Wednesday, 27 February 2019

रंगीला और युवाओं की दास्तान !!!

रंगीला फ़िल्म के अल्बम को क्या हीं कहा जाए ।एक तरफ़ तो इतना ख़ूबसूरत संगीत दूसरी तरफ़ “उर्मिला “उफ़्फ़ !
इस फ़िल्म के गानो पर अगर आप ग़ौर करें तो लगभग किसी भी युवा कपल की पूरी कहानी लिखी है ।

कथा की शुरुआत करती हूँ शिव -पार्वती का नाम लेकर ।पहला गाना जो है वो कुछ यूँ है ,
“इतने चेहरों में अपने चेहरे की पहचान,बड़े-बड़े नामों में अपना भी नाम-ओ-निशाँ “युवाओं की सबसे बड़ी इक्षा ।

इसके बावजूद लड़का इतना बेफ़िकरा होता है कि उसे अपने जीने का हीं अन्दाज़ सबसे प्यारा लगता है और यहाँ गाने की लाइन आगे बढ़ती है 
लानत है जी उस पर दुनिया में ही रहकर
दुनिया में जो जीने के अन्दाज़ को न जाने
माथे या हाथोँ पे, चाँद या तारों में,क़िस्मत को ढूँढे पर, ख़ुद में क्या है ये ना जाने”


फिर स्ट्रगल /मौज मस्ती के दौर में उसे एक लड़की मिल जाती है ,जिसके सपने वो देखने लगता है पर हालत कंगालो वाली ।ऐसे में दूसरे गाने की एंट्री होती है 
“यारों सुन लो ज़रा, हाँ अपना ये कहना
जीना हो तो अपुन के जैसे ही जीना
गाड़ी बंगला नहीँ ना सही ना सही
बैंक बैलेंस नहीँ ना सही ना सही
टीवी विडियो नहीँ ना सही ना सही
सूटिंग शर्टिंग नहीँ ना सही ना सही
इनकी हमको क्यूँ हो फ़िकर
जी लो जैसे मस्त कलंदरपर लड़की यहाँ इन तर्कों से ख़ुश नही होती और कहती है “ना भाई ,सब हो तो कितना अच्छा हो ।”

लईका राम फेर में पड़ जातें है की ऐसे में इससे पूछा तो ये पक्का मना कर देगी ।सोच में पड़ जातें हैं कि,
“क्या करे क्या ना करें ये कैसी मुश्किल हाय 
कोई तो बता दे इसका हल ओ मेरे भाई 
की एक तरफ़ तो उससे प्यार करें हम और उसको हीं ये कहने से डरे हम ।”

कुछ दिन देवदास बनने के बाद अगला गाना गाने लगते है ,
“प्यार ये जाने कैसा है
क्या कहें ये कुछ ऐसा है
कभी दर्द ये देता है, कभी चैन ये देता है
कभी ग़म देता है, कभी ख़ुशी देता है”

इधर लड़की से लईका की हालत देखी नही जाती ।पूछती है ,
“माँगता है क्या वो बोलो ,हाँ बोलो 
माँगता है चाँद ये ले लो हाँ लेलो ।लईका को फुसलाती है की चाँद लेकर मेरा पीछा छोड़ो पर लईका भी कम कहाँ ?
लईका कहता है -माँगता है दिल वो दे दो ।

लईकी सोच में पड़ जाती है ।कुछ ऐसा सोचती है ,
तनहा तनहा यहाँ पे जीना ये कोई बात है
कोई साथी नहीँ तेरा यहाँ तो ये कोई बात है
किसी को प्यार दे-दे किसी का प्यार ले-ले
इस सारे ज़माने में यही प्यारी बात है

सोच विचार कर लईकी लईका को “हाँ “ कह देतीं है और अंततः सुखद ,प्रेम पूर्ण कथा सम्पन्न होती है ,आख़िरी गाने के साथ 
“हाय रामा ये क्या हुआ
क्यों ऐसे हमें सताने लगे
तुम इतनी प्यारी हो सामने
हम क़ाबू में कैसे रहें”

Thursday, 14 February 2019

श्रधांजलि !!!

