Monday 31 July 2017

फेसबुक और तुनकी ब्राह्मण तपस्या !!!

सबसे पहले तो बहुत -बहुत धन्यवाद मेरे प्यारे दोस्तों का ,जिन्होंने मेरा  फेसबुक प्रोफाइल देखा और मुझे मैसेज किया -तपस्या सब ठीक हैं ना ?
 व्हाटअप पर तो मैंने रिप्लाई कर ही दिया था। मैसेंजर पर आज रिप्लाई किया।
वो तस्वीर मैंने वीमेन एब्यूज के विरोध में लगाया था। एक प्यारी दोस्त ने मुझे इसके बारे में बताया था।

वैसे फेसबुक के बारे में बैठे -बैठे मस्त ख्याल आया। ये जो  फेसबुक के फाउंडरस है ,उनमे से प्रमुख -मार्क ज़ुकेरबर्ग को तो नाम से लगभग सब जानते ही है ।दूसरे डस्टिन मॉस्कोवित्ज़ ,एडुआर्डो सवेरिन ,एंड्रू मकोल्लुम और क्रिस हैं। इनमे एंड्रू और क्रिस को छोड़ बाकी तीनों यहूदी है। 
यहूदी लोगों के बारे में कहा जाता है ,वो बड़े मतलबी ,घमंडी,लालची और बिज़नेस माइंडेड  होते हैं। पर साथ ही एक समाज और दया भाव में भी विश्वास करते है। अब मेरे तो कोई यहूदी दोस्त है नहीं ,जो सच्चाई मालूम हो। जो पढ़ा है ,सुना है लिख दिया।

पर गौर कीजिये तो फेसबुक में ये सारे गुण है ।एक समाज तो बना ही है ।दूसरा यहाँ कभी -कभार तेज बनने के क्रम में लोग एक दूसरे के साथ कठोर हो जाते है। मतलबी तो होते ही हैं -मेरे पिक पर लाइक ,कमेंट नहीं तो हम तुम पर क्यों करें। बात दया धरम और बिज़नेस की तो वो भी हो ही जाता है -मसलन ,किसी बिछड़े को मिलवाओ ,फलाना ऑर्गनिज़शन से जुड़े ,दान दे। भगवान् ,अल्लाह की तस्वीर को लाइक करें ।

बस मार्क के एक कमेंट बॉक्स को हमलोग ठीक से समझ नहीं पाते। कमेंट हैं ही -टीका -टिप्पणी।हम जैसे निरीह लोग बुरा मान जाते हैं।आज से दो साल पहले तक मैंने फेसबुक का एक फीचर लगा रखा था ।जिसके वजह से कोई मुझे फ्रेंड रिक्वेस्ट नहीं भेज पता था।
 ऐसा करने का प्रमुख कारण -गुड  मॉर्निंग -गुड नाईट पर टैग करना
-कॉफी ,गुलाब या पकाऊ शायरी के साथ भी टैग करना।
-शादी के बाद नए -नए देवर नन्द का पैदा होना। मेरी तस्वीरें सेव करके मम्मी तक पहुँचाना। मेरी पोस्ट का पोस्टमार्टम करना।
-फोटो को लाइक और कोई अच्छा कमेंट करने का आदेश देना। (अब जेल लगा कर सर पर मुर्गा बनाइयेगा और कहियेगा शेर लिखो तो कैसे चलेगा।)
-और सबसे बड़ा अमेरिका फैक्टर। भाई मेरे कौन सा मेरे पूर्वज अमेरिकी थे ? मैं भी आज नहीं तो कल वापस आ ही जाऊँगी। फिर कहियेगा ल हो गइल धोखा। (मेरे इस नेचर में भी -घमंड ,मतलबीपन ,और थोड़ा दया भाव है )

खैर कई बार भाई या मेरे कुछ दोस्त टोक देते हैं कि ,दोस्तों का दायरा थोड़ा बढ़ाओ। मेरा जबाब हर बार यहीं होता -दायरा बढ़े ना बढ़े दिमाग़ी दरद ना बढ़े। मेरी इसी गन्दी आदत की वजह से सोशल मीडिआ पर मेरे सीमित ही दोस्त बने ,पर खुशकिस्मत हूँ जितने है उनमें आधे से अधिक को मैं जानती हूँ। कुछ लोगों से प्रभावित भी हूँ। वहीं कुछ के लेख पसंद है। वो तो भला हो मेरी एक जूनियर का कहा -दीदी आप तो ईतना ना फेसबुक पर प्रोटेक्शन लगाई थी कि ,टेक्सास में होने के वावजूद हम मिल नहीं पाए। फिर मुझे आत्मज्ञान हुआ और सारे प्रोटेक्शन को उसी दिन अलविदा कह दिया। तो इस तरह मेरा सोशलपना शुरू हुआ।

