सबसे पहले तो बहुत -बहुत धन्यवाद मेरे प्यारे दोस्तों का ,जिन्होंने मेरा फेसबुक प्रोफाइल देखा और मुझे मैसेज किया -तपस्या सब ठीक हैं ना ?
व्हाटअप पर तो मैंने रिप्लाई कर ही दिया था। मैसेंजर पर आज रिप्लाई किया।
व्हाटअप पर तो मैंने रिप्लाई कर ही दिया था। मैसेंजर पर आज रिप्लाई किया।
वो तस्वीर मैंने वीमेन एब्यूज के विरोध में लगाया था। एक प्यारी दोस्त ने मुझे इसके बारे में बताया था।
वैसे फेसबुक के बारे में बैठे -बैठे मस्त ख्याल आया। ये जो फेसबुक के फाउंडरस है ,उनमे से प्रमुख -मार्क ज़ुकेरबर्ग को तो नाम से लगभग सब जानते ही है ।दूसरे डस्टिन मॉस्कोवित्ज़ ,एडुआर्डो सवेरिन ,एंड्रू मकोल्लुम और क्रिस हैं। इनमे एंड्रू और क्रिस को छोड़ बाकी तीनों यहूदी है।
वैसे फेसबुक के बारे में बैठे -बैठे मस्त ख्याल आया। ये जो फेसबुक के फाउंडरस है ,उनमे से प्रमुख -मार्क ज़ुकेरबर्ग को तो नाम से लगभग सब जानते ही है ।दूसरे डस्टिन मॉस्कोवित्ज़ ,एडुआर्डो सवेरिन ,एंड्रू मकोल्लुम और क्रिस हैं। इनमे एंड्रू और क्रिस को छोड़ बाकी तीनों यहूदी है।
यहूदी लोगों के बारे में कहा जाता है ,वो बड़े मतलबी ,घमंडी,लालची और बिज़नेस माइंडेड होते हैं। पर साथ ही एक समाज और दया भाव में भी विश्वास करते है। अब मेरे तो कोई यहूदी दोस्त है नहीं ,जो सच्चाई मालूम हो। जो पढ़ा है ,सुना है लिख दिया।
पर गौर कीजिये तो फेसबुक में ये सारे गुण है ।एक समाज तो बना ही है ।दूसरा यहाँ कभी -कभार तेज बनने के क्रम में लोग एक दूसरे के साथ कठोर हो जाते है। मतलबी तो होते ही हैं -मेरे पिक पर लाइक ,कमेंट नहीं तो हम तुम पर क्यों करें। बात दया धरम और बिज़नेस की तो वो भी हो ही जाता है -मसलन ,किसी बिछड़े को मिलवाओ ,फलाना ऑर्गनिज़शन से जुड़े ,दान दे। भगवान् ,अल्लाह की तस्वीर को लाइक करें ।
बस मार्क के एक कमेंट बॉक्स को हमलोग ठीक से समझ नहीं पाते। कमेंट हैं ही -टीका -टिप्पणी।हम जैसे निरीह लोग बुरा मान जाते हैं।आज से दो साल पहले तक मैंने फेसबुक का एक फीचर लगा रखा था ।जिसके वजह से कोई मुझे फ्रेंड रिक्वेस्ट नहीं भेज पता था।
ऐसा करने का प्रमुख कारण -गुड मॉर्निंग -गुड नाईट पर टैग करना
-कॉफी ,गुलाब या पकाऊ शायरी के साथ भी टैग करना।
-शादी के बाद नए -नए देवर नन्द का पैदा होना। मेरी तस्वीरें सेव करके मम्मी तक पहुँचाना। मेरी पोस्ट का पोस्टमार्टम करना।
-फोटो को लाइक और कोई अच्छा कमेंट करने का आदेश देना। (अब जेल लगा कर सर पर मुर्गा बनाइयेगा और कहियेगा शेर लिखो तो कैसे चलेगा।)
-और सबसे बड़ा अमेरिका फैक्टर। भाई मेरे कौन सा मेरे पूर्वज अमेरिकी थे ? मैं भी आज नहीं तो कल वापस आ ही जाऊँगी। फिर कहियेगा ल हो गइल धोखा। (मेरे इस नेचर में भी -घमंड ,मतलबीपन ,और थोड़ा दया भाव है )
