Sunday 27 November 2022

टी गार्डेन !

 नैनीताल आने से पहले हमने यह नही सोचा था कि यहाँ टी गार्डेन भी होगा। नैनी झील में नाव की सवारी के दौरान नाविक मुकेश ने ही इसके बारे में बताया था। कहा था, गोलू महाराज के मंदिर से होते हुए चाय बाग़ान चले जाना।

  गोल्जू महाराज के दर्शन के बाद शाम की चाय का लगभग वक्त हो ही आया था। हम निकल पड़े नैनीताल के भवाली में, “श्यामखेत  टी गार्डेन” की ओर। मंदिर से यह ज़्यादा दूर नही है। यहाँ पहुँच कर हमने टिकट लिया। पर पर्सन टिकट का मूल्य, 40 रुपया है। 

 यह बागान सैनिक स्कूल घोड़ाखाल की जमीन पर है। जिसे टी बोर्ड ने 30 साल के लिए लीज पर लिया हुआ है।बाग़ान 155 हेक्टेयर में फैला हुआ है पर इसका अधिकांश हिस्सा लोहे की पतली जाली द्वारा घेर दिया गया है। पर्यटन के लिए एक ही हिस्सा खुला है। यहाँ चाय की पत्तियाँ तोड़ना भी मना है। बाग़ान में एक दो स्टाफ़ घूमती रहती हैं थोड़ी बहुत जानकारी देने के साथ कॉस्ट्यूम लेने को कहती हैं। महिलाओं के एक-दो कपड़े है जिन्हें पहन कर आप तस्वीरें ले सकती हैं। पर हमने कोविड को ध्यान में रखते हुए मना कर दिया। थोड़ी देर उनसे चाय की बात की और घुस पड़े चाय के बाग़ान में। कुछ तस्वीरें ली और फिर बाग़ान में ही स्थित एक रेस्टोरेंट जा घुसे। सोचा यहाँ तक आए है तो शुद्ध चाय पिया जाए। बाग़ान में इकलौता चाय की दुकान होने से चाय की क़ीमत भी ज़्यादा थी। पर साज-सज्जा सुंदर थी। इसकी बालकनी में बैठ कर चाय बाग़ान निहारते हुए चाय पीना अच्छा लगता। और हमने चाय मँगा ली। 

सच कहूँ तो मुझे चाय बिल्कुल पसंद नही आयी। बड़ा तेज स्वाद लगा। फिर अदरक वाली चाय की बात ही कुछ और। पर मुझे छोड़ कर बाक़ी तीन लोगों को चाय ठीक ही लगी। 

चाय के साथ थोड़ी देर और बैठा जा सकता था पर जाना था कैंची धाम और रास्ता थोड़ी दूर था। हम निकल पड़े चाय के बाग़ान को विदा करते हुए।

Wednesday 23 November 2022

कैची धाम !

 पिछले पोस्ट में हमलोग, “न्याय के देवता” के दर्शन को गए थे। आज मैं आपको लेकर चलती हूँ, “कैंची धाम” नीम करौली बाबा के आश्रम। 


यहाँ चलने से पहले जान ले कि बाबा का असली नाम नीम करौली नही “लक्ष्मीनारायण शर्मा” था। वैराग के दिनों में देश भ्रमण के दौरान वे जिला फर्रुखाबाद के गाँव नीब करौरी पहुँचे। ग्रामवासी चाहते थे कि बाबा यहीं रहें। उन्होंने उनकी साधना की सुविधा के लिए जमीन के नीचे एक गुफा बना दी। बाद के बरसो में बाबा ने इस गुफा की ऊपरी भूमि पर हनुमान मन्दिर बनवाया जिसकी प्रतिष्ठा में उन्होंने एक महीने का महायज्ञ भी किया। लक्ष्मीनारायण अब, ‘लछमन दास बाबा’ बन गए थे और उनके आराध्य पवन पुत्र हनुमान थे। कुछ लोग यह भी कहते है कि वे हनुमान जी के अवतार थे या हैं।  