कुल मिलाकर कहें तो मैं सोशल मीडिया पर अब भी कम ही फ्रेंडली हूँ। पर जिनसे हूँ दिल से हूँ। वैसे ये इतनी अच्छी बात तो नहीं ,पर ब्लॉका -ब्लोकी से तो अच्छा है।(मार्क सॉरी मैं लालची नहीं बन पाई )

रही बात प्रोफाइल पिक्चर की तो ,इस मामले में मैं बहुत -बहुत ही आलसी रही हूँ। अबतक कुल मिला कर मैंने पाँच -छह बार ही प्रोफाइल पिक चेंज की होगी (सॉरी मार्क मैं बिजनेस माइंडेड भी नहीं बन पाई )
वहीं  शुक्रवार शाम से ही मेरे फ़ोन की लगभग छुट्टी हो जाती है रविवार शाम तक। मुझे बिल्कुल पसंद नहीं कि ,कहीं घुमनें गए फ़ोन में लगे पड़े है। दोस्त के यहाँ गए या वो मिलने आये और फ़ोन पर लगे पड़े हैं।हाँ तस्वीरें लेना अपवाद है।(सॉरी मार्क कम सामाजिक होने के लिए )

तो कुल मिला कर कहानी का सार ये है -मैं तपस्या चौबे ब्राह्मण की ब्राह्मण रह गई।
 *अगर मैं जल्दी रिप्लाई नहीं करती तो ये या तो टाइमिंग का दोष है या शनिवार -रविवार का ,(घमंड नहीं)
अपवाद -कभी -कभार आलस का भी।
* आजकल मैं थोड़ा ज्यादा फ्रेंडली हो रही हूँ ,अगर आप मुझे झेल सके तो
*कहीं नहीं गई। किसी से मिलना -जुलना नहीं रहा तो फ़ोन की छुट्टी भी कभी -कभार कैंसिल हो जाती है
*सबसे इम्पोर्टेन्ट -कम दोस्त हो पर आपको समझने वाले हो तो ,ये भगवान का आशीर्वाद है इस कलयुग में। 

Friday 28 July 2017

समस्या !!!

ये फ़्राइडे को बारिश क्यों होती है ? ख़ैर अच्छा हुआ जो हुई ।
फ़ेस्बुक -फ़ेस्बुक खेलने लगी ।इसी बीच पुष्य जी के एक मित्र ,के पोस्ट पर नज़र गई ।
कितनी स्वाभाविक सी बात लिखी है इन्होंने ।पढ़ने पर आपको लगे कि ,हाँ ऐसा तो है ही।पर ऐसा है क्यों? शौचालय क्या घर की ही बुनियादी ज़रूरत है ?

