कुछ दिनो पहले हीं भाई को बता रही थी कि आजकल जाने कैसे मैं जो सोच रही होती हूँ या जो कर रही होती हूँ उसे कोई और भी जान पहचान का कर रहा होता है ।मसलन मैं जो गाने सुन रही होती हूँ ,जिस चीज़ पर लिखना चाह रही होती हूँ ,कोई फ़िल्म देख रही होती हूँ या कोई फूल की तस्वीर ।भाई ने कहा हो जाता है ।करोड़ों की आबादी है कई लोग एक जैसे सोच वाले मिल हीं जाते है ।
खाई आप यक़ीन नही करेंगे कल रात मैंने सपने में जवानो को देखा था ।हुआ यूँ मेरी दोस्त प्रशंसा और मैं जाने एक ऐसी जगह पहुँच गये है जहाँ बर्फ़ और तेज़ हवा का बवंडर है ।लोग इधर -उधर भाग रहें है ।जो लोग हवा की चक्की में फँस गए हैं वे पहिए से घुम रहे है।हमलोग उससे बचते -बचाते भाग रहें हैं कि हवा की एक घुमरी हमारे आगे आ जाती है ।हम कुछ सोच पाते की किसी ने हमदोनो को एक दीवार के पीछे खिंचा।मैं गिर पड़ती हूँ और सपने में भी मुझे चोट की अनुभव होती है ।
हमें जिसने खींचा था वो दो सिपाही थे ।हमें कहते हैं डरो मत ,ये रास्ता सुरक्षित नही ।चलो इस तरफ़ हमारे साथ ।हमलोगो को लेकर वे एक ऐसे रास्ते पर जाते हैं जहाँ एक तरफ़ गन्दी नदी है और जाने कैसे उस नदी की सारी मछलियाँ उस रास्ते पर मरी पड़ी हैं ।सिपाही हमें कहते हैं डरने कि ज़रूरत नही है ।ये मछलियाँ मरी हुई है ।मैं उस मछली पथ पर चलना नही चाहती फिर भी रोते -गाते अपनी दोस्त और सिपाहियों के पीछे चल पड़ती हूँ ।मरी हुई मछलियों के बाहर निकली आँखें ,उनकी चमकती -फिसलती खाल मेरी राह मुश्किल कर रहें है ।मैं परेशान -परेशान हो जाती हूँ रोने लगती हूँ और मेरी नींद खुल जाती है ।
सुबह फ़ोन देखती हूँ तो यक़ीन हीं नही होता ।जाने क्यों आँख भर आई थी ।सच में मैं सिहर सी गई थी ।मन इतना विचलित हुआ की घर के पूजा स्थान तक काफ़ी देर तक बैठी रही ।माँ भाई से वीडीयो कॉल पर भी ठीक से बात नही कर पाई ।
सोचिए कि हम सेना पर कितना विश्वास करतें है की सपने में भी सुरक्षा की ज़िम्मेदारी वहीं निभाते नज़र आ रहें है ।
कई लोगों को लगेगा कि मौत तो होती हीं रहती है इसमें इतना अधीर होने की ज़रूरत नही ।भारत सरकार इसका इंसाफ़ ज़रूर करेंगे ।
पर मैं क्या करूँ अगर मेरा मन इतना कमजोर है ? मैं क्या करूँ जो ये घटनाएँ मुझे बहुत हद तक परेशान करतीं है ?
मैं क्या करूँ जो वे सारी जाने फिर से जीवित हो जाएँ अवंति नाम को सार्थक करतीं हुई ।
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