Saturday 22 January 2022

शायद ही किसी दिन कोई फ़िल्म नही देखती पर इन तमाम फ़िल्मों में कुछ ही है जो याद रह जाती है या कई दिन सोचने पर मजबूर कर जाती है। जैसे बीते दिनों Anthony Hopkins की The Father देखी और रो पड़ी। इस बीच बीमार भी हो गई थी और मैं भी बस अपनी माँ को यहाँ चाह रही थी। इस फ़िल्म पर बात फिर कभी आज बात अतनु घोष की फ़िल्म Binisutoy: Without Strings की । 
 “बीनीसूतोय” सच में अपने नाम के अनुरूप बिना शर्त वाली फ़िल्म है। रित्विक चक्रबर्ती को पहली बार “लेबर ओफ़ लव” में देखा था और उसके बाद तो इनकी फ़िल्में ढूँढ-ढूँढ कर देखी। कमाल के एक्टर लगे मुझे। इस फ़िल्म में भी इन्होंने अच्छा काम किया है। 

एक ऐसी फ़िल्म जिसमें सांसारिकता और एकाकीपन का मिश्रण है। आप सोच नही सकते कि अपने खालीपन को भरने के लिए कोई ऐसा भी कर सकता है। हम इस भागती-दौड़ती दुनिया का हिस्सा बनते-बनते सब कुछ तो पाने लगते है पर भीतर कुछ है जो भरता नही। और फिर इस डिजीटल युग में हम सब भी तो कहीं ना कही, किसी बिंदु पर एक अपनी आभासी दुनिया रचते ही है। 

फ़िल्म की कहानी सरबनी बरुआ( नायिका) और काजल सरकार( नायक) की है। दोनों के पास कुछ होते हुए भी वे कैसे मिथ्या जीवन जीते है अपने खालीपन को भरने के लिए यही इस फ़िल्म की कहानी है। 

यह फ़िल्म आपको स्लाइस ओफ़ लाइफ़ के साथ थोड़ा सस्पेंस परोसती है। हाँ, शुरू में कुछ जगह लगता है कि हट ऐसा कैसे ? बारिश हुई नही कि एक अजनबी के साथ रुके है जबकि घर दो घंटे की दूरी पर है। पर यही तो है कहानियों कि दुनिया। रचने वाला थोड़ा तिलस्म तो रचेगा ही। 

कुछ अग़ल देखना चाहते हो तो ज़रूर देखें यह फ़िल्म। 


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