सावन का महीना शुरू हो गया है। ऐसे में मेरे बसंतपुर के लाल बाबा की बात ना हो ,ये कैसे हो सकता है।वैसे तो बसंतपुर में तीन मंदिर है। एक काली माँ का ,दूसरा लाल बाबा का और तीसरा दुर्गा जी का। अब इनमे सबसे पुराना मंदिर कौन सा है ,ये मैं नहीं जानती। पर ये जरूर मालूम है ,दुर्गा मंदिर काफी बाद में बना। जब से बसंतपुर में रही ,यानि मेरे बचपन से ही ,लाल बाबा का मंदिर और काली माई का मंदिर देख रही हूँ ।
आज बात बसंतपुर में लाल बाबा की ।ये इकलौता शिव मंदिर है ,बसंतपुर में ।मंदिर परिसर में मेरे फेवरेट हनुमान जी की भी एक मूर्ति है । मुझे जहाँ तक याद है ,ये मंदिर सफ़ेद रंग का हुआ करता था ।इसकी बाहरी दीवारों पर साँप की आकृति बनी हुई थी ।मंदिर के अंदर बिच में शिवलिंग स्थापित है ।चारो कोने पर कुछ प्रमुख देवगण की छोटी -छोटी प्रतिमायें थी ।जिसमे गणेश जी ,ब्रह्मा जी ,विष्णु जी ,पार्वती जी ,बसहा बैल आदि थे ।मंदिर के बाहर हनुमान जी की एक बड़ी सी मूर्ति थी ।
मंदिर बिलकुल सड़क से सटे है ।ऐसे में पहले यहाँ जाने पर माँ की ढेरों हिदायत होती ।ठीक से सड़क पार करना ,गाड़ी देखते रहना ,गाड़ी आ रही हो तो रुक जाना आदि -आदि ।ऐसे तो मंदिर दुर्गा पूजा ,अनन्तपूजा ,शिवरात्री में जाना होता ।पर सावन के सोमवार की बात ही कुछ और थी ।मंदिर में ज़्यादातर महिलायें ,लड़कियों की भीड़ लगी होती ।कारण ज़्यादातर पुरुष तो बोल बम गए होते ।कुछ आते तो झट से जल चढ़ा कर चले जाते ।महिलायें आराम से पूजा करती ,थोड़ी बात -चीत ,नोक -झोंक करती फिर घर जातीं ।लड़कियों को भी जाने क्या अच्छे पति का भूत सवार होता ।पिद्दी -पिद्दी हो कर ,सोमवार का व्रत कर लेतीं।मैं ही नालायक थी जो घर में इतना धार्मिक माहौल होने पर भी एक शिवरात्रि को छोड़ शादी तक कोई व्रत नही किया ।
और हमारे गंडक कॉलोनी में तो बेलपत्र तोड़ने और फूल चोरी करने वालों की लाइन लगी होती ।वही कुछ लोग माँ से फूल मांग कर भी ले जाते ।माँ खुद सावन की पूजा में इतना व्यस्त हो जाती कि पुरे महीने उन्हें किसी और काम के लिए फुरसत ही नहीं होती ।मेरे लिए भी काफी मजेदार समय होता ।रोज सुबह 125 बेलपत्र तोड़ना। उन्हें साफ़ करना। दो -तीन दिन पर नदी में प्रवाहित करने जाना। आह एक अलग ही उत्साह होता। अच्छा 125 बेलपत्र इसलिए तोड़ना होता ,कहीं साफ़ -सफाई या माँ के राम नाम लिखने में कुछ पत्ते टूट भी जाए तो 108 तो रहे ही।उसपर ज़ुल्म तो ये होता जब इनको तोड़ने में मच्छर कहर ढ़ाते। घर आकर थोड़ी देर तक तो पैर ही खुजाती रहती। माँ कहती सलवार पहन कर जाया करो। अब कौन सुबह -सुबह सलवार पहने ,वो भी गोलचुन की फ़्रॉक पर ।कई बार तो सावन पूरा होने से पहले ही नीचे जो बेलपत्र होते खत्म हो जाते। फिर कॉलोनी में बेकार पड़ा ट्रैक्टर हमारे काम आता। ये बिल्कुल बेल के पेड़ के ही नीचे खड़ा रहता।
