Tuesday 30 June 2015

amazing Niagara Fall , hum panch or majedar safar part -1

नियाग्रा फॉल की यात्रा से पहले मैं आपलोगो को नियाग्रा फॉल के बारे में बता दूँ।नियाग्रा फॉल दुनिया का सबसे तेज गिरने वाला जलप्रपात है।ये तीन जलप्रपात के मिलने से बना है।ये तीन कमशः हॉर्सशू फॉल ,अमेरिकन फॉल और ब्राइडल वैल फॉल है।नियाग्रा फॉल के एक तरफ न्यू यॉर्क (यूनाइटेड स्टेट )और दूसरी तरफ ओंटारियो (कनाडा) है। एक तरह से ये एक इंटरनेशनल बॉडर का काम करता है।कनाडा और नियाग्रा फॉल  न्यू यॉर्क को एक रेनबो ब्रिज जोड़ती है।अगर आपके पास वैलिड वीजा है तो आप कनाडा भी जा सकते है :) अब आती हूँ मैं अपनी यात्रा पर।
नियाग्रा फॉल जाने के लिए मैं और शतेश काफी दिनों सोच रहे थे।पर किसी न किसी वजह से जाना रह जाता था।वैसे तो नियाग्रा फॉल सालो खुला रहता है।पर ऑक्टूबर से अप्रैल तक एक तरह से बंद ही रहता है।कारण भयंकर ठण्ड और ठण्ड की वजह से जलप्रपात का जम जाना।ऐसे में आपको सिर्फ बर्फ की चादर दिखेगी।वो भी कम मनोरम नही होगा ,लेकिन कौन ठण्ड  में जाये :) इस बार हमने प्लान बनाया पर, जब भी जाने का सोचा बारिश का प्रिडिक्शन।आखिर शतेश ने ऐसे ही बातो -बातो में वहां के लिए होटल बुक कर ली।जब हॉटेल बुक की थी ,वहां बारिश का प्रिडिक्शन नही दिखा। मतलब बारिश नही होगी आराम से जा सकते है। हमारे साथ शतेश के कॉलेज फ्रेंड मिस्टर पाण्डेय, उनकी वाइफ तिवारी जी और उनका 3 साल का बेटा ,प्यारा आरव भी जा रहे थे।अब आपलोग कंफ्यूज होंगे पाण्डेय की वाइफ तिवारी कैसे ?वो तो मिसेस पाण्डेय हुई ना ? कही लव मैरिज  तो नही ?अरे दोस्तों लव तो है ,पर मैरिज ऑरेन्ज हुई थी।ओ हो तो पहले प्यार फिर घरवालो ने ऑरेन्ज मैरिज करवा दी थी ?अरे नही बात ये है कि ,पाण्डेय ,तिवारी एक ही जाती में आते है ,सिर्फ सरनेम (उपनाम ) अलग -अलग है। हुआ यूँ कि मिस तिवारी ने शादी के बाद अपना सरनेम बदला नही।जैसे की मैंने नही बदला। वरना तो आज कल शादी से पहले लोग तपस्या चौबे होते है ,शादी के बाद तपस्या चौबे शतेश शुभ्रांशु उपध्याय। उफ़ नाम लेने में ही दम फूल जाये। बात करनेवाला भूल ही जाये की क्या बात करनी है :P इसका ब्लॉग के शीर्षक में मैंने   " हम पांच "  का जिक्र किया है। अगर आप मे से किसी ने भी हम पांच सीरियल देखि हो तो उसकी कॉमेडी कौन भूल सकता है ?हम पांच भी वैसे ही थे।रास्ते भर हंसी मजाक ,आरव की प्यारी शैतानी आपको आगे मालूम होगी।प्लान के मुताबिक हमलोग को सुबह 7 :30  मिस्टर पाण्डेय के यहाँ पहुँचना था।फिर वहाँ से नाश्ता करके नियाग्रा फॉल निकलना था। हमलोग उठे ही लेट।कभी भी आलसी लोगो को सुबह जाने का प्लान नही बनाना चाहिए :) मिस्टर पाण्डेय का कॉल 7 ओ क्लॉक आया। हमलोग तभी रेडी ही हो रहे थे। मैंने उनको कहा भईया अभी आने में 45 मिनट लगेंगे। हमलोग फटाफट तैयार हुऐ और निकल पड़े घर से। जब हमलोग मिस्टर पाण्डेय के यहाँ पहुंचे आरव गेट पे ही खड़ा था।