शेक्सपियर आज के जमाने में पैदा हुए होते तो कान पकड़ लेते यह कहने से , “ नाम में क्या रखा है”
जहाँ भारत की जनता स्टेशन, शहर, रोड, शायरों के नाम बदले जाने से परेशान है वही, अमेरिका में एक भारतीय अपने और अपने बच्चे के नाम को लेकर। हाँ, होगा भारत में ‘तपस्या’ नाम सुंदर नाम पर यहाँ तो तपस्या कहना लोगों के लिए एक समस्या है।
अधिकतर काम ऑनलाइन होने की वजह से यहाँ एक अलग दिक़्क़त आती है। फ़ोन की दूसरी ओर बैठी/बैठा व्यक्ति, तपस्या के ‘टी’ को “डी या पी” समझ लेता है।
फिर शुरू होता है इधर से ,
नो-नो , इट्स टी . टी एज अ ‘टाइगर’
ओह, रियली सॉरी मैम के बाद ठीक से तपस्या तीन से चार बार में लिखा जाता है। कई बार चिढ़ भी आती है तो कई बार हँसी।
इतना होने के बावजूद भी जब मैं माँ बनी तो सोचा, माँ का नाम तपस्या और बच्चा टॉम ,हैरी या आजकल के आधुनिक नाम भला कैसे रखूँ ? ऐसा नही लगेगा कि किसी और का ही बेटा है।
30 दिसम्बर के दोपहर को नामों की सूची बनाने बैठी। पहले से सोच रखा था कि नाम लेटर S से ही रखूँगी तो ज़्यादातर नाम स,श से ही चुने। उसमें से कुछ नाम तो मुझे बहुत पसंद आए जो आज भी याद है जैसे,
सत्यार्थ ,शाश्वत, षड़ज , सर्वात्मिक , समाहित , सर्वप्रिय, स्वर्णिम और समृद्ध ।
संयोग ऐसा कि जिस दोपहर नामों की सूची बना रही थी उसी रात मुझे हॉस्पिटल जाना पड़ा। एक शरीर के अंदर दो मन जी रहे थे। ऐसे में पुराने मन का उत्साह देख को नया मन गर्भ में उछल-कूद मचाने लगा। ज़िद्द करने लगा कि ना, “मेरी माँ कितने उत्साह से इंतज़ार कर रही है। दिन गिन रही है, मेरा नाम चुन रही है। अब तो मुझे आज ही आना है इस दुनिया में चाहे जो हो।”
दिन शनिवार, तारीख़ 31दिसम्बर , साल 2016 को मेरा प्रथम पुत्र इस दुनिया में आया।
बच्चा मेरा समय से पूर्व हुआ था। उसे Neonatal Intensive Care Unit (NICU) मे रखा गया। हम सब घबराए हुए थे। ऐसे में नाम पर इतना सोच विचार कौन करे… हमें सत्यार्थ नाम सबसे अच्छा लगा और बच्चे का नाम , “ सत्यार्थ भारद्वाज” रखा गया।
सत्यार्थ, मेरा मीर मस्ताना, इशु राजा इस 31 दिसम्बर को 5 साल के हो गया। उम्र के साथ-साथ इनकी बदमाशी और प्यारी अदायें और बढ़ती गई है। साथ ही पढ़ने-लिखने की भी हल्की-फूल्की ज़िम्मेदारी इन पर आन पड़ी है।
अब सोचिए जिस देश में तपस्या को लेकर इतना भ्रम है वहाँ ‘सत्यार्थ भारद्वाज’ लिखने में लोगों की क्या हालत होती होगी।
एक दिन इसकी प्यारी टीचर ‘मिसेज़ फूके’ ने जाने किस मनोदशा में आकर एक नोट लिख कर भेजा , “ He will never write his name”
मैंने कहा , हेंऽऽऽ ऐसे कैसे ? जेकर बनरा उहे नचावे… आप टेंशन ना ले और देखती जाइए मेरा बेटा कैसे अपना पूरा नाम लिखता है। और देखिए तो कैसे आज मेरा बेटा अपना नाम लिख रहा है।
तो दुनियावालों सारा खेल नाम का ही है।
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