कल के विराम के बाद अब आगे की यात्रा पर निकलते है ।जैसा कि मैंने बताया की हमलोग देर रात होटेल पहुँचे और खाने का जो हाल हुआ वो क्या ही कहे ? सारे दुकान लगभग बंद हो चुके थे ।ऐसे मे रास्ते मे ट्रक का एक बड़ा सा स्टॉपेज बना है जिसपर लिखा है वर्ल्ड का सबसे बड़ा ट्रक स्टॉपेज, उसके अंदर कुछ कुछ-पीने की दुकाने थी ।जब हम अंदर गए तो सारी दुकाने खुली थी बस हमारा शाकाहारी वाला ऑपशन बंद था ।यानि जो पिज़्ज़ा की दुकान थी वो बंद हो गई थी । सर्च करने पर एक दुकान कुछ बीस मिनट दूर पर मिली जिसकी रेटिंग तो ज़बरदस्त थी पर उसका पिज़्ज़ा ऐसा की पानी और कोल्डड्रिंक के साथ जैसे-तैसे मैंने एक स्लाइस खाई ।अब तक मुझे भयंकर एसिडीटी हो गई थी ।सिर ज़ोर से दुखने लगा था और इसी के साथ होटल पहुँचते ही कल आराम से निकलने का प्लान हुआ।
अगले दिन भी सिर मे हल्का दर्द ही था ।शतेश बोले दवा लेकर आराम करो । कुछ बारह बजे के आस-पास मुझे थोड़ा ठीक लग रहा था तो फिर हमने निकलने की तैयारी करने लगे ।अभी सबसे पहले ठीक से खाना खाना था । हमने एक इंडियन रेस्टोरेंट ढूँढा और वहाँ पहुँच गये ।खाना जब तक आता हम आगे का प्लान बनाने लगे और ऐसे मे तय हुआ कि अब धूप मे खेत घुमने जाएँगे तो और बीमार पड़ जायेंगे ।इसी बीच खाना आ गया ।भूख तो लगी ही थी तो सब भूल कर खाने पर टूट पड़े ।पेट से थोड़ा ज़्यादा ही खा लिया और अब मन दू कैसा तो होने लगा । मैंने इनसे कहा “ग्रेटो” भी अब छोड़ ही देते है । इन्होंने कहा -अरे चलो चलते है ।तुम्हारा यहाँ आने का दूसरा बड़ा कारण तो यही था ।आराम से रुकते -रुकाते चलते है ।और इस तरह हमलोग ग्रेटो पहुँचे ।सच बताऊँ यहाँ अगर नही आते तो सच मे ये यात्रा अधूरी रहती ।अब तक तबियत -पानी भी ठीक हो गई थी ।
रंगीन पत्थरों से बनी एक छोटी सी इमारत ऐसे सज रही थी जैसे कोई ताज हो ।इसके बारे मे कहा जाता है कि ये दुनिया का सबसे बड़ा फोसिल, मिनरल, शेल और स्टोन से बना ग्रेटो है ।वर्ल्ड वंडर्ज़ मे इसका भी नाम जुड़ा है।
इसको बनाने की शुरुआत “फादर पॉल डेब्बेरस्टीन” जो कि एक जर्मन थे उन्होंने ने की थी ।एक बार वो बहुत बीमार पड़ गये । तब उन्होंने ने “वर्जिन मेरी” से प्रार्थना कि की, अगर मै ठीक हो गया तो आपके लिए एक आश्रम बनाऊँगा । और यही आश्रम “श्राइन ओफ द ग्रेटो ओफ द रिडेम्प्शन” कहलाई ।
।ये जगह इतनी शांत और ख़ूबसूरत है कि यहाँ घंटो बिताया जा सकता है ।तस्वीर मे आपको इतनी सुंदर ना दिखे मेरी बुरी फोटोग्राफ़ी की वजह से पर इसको आँखो की लेंस से देखना अद्भुत है । इसके दूसरी तरफ़ एक छोटा सा चर्च है जिसमे पॉल पादरी थे ।
हमारी ख़ुशक़िस्मती थी कि जब हम गए तो अब वहाँ का एकलौता शिल्पकार ग्रेटो मे पत्थर जड़ रहा था । उससे कुछ देर बातें हुई । उसने हमें बताया कि इसमे लगने वाले पत्थर विश्व भर से आते है । साथ ही उसने हमे तीन छोटे-छोटे पत्थर भी दिए यादगार के लिए ।उसने मुझे एक “चमकीला नीला पत्थर” दिया इस ग्रेटो मे जड़ने को ।अब इस ग्रेटो मे मेरी मज़दूरी भी शामिल हो गई है :)
ये अब भी बन ही रहा है । उसने हमे बताया कि आठ साल की उम्र से वो यहाँ काम कर रहा है और हमेशा करता रहेगा कारण उसके बाद इस काम को बढ़ाने वाला अभी कोई नही दिखता ।
यहाँ से हमलोग आयोवा के कैपिटल आए “ देस मोईनेस” वहाँ स्टेट बिल्डिंग देखी । फिर वहाँ से प्रमुख “पापा जॉनस” पार्क गए जो कि डाउन टाउन के बीचों -बीच है । इस पार्क मे कुछ 20 ऑर्ट पिसेस लगी हुई है । यहाँ शाम को अच्छा वक़्त गुज़ारा जा सकता है ।
और इस तरह मक्को( कॉर्न) का शहर कहे जाने वाला आयोवा जो कि आपनी उपजाऊँ मिट्टी के लिए जाना जाता है की आज की यात्रा पूरी हुई । आगे खेत, नेब्रास्का और कंसस की बातें.....
