इसबार मैंने सोचा था कि मैं भी प्रेम दिवस सप्ताह रोज़ एक लेख लिख कर मनाऊँगी ,पर ये हो ही नही पाया ।आज जब प्रेम कहानियों के बारे में लिखने बैठी तो कई सारी आत्माएँ मेरे आस -पास भटकने लगी ।कभी राधा कहती मेरी कथा लिखो तो कभी मीरा ।कभी रांझा तो कभी महिवाल ।कभी सीता तो कभी गांधारी पर सबसे ज़्यादा परेशान मुग़लों ने किया।हामिदा बानो से लेकर जूलियना तक हाज़िर थी ।आनरकाली और मुमताज़ में तो बड़ी कड़ी टक्कर थी ।उन्हें समझा बुझा कर मैंने कोने में खड़ी जहाँ आरा को गले लगाया ।
मुग़ल वंश शासन के अलावा प्रेम के मामले में भी बड़ा क्रूर रहा ।क्रूर कहने से मेरा मतलब प्रेम की ख़ातिर कुछ भी करने से ना चूकना वाला ।साथ ही इसी वंश ने सबको पछाड़ते हुए प्रेम को भी महँगा कर दिया ।अब हालत ये हो गई है कि मजनूँ भी लैला के लिए सोने की पाज़ेब की इक्षा रखता है ।सोनी महिवाल से मिलने के लिए प्लैटिनम का मटका ले कर आती है ।और नए -नए शाहजहाँ चाँदी की ताज ,ढेरों गिफ़्ट के साथ परोस देते है ।
बढ़िया हीं है ,कहीं इसी लेन- देन वाले प्रेम में कोई कहानी ऐसी भी बन जाए जिसे लोग बरसो बाद याद करें ।
बढ़िया हीं है ,कहीं इसी लेन- देन वाले प्रेम में कोई कहानी ऐसी भी बन जाए जिसे लोग बरसो बाद याद करें ।
इन्हीं कहानियों के बीच मुझे आज शाहजहाँ की एक ऐसी तस्वीर हाथ लगी जिसे देख कर आह ! निकल गई ।
तस्वीर शाहजहाँ के बुढ़ापे की है ।इसमें उनकी और मुमताज़ महल की बेटी “जहाँआरा “ उनके पैरों के पास माथे पर हाथ रखी बैठी है ।
कहते है शाहजहाँ ने मुमताज़ की याद में ताजमहल बनवाया था ।ये भी कहते हैं कि उन्होंने मुमताज़ के मरने के बाद उसकी चहेरी बहन से शादी कर ली थी ।साथ हीं ये भी कहीं पढ़ा था कि जहाँ आरा की सूरत मुमताज़ से बहुत मिलती थी ,इस वजह से शाहजहाँ का उससे भी रिश्ता रहा ।इन सब को लिखते हुए मुझे “लव इन द टाइम आउफ़ कोलरा “की याद आ रही है पर सबसे ज़्यादा विचलित जहाँआरा कर रहीं है ।
क्या बीत रही होगी उस कोमल मन पर जब शाहजहाँ बादलों के पीछे छुपे चाँद के बीच ताजमहल को देख रहा होगा ।कैसा ये प्रेम रहा होगा कि ताज के नीचे दफ़न बीबी और ताज के समान सुंदर बेटी कम मुमताज़ पैरों में बैठी अपने क़िस्मत को रो रही है ।प्रेम को समझना सच में मुश्किल है ।
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