पिछले पोस्ट में हमलोग, “न्याय के देवता” के दर्शन को गए थे। आज मैं आपको लेकर चलती हूँ, “कैंची धाम” नीम करौली बाबा के आश्रम।
यहाँ चलने से पहले जान ले कि बाबा का असली नाम नीम करौली नही “लक्ष्मीनारायण शर्मा” था। वैराग के दिनों में देश भ्रमण के दौरान वे जिला फर्रुखाबाद के गाँव नीब करौरी पहुँचे। ग्रामवासी चाहते थे कि बाबा यहीं रहें। उन्होंने उनकी साधना की सुविधा के लिए जमीन के नीचे एक गुफा बना दी। बाद के बरसो में बाबा ने इस गुफा की ऊपरी भूमि पर हनुमान मन्दिर बनवाया जिसकी प्रतिष्ठा में उन्होंने एक महीने का महायज्ञ भी किया। लक्ष्मीनारायण अब, ‘लछमन दास बाबा’ बन गए थे और उनके आराध्य पवन पुत्र हनुमान थे। कुछ लोग यह भी कहते है कि वे हनुमान जी के अवतार थे या हैं।
इस “नीब करौरी” गाँव में अठारह वर्ष रहने के बाद बाबा ने इस गाँव को हमेशा के लिए त्याग दिया पर इसके नाम को स्वय धारण कर लिया। तब से इन्हें नीम करौली बाबा कहा जाने लगा।
कुछ लोग कहते है कि यही वह नीम करौली स्टेशन था जहाँ बाबा ने ट्रेन रोक दी थी और इसी कारण उन्हें नीम करौली कहा जाने लगा।
सच्चाई जो हो पर अब नीम करौली बाबा भ्रमण करने के दौरान उत्तराखंड के कैंची धाम पहुँचे।
कुमाऊं की पहाड़ियों के गर्भ में स्थित यह स्थान उन्हें इतना भाया की यही रम गए और यहाँ कैंची धाम की स्थापना की। उनका यह आश्रम अपने नाम के अनुरूप दो पहाड़ियों के बीच स्थित है जो रूप में कैंची जैसी आकार बनाती है।
बाबा के बारे में पहली बार मैंने किसी अख़बार में पढ़ा था। इनके चमत्कार की कहानी छपी थी, कि कैसे इन्होंने ट्रेन को रोक दिया था। बाल मन बड़ा चकित हुआ और सोचने लगा कि बाबा ने यह कैसे किया होगा ? उस वक्त कई कल्पनाएँ उपजी मन में…
फिर कई सालों बाद फेसबुक के सीईओ मार्क जुकरबर्ग जब कैंची धाम आए तो मालूम हुआ कि यहाँ कभी एप्पल के पूर्व सीईओ स्टीव जॉब्स भी आ चुके हैं। कई और दूसरे लोग भी पर मेरी उत्सुकता उनके ट्रेन रोकने और उनके काले कम्बल में ही रही।
अब यह नियति ही कहिए कि दिल्ली में रहते हुए भी कभी नैनीताल जाना ना हो पाया और ना जा पायी कैंची धाम।
ख़ैर हम जब कैंची धाम पहुँचे, संध्या आरती हो रही थी। इससे पहले जिसने मंदिर में प्रवेश पा लीया उसने पा लिया था। मंदिर शाम के सात बजे तक ही खुला रहता है। हम पाँच -सात मिनट देरी से पहुँचे थे। कुछ लोग गेट से ही प्रणाम कर लौट रहे थे। तो कुछ सामने नदी को निहार रहे थे, तस्वीरें ले रहे थे। हमें मंदिर की तरफ़ जाते देख एक व्यक्ति ने कहा, “मंदिर बंद हो गया है।”
यह सुन कर मैं निराश हो गई। भाई ने संतावना दी, “कोई बात नही यही से प्रणाम कर लो। अब क्या कर सकतें हैं।”
गेट के पास से प्रणाम करते हुए मैं मन ही मन सोच रही थी, “ ओह, टी-गार्डेन बेकार ही गई। क्या हनुमान जी, यहाँ तक आ कर भी दर्शन नही हो पाएगा…”
तभी मंदिर का गार्ड घूमते हुए गेट तक आया। मैंने बेवक़ूफ़ सा सवाल किया, “मंदिर बंद हो गया है क्या?”
उसने कहा, “ रुको मैं साइड का गेट खोल देता हूँ पर जल्दी जल्दी भीतर घुसो वरना और लोगों को भी भीतर लेना होगा। मंदिर बंद हो चुका है।”
आप अंदाज़ा नही लगा सकते उस वक्त मेरी ख़ुशी का… मैं दौड़ कर शतेश और भाई की पत्नी को बुलाती हूँ जो प्रणाम कर मंदिर के पास वाली नदी को निहार रहे थे। भाई बग़ल की बेंच पर बैठा कुछ मनन कर रहा था, पूछ बैठा क्या हुआ ?
जल्दी चलो जल्दी, वे हमारे लिए गेट खोल रहे हैं। तभी गार्ड ने आवाज़ दी, “जल्दी करो जल्दी” और फटाफट दर्शन करके वापस आ जाओ। हाँ भीतर फोटो लेना मना है। उसे धन्यवाद करते हुए फटाफट हम भीतर घुसे।
कैंची धाम के प्रांगण में हनुमान जी की प्रतिमा के आगे आरती हो रही थी। थोड़ी देर रुक कर वहाँ प्रणाम किया और गार्ड के आदेशानुसार जल्दी ही नीम करौली बाबा, शिव परिवार, राम दरबार, सिद्धि माता और बाबा के ध्यान स्थान का दर्शन किया। हाँ, मंदिर में प्रवेश करते ही वैष्णो देवी का स्थान है जहाँ कीर्तन हो रहा था।
वापस लौटते वक्त भी हमने गार्ड को कई बार थैंक यू कहा। दिन के वक्त आओ तो यहाँ समय बिता सकते हो के साथ उसने गेट बंद कर लिया। पर अब जाने कब जाना होगा…
दो और छोटे क़िस्से इस धाम से जुड़े रह गए है जो अगली बार लिखूँगी। फ़िलहाल कैंची धाम आश्रम जाना चाहे तो नैनीताल पहुँचे। शहर से भवाली क्षेत्र में 18 किमी दूर यह स्थित है। यहाँ आप ड्राइव कर या टैक्सी कैब से जा सकते है।
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