खैर कई बार भाई या मेरे कुछ दोस्त टोक देते हैं कि ,दोस्तों का दायरा थोड़ा बढ़ाओ। मेरा जबाब हर बार यहीं होता -दायरा बढ़े ना बढ़े दिमाग़ी दरद ना बढ़े। मेरी इसी गन्दी आदत की वजह से सोशल मीडिआ पर मेरे सीमित ही दोस्त बने ,पर खुशकिस्मत हूँ जितने है उनमें आधे से अधिक को मैं जानती हूँ। कुछ लोगों से प्रभावित भी हूँ। वहीं कुछ के लेख पसंद है। वो तो भला हो मेरी एक जूनियर का कहा -दीदी आप तो ईतना ना फेसबुक पर प्रोटेक्शन लगाई थी कि ,टेक्सास में होने के वावजूद हम मिल नहीं पाए। फिर मुझे आत्मज्ञान हुआ और सारे प्रोटेक्शन को उसी दिन अलविदा कह दिया। तो इस तरह मेरा सोशलपना शुरू हुआ।
कुल मिलाकर कहें तो मैं सोशल मीडिया पर अब भी कम ही फ्रेंडली हूँ। पर जिनसे हूँ दिल से हूँ। वैसे ये इतनी अच्छी बात तो नहीं ,पर ब्लॉका -ब्लोकी से तो अच्छा है।(मार्क सॉरी मैं लालची नहीं बन पाई )
रही बात प्रोफाइल पिक्चर की तो ,इस मामले में मैं बहुत -बहुत ही आलसी रही हूँ। अबतक कुल मिला कर मैंने पाँच -छह बार ही प्रोफाइल पिक चेंज की होगी (सॉरी मार्क मैं बिजनेस माइंडेड भी नहीं बन पाई )
वहीं शुक्रवार शाम से ही मेरे फ़ोन की लगभग छुट्टी हो जाती है रविवार शाम तक। मुझे बिल्कुल पसंद नहीं कि ,कहीं घुमनें गए फ़ोन में लगे पड़े है। दोस्त के यहाँ गए या वो मिलने आये और फ़ोन पर लगे पड़े हैं।हाँ तस्वीरें लेना अपवाद है।(सॉरी मार्क कम सामाजिक होने के लिए )
तो कुल मिला कर कहानी का सार ये है -मैं तपस्या चौबे ब्राह्मण की ब्राह्मण रह गई।
*अगर मैं जल्दी रिप्लाई नहीं करती तो ये या तो टाइमिंग का दोष है या शनिवार -रविवार का ,(घमंड नहीं)
अपवाद -कभी -कभार आलस का भी।
* आजकल मैं थोड़ा ज्यादा फ्रेंडली हो रही हूँ ,अगर आप मुझे झेल सके तो
*कहीं नहीं गई। किसी से मिलना -जुलना नहीं रहा तो फ़ोन की छुट्टी भी कभी -कभार कैंसिल हो जाती है
*सबसे इम्पोर्टेन्ट -कम दोस्त हो पर आपको समझने वाले हो तो ,ये भगवान का आशीर्वाद है इस कलयुग में।
पर गौर कीजिये तो फेसबुक में ये सारे गुण है ।एक समाज तो बना ही है ।दूसरा यहाँ कभी -कभार तेज बनने के क्रम में लोग एक दूसरे के साथ कठोर हो जाते है। मतलबी तो होते ही हैं -मेरे पिक पर लाइक ,कमेंट नहीं तो हम तुम पर क्यों करें। बात दया धरम और बिज़नेस की तो वो भी हो ही जाता है -मसलन ,किसी बिछड़े को मिलवाओ ,फलाना ऑर्गनिज़शन से जुड़े ,दान दे। भगवान् ,अल्लाह की तस्वीर को लाइक करें ।
बस मार्क के एक कमेंट बॉक्स को हमलोग ठीक से समझ नहीं पाते। कमेंट हैं ही -टीका -टिप्पणी।हम जैसे निरीह लोग बुरा मान जाते हैं।आज से दो साल पहले तक मैंने फेसबुक का एक फीचर लगा रखा था ।जिसके वजह से कोई मुझे फ्रेंड रिक्वेस्ट नहीं भेज पता था।