इस “नीब करौरी” गाँव में अठारह वर्ष रहने के बाद बाबा ने इस गाँव को हमेशा के लिए त्याग दिया पर इसके नाम को स्वय धारण कर लिया। तब से इन्हें नीम करौली बाबा कहा जाने लगा। 


कुछ लोग कहते है कि यही वह नीम करौली स्टेशन था जहाँ बाबा ने ट्रेन रोक दी थी और इसी कारण उन्हें नीम करौली कहा जाने लगा। 


सच्चाई जो हो पर अब नीम करौली बाबा भ्रमण करने के दौरान उत्तराखंड के कैंची धाम पहुँचे। 

कुमाऊं की पहाड़ियों के गर्भ में स्थित यह स्थान उन्हें इतना भाया की यही रम गए और यहाँ कैंची धाम की स्थापना की। उनका यह आश्रम अपने नाम के अनुरूप दो पहाड़ियों के बीच स्थित है जो रूप में कैंची जैसी आकार बनाती है। 


बाबा के बारे में पहली बार मैंने किसी अख़बार में पढ़ा था। इनके चमत्कार की कहानी छपी थी, कि कैसे इन्होंने ट्रेन को रोक दिया था। बाल मन बड़ा चकित हुआ और सोचने लगा कि बाबा ने यह कैसे किया होगा ? उस वक्त कई कल्पनाएँ उपजी मन में…


फिर कई सालों बाद फेसबुक के सीईओ मार्क जुकरबर्ग जब कैंची धाम आए तो मालूम हुआ कि यहाँ कभी एप्पल के पूर्व सीईओ स्टीव जॉब्स भी आ चुके हैं। कई और दूसरे लोग भी पर मेरी उत्सुकता उनके ट्रेन रोकने और उनके काले कम्बल में ही रही। 


अब यह नियति ही कहिए कि दिल्ली में रहते हुए भी कभी नैनीताल जाना ना हो पाया और ना जा पायी कैंची धाम। 


ख़ैर हम जब कैंची धाम पहुँचे, संध्या आरती हो रही थी। इससे पहले जिसने मंदिर में प्रवेश पा लीया उसने पा लिया था। मंदिर शाम के सात बजे तक ही खुला रहता है। हम पाँच -सात मिनट देरी से पहुँचे थे। कुछ लोग गेट से ही प्रणाम कर लौट रहे थे। तो कुछ सामने नदी को निहार रहे थे, तस्वीरें ले रहे थे।  हमें मंदिर की तरफ़ जाते देख एक व्यक्ति ने कहा, “मंदिर बंद हो गया है।”

यह सुन कर मैं निराश हो गई। भाई ने संतावना दी, “कोई बात नही यही से प्रणाम कर लो। अब क्या कर सकतें हैं।” 


गेट के पास से प्रणाम करते हुए मैं मन ही मन सोच रही थी, “ ओह, टी-गार्डेन बेकार ही गई। क्या हनुमान जी, यहाँ तक आ कर भी दर्शन नही हो पाएगा…”


तभी मंदिर का गार्ड घूमते हुए गेट तक आया। मैंने बेवक़ूफ़ सा सवाल किया, “मंदिर बंद हो गया है क्या?”


उसने कहा, “ रुको मैं साइड का गेट खोल देता हूँ पर जल्दी जल्दी भीतर घुसो वरना और लोगों को भी भीतर लेना होगा। मंदिर बंद हो चुका है।”


आप अंदाज़ा नही लगा सकते उस वक्त मेरी ख़ुशी का… मैं दौड़ कर शतेश और भाई की पत्नी को बुलाती हूँ जो प्रणाम कर मंदिर के पास वाली नदी को निहार रहे थे। भाई बग़ल की बेंच पर बैठा कुछ मनन कर रहा था, पूछ बैठा क्या हुआ ? 


