आज की यात्रा कंसस से शुरू करती हूँ ।आप सब भी तैयार हो जाइए इस जैज़ और फ़ावरो के शहर को घुमने के लिए। रुकिए साहबान ये सिर्फ़ गीत-संगीत का शहर नही ये शहर सबसे अधिक गेहूँ भी ऊपजाता है। साथ ही बीफ़ के मामले मे भी ये सिर्फ़ टेक्सस से पीछे है। वैसे यहाँ गेहूँ के अलावा सोयाबीन और मक्का भी ख़ूब होता है। साथ ही कंसस का बार्बीक्यू भी ख़ूब प्रसिद्ध है पर वही हम शाकाहारी जीव के लिए कुछ ख़ास ना था। कुछ भूने हुए मकई, थोड़ी तरकारी उसमें भी जूकनी, टमाटर और लालका-हरिहरका शिमला मिर्च कुछ पनीर के साथ। हमें ठीक ही लगा कुछ लाजवाब टाइप फ़ील नही आई।
तो सबसे पहले बताती चलूँ कि, यहाँ हम नेब्रास्का से लौटते समय आए थे। रास्ते भर ख़ूब परती ज़मीन और अपने यहाँ जैसा गाडहा-गुडही देखते आए। ऐसा लग रहा था सिवान से चम्पारण जा रही हूँ। कई जगह पानी जमा था। कई घर डूबे पड़े थे। पर वो घर पुराने थे। उन्मे कोई नही रहता था अभी। शायद इधर पानी लग जाता होगा इसलिए लोग विस्थापित हो गये हो। साथ ही ये लम्बी-लम्बी माल रेलगाड़ी। इधर तो मैने खेतों के बीच रेल की पटरी बिछी देखी। उसका स्टॉपेज हर बड़े खेत के स्टोरेज के पास था। हमलोग कई तरह की बातें इस बारे मे करते रहे और कब कंसस पहुँच गये पाता ही नही चला।
दिन के चार बजे हम होटल पहुँचे। राइस कुकर मे चाय बनाया। चाय पिया और थोड़ी देर आराम के बाद निकल पड़े कंसस सिटी घुमने।
सबसे पहले हमलोग “द नेल्सन ऐट्किंज़ म्यूज़ीयम ओफ ऑर्ट गए” हमलोग कुछ बीस मिनट ही इसे घूम पाए की इसके बंद होने का समय हो गया। दूसरे ऑर्ट म्यूज़ीयम से ये बहुत अलग नही था। कमो बेस मुझे हर आर्ट म्यूज़ीयम मे काफ़ी कुछ एक जैसे ही ऑर्ट पीस दिखते है। कुछ ही अलग होता है जो इतने कम समय मे मै देख नही पाई। हाँ इसका लॉन ज़रूर अलग था। लॉन में बड़े-बड़े तीन “शटलकॉक्स” बने थे जिसके साथ लोग तस्वीरें ले रहे थे। हम भी पहुँच गए वहाँ।
सत्यार्थ कॉक के ऊपर चढ़ने का जिद्द करने लगा । हम पुत्र मोह मे घिरे दो देसी लोग जो सामने छोटे से बोर्ड पर लगा नोट पढ़ रहे है कि इसपर चढ़ना मना है फिर भी बेटे को चढ़ा दिया की दो-चार मिनट मे क्या होगा ?
