चीज़ें अधूरी छोड़ने की बड़ी अजीब आदत रही मेरी ।चाहे मेरी जर्मन भाषा की क्लास हो या फिर संगीत की क्लास ।चाहे मेरी गिटार क्लास हो या फिर ज़ूमबा डाँस की क्लास ।घुमना और सोना छोड़कर सारे पुरे काम राम भरोसे हीं पुरे होतें हैं ।हाँ अगर कोई काम मैंने तय समय मे पुरा किया मतलब कि किसी से प्रतियोगिता या फिर मेरी जिद्द ।मुझे लगता हैं ना मुझे इस अधूरेपन से एक ऐसा प्रेम होता है जैसा मानो ये पुरे होने से ज़्यादा यादगार है।एक अजीब सी चुभन जो कई बार आपसे अलग होकर भी आपको याद दिलाती रहती हैं कि मैं था /थीं कभी तुम्हारे जीवन मे और जब तक तुम मुझे पुरा नही करती तब तक तुम्हारा रहूँगा तपस्या ।पुरा हो जाने के बाद तुम्हारा मोह मुझसे भंग हो जायेगा इसलिए तुम मुझे तुम अधूरा ही रहने दो ।
ख़ैर इस पुरी राम कहनी के पीछे एक पुरा किया हुआ काम हैं ।आपलोगो को ये बताते हुए बड़ी ख़ुशी हो रही हैं की मेरी पहली “ई बूक पब्लिश” हो गई है ।इसका श्रेय सिर्फ़ दो लोगों को जाता हैं ।
पहला शतेश शुभ्रंशु जिनको जब से “अमेजोन ई बूक पब्लिशिंग” का मालूम हुआ मेरे पीछे पड़ गए ।रोज़ मुझे टोकने लगे लिखी क्या कुछ ? आदतन मैं टालती रही उन्हें ।फिर एक दिन शतेश मेरा प्रोफ़ाइल बना कर बोले ,”तपस्या प्रोफ़ाइल बना दिया हैं तुम्हारा अब तो लिखो ।उसके बाद तो रोज़ हीं पुछने लगे लिखी क्या ? इस तरह ठेला -ठाली से मैंने लिखना शुरू किया ।कमाल की बात ये रही कि 89 पेज की किताब मैंने फ़ोन पर ही लिख डाली।
दूसरा मेरा भाई ,जिसको विश्वास था कि अगर मैं चाहूँ तो किताब लिख सकती हूँ।बस शुरू करने की देरी है।हुआ भी वहीं किताब दिसम्बर में पुरी हो गई थी पर कभर पेज और एडिटिंग के बीच अटकी थी ।मतलब अधूरेपन से थोड़ी हीं पीछे ।ऐसे में “पुष्प मित्र “जी की किताब ने कटलिस्ट का काम किया ।उनसे बात की और उनके सुझाव के अनुसार अपनी कलाकारी के साथ कभर पेज को अंजाम दिया ।
इसतरह इस किताब की कहानी शुरू हुई ।किताब मेरी “अमेजन “ पर आ गई है ।आपको किताबों में रुचि हो ,किसी नवसिखिए को पढ़ना चाह रहे हो और ग़लतियाँ माफ़ कर सकतें हो ज़रूर पढ़े “मनलहरी”
हाँ माफ़ ना भी कर सके तो आपके प्यार के साथ सुझाव मुझे सहर्ष स्वीकार होगा ।
पी एस :-मैं ख़ुद ऑनलाइन किताबें बहुत कम पढ़ती हूँ।मुझे किताबें हीं ज़्यादा भातीं है पर बात वहीं हैं टिक्नॉलजी से कबतक भागती रहूँगी आज के समय मे ।
ख़ैर इस पुरी राम कहनी के पीछे एक पुरा किया हुआ काम हैं ।आपलोगो को ये बताते हुए बड़ी ख़ुशी हो रही हैं की मेरी पहली “ई बूक पब्लिश” हो गई है ।इसका श्रेय सिर्फ़ दो लोगों को जाता हैं ।
पहला शतेश शुभ्रंशु जिनको जब से “अमेजोन ई बूक पब्लिशिंग” का मालूम हुआ मेरे पीछे पड़ गए ।रोज़ मुझे टोकने लगे लिखी क्या कुछ ? आदतन मैं टालती रही उन्हें ।फिर एक दिन शतेश मेरा प्रोफ़ाइल बना कर बोले ,”तपस्या प्रोफ़ाइल बना दिया हैं तुम्हारा अब तो लिखो ।उसके बाद तो रोज़ हीं पुछने लगे लिखी क्या ? इस तरह ठेला -ठाली से मैंने लिखना शुरू किया ।कमाल की बात ये रही कि 89 पेज की किताब मैंने फ़ोन पर ही लिख डाली।
दूसरा मेरा भाई ,जिसको विश्वास था कि अगर मैं चाहूँ तो किताब लिख सकती हूँ।बस शुरू करने की देरी है।हुआ भी वहीं किताब दिसम्बर में पुरी हो गई थी पर कभर पेज और एडिटिंग के बीच अटकी थी ।मतलब अधूरेपन से थोड़ी हीं पीछे ।ऐसे में “पुष्प मित्र “जी की किताब ने कटलिस्ट का काम किया ।उनसे बात की और उनके सुझाव के अनुसार अपनी कलाकारी के साथ कभर पेज को अंजाम दिया ।
इसतरह इस किताब की कहानी शुरू हुई ।किताब मेरी “अमेजन “ पर आ गई है ।आपको किताबों में रुचि हो ,किसी नवसिखिए को पढ़ना चाह रहे हो और ग़लतियाँ माफ़ कर सकतें हो ज़रूर पढ़े “मनलहरी”
हाँ माफ़ ना भी कर सके तो आपके प्यार के साथ सुझाव मुझे सहर्ष स्वीकार होगा ।
पी एस :-मैं ख़ुद ऑनलाइन किताबें बहुत कम पढ़ती हूँ।मुझे किताबें हीं ज़्यादा भातीं है पर बात वहीं हैं टिक्नॉलजी से कबतक भागती रहूँगी आज के समय मे ।
No comments:
Post a Comment