Tuesday, 8 November 2022

मुझे चाँद चाहिए !!

मुझे चाँद चाहिए उन पाँच किताबों में से एक है जिन्हें मैंने बीते दिनों एक साथ पढ़ना शुरू किया था। यह किताब मैं ऑनलाइन पढ़ रही थी। 516 पृष्ठ की किताब कई बार ऑनलाइन पढ़ना आँखों को तकलीफ़ देता इस वजह से दूसरी एक किताब पेपर बैक की साथ-साथ पढ़ रही थी। 
इस किताब के लेखक सुरेंद्र वर्मा अपनी इस किताब की शुरुवात प्रसिद्ध रोमन सम्राट जूलियस सीजर यानि कालिगुला की पंक्तियों से की है। 

यह किताब वर्षा यानि सिलबिल की कहानी है जो महत्वकांक्षी और थोड़ी विद्रोही स्वभाव की है। इस किताब की सबसे अच्छी बात मुझे जो लगी वही इनके महिला पात्रों की मित्रता। हमेशा पुरुष मित्रता पर क़िस्से लिखी जाते हैं, फ़िल्में बनती है। लेकिन इस बार इस किताब के ज़रिए दिव्या और वर्षा की मित्रता पढ़ने को मिली। एक मित्र तो ऐसा होना ही चाहिए। और मुझे अफ़सोस है कि इस कदर हमराज़ मेरा कोई नही हो पाया…

इस किताब में एक और मित्रता की कड़ी है। वर्षा और शिवानी। दोनों ही हर्ष से प्रेम करतीं है और प्रेम में उसकी बातें कुछ यूँ होती है, 
वर्षा उदास-सी मुस्कुराई, 'मैंने तकिए के नीचे हर्ष की तसवीर रखी है। बिस्तर पर जाने के बाद उसी से उल्टी-सीधी बातें करती हूँ। मैंने प्रेम की निजी परिभाषा बनाई है। बताऊँ?'

'हूँ?' शिवानी कौतुक से मुस्कुराई।

'जब किसी की स्मृति नींद ला देने में समर्थ होने लगे तो इसे व्यावहारिक रूप से प्रेम कहा जा सकता है।'

शिवानी उदास चपलता से मुस्कुराई - 'और जब किसी की स्मृति से नींद उड़ने लगे तो, क्या यह भी प्रेम की उतनी ही सार्थक परिभाषा नहीं होगी...?

प्रेम में डूबी दो स्त्रियाँ, प्रेम की ही वजह से एक दूसरे की सखी बन जाती है यह जानते हुए भी कि दोनों का प्रेमी एक ही है। यह मुझे स्वीकारने में वक्त लगा पर लम्बी कहानी है तार ऐसे लेखक ने जोड़े की बाद में ठीक ही लगा। 

इस किताब में एक और अलग सी बात है। लोग वर्षा को समझने में हर्ष को भूल जाते है पर इस किताब में हर्ष ही है जो वर्षा के प्रति एकनिष्ठ है। उसे कई मौक़े मिलते है पर वह ना अपनी कला से समझौता करता है ना अपने प्रेम से। 

वही वर्षा का किरदार मानसिक रूप से मज़बूत होते हुए भी भावनात्मक रूप से कई बार कमजोर पड़ जाता है। चाहे कमल को लेकर उसका पहला प्यार हो या फिर हर्ष, हर्ष से कुछ दूरी हुई तो सिद्धार्थ से प्रेम या कह सकते है कुछ समय के लिए भावनात्मक लगाव। 

वर्षा का मानना है कि चेखव को भी कभी सम्मानित नही किया गया था और वह इस मामले में उनसे अधिक भाग्यशाली थी। इस तरह यह किताब नकारत्मकता में भी उम्मीद और साहस की तरह लिखा गया है। 




 

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