पर वही है ना, ई अमेरिका ऐसे ही अमेरिका नही...... इसके चारों तरफ़ कान -आँख है। जैसे सत्यार्थ को बिठाया उधर से एक स्पीकर से आवाज़ आई “ कृपया बच्चे को नीचे उतार ले, सावधानी कारण से इसपर चढ़ना मना है” और हम लाज से पानी-पानी हो गए।
इसके बाद हम इसके ठीक सामने एक पार्क मे गए जहाँ दो बड़ी-बड़ी कुर्सियाँ रखी थी। इतनी बड़ी की हमें भी उचक के बैठना पड़ा। उसके पीछे फ़ाउंटन और रिवर वॉक था। यहाँ कुछ देर समय बिताने के बाद हम “नैशनल वर्ल्ड वॉर म्यूज़ीयम एंड मेमोरीयल” गए । शाम के सात बज चुके थे म्यूज़ीयम बंद हो गया था। वैसे भी इसे हमें बाहर से ही देखना था कारण ऐसा पहले भी कई जगह देख चुके थे और कम समय दूसरी चीज़ें जो नही देखी थी वो देखना था। यहाँ एक क़ुतुबमीनार जैसा पोल लगा है। वहाँ कुछ फ़ोटो ली। कुछ सैनिकों की मूर्ति निहारी और फिर चल पड़े सामने “यून्यन स्टेशन “ की तरफ।
यून्यन स्टेशन बहुत बड़ा तो नही है पर रंगीन लाइट की रौशनी में बहुत ख़ूबसूरत लग रहा था। 1914 मे ये शुरू हुआ था और 1985 मे यहाँ से ट्रेन चलनी बंद हो गई। अभी इसके अंदर रेल म्यूज़ीयम, आइरिश म्यूज़ीयम और कुछ शोज़ होते है। साथ ही इसमें ही कंसस का पोस्ट ऑफ़िस भी है। इसके सामने जो फ़ाउंटन है वो घड़ी-घड़ी बिल्डिंग के जैसा ही रंग बदलता है। यहाँ हमलोग क़रीब एक -डेढ़ घंटे बैठे रहे। ठंडी हवा और सुंदर नज़ारे ने हमे बाँध लिया था। फिर पार्किंग के समय को देखते हुए हम यहाँ से निकले थोड़ा आस-पास चहलक़दमी की और वापस गाड़ी तक आ गए। फिर वही बार्बीक्यू खाने गए होटल पहुँचे तो शतेश राम को आइक्रीम खाने का मन कर दिया। अच्छी बात ये थी कि हमारे होटल के पास ही “डेनिस” था। रात को एक बजे हम हॉट फ़ज खाने गए और इस तरह आज का दिन पूरा हुआ।
अगले दिन हमे फ़ार्म की सैर करनी थी और वहाँ के किसान से मिलना था। हमलोग सुबह-सुबह तैयार होकर पहले जे सी निकोल्ज़ मेमोरीयल फ़ाउंटन देखने पहुँचे। फिर वहाँ से अब तक का सबसे ख़ूबसूरत पुस्तकालय देखा और निकल पड़े शरयोककस फ़ार्म की तरफ़ । यहाँ पहुँचने पर मालूम हुआ कि फ़ार्म हम ख़ुद घूम सकते है अभी कोई ट्रिप नही फ़ॉल से पहले। हम ख़ुद ही थोड़ी देर घूमे। वहाँ से एकलौते स्टाफ़ जेम्स से थोड़ी बात-चीत की और फिर घर के लिए निकल पड़े।
तो सबसे पहले बताती चलूँ कि, यहाँ हम नेब्रास्का से लौटते समय आए थे। रास्ते भर ख़ूब परती ज़मीन और अपने यहाँ जैसा गाडहा-गुडही देखते आए। ऐसा लग रहा था सिवान से चम्पारण जा रही हूँ। कई जगह पानी जमा था। कई घर डूबे पड़े थे। पर वो घर पुराने थे। उन्मे कोई नही रहता था अभी। शायद इधर पानी लग जाता होगा इसलिए लोग विस्थापित हो गये हो। साथ ही ये लम्बी-लम्बी माल रेलगाड़ी। इधर तो मैने खेतों के बीच रेल की पटरी बिछी देखी। उसका स्टॉपेज हर बड़े खेत के स्टोरेज के पास था। हमलोग कई तरह की बातें इस बारे मे करते रहे और कब कंसस पहुँच गये पाता ही नही चला।
दिन के चार बजे हम होटल पहुँचे। राइस कुकर मे चाय बनाया। चाय पिया और थोड़ी देर आराम के बाद निकल पड़े कंसस सिटी घुमने।
सबसे पहले हमलोग “द नेल्सन ऐट्किंज़ म्यूज़ीयम ओफ ऑर्ट गए” हमलोग कुछ बीस मिनट ही इसे घूम पाए की इसके बंद होने का समय हो गया। दूसरे ऑर्ट म्यूज़ीयम से ये बहुत अलग नही था। कमो बेस मुझे हर आर्ट म्यूज़ीयम मे काफ़ी कुछ एक जैसे ही ऑर्ट पीस दिखते है। कुछ ही अलग होता है जो इतने कम समय मे मै देख नही पाई। हाँ इसका लॉन ज़रूर अलग था। लॉन में बड़े-बड़े तीन “शटलकॉक्स” बने थे जिसके साथ लोग तस्वीरें ले रहे थे। हम भी पहुँच गए वहाँ।
सत्यार्थ कॉक के ऊपर चढ़ने का जिद्द करने लगा । हम पुत्र मोह मे घिरे दो देसी लोग जो सामने छोटे से बोर्ड पर लगा नोट पढ़ रहे है कि इसपर चढ़ना मना है फिर भी बेटे को चढ़ा दिया की दो-चार मिनट मे क्या होगा ?