अगले दिन भी सिर मे हल्का दर्द ही था ।शतेश बोले दवा लेकर आराम करो । कुछ बारह बजे के आस-पास मुझे थोड़ा ठीक लग रहा था तो फिर हमने निकलने की तैयारी करने लगे ।अभी सबसे पहले ठीक से खाना खाना था । हमने एक इंडियन रेस्टोरेंट ढूँढा और वहाँ पहुँच गये ।खाना जब तक आता हम आगे का प्लान बनाने लगे और ऐसे मे तय हुआ कि अब धूप मे खेत घुमने जाएँगे तो और बीमार पड़ जायेंगे ।इसी बीच खाना आ गया ।भूख तो लगी ही थी तो सब भूल कर खाने पर टूट पड़े ।पेट से थोड़ा ज़्यादा ही खा लिया और अब मन दू कैसा तो होने लगा । मैंने इनसे कहा “ग्रेटो” भी अब छोड़ ही देते है । इन्होंने कहा -अरे चलो चलते है ।तुम्हारा यहाँ आने का दूसरा बड़ा कारण तो यही था ।आराम से रुकते -रुकाते चलते है ।और इस तरह हमलोग ग्रेटो पहुँचे ।सच बताऊँ यहाँ अगर नही आते तो सच मे ये यात्रा अधूरी रहती ।अब तक तबियत -पानी भी ठीक हो गई थी ।
रंगीन पत्थरों से बनी एक छोटी सी इमारत ऐसे सज रही थी जैसे कोई ताज हो ।इसके बारे मे कहा जाता है कि ये दुनिया का सबसे बड़ा फोसिल, मिनरल, शेल और स्टोन से बना ग्रेटो है ।वर्ल्ड वंडर्ज़ मे इसका भी नाम जुड़ा है।
इसको बनाने की शुरुआत “फादर पॉल डेब्बेरस्टीन” जो कि एक जर्मन थे उन्होंने ने की थी ।एक बार वो बहुत बीमार पड़ गये । तब उन्होंने ने “वर्जिन मेरी” से प्रार्थना कि की, अगर मै ठीक हो गया तो आपके लिए एक आश्रम बनाऊँगा । और यही आश्रम “श्राइन ओफ द ग्रेटो ओफ द रिडेम्प्शन” कहलाई ।
।ये जगह इतनी शांत और ख़ूबसूरत है कि यहाँ घंटो बिताया जा सकता है ।तस्वीर मे आपको इतनी सुंदर ना दिखे मेरी बुरी फोटोग्राफ़ी की वजह से पर इसको आँखो की लेंस से देखना अद्भुत है । इसके दूसरी तरफ़ एक छोटा सा चर्च है जिसमे पॉल पादरी थे ।
हमारी ख़ुशक़िस्मती थी कि जब हम गए तो अब वहाँ का एकलौता शिल्पकार ग्रेटो मे पत्थर जड़ रहा था । उससे कुछ देर बातें हुई । उसने हमें बताया कि इसमे लगने वाले पत्थर विश्व भर से आते है । साथ ही उसने हमे तीन छोटे-छोटे पत्थर भी दिए यादगार के लिए ।उसने मुझे एक “चमकीला नीला पत्थर” दिया इस ग्रेटो मे जड़ने को ।अब इस ग्रेटो मे मेरी मज़दूरी भी शामिल हो गई है :)
ये अब भी बन ही रहा है । उसने हमे बताया कि आठ साल की उम्र से वो यहाँ काम कर रहा है और हमेशा करता रहेगा कारण उसके बाद इस काम को बढ़ाने वाला अभी कोई नही दिखता ।
यहाँ से हमलोग आयोवा के कैपिटल आए “ देस मोईनेस” वहाँ स्टेट बिल्डिंग देखी । फिर वहाँ से प्रमुख “पापा जॉनस” पार्क गए जो कि डाउन टाउन के बीचों -बीच है । इस पार्क मे कुछ 20 ऑर्ट पिसेस लगी हुई है । यहाँ शाम को अच्छा वक़्त गुज़ारा जा सकता है ।
और इस तरह मक्को( कॉर्न) का शहर कहे जाने वाला आयोवा जो कि आपनी उपजाऊँ मिट्टी के लिए जाना जाता है की आज की यात्रा पूरी हुई । आगे खेत, नेब्रास्का और कंसस की बातें.....
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