मैं बहुत पहले ही इस पर एक आपबीती लिख चुकीं हूँ ।फिर से संक्षेप में साझा कर रही हूँ - छपरा से बनारस जाने वाली ट्रेन का इंतज़ार मैं ,मेरा भाई और शतेश कर रहे थे ।मुझे बाथरूम जाना था ।मैं वेटिंग रूम गई ।वेटिंग रूम में मरम्मत का काम चल रहा था ।पूरा रूम कबाड़ा बना हुआ था ।फिर भी हिम्मत करके मैं उसके टॉलेट तक गई ।उसकी हालत देख भागने के अलावा कुछ नही सूझा । वापस आकर भाई को बताया की भाई ,बाथरूम बहुत गन्दा है । भाई बोला दो मिनट रुको ।जीजा जी चाय लेने गए हैं ।आते है तो चलता हूँ ।शतेश आए तो भाई बोला -आप रुकिए सामान के साथ मैं दीदी के साथ दूसरा बाथरूम ढूँढता हूँ ।
रात के साढ़े ग्यारह हो रहे थे ।शतेश बोले तुम रुको चुलबुल ,मैं जाता हूँ ।भाई बोला आप सामान और चाय को बचाये रखिए ।हमलोग आते है । मैं और भाई प्लैट्फ़ॉर्म के सबसे आगे बने एक कम्प्यूटर ऑफ़िस तक गए ।भाई बोला तुम यहीं रुको ।मैं अंदर देख कर आता हूँ ,टॉलेट है या नही । वापस आकर बोला है दीदी ।सीधे से राइट जाओ । जाओ मैं बाहर हूँ ।मैं चली गई बाथरूम ।
जैसे बाहर निकली कुछ शोर सुना ।देखा तो एक आदमी भाई से बहस कर रहा था ।उसको कह रहा था ,ये पब्लिक टॉलेट नही है ।उसकी आवाज़ से ऑफ़िस के दो -तीन लोग और आ गए ।मैं तो डर गई ।पर भाई मेरा भाई ।जब बोलना शुरू किया सब उसे देखने लगे । जिसने पुलिस बुलाने की बात कि थी ,भाई के तर्क से उसकी हवा गुम थी ।बाद में ऑफ़िस के लोग भाई को बोले जाने दो बेटा ।जाओ -जाओ । पर ऐसे ही सब लोग आने लगे तो ये पब्लिक टॉलेट बन जाएगा ।
फिर भाई ने कहा -तो फिर जल्दी ही यहाँ का पब्लिक टॉलेट ठीक कराने की कोशिश करें ।वैसे भी रेल्वे सरकार की सम्पत्ति है ,और सरकार पब्लिक की ।भाई के इस बात से थोड़ा लाइट माहौल हुआ ।कुछ लोग हँसने लगे ।हमलोग वहाँ से चल दिए ।
प्लाट्फ़ोर्म पर आकर हमलोग के चर्चा का विषय शौचालय ही था ।
सच में कितनी गम्भीर समस्या है ये । ख़ैर बिहार तो पिछड़ा है हीं,पर सच मानिए मुझे तो अगले शहर में भी पब्लिक टॉलेट आसानी से नही दिखते।ना पुणे में ना ही दिल्ली में ना ही कलकत्ता में ।हाँ दिल्ली में मेट्रो के शौचालय ने हेल्प ज़रूर किया है ।वही शतेश से सुना है ,बंगलोर में काफ़ी जगह पब्लिक शौचालय है।

दुःख -पता नही कब तक महिलाओं को झाड़ियों दीवारों ,वीराने को ढूँढते रहना होगा ।कब तक पान -गुटके के सीमेंट से सने ,गंदी गालियों के ईंट के बीच ।नाक को इस हद तक दबाए हुए कि ,जान चली ना जाए इस ब्लाडर के फेर में ।

Sunday 9 July 2017

बसंतपुर के लाल बाबा !!!

सावन का महीना शुरू हो गया है। ऐसे में मेरे बसंतपुर के लाल बाबा की बात ना हो ,ये कैसे हो सकता है।वैसे तो बसंतपुर में तीन मंदिर है। एक काली माँ का ,दूसरा लाल बाबा का और तीसरा दुर्गा जी का। अब इनमे सबसे पुराना मंदिर कौन सा है ,ये मैं नहीं जानती। पर ये जरूर मालूम है ,दुर्गा मंदिर काफी बाद में बना। जब से बसंतपुर में रही ,यानि मेरे बचपन से ही ,लाल बाबा का मंदिर और काली माई का मंदिर देख रही हूँ ।
आज बात  बसंतपुर में लाल बाबा की ।ये इकलौता शिव मंदिर है ,बसंतपुर में ।मंदिर परिसर में मेरे फेवरेट हनुमान जी की भी एक मूर्ति है । मुझे जहाँ तक याद है ,ये मंदिर सफ़ेद रंग का हुआ करता था ।इसकी बाहरी दीवारों पर साँप की आकृति बनी हुई थी ।मंदिर के अंदर बिच में शिवलिंग स्थापित है ।चारो कोने पर कुछ प्रमुख देवगण की छोटी -छोटी प्रतिमायें थी ।जिसमे गणेश जी ,ब्रह्मा जी ,विष्णु जी ,पार्वती जी ,बसहा बैल आदि थे ।मंदिर के बाहर हनुमान जी की एक बड़ी सी मूर्ति थी ।
मंदिर बिलकुल सड़क से सटे है ।ऐसे में पहले यहाँ जाने पर माँ की ढेरों हिदायत होती ।ठीक से सड़क पार करना ,गाड़ी देखते रहना ,गाड़ी आ रही हो तो रुक जाना आदि -आदि ।ऐसे तो मंदिर दुर्गा पूजा ,अनन्तपूजा ,शिवरात्री में जाना होता ।पर सावन के सोमवार की बात ही कुछ और थी ।मंदिर में ज़्यादातर महिलायें ,लड़कियों की भीड़ लगी होती ।कारण ज़्यादातर पुरुष तो बोल बम गए होते ।कुछ आते तो झट से जल चढ़ा कर चले जाते ।महिलायें आराम से पूजा करती ,थोड़ी बात -चीत ,नोक -झोंक करती फिर घर जातीं ।लड़कियों को भी जाने क्या अच्छे पति का भूत सवार होता ।पिद्दी -पिद्दी हो कर ,सोमवार का व्रत कर लेतीं।मैं ही नालायक थी जो घर में इतना धार्मिक माहौल होने पर भी एक शिवरात्रि को छोड़ शादी तक कोई व्रत नही किया ।