मुझे देख खुश हो के बोला पस्या (तपस्या ) ऑन्टी देखो मैंने नए कपडे पहने है। मुझे इतनी ख़ुशी हुए बेचारा सा बच्चा मुझसे कम से काम दो वीक बाद मिल रहा है,और मेरा इतना कठिन नाम (उसके लिए ) उसने याद रखा है।मेरी गोद में आके अपनी थोड़ी सी तोतली जुबान में शतेश को हाय हाउ आर यू पूछता है।मैं  खुद को रोक नही पाती और दो -चार चूमियाँ जड़  देती हूँ।मुझे मिसेस पाण्डेय कम तिवारी जी मुझे बाहर जाती हुई दिखी थी ,पर मैं आरव के साथ मस्त थी ,तो बस थोड़ा हाय -हेलो हुआ।वो भी बची -खुची पैकिंग में लग गई।मिस्टर पाण्डेय ने नाश्ता शुरू करने को कहा।हालंकि हमलोग घर से थोड़ा खा के निकले थे ,क्योंकि शतेश महाराज के अनुसार सुबह -सुबह खाली पेट कही नही जाते।सामने पूरी -छोले देख कर हमने फिर से खा लिया। उसपे सोने पे सुहागा चाय भी मिल गई। मिस्टर पाण्डेय ने कहा जब तक मैं नास्ता ख़त्म करती हूँ ,वो शतेश को अपने एक दोस्त से मिलवा लाते है। उनका वो दोस्त छपरा का रहने वाला है ,मिस्टर शतेश उससे मिलने को फटाफट तैयार हो गए ,कारण शतेश जी भी छपरा के है।दुनिया के किसी भी कोने में चले जाओ पर छेत्रवाद कम नही होता ,भारतवाशियों का।वो अलग बात है ,सारे उत्तर भारतीय दोस्त बन जाते है ,वरना दक्छिन वालो या बंगाल वालो से आपकी दोस्ती बस काम की होती है।सबसे बड़ा कारण इसका लैंग्वेज है।मैंने नास्ता खत्म कर लिया था ,पर शतेश बाबू और मिस्टर पाण्डेय जी का कोई अता -पता नही।मिसेस पाण्डेय कम तिवारी कहती है ,रुको मै बुला लाती हूँ उनलोगो को ,वरना लेट हो जायेंगे।इनलोगो के आने के बाद हमलोग निकल पड़े अपनी यात्रा की ओर।इतना अच्छा मौसम ,पेट भरा हुआ ,साथ में मजेदार साथी और एक प्यारा बच्चा और क्या चाहिए था ? बस भगवान से यही प्रार्थना थी ,की ज्यादा बारिश न हो।रास्ते भर मैं और मिसेस पाण्डेय कम तिवारी ,अरे बस करो मिसेस पाण्डेय तिवारी पका डाला तपस्या तुमने तो उनका नाम ही बता दो क्या आफत आ जायेगी ?माफ़ी दोस्तों , अंकिता नाम है, मिसेस पाण्डेय कम तिवारी का।तो मैं और अंकिता रास्ते भर मजेदार बाते करते रहे। कुछ अपनी शादी ,कुछ अपने घरवालो की ,कुछ अपने भाई की ,कुछ कॉलेज की जॉब की। ऐसा लग रहा था, दो सखी अपना दुःख -सुख बाँट रही हो।वही दूसरी ओर शतेश और मिस्टर पाण्डेय अपने कॉलेज की दुनिया में खोये हुए थे। आरव बीच -बीच में पस्या ऑन्टी को पुकार रहा था।न्यू जर्सी से नियाग्रा 6 घंटे का सफर है।जाते वक़्त हमने गाने लगाये थे ,की सुनते हुए जायेंगे ,पर बाते ख़त्म हो तो कोई गाना सुने। इसलिए गाने को बंद  गया।रास्ते में आरव को बाथरूम जाना था, और २ बज जाये थे। हमलोगो ने सोचा कहि गाड़ी रोक के खा भी लेंगे और आरव का काम भी हो जायेगा।आरव को पिज़्ज़ा खाना था ,बस क्या था मैंने भी सपोर्ट किया।गाड़ी पिज़्ज़ा हट के सामने रुकी।हमलोग शॉप के अंदर गए।एक बहुत ही मोटी औरत हमारा आर्डर लेने आई।उसको देख पाण्डेय जी कहते है ,सारा पिज़्ज़ा यही तो नही खा जाती।मेरी तो हंसी रुकने का नाम नही ले रही थी।बस ये सिचुएशनल मज़ाक था, कोई इससे दिल पे न ले।खाने के बाद फिर से शुरू हुआ मजेदार सफर। 

Wednesday 24 June 2015