ऐसे तो माँ मेरी मंदिर कम ही जाती। वो घर पर ही पूजा करती थी। पर मैं कभी -कभार कॉलोनी या पड़ोस के लोगों के साथ चली जाती। पूजा करने के लिए नहीं घूमने के लिए हा -हा -हा। अब बसंतपुर में घूमने की कोई जगह है ही नहीं। इसी बहाने तरह -तरह के लोग दिखते।
एक बार तो जल चढ़ाने के लिए दो औरतों में झगड़ा हो गया था। पहली वाली का चढ़ा फूल हटा कर दूसरी वाली ने अपना चढ़ा दिया। इसपर पहली वाली महिला गुस्से में बोली -ये रउरा दर्खाई नईखे देत का ? काहे हामार फूल बेलपत्तर हटाइनि हअ। अभी अगरबत्ती देखावल बाकीये रहल हअ। दूसरी महिला तुनक कर हाथ चमका कर बोली -पचहत्तर घंटा रउरे जल चढ़ायेम त अउरी लोग का करी ।
मुझे तो दोनों की नोकझोंक पर खूब हँसी आई ।घर आकर ऐसे ही नाटक कर कर अपने चाचा की बेटी को दिखा रही थी कि ,माँ ने देख लिया ।गुस्से में बोली यही सीखने जाती हो मंदिर । पढ़ाई के डर से भागी फिरती हो। अब मंदिर नहीं जाना है समझी ।
खैर इसके बाद भी मैं कई बार मंदिर गई ,पर वहाँ हुआ झगड़ा कभी घर आकर नहीं बताती ।कुछ और झगड़े हैं जो फिर कभी बताऊँगी ।फिलहाल आप सब को सावन की बहुत शुभकामनायें ।भगवान भोले नाथ सब पर कृपा बनाये रखे ।बोल बम ।
विशेष -मंदिर अब और भी सुन्दर हो गया है ।एक तस्वीर आप सबके लिए ।धन्यवाद वरुण इस सुंदर तस्वीर के लिए ।
आज बात बसंतपुर में लाल बाबा की ।ये इकलौता शिव मंदिर है ,बसंतपुर में ।मंदिर परिसर में मेरे फेवरेट हनुमान जी की भी एक मूर्ति है । मुझे जहाँ तक याद है ,ये मंदिर सफ़ेद रंग का हुआ करता था ।इसकी बाहरी दीवारों पर साँप की आकृति बनी हुई थी ।मंदिर के अंदर बिच में शिवलिंग स्थापित है ।चारो कोने पर कुछ प्रमुख देवगण की छोटी -छोटी प्रतिमायें थी ।जिसमे गणेश जी ,ब्रह्मा जी ,विष्णु जी ,पार्वती जी ,बसहा बैल आदि थे ।मंदिर के बाहर हनुमान जी की एक बड़ी सी मूर्ति थी ।
मंदिर बिलकुल सड़क से सटे है ।ऐसे में पहले यहाँ जाने पर माँ की ढेरों हिदायत होती ।ठीक से सड़क पार करना ,गाड़ी देखते रहना ,गाड़ी आ रही हो तो रुक जाना आदि -आदि ।ऐसे तो मंदिर दुर्गा पूजा ,अनन्तपूजा ,शिवरात्री में जाना होता ।पर सावन के सोमवार की बात ही कुछ और थी ।मंदिर में ज़्यादातर महिलायें ,लड़कियों की भीड़ लगी होती ।कारण ज़्यादातर पुरुष तो बोल बम गए होते ।कुछ आते तो झट से जल चढ़ा कर चले जाते ।महिलायें आराम से पूजा करती ,थोड़ी बात -चीत ,नोक -झोंक करती फिर घर जातीं ।लड़कियों को भी जाने क्या अच्छे पति का भूत सवार होता ।पिद्दी -पिद्दी हो कर ,सोमवार का व्रत कर लेतीं।मैं ही नालायक थी जो घर में इतना धार्मिक माहौल होने पर भी एक शिवरात्रि को छोड़ शादी तक कोई व्रत नही किया ।
