंने अपने एक दोस्त को कॉल लगाया।वहाँ भी रिंग होके रह गया।मुझसे रहा नहीं गया।मैंने सोचा माँ या सासू माँ से ही बात कर लेती हूँ।मन कुछ हल्का हो जायेगा।मुझे मालूम है ,ये मेरी माँ के शाम की पूजा का टाइम है।कॉल से पूजा डिस्टर्ब होगी।मैंने सासू माँ को कॉल लगाया।उनसे बात करते वक़्त मै अपने आँसू रोकने की पूरी कोशिश कर रही थी।पर वो तो माँ है।बच्चों की तकलीफ़ पहली आवाज़ में ही समझ जाती है।उनका पूछना ही था कि ,तुम ठीक तो हो ना और मै रो पड़ी।ईतना रोई कि सासू माँ का भी गाला भर गया।मुझे वो हर तरह से समझाने लगी।कुछ नहीं होगा तुम बेकार डर रही हो।आप यकीन मानिये इस वक़्त भी मुझे वो याद रुला रही है।सासू माँ मेरी बहुत समझदार है ,पर कभी -कभार थोड़ी सुपरस्टिशउस चीज़े मानने लगती है।फ़ोन रखने के पहले वो बोली अच्छा सुनो -घर में धुप -अगरबत्ती रोज जलाया करो और एक हनुमान जी की तस्वीर घर में लगा लो।साथ ही कुछ दिन कोई लोहे की चीज़ अपने तकिये के नीचे रख कर सोया करो।मैंने उनको हाँ बोल के फ़ोन रख दिया।उधर शायद टेलीपैथी ने काम किया और मेरी माँ का फ़ोन आ गया।बोली लवली सब ठीक है ना ? मेरा मन तुमसे बात करने को कर रहा था।मै रो -धो तो पहले ही चुकी थी।अभी आराम से पर थोड़ी उदास होके माँ से बात कर रही थी।माँ की अलग कहानी शुरू -तुम मारपीट वाली मूवी कम देखा करो ,रोज सोने से पहले हाथ -पैर धो के सोअो ,बेड पे खाना छोड़ दो।माँ को मेरी ये आदतें मालूम है ,और वो इसी सबको लिंक कर रही थी।फिर और ज्ञान देने के बाद बोली -तुम्हे जब भी डर लगे मुझे कॉल कर लिया करो ,कभी भी किसी भी वक़्त।मेरा मन अब थोड़ा शांत था।मैंने न्यूज़ पढ़ना बंद कर दिया था।फेसबुक और व्हाट्सप्प को भी कम कर दिया।एक तो ये ये व्हाट्सप्प पे पचहत्तर ग्रुप जान के दुश्मन थे।स्कूल का ग्रुप अभी तक अपने-अपने रोमियो जूलियट की खोज में लगा है।वही कॉलेज वाले आज़ भी डिबेट के चक़्कर में पड़े हुए है।जब भी मसेज आये मतलब दंगा ,पॉलिटिक्स और आतंकवाद।कभी -कभार अगर मै हार भी मान लूँ तो नहीं ,ऐसे कैसे भाग सकती हो ? तुम तो डरपोक नहीं थी।अरे भाई मैंने मान लिया कि मैं डरपोक हूँ तो तुम्हे क्या प्रॉब्लम है? मुझे नहीं पड़ना बीते प्रेम कहनियों में या इंटेलेक्टुअल बातों में।वही दूसरी ओर फेसबुक ने तो गंध फैला रखी है।अगर भारत माता के भक्त है तो लाइक करे ,सैनिकों को लाईक करे ,भगवान् की ज्यादा लाइक आई या अल्लाह की ,बुरहान भगवान् या शैतान ,ज़ाकिर नाईक बैन और नो बैन ,आदिवासी महिलाओ से बलत्कार।प्यारे दोस्तों क्या मिलता है आपलोग को ऐसे पोस्ट से ?आप तो अपनी अधूरी जानकारी की तेजी दिखाने के चक़्कर में फेसबुक रँग देते ,पर कुछ मुझ जैसे पागल ,इमोशनल इंसान भी होते होंगे जो आपकी पोस्ट से अपनी -अपनी तरीके से आहात होते होंगे।अब आप कह सकते है तो, सोशल मीडिया यूज़ करना बंद कर दो ये तुम्हारी प्रॉब्लम है।फिर तो मै देवदास वाली स्टाइल में यही कहूँगी कि ,इस दुनियाँ में रहने के लिए मुझे क्या -क्या छोड़ना होगा ?वैसे भी ज़ालिम ,कमबख़्त टेक्नोलॉजी ऐसी चीज़ है जिससे आप कोस तो सकते है ,पर आसानी से पीछा नहीं छुड़ा सकते।ये अच्छा नहीं यही होता कि ,हम फेसबुक को अपनी तस्वीरो ,घूमने की जगहों ,खाने ,मूवी का ब्यौरा देने या कुछ अच्छी -भाईचारे , ज्ञान या हँसी मजाक वाले पोस्ट से भरे।अपनी खुद के विचारों से भरे ना की भर्मित सूचनाओं से।यदि फिर भी आप सच में अपने घृणित पोस्ट से इत्तेफाक रखते है तो -उसी दिशा में कुछ करे।मसलन पॉलिटिशन बन के पॉलिटिक्स कि गंदगी को साफ़ करे ,सैनिक बनकर देश की सेवा करे ,कश्मीर से सिम्पैथी है तो ,कुछ साल कश्मीर रह कर वहाँ की सच्चाई जानने की कोशिश करे और उस दिशा में सुधार करे।ना कि सिर्फ पोस्ट करके आराम से बैठ जाए।हमें क्या जरूरत किसी धर्म गुरु की बातों में आने की।हमारे पास ख़ूबसूरत दिमाग है ,प्यारे -प्यारे रिस्ते -नाते है ,बस उसी को फॉलो करे।मुझे तो कभी -कभी ये सोच के डर लगता है कि ,आज से 20 साल बाद जब हमारे आने वाली जेनेरशन युवा होगी तो ,उसके मन के भाव क्या होंगे ? वो डर या खौफ़ से भरे हुए या फिर घृणा ,आक्रोश और मौत की खेल में डूबे हुए।इस वक़्त बुद्ध आपकी बहुत जरूरत है।कहाँ हो बुद्ध ? दुनिया को आपकी जरूरत हैं।
Sapne ke baare mein pucha tha kisi ki kahani nahi puchi thi I don't like this news
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