Anna Karenina by Leo Tolstoy ( pyar ,dhokha ,ghrina,or maut ) part-2

कहानी आगे बढ़ती है। अन्ना वापस अपने शहर लौट आती है।वहाँ सब उससे नफरत करने लगते है। कोई उससे बात नही करता ,उसे अपने घर नही बुलाता।वो अपने पुराने दोस्तों से मिलने भी जाती है ,वहां उसका मजाक बनाया जाता है।वही दूसरी और सब व्रोन्स्की से प्यार से मिल रहे है।उससे समझ नही आता कि ,क्यों ये दोहरा व्यवहार? व्रोन्स्की भी उसके गुनाह में साझीदार है ,पर उसे सम्मान और मेरा अपमान क्यों ? ये 19 सताब्दी के रूस को दिखा रहा है ,जहां उस वक़्त महिला और पुरुष के लिए अलग -अलग नियम थे। खैर अन्ना अपनी पुरानी नौकरानी की मदद से अपने बेटे से मिलती है।उसे मालूम होता है, उसके बेटे को उसके पति और दोस्तों ने बताया होता है ,कि उसकी माँ मर गई। अन्ना को सामने देख उसका बेटा खुशी से फूले नही समाता है। अन्ना भी सोचती है ,ठीक ही किया उसके पति ने कि उसके बेटे को उसके मरने की कहानी कही। अगर उसे मालूम होता उसकी माँ अपने प्रेमी के साथ भाग गई है ,तो उसके बाल मन पे क्या असर होता ? इधर लेविन को मालूम होता है कि ,केटी की शादी व्रोन्स्की से नही हुई। केटी को अपनी गलती का अहसास है ,तो वो उससे माफ़ कर देता है। केटी से शादी की बात फिर से करता है। इसबार केटी की माँ भी मना नही करती है। लेविन केटी से शादी कर लेता है। केटी को भगवान में बहुत यकीन होता है।वही लेविन कभी चर्च गया ही नही होता है।केटी से शादी की खुशी में पहली बार चर्च जाता है, और फादर को अपनी दुबिधा बताता है। फादर उससे कहते है ,कोई बात नही भगवान सब को माफ़ कर देते है।केटी से शादी के बाद लेविन सोचता है ,शहर में रहने लगे। केटी को गाँव में अच्छा नही लगेगा। पर केटी खुद ही मना कर देती है। उससे मालूम है ,लेविन को अपनी जड़ो से कितना प्यार है। शहर रह कर वो खुश नही रह पायेगा।लेविन भी केटी के इस निर्णय से बहुत खुश होता है ,वो सोचता है कि ,वो कितना भाग्यवान है जो केटी उससे मिली।गाँव जाने के बाद केटी और लेविन में थोड़े झगडे होने लगे। केटी को लेविन की पुरानी नौकरानी नही पसंद थी।लेविन उसे हटाना नही चाहता था। उससे काफी समय से लेविन की बहुत देख -भाल की थी एक माँ की तरह।केटी को लेविन के गाँव के घर में भी कुछ बदलाव करने थे। लेविन इसके लिए राजी नही हो रहा था।शादी के 3 महीने उनके लिए काफी कठिन थे।लेविन ने जैसी कल्पना की थी केटी के साथ ,वैसा कुछ भी नही हो रहा था।केटी को भी लगता था, लेविन उससे समझ नही पा रहा है।कुछ महीनो बाद लेविन के भाई की तबियत बहुत ख़राब हो जाती है।लेविन का भाई किसी दूसरे शहर में रहता  था।उसकी चिठ्ठी पाकर लेविन उससे मिलने की तैयारी करने लगता है। केटी भी साथ जाने की जिद्द करती है। लेविन उससे मना करता है।लेविन जनता है उसका भाई शराबी ,अकड़ू ,गुसैल है। वो जैसे -तैसे अपना गुजरा कर रहा है।लेविन ने उसे कई बार मदद की भी कोशिश की पर उसके भाई ने मना कर दिया। ऐसी हालत में लेविन नही चाहता था,कि केटी उससे मिले। उसके भाई को बुरा लग सकता था।