ऐसा करने का प्रमुख कारण -गुड मॉर्निंग -गुड नाईट पर टैग करना
-कॉफी ,गुलाब या पकाऊ शायरी के साथ भी टैग करना।
-शादी के बाद नए -नए देवर नन्द का पैदा होना। मेरी तस्वीरें सेव करके मम्मी तक पहुँचाना। मेरी पोस्ट का पोस्टमार्टम करना।
-फोटो को लाइक और कोई अच्छा कमेंट करने का आदेश देना। (अब जेल लगा कर सर पर मुर्गा बनाइयेगा और कहियेगा शेर लिखो तो कैसे चलेगा।)
-और सबसे बड़ा अमेरिका फैक्टर। भाई मेरे कौन सा मेरे पूर्वज अमेरिकी थे ? मैं भी आज नहीं तो कल वापस आ ही जाऊँगी। फिर कहियेगा ल हो गइल धोखा। (मेरे इस नेचर में भी -घमंड ,मतलबीपन ,और थोड़ा दया भाव है )
खैर कई बार भाई या मेरे कुछ दोस्त टोक देते हैं कि ,दोस्तों का दायरा थोड़ा बढ़ाओ। मेरा जबाब हर बार यहीं होता -दायरा बढ़े ना बढ़े दिमाग़ी दरद ना बढ़े। मेरी इसी गन्दी आदत की वजह से सोशल मीडिआ पर मेरे सीमित ही दोस्त बने ,पर खुशकिस्मत हूँ जितने है उनमें आधे से अधिक को मैं जानती हूँ। कुछ लोगों से प्रभावित भी हूँ। वहीं कुछ के लेख पसंद है। वो तो भला हो मेरी एक जूनियर का कहा -दीदी आप तो ईतना ना फेसबुक पर प्रोटेक्शन लगाई थी कि ,टेक्सास में होने के वावजूद हम मिल नहीं पाए। फिर मुझे आत्मज्ञान हुआ और सारे प्रोटेक्शन को उसी दिन अलविदा कह दिया। तो इस तरह मेरा सोशलपना शुरू हुआ।
कुल मिलाकर कहें तो मैं सोशल मीडिया पर अब भी कम ही फ्रेंडली हूँ। पर जिनसे हूँ दिल से हूँ। वैसे ये इतनी अच्छी बात तो नहीं ,पर ब्लॉका -ब्लोकी से तो अच्छा है।(मार्क सॉरी मैं लालची नहीं बन पाई )
रही बात प्रोफाइल पिक्चर की तो ,इस मामले में मैं बहुत -बहुत ही आलसी रही हूँ। अबतक कुल मिला कर मैंने पाँच -छह बार ही प्रोफाइल पिक चेंज की होगी (सॉरी मार्क मैं बिजनेस माइंडेड भी नहीं बन पाई )
वहीं शुक्रवार शाम से ही मेरे फ़ोन की लगभग छुट्टी हो जाती है रविवार शाम तक। मुझे बिल्कुल पसंद नहीं कि ,कहीं घुमनें गए फ़ोन में लगे पड़े है। दोस्त के यहाँ गए या वो मिलने आये और फ़ोन पर लगे पड़े हैं।हाँ तस्वीरें लेना अपवाद है।(सॉरी मार्क कम सामाजिक होने के लिए )
तो कुल मिला कर कहानी का सार ये है -मैं तपस्या चौबे ब्राह्मण की ब्राह्मण रह गई।
*अगर मैं जल्दी रिप्लाई नहीं करती तो ये या तो टाइमिंग का दोष है या शनिवार -रविवार का ,(घमंड नहीं)
अपवाद -कभी -कभार आलस का भी।
* आजकल मैं थोड़ा ज्यादा फ्रेंडली हो रही हूँ ,अगर आप मुझे झेल सके तो
*कहीं नहीं गई। किसी से मिलना -जुलना नहीं रहा तो फ़ोन की छुट्टी भी कभी -कभार कैंसिल हो जाती है
*सबसे इम्पोर्टेन्ट -कम दोस्त हो पर आपको समझने वाले हो तो ,ये भगवान का आशीर्वाद है इस कलयुग में।
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