और हमारे गंडक कॉलोनी में तो बेलपत्र तोड़ने और फूल चोरी करने वालों की लाइन लगी होती ।वही कुछ लोग माँ से फूल मांग कर भी ले जाते ।माँ खुद सावन की पूजा में इतना व्यस्त हो जाती कि पुरे महीने उन्हें किसी और काम के लिए फुरसत ही नहीं होती ।मेरे लिए भी काफी मजेदार समय होता ।रोज सुबह 125 बेलपत्र तोड़ना। उन्हें साफ़ करना। दो -तीन दिन पर नदी में प्रवाहित करने जाना। आह एक अलग ही उत्साह होता। अच्छा 125 बेलपत्र इसलिए तोड़ना होता ,कहीं साफ़ -सफाई या माँ के राम नाम लिखने में कुछ पत्ते टूट भी जाए तो 108 तो रहे ही।उसपर  ज़ुल्म तो ये होता जब इनको तोड़ने में मच्छर कहर ढ़ाते। घर आकर थोड़ी देर तक तो पैर ही खुजाती रहती। माँ कहती सलवार पहन कर जाया करो। अब कौन सुबह -सुबह सलवार पहने ,वो भी गोलचुन की फ़्रॉक पर ।कई बार तो सावन पूरा होने से पहले ही नीचे जो बेलपत्र होते खत्म हो जाते। फिर कॉलोनी में बेकार पड़ा ट्रैक्टर हमारे काम आता। ये बिल्कुल बेल के पेड़ के ही नीचे खड़ा रहता।

ऐसे तो माँ मेरी मंदिर कम ही जाती। वो घर पर ही पूजा करती थी। पर मैं कभी -कभार कॉलोनी या पड़ोस के लोगों के साथ चली जाती। पूजा करने के लिए नहीं घूमने के लिए हा -हा -हा। अब बसंतपुर में घूमने की कोई जगह है ही नहीं। इसी बहाने तरह -तरह के लोग दिखते।
एक बार तो जल चढ़ाने के लिए दो औरतों में झगड़ा हो गया था। पहली वाली का चढ़ा फूल हटा कर दूसरी वाली ने अपना चढ़ा दिया। इसपर पहली वाली महिला गुस्से में बोली -ये रउरा दर्खाई नईखे देत का ? काहे हामार फूल बेलपत्तर हटाइनि हअ। अभी अगरबत्ती देखावल बाकीये रहल हअ। दूसरी महिला तुनक कर हाथ चमका कर बोली -पचहत्तर घंटा रउरे जल चढ़ायेम त  अउरी लोग का करी ।
मुझे तो दोनों की नोकझोंक पर खूब हँसी आई ।घर आकर ऐसे ही नाटक कर कर अपने चाचा की बेटी को दिखा रही थी कि ,माँ ने देख लिया ।गुस्से में बोली यही सीखने जाती हो मंदिर । पढ़ाई के डर से भागी फिरती हो। अब मंदिर नहीं जाना है समझी ।
खैर इसके बाद भी मैं कई बार मंदिर गई ,पर वहाँ  हुआ झगड़ा कभी घर आकर नहीं बताती ।कुछ और झगड़े हैं जो फिर कभी बताऊँगी ।फिलहाल आप सब को सावन की बहुत शुभकामनायें ।भगवान भोले नाथ सब पर कृपा बनाये रखे ।बोल बम ।

विशेष -मंदिर अब और भी सुन्दर हो गया है ।एक तस्वीर आप सबके लिए ।धन्यवाद वरुण इस सुंदर तस्वीर के लिए ।

Wednesday 5 July 2017

लाल रंग !!!