अपनी गरीबी केटी के सामने प्रकट होते देख। पर केटी कहाँ मानने वाली थी ,उसने रोना शुरू कर दिया। लेविन को गुस्सा भी आ रहा था,पर उसे रोता देख बोला तुम भी चल लो।दोनों भाई के पास पहुंचे।उसके भाई ने एक बहुत ही छोटा कमरा किराये पे लिया हुआ था। कमरे में अँधेरा ,और दवाओ की बदबू आरही थी। उसका भाई एक गंदे कपडे में मुर्दे की तरह लिपटा हुआ था। शरीर पे सिर्फ पीली आँखे दिख रही थी। उसकी ऐसी हालत देख लेविन काँप उठा।केटी को देख उसका भाई खुश हो गया कि ,चलो लेविन ने शादी तो की। वो उनकी शादी में नही गया था। केटी से उसकी ऐसी हालत देखी नही गई।लेविन के मना करने पर भी उसने कमरे की सफाई की ,कैंडल जलाये ,लेविन की मदद से उसके भाई के कपडे बदले। ये सब देख लेविन और उसके भाई के आँखों में आंशु आ गये। दोनों को मालूम था कि वो चंद घंटो का मेहमान है।फिर केटी ये सब क्यों कर रही है ? लेविन केटी से पूछता है ,तो वो कहती है ,मुझे भगवान में विश्वास है। हो सकता है तुम्हारा भाई बच जाये। नही भी बचेगा तो जीवन के कुछ आखिरी क्षण तो अपने परिवार के साथ सुकून से बिताये। लेविन अपनी सारी गलतियों के लिए केटी से माफ़ी मांगता है। केटी भी अपनी नादानियों के लिए लेविन से माफ़ी मांगती है।कुछ घंटो बाद लेविन के भाई की मौत हो जाती है। लेविन पहली बार किसी को सामने मरता हुआ देख ,अंदर से काँप जाता है।वो समझ नही पता है कि मौत क्या ,क्यों है और क्यों होती है ? लेविन केटी के साथ अपने घर वापस आ जाता है।लेविन अपने काम में फिर से लग जाता।कुछ दिनों बाद उसे मालूम होता है ,केटी माँ बनने वाली होती है।लेविन की लाइफ में सब ठीक चल रहा होता है। दूसरी तरफ अन्ना को व्रोन्स्की से चीड़ होने लगती है। उससे लगता है ,व्रोन्स्की उसको घर पे छोड़ कर खुद दोस्तों के साथ मौज -मस्ती करता है। अन्ना और व्रोन्स्की में रोज झगडे लगते है। अन्ना जल्द से जल्द व्रोन्स्की से शादी करना चाहती है। मगर तलाक न होने की वजह से वो शादी कर नही पाती है। व्रोन्स्की भी अन्ना को समझता है तलाक के लिए ,पर अन्ना तलाक लेना नही चाहती है। वो अपने बेटे को खोना नही चाहती है। व्रोन्स्की भी मिल्ट्री बीच  में अन्ना की वजह से छोड़ चूका होता है।वो भी काम के सिलसिले में ज्यादातर बाहर रहता है,ताकि वो ,अन्ना और उसकी बेटी ठीक से रह सके। अन्ना को उसका अकेले जाना बिल्कुल पसंद नही। वो पुरे दिन घर में बोर होती रहती है।अपनी परेशानियों और लोगो कि तानो की वजह से अन्ना नशा करने लगती है। उसे लगता है व्रोन्स्की की माँ व्रोन्स्की को जायदात के लिए नही ,बल्कि उसकी शादी कही और करने के लिए बुलाती रहती है। अन्ना ने कल्पनाओ की एक दुनिया बना ली होती है। व्रोन्स्की भी उसके शक और लड़ाइयो से परेशान रहने लगा है।अन्ना को लगता है ,व्रोन्स्की का प्यार उसके लिए ख़त्म हो गया है।एक दिन जब व्रोन्स्की अपनी माँ से मिलने गया होता है,अन्ना को लगता है कि व्रोन्स्की उसको धोखा दे रहा है। उससे लगता है, जिसके लिए उसने घर ,पति ,अपने बेटे को छोड़ा वो उस लायक नही।वो जानती है ,की वापस अपने घर जायेगी तो उसका पति उसे माफ़ कर देगा।