कुछ दिनो पहले हीं भाई को बता रही थी कि आजकल जाने कैसे मैं जो सोच रही होती हूँ या जो कर रही होती हूँ उसे कोई और भी जान पहचान का कर रहा होता है ।मसलन मैं जो गाने सुन रही होती हूँ ,जिस चीज़ पर लिखना चाह रही होती हूँ ,कोई फ़िल्म देख रही होती हूँ या कोई फूल की तस्वीर ।भाई ने कहा हो जाता है ।करोड़ों की आबादी है कई लोग एक जैसे सोच वाले मिल हीं जाते है ।

खाई आप यक़ीन नही करेंगे कल रात मैंने सपने में जवानो को देखा था ।हुआ यूँ मेरी दोस्त प्रशंसा और मैं जाने एक ऐसी जगह पहुँच गये है जहाँ बर्फ़ और तेज़ हवा का बवंडर है ।लोग इधर -उधर भाग रहें है ।जो लोग हवा की चक्की में फँस गए हैं वे पहिए से घुम रहे है।हमलोग उससे बचते -बचाते भाग रहें हैं कि हवा की एक घुमरी हमारे आगे आ जाती है ।हम कुछ सोच पाते की किसी ने हमदोनो को एक दीवार के पीछे खिंचा।मैं गिर पड़ती हूँ और सपने में भी मुझे चोट की अनुभव होती है ।

हमें जिसने खींचा था वो दो सिपाही थे ।हमें कहते हैं डरो मत ,ये रास्ता सुरक्षित नही ।चलो इस तरफ़ हमारे साथ ।हमलोगो को लेकर वे एक ऐसे रास्ते पर जाते हैं जहाँ एक तरफ़ गन्दी नदी है और जाने कैसे उस नदी की सारी मछलियाँ उस रास्ते पर मरी पड़ी हैं ।सिपाही हमें कहते हैं डरने कि ज़रूरत नही है ।ये मछलियाँ मरी हुई है ।मैं उस मछली पथ पर चलना नही चाहती फिर भी रोते -गाते अपनी दोस्त और सिपाहियों के पीछे चल पड़ती हूँ ।मरी हुई मछलियों के बाहर निकली आँखें ,उनकी चमकती -फिसलती खाल मेरी राह मुश्किल कर रहें है ।मैं परेशान -परेशान हो जाती हूँ रोने लगती हूँ और मेरी नींद खुल जाती है ।

सुबह फ़ोन देखती हूँ तो यक़ीन हीं नही होता ।जाने क्यों आँख भर आई थी ।सच में मैं सिहर सी गई थी ।मन इतना विचलित हुआ की घर के पूजा स्थान तक काफ़ी देर तक बैठी रही ।माँ भाई से वीडीयो कॉल पर भी ठीक से बात नही कर पाई ।

सोचिए कि हम सेना पर कितना विश्वास करतें है की सपने में भी सुरक्षा की ज़िम्मेदारी वहीं निभाते नज़र आ रहें है ।
कई लोगों को लगेगा कि मौत तो होती हीं रहती है इसमें इतना अधीर होने की ज़रूरत नही ।भारत सरकार इसका इंसाफ़ ज़रूर करेंगे ।
पर मैं क्या करूँ अगर मेरा मन इतना कमजोर है ? मैं क्या करूँ जो ये घटनाएँ मुझे बहुत हद तक परेशान करतीं है ? 
मैं क्या करूँ जो वे सारी जाने फिर से जीवित हो जाएँ अवंति नाम को सार्थक करतीं हुई ।

Tuesday, 12 February 2019

मुश्किल प्रेम !!!

