आप किसलिए आई हैं यहाँ ? मैं ब्रती चैटर्जी की माँ।मुझे उससे मिलना है।कुछ पन्नो देख कर पुलिस वाला कहता है -लाश "नंबर 1084" के पास ले जाओ।आह !उस वक़्त उस माँ की पथराई आँखे ,कैसे अपने मृत बेटे को देखती है और कहती है -हाँ ये मेरा बेटा है।मैं बात कर रही हूँ -"हजार चौरासी की माँ", फिल्म की।आज से 4 साल पहले जब मेरे भाई ने मुझे ये फिल्म देखने को कही थी।मै इसके शीर्षक को लेकर बहुत तरह के कयास लगा रही थी।पर सोचा ना था ,ईतना संवेदन पूर्ण ये शीर्षक होगा।ईस फिल्म की कई बाते थी ,जो आपको सोचने पर ,रोने पर मजबूर कर देंगी।पर मेरी जहन में सिर्फ तीन बाते घर कर गई थी।पहला तो ब्रती की लाश को लेने उसकी माँ का जाना।दूसरा उसकी माँ का उसकी बहन को समझाना कि - ब्रती खुद में विश्वास करता था।बाहरी ताकतों(भगवान ,साधु -संतो ) पर नही।तीसरा जो मुझे समझ आया कि- नक्सलाईट लोगो के पास एक लीडरशीप की कमी थी।ज्यादातर ब्रती के दोस्त भटके हुए थे ,इमोशनल थे।आम आदमी तक उनकी पहुँच ही नही थी।जो भी हो पर फिल्म समाज पर चोट कर रही थी।कई बार ऐसा लगता है कि,क्या जो हम न्यूज़ में पढ़ते या फिल्मो में देखते है सच में ही नक्सलियों की जिंदगी ऐसी होगी ? इस साफ -सुथरे समाज के कितने चेहरे है भाई ? कोई ब्रती बन भी जाए पर हज़ार चौरासी की माँ बनना कोई आसान बात नही।आज फिर से ईस फिल्म का ख़्याल "महाश्वेता देवी " जी की वजह से आया।महाश्वेता जी ही ऐसा सोच और लिख सकती थी। 23 जुलाई 2016 को वो हमलोग को छोड़ कर चली गई।पर माफ़ कीजिये मेरा ये कहना सिर्फ व्यावहारिक भर है।मुझे ऐसा लगता है, ऐसे लोग हमेशा जीवित रहते है।हमारी सोच में,हमारी प्रेरणा के रूप में।महाश्वेता जी एक लेखिका के साथ समाज सेविका भी थी।उन्होंने कहा था -उनके लिखने की प्रेरणा शोषित और दबे हुए लोग है।जो ईतना सताने के बाद भी समाज में अपना अधिकार ना पा सके।मुझे दुःख है कि, मैंने उनकी एक भी किताब नही पढ़ी।हाँ एक दो फिल्मो(रुदाली ,संग्राम ) के माध्यम से या गाहे -बगाहे न्यूज़ या भाई से उनके बारे में सुना जरूर है।आह ! कितनी करुणा ,रोष और बदलाव की भावना से भरी थी महाश्वेता जी।आप जैसे लोग जहाँ भी रहे हमें आशीर्वाद देते रहे ,सोचने -समझने की ताकत देते रहे।आप सदा हमारे बीच रहेंगी।आप के ही शब्दो में भारत जैसा भी है ,आखिर हमारा है।
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