पर वो जाना नही चाहती। व्रोन्स्की के लिए उसके दिल में आज भी प्यार है।शायद समय के साथ अन्ना का प्यार बढ़ता गया और जिम्मेदारी के बोझ में व्रोन्स्की का उतना ही रह गया जितना पहले था।अन्ना घर से बाहर निकल जाती है। उसे घर में घुटन हो रही है।कई महीनो से उसने व्रोन्स्की ,एक नौकर के अलावा किसी को नही देखा।घर से निकलने के बाद वो सोचती है कहाँ जाये ? वो स्टेशन की तरफ चली जाती है।वहां वो ऐसे ही किसी जगह की टिकेट ले लेती है ,और ट्रैन में सवार हो जाती है।स्टेशन आ जाने पर उतर के वो सोचती है ,की क्या करे अब ,कहाँ जाये ? किसी को जानती भी नही यहाँ।इसी उड़न -बेध में  सोचती है ,उसका मर जाना ही ठीक है।कोई उसके साथ खुश नही ,न वो किसी के साथ खुश है। सामने एक मालगाड़ी आती दिखती है और वो उसके सामने खड़ी हो जाती है।रात के अँधेरे में मालगाड़ी उसे चीरते हुए निकल जाती है।व्रोन्स्की अन्ना के मौत के बाद अपनी बेटी को अन्ना भाई को सौप फिर से मिलेट्री ज्वाइन कर लेता है।वो कही न कही खुद को अन्ना का मौत का दोषी समझता है। वो सोचता है , मिल्ट्री में लड़ते हुए अपने प्राण दे देगा।कम से कम उसका जीवन देश के काम तो आएगा।उधर केटी को लेबरपेन होता है।लेविन उसकी हालत देख घबड़ा जाता है।उसे अपने भाई की मौत याद आ जाती है। वो डर जाता है कि केटी को कुछ हो गया तो ? वो भगवान को याद करता है। डॉक्टर उसको बताता है ,उसे बेटा हुआ है।अपने बच्चे को हाथ में लेकर वो केटी को देखता है।उसे आज समझ आई है अगर जन्म है ,तो मृत्यु निश्चित है।ये प्राकृतिक का नियम है।आज वो पूरी तरह संतुस्ट है।लेविन अपने परिवार के साथ खुश है। 

निष्कर्ष :- अन्ना ने सिर्फ और सिर्फ अपने बारे  में सोचा। उसने सिर्फ प्यार किया ,उसमे विश्वास नही था ,माफ़ी नही थी,जीवन से लगाव नही था।वही लेविन ने प्यार किया , माफ़ी दी ,माफ़ी मांगी ,जीवन समझा।आखिर किसान  जो था। उसका काम धरती में बीज डाल के 
फसल उगना था। लोगो को जीवन देना था। इस कहानी से मुझे यही समझ आता है ,कभी भी स्वार्थी न बने। अपने आस- पास के लोगो के बारे में भी सोचे।एक रिश्ते से कितने लोग जुड़े होते है।अगर आगे बढ़ भी जाते है तो ,विश्वास रखे तभी रिस्ता मजबूत होगा। मैंने कहानी को काफी संक्षेप में लिखा है। इसमें इतनी सारी  भावनाए है कि ,उनको दो पेज में नही लिख सकते।इसी के साथ ख़त्म होती है ,एक उम्द्दा रचना जो लियो टॉलस्टॉय द्वारा लिखी हुई थी। 

Tuesday 23 June 2015

Anna Karenina by Leo Tolstoy ( pyar ,dhokha ,ghrina,or maut ) part-1

अन्ना कैरेनिना "लियो टॉलस्टॉय " की लिखी हुई  मास्टर पीस नॉवेल है।क्यों इस नॉवेल को टॉप टेन में रखा गया, ये तो आपको पढ़ के ही मालूम होगा।आह इसकी जितनी भी तारीफ़ की जाये कम होगी। मैंने टॉलस्टॉय की पहली ही नॉवेल पढ़ी और मुझे उनकी लिखाई से मोहब्बत हो गई।थैंक यू शतेश जो तुमने मुझे ये नॉवेल गिफ्ट किया।ऐसा लगता है सारे पात्र आपके आस -पास मिल जायेंगे।हाँ ये है की ये नॉवेल 817 पेज की है ,तो थोड़ा समय लगता है  पढ़ने में।