इसबार मैंने सोचा था कि मैं भी प्रेम दिवस सप्ताह रोज़ एक लेख लिख कर मनाऊँगी ,पर ये हो ही नही पाया ।आज जब प्रेम कहानियों के बारे में लिखने बैठी तो कई सारी आत्माएँ मेरे आस -पास भटकने लगी ।कभी राधा कहती मेरी कथा लिखो तो कभी मीरा ।कभी रांझा तो कभी महिवाल ।कभी सीता तो कभी गांधारी पर सबसे ज़्यादा परेशान मुग़लों ने  किया।हामिदा बानो से लेकर जूलियना तक हाज़िर थी ।आनरकाली और मुमताज़ में तो बड़ी कड़ी टक्कर थी ।उन्हें समझा बुझा कर मैंने कोने में खड़ी जहाँ आरा को गले लगाया ।

मुग़ल वंश शासन के अलावा प्रेम के मामले में भी बड़ा क्रूर रहा ।क्रूर कहने से मेरा मतलब प्रेम की ख़ातिर कुछ भी करने से ना चूकना वाला ।साथ ही इसी वंश ने सबको पछाड़ते हुए प्रेम को भी महँगा कर दिया ।अब हालत ये हो गई है कि मजनूँ भी लैला के लिए सोने की पाज़ेब की इक्षा रखता है ।सोनी महिवाल से मिलने के लिए प्लैटिनम का मटका ले कर आती है ।और नए -नए शाहजहाँ चाँदी की ताज ,ढेरों गिफ़्ट के साथ परोस देते है ।
बढ़िया हीं है ,कहीं इसी लेन- देन वाले प्रेम में कोई कहानी ऐसी भी बन जाए जिसे लोग बरसो बाद याद करें ।

इन्हीं कहानियों के बीच मुझे आज शाहजहाँ की एक ऐसी तस्वीर हाथ लगी जिसे देख कर आह  ! निकल गई । 
तस्वीर शाहजहाँ के बुढ़ापे की है ।इसमें उनकी और मुमताज़ महल की बेटी “जहाँआरा “ उनके पैरों के पास माथे पर हाथ रखी बैठी है ।
कहते है शाहजहाँ ने मुमताज़ की याद में ताजमहल बनवाया था ।ये भी कहते हैं कि उन्होंने मुमताज़ के मरने के बाद उसकी चहेरी बहन से शादी कर ली थी ।साथ हीं ये भी कहीं पढ़ा था कि जहाँ आरा की सूरत मुमताज़ से बहुत मिलती थी ,इस वजह से शाहजहाँ का उससे भी रिश्ता रहा ।इन सब को लिखते हुए मुझे “लव इन द टाइम आउफ़ कोलरा “की याद  आ रही है पर सबसे ज़्यादा विचलित जहाँआरा कर रहीं है ।

क्या  बीत रही होगी उस कोमल मन पर जब शाहजहाँ बादलों के पीछे छुपे चाँद के बीच ताजमहल को देख रहा होगा ।कैसा ये प्रेम रहा होगा कि ताज के नीचे दफ़न बीबी और ताज के समान सुंदर बेटी कम मुमताज़ पैरों में बैठी अपने क़िस्मत को रो रही है ।प्रेम को समझना सच में मुश्किल है ।

बाक़ी तो जो है सो हैं हीं ।सबको प्रेम दिवस की शुभकामनायें।

Thursday, 7 February 2019

गुलाब दिवस !!!

बसंतपुर के चुनचुन हलवाई के यहाँ दो लड़के बैठे चाय पी रहे थे ।दोंनो की बारहवीं की परीक्षा है मगर परीक्षा से ज़्यादा चिंता वेलेंटाइन डे की है ।दोनो परेशान है कि कैसे अपनी गुलाब को गुलाब दें ।