जल्दी चलो जल्दी, वे हमारे लिए गेट खोल रहे हैं। तभी गार्ड ने आवाज़ दी, “जल्दी करो जल्दी” और फटाफट दर्शन करके वापस आ जाओ। हाँ भीतर फोटो लेना मना है। उसे धन्यवाद करते हुए फटाफट हम भीतर घुसे। 


कैंची धाम के प्रांगण में हनुमान जी की प्रतिमा के आगे आरती हो रही थी। थोड़ी देर रुक कर वहाँ प्रणाम किया और गार्ड के आदेशानुसार जल्दी ही नीम करौली बाबा, शिव परिवार, राम दरबार, सिद्धि माता और बाबा के ध्यान स्थान का दर्शन किया। हाँ, मंदिर में प्रवेश करते ही वैष्णो देवी का स्थान है जहाँ कीर्तन हो रहा था। 


वापस लौटते वक्त भी हमने गार्ड को कई बार थैंक यू कहा। दिन के वक्त आओ तो यहाँ समय बिता सकते हो के साथ उसने गेट बंद कर लिया। पर अब जाने कब जाना होगा… 


दो और छोटे क़िस्से इस धाम से जुड़े रह गए है जो अगली बार लिखूँगी। फ़िलहाल कैंची धाम आश्रम जाना चाहे तो नैनीताल पहुँचे। शहर से भवाली क्षेत्र में 18 किमी दूर यह स्थित है। यहाँ आप ड्राइव कर या टैक्सी कैब से जा सकते है। 


Thursday 17 November 2022

बहरूपिया !

इंसान की शक्ल में बहरूपिया तो खूब दिख जाते है पर रूप धरे बहरूपिया को देखे ज़माना हो गया। इनसे बचपन की कई यादें जुड़ी है जो बीते दिनों एक दोस्त की भेजी तस्वीर देख कर पुलग उठी। 

याद आता है बच्चों का चिल्लाना - अरे ! बहरूपिया आया है-बहरूपिया आया है… इनके पीछे बच्चों की एक छोटी सी झुंड चकित-हर्षित भाव से मंडराती रहती। ठीक से याद नही पर शायद मंगलवार और शनिवार को ये रूप धर के आते। हम बच्चों को इंतज़ार होता कि आज ये क्या रूप धरेंगे…मालूम होता ये इंसान है फिर भी भगवान का रूप धरे इन बहरूपिये को देख कई बार लोग या बच्चे हाथ जोड़ लेते। ख़ास कर बजरंग बली का रूप तो खूब जमता। 

याद आती है वह शाम जब तर-तरकारी ख़रीदने  बाज़ार जाती। कभी हनुमान तो कभी राम बन ये, एक थाली लिए दुकान-दुकान घुम रहे होते। कुछ दुकानदार इन्हें पैसे देते तो कुछ बिस्कुट-नमकीन-भुजा या मिठाई। इसके बाद बाज़ार से सटे हमारी कोलोनी का नम्बर आता। घर -घर से कभी आटा तो कभी चावल मिल जाता इन्हें। हाँ, बाद के दिनों में आटा-चावल की महंगाई पर इनकी कला हल्की पड़ी और घर के लोग भी एक-दो रुपया दे कर विदा कर देते। जाने इनके मन में उस पल क्या भाव होता पर इनके चेहरे पर उस वक्त उस धरे रुप का ही भाव होता। मर्यादापुरुषोत्तम राम थोड़ा सा आटा देख मुस्कुरा रहे होते… राम भक्त हनुमान एक सिक्का पा कर, जय श्री राम-जय श्री राम पुकार रहे होते… माता काली बच्चों के पीछे पड़ने पर क्रोध में जीभ लपलपा रही होती… दो पैरों वाला शेर बच्चों को देखते चार पैर का बन दौड़ा मारता… और फिर एक दिन उसने धरा किसी सती का रूप… लोग इसके रूप में उतनी रुचि नही दिखा रहे थे। कुछ  दुकानदार पूछ बैठे, “रे आज का बनल बाड़ीस ?”