कई बार तो कहानी इतनी इंट्रेस्टिंग हो जाती है कि ,रात के 3 बजे भी नॉवेल को रखने का मन नही करता।ऐसा लगता है पढ़ते जाये।नॉवेल की शुरुआत ही इतनी इंट्रेस्टिंग है "आल हैप्पी फैमिली आर अलाइक ;इच अनहैप्पी फैमिली इज़ अनहैप्पी इन ईट्स ओन वे "इसका मतलब की सभी सुखी परिवार एक जैसे है ,प्रत्येक दुखी परिवार अपने -अपने तरीके /वजहों से दुखी है।इस एक नॉवेल में  प्यार ,शादी ,ख़ुशी  एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर ,घृणा ,विश्वास ,इच्छा ,लगाव ,स्वार्थ और मौत को बखूबी लिखा गया है।अन्ना कैरेनिना 19 सताब्दी के रशियन समाज को दर्शाती है।सारी कहानी रशिया और यूरोप के आस पास की ही है। कहानी के सभी पात्र महत्वपूर्ण है ,पर इसमें दो लोगो की कहानी पैरल चलती है। एक है "अन्ना कैरेनिना " ,जो इस कहानी की नायिका है या खलनाइयिका या मतलबी महिला ये आप ही डिसाइड कीजियेगा। इन्ही के ऊपर नॉवेल का नाम दिया गया है।दूसरा है,"लेविन" मेरा प्रिये पात्र ,ये तो बिल्कुल नायक की कैटेगरी में आता है।कहानी शुरू होती है स्टेपन अर्कादायिच(स्टीव ओब्लोंस्की )से जो कि अन्ना का भाई होता है।स्टीव की पत्नी डॉली को मालूम होता है की,स्टीव का सम्बन्ध उनकी बच्चो के देखभाल करने वाली फ्रेंच लेडी से होता है। इस बात से डॉली बहुत दुखी है और वो घर छोड़ना चाहती लेकिन वो अपने बच्चो के साथ कहां जाये यही समझ नही पा रही है।वो बस जाने की धमकी देती है, और खुद को बैडरूम में बंद कर लेती है। स्टीव अपनी बहन अन्ना को बुलाता है ,उससे मालुम है अन्ना सब ठीक कर देगी।अन्ना बहुत ही सुन्दर ,तेज-तरार किसी को भी आपने व्यक्तित्व से मोहित करनेवाली ,नए ख्याल वाली महिला होती है।साथ ही वो डॉली की दोस्त भी होती है।अन्ना की शादी अलेक्सी करेंइन से हुई होती है।अलेक्सी अन्ना से 20 साल बड़ा होता है।वो एक बहुत बड़ा गोवेर्मेंट ऑफिसर होता है।स्वाभाव से शांत ,हमेशा काम या किताबो में उलझा रहता है।शहर में उसका काफी रुतबा है।अन्ना का एक बेटा भी होता है।भाई का लेटर मिलते ही अन्ना भाई के घर आ रही होती है , ट्रैन में उसकी मुलाकात " व्रोन्स्की "  की माँ से होती है। व्रोन्स्की एक मिलिट्री मैन होता है ,घर से अमिर ,देखने में हैंडसम ,स्वभाव से थोड़ा नटखट और एडवेंचर लविंग।अन्ना जब स्टेशन पहुँची है ,स्टीव उसे लेने जाता है।उधर व्रोन्स्की भी अपनी माँ को लेने आता है।अन्ना और व्रोन्स्की एक दूसरे को देखते है और अट्रैक्ट हो जाते है।अन्ना अपने भाई के साथ उसके घर आती है। वो डॉली को समझती है कि ,वो उसके भाई को माफ़ कर दे ,और उससे एक मौका और दे। उसके समझने पे और कोई दूसरा रास्ता न होने की वजह से डॉली अपने पति को माफ़ कर देती है।उधर डॉली की एक छोटी बहन है ,जिसका नाम "केटी " है।केटी व्रोन्स्की से शादी करना चाहती है ,उसकी सुंदरता और दौलत की वजह से।केटी  की माँ भी यही चाहती है कि ,शादी व्रोन्स्की से हो जाये।उधर "लेविन" जो पढ़े -लिखे होने के वावजूद खेती करता है ,सीधा -सच्चा ,ईमानदार और खुद मेहनत करने वाला ,जबकि कितने सारे काम करने वाले मजदुर उसके खेतो में काम करते है।