प्यार में डूबे नए नवेले लड़के ,पहले गुलाब दिवस कैसे मनाए से राजनीति पर आ गए ।भाई विकास तो हुआ पर मोदी जीवा पार्क और चिड़ियाघर जैसा कुछ ना बनवा पाया बसंतपुर में ।उनकी बात सुनता एक लड़का जो बी कॉम करके प्रतियोगिता परीक्षा की तैयारी कर रहा है ,उससे रहा नही गया ।बेरोज़गार मोदी भक्त दहाड़ उठता है ,”सब काम मोदी हीं करीहे त नीतीश राम का करीहे ? “ इसी के साथ अपने ज्ञान का प्रदर्शन और अपनी वेलेंटाइन का इस जनवरी में ब्याह का दर्द लिए ,लाल आँखो से कई सवाल दाग़ दिए मासूमों के ऊपर ।
दोंनो नवेले प्रेमी बालक घबड़ा गए ।एक तो बसंतपुर में गुलाब का फूल नही मिल रहा दूसरा इनके सवाल से ,फ़ेल होने की पूरी सम्भावना दिख रही है ।ऐसे में दोनो ने सोचा यहाँ से भागने में हीं भलाई है ।

दोनो बालक चाय अधूरा छोड़ भाग खड़े हुए ।दुकानदार सब देख सुन रहा था ।बेरोज़गार लड़के के हाल को जानते हुए भी  उससे पूछता है ,”भाई आज कौन सा दिन है ? बेरोज़गार लड़का कहता है क्या मर्दे “बियफे “इहो नेखे याद ?
दुकानदार दया भाव से लड़के को कहता है ,ई त मालूमे है ।हमारे पूछने का मतलब कौन से गुलाब का दिवस है ?

लड़का अपनी प्रेमिका को याद करके सोचता है क्या बताऊँ इसे ? उसके चेहरे वाला ,उसके होंठों वाला या गुलाब के फूलों वाला ।फ़ाइनली दिल पर पत्थर रख कर धीरे से कहता है लाल फूल वाला भाई ।

इधर दोंनो नवेले बालक प्रेमी लगभग हर गुलाब के झाड़ वाला घर घूम आए ।कल की बारिश ने सारे फूल धो दिए थे ।कुछ फूल थे पर पानी की मार से मरे हुए जैसे ।उन्मे से एक ने कहा इसे देने से तो अच्छा प्लास्टिक का फूल ख़रीद लें।

दोंनो पहुँचे बसंतपुर की एक मात्र गिफ़्ट की दुकान पर ।क़िस्मत देखो चाय की दुकान पर मिला बेरोज़गार यहाँ समय काट रहा था ।दुकान उसके मित्र राम की थी ।दोनो बालक एक दूसरे का मुँह देखने लगे ।अपने बसंतपुर में अब भी बड़ों का लिहाज़ बाक़ी है के साथ बेरोज़गार लड़के ने ,अपने दुकानदार दोस्त को कहा कि इन्हें गुलाब का फूल दे दो ।

दोनो बालक शर्म से गुलाब हुए जा रहे थे कि दुकानदार ने काँटा चुभोया ,फूल तो सारा बिक गया ।दोनो प्रेम के मारे बालक गुलाब से बैगन बने जा रहे थे ।ऐसे में बेरोज़गार युवक उनकी हालत देख कर अपने अनुभव का प्रदर्शन करता हुआ बोला ,” इधर आओ उदास क्यों हो रहे हो ? फूल नही मिला तो क्या हुआ ? अभी तो 14 तारीख़ बाक़ी है ।बीच में चोकलेट डे है ,खर-खेलवना डे तो है ना ।आज तुम लोग लड़की को एक गाना फ़ोरवाड कर दो ।साथ ही दो चार शायरी चिपका देना ।कहना फूल तो मुरझा जायेंगे साथ हीं घर में सौ सवाल होंगे इससे अच्छा आज गीत हीं सुनो।

दोनो युवा कोपल एक अनुभवी प्यार में जुदाई खाए बेरोज़गार की सलाह मान ख़ुशी -ख़ुशी चले गए ।सलाह अनुसार गाने के साथ शायरी भेज दी गई ।अब राम जाने उनकी हनी को हनी  सिंह के अलावा कुछ और भाता भी है या नही या फिर अपने चार दिन के इस नाज़ुक दिल वाले बादशाह की बादशाहत ,बादशाह के गाने के ग़म में गिराने वाली हैं।

क्रमशः -

Tuesday, 5 February 2019

मेरी किताब -मनलहरी !!!