और हमारे गंडक कॉलोनी में तो बेलपत्र तोड़ने और फूल चोरी करने वालों की लाइन लगी होती ।वही कुछ लोग माँ से फूल मांग कर भी ले जाते ।माँ खुद सावन की पूजा में इतना व्यस्त हो जाती कि पुरे महीने उन्हें किसी और काम के लिए फुरसत ही नहीं होती ।मेरे लिए भी काफी मजेदार समय होता ।रोज सुबह 125 बेलपत्र तोड़ना। उन्हें साफ़ करना। दो -तीन दिन पर नदी में प्रवाहित करने जाना। आह एक अलग ही उत्साह होता। अच्छा 125 बेलपत्र इसलिए तोड़ना होता ,कहीं साफ़ -सफाई या माँ के राम नाम लिखने में कुछ पत्ते टूट भी जाए तो 108 तो रहे ही।उसपर ज़ुल्म तो ये होता जब इनको तोड़ने में मच्छर कहर ढ़ाते। घर आकर थोड़ी देर तक तो पैर ही खुजाती रहती। माँ कहती सलवार पहन कर जाया करो। अब कौन सुबह -सुबह सलवार पहने ,वो भी गोलचुन की फ़्रॉक पर ।कई बार तो सावन पूरा होने से पहले ही नीचे जो बेलपत्र होते खत्म हो जाते। फिर कॉलोनी में बेकार पड़ा ट्रैक्टर हमारे काम आता। ये बिल्कुल बेल के पेड़ के ही नीचे खड़ा रहता।
ऐसे तो माँ मेरी मंदिर कम ही जाती। वो घर पर ही पूजा करती थी। पर मैं कभी -कभार कॉलोनी या पड़ोस के लोगों के साथ चली जाती। पूजा करने के लिए नहीं घूमने के लिए हा -हा -हा। अब बसंतपुर में घूमने की कोई जगह है ही नहीं। इसी बहाने तरह -तरह के लोग दिखते।
एक बार तो जल चढ़ाने के लिए दो औरतों में झगड़ा हो गया था। पहली वाली का चढ़ा फूल हटा कर दूसरी वाली ने अपना चढ़ा दिया। इसपर पहली वाली महिला गुस्से में बोली -ये रउरा दर्खाई नईखे देत का ? काहे हामार फूल बेलपत्तर हटाइनि हअ। अभी अगरबत्ती देखावल बाकीये रहल हअ। दूसरी महिला तुनक कर हाथ चमका कर बोली -पचहत्तर घंटा रउरे जल चढ़ायेम त अउरी लोग का करी ।
मुझे तो दोनों की नोकझोंक पर खूब हँसी आई ।घर आकर ऐसे ही नाटक कर कर अपने चाचा की बेटी को दिखा रही थी कि ,माँ ने देख लिया ।गुस्से में बोली यही सीखने जाती हो मंदिर । पढ़ाई के डर से भागी फिरती हो। अब मंदिर नहीं जाना है समझी ।
खैर इसके बाद भी मैं कई बार मंदिर गई ,पर वहाँ हुआ झगड़ा कभी घर आकर नहीं बताती ।कुछ और झगड़े हैं जो फिर कभी बताऊँगी ।फिलहाल आप सब को सावन की बहुत शुभकामनायें ।भगवान भोले नाथ सब पर कृपा बनाये रखे ।बोल बम ।
विशेष -मंदिर अब और भी सुन्दर हो गया है ।एक तस्वीर आप सबके लिए ।धन्यवाद वरुण इस सुंदर तस्वीर के लिए ।
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