वो स्टीव का दोस्त होता है।लेविन केटी को काफी पहले से प्यार करता है ,लेकिन कह नही पता है।ये बात स्टीव और उसकी वाइफ डॉली को भी मालूम है।वो लेविन को कहते है कि ,वो केटी से शादी की बात करे।ऐसे दिल में रखने से केटी को कभी मालूम नही चलेगा।लेविन अपने मन की बात केटी को बताता है ,पर माँ की डर और अपनी सुबिधावो के लालच में केटी लेविन को मना कर देती है। दुखी लेविन वापस अपने गाँव चला जाता है ,कभी न शादी करने का सोच के।केटी एक पार्टी में जाती है ,जहां व्रोन्स्की भी है ,उस पार्टी में अन्ना भी आई होती है।व्रोन्स्की अन्ना को साथ डांस करने के लिए पूछता है ,पर अन्ना मना कर देती है। उसे डॉली यानि केटी की बहन से मालूम होता है ,केटी ,व्रोन्स्की से शादी करने वाली है।साथ ही अन्ना को ये भी डर है कि ,कहि उसे व्रोन्स्की से प्यार न हो जाये।अन्ना किसी और के साथ डांस करती है। व्रोन्स्की केटी के साथ डांस करता है,पर अन्ना को ही देख रहा होता है।केटी समझ जाती है।वो घर आके खूब रोती है।उससे अपने नादानी पे गुस्सा आता है कि ,क्यों उसने लेविन को ना कह दिया।क्योकि कहि न कहि वो भी लेविन को चाहती थी।बस सोसाइटी ,सुख -सुबिधा और माँ के डर से उसे ना कह दिया। जबकि जिसे साथ वो शादी करना चाहती थी ,वो एक शादीशुदा औरत के प्यार में पड़ गया।अन्ना को जैसे ही ये अहसास हुआ कि वो भी व्रोन्स्की से प्यार करने लगी है।वो अगली सुबह ही अपने पति के घर जाने के लिए ट्रैन पकड़ लेती है। जैसे व्रोन्स्की को मालूम होता है ,अन्ना जा रही है वो भी उसके साथ ट्रैन में चढ़ जाता है।व्रोन्स्की अन्ना को कहता है कि ,वो अन्ना को प्यार करने लगा है।अन्ना उससे मना करती है ,कि वो उससे प्यार नही करती और उसका एक बच्चा भी है।फिर भी व्रोन्स्की उसके साथ उसके शहर में आता है।वहां स्टेशन पे उसकी मुलाकात अन्ना के पति से होती है ,जो अन्ना को लेने आया होता है।व्रोन्स्की की चचेरी बहन" बेट्स्की  " उसी शहर में रहती है।वो अन्ना की अच्छी दोस्त होती है।व्रोन्स्की अन्ना के घर के आस -पास मंडराते रहता है।अन्ना भी खुद को रोक नही पाती है ,और क़बूल कर लेती है कि वो भी व्रोन्स्की से प्यार करती है।दोनों  छुप कर मिलने लगते है ,कभी बेट्स्की की मदद से तो कभी किसी पार्टी में।जब अन्ना के पति को ये बात मालूम होती  है ,वो अन्ना को समझाता है।उसे अन्ना से प्यार नही होता बस अपने इज़्ज़त कि वजह से की, लोग क्या कहेंगे? अन्ना भी इस बोरिंग जिंदगी से थक गई है। वो अपनी पति या अपनी इज़्ज़त का ख़्याल न करते हुए व्रोन्स्की से मिलती रहती है।अन्ना को जब मालूम चलता है कि ,वो व्रोन्स्की की बच्चे की माँ बनने वाली है।वो डर जाती है,इसलिए नही कि वो किसी और के बच्चे की माँ बनने वाली है ,बल्कि इसलिए कि वो अपने बेटे को खोना नही चाहती।उसने अपने पति को सब सच -सच बता दिया ,अन्ना अपने पति से कहती है ,कि वो व्रोन्स्की के साथ रहना चाहती है,साथ ही अपने बेटे को भी ले जाना चाहती है। पर उसका पति इस बात को राजी नही है। वो कहता है मै तुम्हे माफ़ कर दूंगा ,तुम व्रोन्स्की को भूल जाओ।