पर वही है ना, ई अमेरिका ऐसे ही अमेरिका नही...... इसके चारों तरफ़ कान -आँख है। जैसे सत्यार्थ को बिठाया उधर से एक स्पीकर से आवाज़ आई “ कृपया बच्चे को नीचे उतार ले, सावधानी कारण से इसपर चढ़ना मना है” और हम लाज से पानी-पानी हो गए।
इसके बाद हम इसके ठीक सामने एक पार्क मे गए जहाँ दो बड़ी-बड़ी कुर्सियाँ रखी थी। इतनी बड़ी की हमें भी उचक के बैठना पड़ा। उसके पीछे फ़ाउंटन और रिवर वॉक था। यहाँ कुछ देर समय बिताने के बाद हम “नैशनल वर्ल्ड वॉर म्यूज़ीयम एंड मेमोरीयल” गए । शाम के सात बज चुके थे म्यूज़ीयम बंद हो गया था। वैसे भी इसे हमें बाहर से ही देखना था कारण ऐसा पहले भी कई जगह देख चुके थे और कम समय दूसरी चीज़ें जो नही देखी थी वो देखना था। यहाँ एक क़ुतुबमीनार जैसा पोल लगा है। वहाँ कुछ फ़ोटो ली। कुछ सैनिकों की मूर्ति निहारी और फिर चल पड़े सामने “यून्यन स्टेशन “ की तरफ।
यून्यन स्टेशन बहुत बड़ा तो नही है पर रंगीन लाइट की रौशनी में बहुत ख़ूबसूरत लग रहा था। 1914 मे ये शुरू हुआ था और 1985 मे यहाँ से ट्रेन चलनी बंद हो गई। अभी इसके अंदर रेल म्यूज़ीयम, आइरिश म्यूज़ीयम और कुछ शोज़ होते है। साथ ही इसमें ही कंसस का पोस्ट ऑफ़िस भी है। इसके सामने जो फ़ाउंटन है वो घड़ी-घड़ी बिल्डिंग के जैसा ही रंग बदलता है। यहाँ हमलोग क़रीब एक -डेढ़ घंटे बैठे रहे। ठंडी हवा और सुंदर नज़ारे ने हमे बाँध लिया था। फिर पार्किंग के समय को देखते हुए हम यहाँ से निकले थोड़ा आस-पास चहलक़दमी की और वापस गाड़ी तक आ गए। फिर वही बार्बीक्यू खाने गए होटल पहुँचे तो शतेश राम को आइक्रीम खाने का मन कर दिया। अच्छी बात ये थी कि हमारे होटल के पास ही “डेनिस” था। रात को एक बजे हम हॉट फ़ज खाने गए और इस तरह आज का दिन पूरा हुआ।
अगले दिन हमे फ़ार्म की सैर करनी थी और वहाँ के किसान से मिलना था। हमलोग सुबह-सुबह तैयार होकर पहले जे सी निकोल्ज़ मेमोरीयल फ़ाउंटन देखने पहुँचे। फिर वहाँ से अब तक का सबसे ख़ूबसूरत पुस्तकालय देखा और निकल पड़े शरयोककस फ़ार्म की तरफ़ । यहाँ पहुँचने पर मालूम हुआ कि फ़ार्म हम ख़ुद घूम सकते है अभी कोई ट्रिप नही फ़ॉल से पहले। हम ख़ुद ही थोड़ी देर घूमे। वहाँ से एकलौते स्टाफ़ जेम्स से थोड़ी बात-चीत की और फिर घर के लिए निकल पड़े।
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