चार जुलाई अमेरिका का स्वतंत्रता दिवस। तीन दिन की छुट्टी। कहीं परेड तो कहीं आतिशबाजी। इनसबके बीच फेसबुक बंद रहा। कुछ अच्छे पोस्ट भी मिस हो गए।सरसरी नजर डाली तो देखा ,कुछ लोग साम्प्रदायिक हिंसा पर तो कुछ लोग पीरियड कम वीमेन फ्रीडम पर अपने विचार रखे हुए हैं।

 मैं तो बस यहीं कहूँगी -"जब तक काली स्याही से लाल -लाल लिखते रहेंगें सब काला ही दिखेगा "वैसे भी रक्त का स्वाभाव ही कुछ ऐसा है ,जब तक शरीर के अंदर बह रहा है तब तक ठीक है। जहाँ शरीर से बाहर निकला या अंदर घुसा पीड़ा तो देगा ही।" अब चाहे वो दंगे के रूप में निकले ,बीमारी -दुर्घटना में निकले -चढ़े। या फिर पीरियड -प्रसव में निकले -चढ़े।
हम सामान्य क्यों नहीं हो जाते। फिर ना तो दंगे होंगे ना पीरियड -पीरियड चिल्लाना।
दंगे हमेशा से होते रहे है। फिर भी हमारे पूर्वजों ने यहीं सीखाया ,सब अपने हैं। प्रेम से बढ़ कर कुछ नहीं।वो भी चाहते तो आज हम किसी मौलवी साहब या डॉक्टर अख्तर हुसैन के यहाँ नहीं जाते। ना ही नईम मुझे अपना दोस्त मानता ना मेरे भाई के दोस्त मेरी शादी में शरीक़ होते। अब पेपर ,रेडिओ के ज़माने में कहाँ लाईक ,कमेंट करके लड़ते -झगड़ते।

अब ऐसा भी नहीं है कि सब फेसबुक ,ट्विटर ,बजरंग दल ,राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ या किसी मौलवी के दल का दोष है। हम मनुष्य है। भगवान /ख़ुदा ने दिल -दिमाग़  दिया है। कुछ उसका भी उपयोग करें। ऐसा तो है नहीं की हम सबको देश निकला दे देंगें या मार डालेंगें। निकालें भी क्यों ? आपके घर से आपको निकला जाय फिर ? चाहे वो किसी धर्म का हो।

मुझे भी अपने घर टूटने का दुःख होता है - जब मैं छोटी थी। गाँव जाती तो आँगन में इतने लोग देख कर हैरान हो जाती। सबकी गोड़ लगाई अलग। कुछ पंद्रह -सोलह कमरे। सब में लोग। खूब हँसी -मजाक तो कभी झगड़ा-तकरार। धीरे -धीरे कमरे रह गए लोग अलग -अलग बस गए। अलग बस कर भी लोग एक दूसरे की फ़िराक में रहे। हँसी -मजाक तो गायब हुआ मन का चैन भी दो रूम के कमरे में दफ़न हो गया। बटवारे के बाद भी चैन नही। ये तो मेरे एक छोटे से घर की कहानी है।बाकि गांव या शहर के टूटने से किसे सुक़ून मिलेगा ये तो राम जाने ख़ुदा जाने।

 खैर दूसरा रक्त पीरियड का तो ,मुझे ये किसी वीमेन फ्रीडम का हिस्सा बिल्कुल नहीं लगता। इसपर बात करना सिर्फ जागरूकता भर हो सकती है। थोड़ा लोग सहज हो सकते है। कुछ टैबू से छुटकारा मिल सकता है (सबसे इम्पोर्टेन्ट दवा नहीं ले सकते दर्द में ) महिलाओं को थोड़ा आराम दिया जा सकता है।वैसे भी बेसिक हाईजीन जरुरी है ये जाना सबके लिए जरुरी है। इससे ज्यादा पोस्टमार्टम कीजियेगा तो शव छत -विछत तो होगा ही।
मैंने एक बार लिखा था -सिर्फ एक माँ ही बता सकती है कि प्रसव की पीड़ा क्या है ? उस पीड़ा को कोई महिला (जो माँ ना बनी हो )या पुरुष कभी नहीं बता सकते। किसी भी दर्द को वही समझ सकता है ,जिसने उसे जिया हो। बाकी लोग साथ जरूर दे सकते है। मनोबल जरूर बढ़ा सकते है।
बाद बाकी पीरियड पर लिखने वाले पुरुषों या फिर बीबीसी को पुरुष समस्याओं पर भी लिखना चाहिए। इसकी भी जानकारी लोगों को कम है। जो महिलायें लिख रही है वो इसे वीमेन फ्रीडम से ना जोड़ कर ख़ुद को आज़ाद करें।
ज्ञान तो हम देते नहीं बस जो मन में आता है चिपका देते है। तो सब भूल कर इस गीत को सुनिए (गौर से सुनियेगा तो इसमें दंगे और पीरियड दोनों का दर्द सुनाई देगा हा-हा -हा )