चीज़ें अधूरी छोड़ने की बड़ी अजीब आदत रही मेरी ।चाहे मेरी जर्मन भाषा की क्लास हो या फिर संगीत की क्लास ।चाहे मेरी गिटार क्लास हो या फिर ज़ूमबा डाँस की क्लास ।घुमना और सोना छोड़कर सारे पुरे काम राम भरोसे हीं पुरे होतें हैं ।हाँ अगर कोई काम मैंने तय समय मे पुरा किया मतलब कि किसी से प्रतियोगिता या फिर मेरी जिद्द ।मुझे  लगता हैं ना मुझे इस अधूरेपन से एक ऐसा प्रेम होता है जैसा मानो ये पुरे होने से ज़्यादा यादगार  है।एक अजीब सी चुभन जो कई बार आपसे अलग होकर भी आपको याद दिलाती रहती हैं कि मैं था /थीं कभी तुम्हारे जीवन मे और जब तक तुम मुझे पुरा नही करती तब तक तुम्हारा रहूँगा तपस्या ।पुरा हो जाने के बाद तुम्हारा मोह मुझसे भंग हो जायेगा इसलिए तुम मुझे तुम अधूरा ही रहने दो ।

 ख़ैर इस पुरी राम कहनी के पीछे एक पुरा किया हुआ काम हैं ।आपलोगो को ये बताते हुए बड़ी ख़ुशी हो रही हैं की मेरी पहली “ई बूक पब्लिश”  हो गई है ।इसका श्रेय सिर्फ़ दो लोगों को जाता हैं ।
पहला शतेश शुभ्रंशु जिनको जब से “अमेजोन ई बूक पब्लिशिंग” का मालूम हुआ मेरे पीछे पड़ गए ।रोज़ मुझे टोकने लगे लिखी क्या कुछ ? आदतन मैं टालती रही  उन्हें ।फिर एक दिन शतेश मेरा प्रोफ़ाइल बना कर बोले ,”तपस्या प्रोफ़ाइल बना दिया हैं तुम्हारा अब तो लिखो ।उसके बाद तो रोज़ हीं पुछने लगे लिखी क्या ? इस तरह ठेला -ठाली से मैंने लिखना शुरू किया ।कमाल की बात ये रही कि 89 पेज की किताब  मैंने फ़ोन पर ही लिख डाली।

दूसरा मेरा भाई ,जिसको विश्वास था कि अगर मैं चाहूँ तो किताब लिख सकती हूँ।बस शुरू करने की देरी है।हुआ भी वहीं किताब दिसम्बर में पुरी हो गई थी पर कभर पेज और एडिटिंग के बीच अटकी थी ।मतलब अधूरेपन से थोड़ी हीं पीछे ।ऐसे में “पुष्प मित्र “जी की किताब ने कटलिस्ट का काम किया ।उनसे बात की और उनके सुझाव के अनुसार अपनी कलाकारी के साथ कभर पेज को अंजाम दिया ।

इसतरह इस किताब की कहानी शुरू हुई ।किताब मेरी “अमेजन “ पर आ गई है ।आपको किताबों में रुचि हो ,किसी नवसिखिए को पढ़ना चाह रहे हो और ग़लतियाँ माफ़ कर सकतें हो ज़रूर पढ़े “मनलहरी”
हाँ माफ़ ना भी कर सके तो आपके प्यार के साथ सुझाव मुझे सहर्ष स्वीकार होगा ।

पी एस :-मैं ख़ुद ऑनलाइन किताबें बहुत कम पढ़ती हूँ।मुझे किताबें हीं ज़्यादा भातीं है पर बात वहीं हैं टिक्नॉलजी से कबतक भागती रहूँगी आज के समय मे ।