“सती अनुसुइया”

लोग हँस रहे थे… पर बहरूपिया अपना खेल दिखाता रहा… ठेला गाड़ी खिंचता रहा… महिलाओं ने उस दिन अच्छी दान-दक्षिणा दी। यह उस फ़िल्म का असर था जो पिछले एक महीना से अभिषेक टाकीज़ में चल रहा था। 

“सती अनुसुइया”

धीरे-धीरे रूप धरने वाले बहुरुपिया मरने लगे… आम आदमी उनकी जगह लेने लगा। 




Tuesday 8 November 2022

मुझे चाँद चाहिए !!

मुझे चाँद चाहिए उन पाँच किताबों में से एक है जिन्हें मैंने बीते दिनों एक साथ पढ़ना शुरू किया था। यह किताब मैं ऑनलाइन पढ़ रही थी। 516 पृष्ठ की किताब कई बार ऑनलाइन पढ़ना आँखों को तकलीफ़ देता इस वजह से दूसरी एक किताब पेपर बैक की साथ-साथ पढ़ रही थी। 
इस किताब के लेखक सुरेंद्र वर्मा अपनी इस किताब की शुरुवात प्रसिद्ध रोमन सम्राट जूलियस सीजर यानि कालिगुला की पंक्तियों से की है। 

यह किताब वर्षा यानि सिलबिल की कहानी है जो महत्वकांक्षी और थोड़ी विद्रोही स्वभाव की है। इस किताब की सबसे अच्छी बात मुझे जो लगी वही इनके महिला पात्रों की मित्रता। हमेशा पुरुष मित्रता पर क़िस्से लिखी जाते हैं, फ़िल्में बनती है। लेकिन इस बार इस किताब के ज़रिए दिव्या और वर्षा की मित्रता पढ़ने को मिली। एक मित्र तो ऐसा होना ही चाहिए। और मुझे अफ़सोस है कि इस कदर हमराज़ मेरा कोई नही हो पाया…

इस किताब में एक और मित्रता की कड़ी है। वर्षा और शिवानी। दोनों ही हर्ष से प्रेम करतीं है और प्रेम में उसकी बातें कुछ यूँ होती है, 
वर्षा उदास-सी मुस्कुराई, 'मैंने तकिए के नीचे हर्ष की तसवीर रखी है। बिस्तर पर जाने के बाद उसी से उल्टी-सीधी बातें करती हूँ। मैंने प्रेम की निजी परिभाषा बनाई है। बताऊँ?'

'हूँ?' शिवानी कौतुक से मुस्कुराई।

'जब किसी की स्मृति नींद ला देने में समर्थ होने लगे तो इसे व्यावहारिक रूप से प्रेम कहा जा सकता है।'

शिवानी उदास चपलता से मुस्कुराई - 'और जब किसी की स्मृति से नींद उड़ने लगे तो, क्या यह भी प्रेम की उतनी ही सार्थक परिभाषा नहीं होगी...?

प्रेम में डूबी दो स्त्रियाँ, प्रेम की ही वजह से एक दूसरे की सखी बन जाती है यह जानते हुए भी कि दोनों का प्रेमी एक ही है। यह मुझे स्वीकारने में वक्त लगा पर लम्बी कहानी है तार ऐसे लेखक ने जोड़े की बाद में ठीक ही लगा। 

इस किताब में एक और अलग सी बात है। लोग वर्षा को समझने में हर्ष को भूल जाते है पर इस किताब में हर्ष ही है जो वर्षा के प्रति एकनिष्ठ है। उसे कई मौक़े मिलते है पर वह ना अपनी कला से समझौता करता है ना अपने प्रेम से। 

वही वर्षा का किरदार मानसिक रूप से मज़बूत होते हुए भी भावनात्मक रूप से कई बार कमजोर पड़ जाता है। चाहे कमल को लेकर उसका पहला प्यार हो या फिर हर्ष, हर्ष से कुछ दूरी हुई तो सिद्धार्थ से प्रेम या कह सकते है कुछ समय के लिए भावनात्मक लगाव। 

वर्षा का मानना है कि चेखव को भी कभी सम्मानित नही किया गया था और वह इस मामले में उनसे अधिक भाग्यशाली थी। इस तरह यह किताब नकारत्मकता में भी उम्मीद और साहस की तरह लिखा गया है।