Tuesday, 8 October 2019

घर आने से पहले इस यात्रा का होना मेरे लिए जरूरी था। कारण  पिछले साल जब घर पर रही उन दिनो ऊख यानि गन्ने की पुरजी भज रही थी। पुरजी भजना मतलब आपके गन्ने का चीनी मिल तक पहुँचना और उनके वजन और प्रजाति के अनुसार हिसाब-किताब होना। भाई के घर पर ना होने से हिसाब-किताब का ज़िम्मा मेरे ऊपर ही आ गया। इससे कई नई चीजे जानने को मिली। फिर मै और ज़्यादा जानने के लिए गन्ने से जुड़ी एक किताब भी पढ़नी शुरू की थी पर वो पुरी ना हो सकी।

इन सबसे इतर,  उन्ही दिनो मेरे दिमाग मे ये बात चलने लगी की आख़िर अमेरिका ऐसी क्या तकनीक प्रयोग मे लता है कि यहाँ का मक्का, सोयाबीन, गेहूँ लहलहता रहता है। मेरे बटईया वाले किसान की तरह हर बार रोता नही की “बरखा ना भईल या ज़्यादा बरखा से फ़सल ख़राब हो गईल।”
मैंने सोच लिया था कि इस बार ये “एपल पीकिंग या पंपकिन पैच” नही जाना। इस बार किसी ऐसी जगह जाऊँगी जहाँ खेत ही खेत हो।  वहाँ के किसी किसान से बात हो तकी समझने मे मदद मिले। 

ऐसे में मै तय किया “कंसस और आयोवा” जाने को। वैसे इंडियना की भूमि अपने आप में उपजाऊ मानी जाती है। टेक्सस, कलीफ़ोरनिया, कंसस के बाद यही का नम्बर आता है पैदावार के मामले मे। पर संयोग ये रहा कि टेक्सस में मैंने खेतों मे तेल के कुएँ देखे तो कलीफ़ोरनिया मे रुकना कम होने से आते-जाते मक्का के खेत। इधर भी आते-जाते मैंने सिर्फ़ बड़े-बड़े खेत देखे जिनमे मक्का या सोयाबीन लहलहा रहे होते। पर इन खेतों मे कभी कोई  किसान नही दिखता। 

शतेश को कंसस जाने की कोई खास इक्षा ना थी। यहाँ घुमने के लिए भी कम ही लोग जाते है। जो जाते भी है या तो वो वहाँ से पास रहते है या उनका कोई क़रीबी उधर रहता है। ऐसे मे 9-10 घंटे की ड्राइविंग शतेश को परेशान कर रही थी। पर वही है ना जब इंसान प्रेम मे होता है फिर सब कुछ दूसरे की ख़ुशी होता है:)
ऐसे में मैंने भी ढूँढ-ढूँढ कर वहाँ देखने योग्य जगहे निकली तकी इनकी ख़ुशी भी यहाँ आ कर बनी रहे। साथ ही मैंने “ द स्ट्रैट स्टोरी” फ़िल्म के कुछ हिस्से भी इन्हें दिखाई तकी जवान का इंट्रेस्ट बना रहे यहाँ आने में। 

“द स्ट्रैट स्टोरी” फ़िल्म जब देखी थी, इसके बैकग्राउंड संगीत और आयोवा को देख मंत्रमुग्ध हो गई थी। सोचा था काश यहाँ जा पाती और वो काश आयोवा के “ग्रेटो (मंदिर/आश्रम) ने पुरी की। इस फ़िल्म में भी ग्रेटो की हल्की सी झलक दिखाई है। आयोवा में इससे ज़्यादा ख़ूबसूरत सिर्फ़ खेत ही है।

हमारी इस यात्रा में सबसे ज़्यादा दूरी भी इस ग्रेटो की ही थी। घर से चलने से पहले हमने तमाम रास्ते देख लिए थे यहाँ तक जाने को पर, ये फिर भी सबसे दूर किसी कोने में था। कुछ चीज़ें काट -छाँट कर हमने यहाँ जाने का प्लान किया। पर वहीं है कई बार डेस्टिनेशन भी आपकी परीक्षा लेती है।

पहले ही दिन जब हम घर से निकले इंडीयाना पार करते ही रोड कंस्ट्रकशन मिलने लगा। स्पीड ऐसे ही कम हो गई। आगे जाने पर हाईवे पर आधा काम तो बीच में किसी गाड़ी की एक्सिडेंत ने हाईवे को ही जाम कर दिया। ऐसे में हम ढाई-तीन घंटे जाम में फँसे रहे। धीरे सरकती गाड़ियों से शतेश को एक इकजीट दिखा।
मुझसे बोले तपस्या, आगे बहुत जाम है अभी भी। फोन में पुरी लेन रेड दिख रही है। जाने कब तक फँसे रहेंगे ?
आगे जाने से दूसरा रास्ता बता रहा है जीपीएस  जो कुछ देर बाद हाईवे से जुड़ जाएगा।

और इस तरह हमारी गाड़ी खेतों के बीच एक पतले रास्ते पर चलने लगी। रास्ता टूटा-फूटा ही था। रोड के किनार पड़ी मिट्टी हमारी गाड़ी के चक्को के साथ होली खेल रही थी। पहली बार अमेरिका में हमने धुल उड़ाते गाड़ी चलाई । और तो और अब जीपीएस का नेटवर्क भी ग़ायब। समझ नही आ रहा था कितनी दूर ऐसे ही जाने पर हाईवे मिलेगा। एक तरफ़ खेतों के बीच गाड़ी का चलना दूसरी तरफ़ सूरज की किरणों का क़रीब-क़रीब फ़सलों का छूना। कभी रोमांच तो कभी भटकने की हल्की परेशानी, ऐसे में एक चौराहा मिला और उसपर लगे रोड के नाम से शतेश को याद आया की इसी रोड की तरफ़ मुड़ने से हाईवे मिलेगा। 
और इस तरह खेत, कई जानवर, इनके बीच बने कुछ घर, टूटी बेकार गाड़ियों को झाड़ी के किनारे खड़े देखते-देखते हम हाईवे तक पहुँचे। यहाँ से आगे जाम नही था। पर इनसब में हमारे होटेल पहुँचने का टाइम गड़बड़ा गया। लगातार गाड़ी में बैठे रहने से मेरे सिर में भी हल्की दर्द शुरू हो गई और इसके साथ मैंने इनसे कहा; ग्रेटो जाने का प्लान कैंसिल करते है। 

आगे क्या हुआ वो कल .....,

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