अन्ना जानती है उसका पति ये सब अपने रुतबे को बनाये रखने के लिए कर रहा है।अन्ना को अपने पति से कुछ नही चाहिए सिवाय उसके बेटे के।उस वक़्त रशिया में तलाक के बहुत शख्त कानून थे ,जो दोषी होता था उसका सबकुछ छीन लिया जाता था। इस केस में अन्ना दोषी थी। फिर भी वो व्रोन्स्की के साथ रहना चाहती थी।इन्ही सब के बीच उसने एक बेटी को जन्म दिया।बेटी के जन्म के बाद अपने पति का घर छोड़ कर वो व्रोन्स्की के साथ यरोप चली गई ,बिना तलाक के।उसे बार-बार अपने बेटे की याद आती रही। उसने व्रोन्स्की को वापस रशिया चलने को कहा। एक साल बाद जब वो दोनों वापस आये शहर के सब लोग अन्ना पर हँस रहे थे ,उससे गिरा हुआ समझ रहे थे। कोई उससे मिलना पसंद नही करता था। वही दूसरी और व्रोन्स्की को कोई कुछ नही कह रहा था ,उससे सब मिल रहे थे ,पार्टीओ में बुलाते थे।ऐसा दोहरे व्यवहार से अन्ना दुखी थी ,उसे समझ नही आरहा था क्या करे ?कैसे अपने बेटे से मिले ?   

Tuesday 9 June 2015

BHAGWAAN HE ,SHE YA THEY !!!

अभी हाल में मैंने न्यूज़ में पढ़ा कि , इंग्लैंड चर्च की कुछ महिला पादरियों ने भगवान को ही(पुरुष )कहने पे आपत्ति जताई है।उनका कहना है कि ,भगवान को शी (औरत ) कहना चाहिए।ही कहने से महिलाओ से भेद -भाव होगा।उनका कहना था कि ,जब किसी को सच्चाई नही मालूम तो शी कहने में क्या बुराई है? मुझे पढ़ के हँसी आई। भारतीय होने का मुझे हमेशा गर्व रहा है ,पर भगवान कसम आज कुछ ज्यादा ही हो रहा है। हमारे देश में महिलाओ की जितनी भी उपेक्छा हो ,पर भगवान के बारे में ना कभी ना। दुर्गा माँ या वैष्णों देवी का डर सबको है। हा वो कभी -कभी अल्ला बड़ा या भगवान या साईं बाबा वो सब चलता रहता है।पर स्त्री -पुरुष वाला मामला नही है।विदेशो में एक ये भी झमेला है मदर मेरी या जीज़स क्राइस्ट। कोई कहता है ,माँ इम्पोर्टेन्ट तो कोई कहता है बेटा।भारत में तो अपनी इच्छा माँ को मानो या बेटे को कोई फर्क नही।विदेशो में जबकि ऑप्शन तीन ही माँ ,बेटा  नही तो कुछ नही। इनके पास लड़ाई करने का कोई मुद्दा नही तो भगवान या आतंकवाद ही सही। हमारे यहां तो भईया इतने ऑप्शन है ,फिर भी कोई दिक्कत नही। हर मामले में हमने आबादी बरक़रार रखी है।हमारे पास बिजली ,पानी ,शिक्षा ,भोजन ,मौत और कई ऐसे मुद्दे है, जो भगवान भरोसे ही चलते है। तो क्या भगवान पे विवाद करे ? कई बार तो ऐसा होता है ,हमलोग बेहिचक सारे भगवान को याद कर लेते है। मसलन परीक्षा के समय ,बेटे की चाहत में ,बीमारी के वक़्त ,शादी -ब्याह में। हे भगवान मेरी बेटी को जोरू का गुलाम मिल जाये ,उसकी जिंदगी सेट हो जाये :) फिल्मो को हिट कराने और कभी -कभी प्यार- मुहब्बत में भी।ओह भगवान लवली कितनी प्यारी है ,मेरे साथ सेट हो जाये तो चादर चाढूंगा :P भगवान है या नही हर जगह उनका /उनकी बहुत महत्व ,आस्था है। मेरे इस ब्लॉग का कतई ये मतलब नही कि मै नास्तिक हूँ।मै भी भगवान में विश्वास रखती हूँ।मेरे घर में मेरी माँ भगवान शंकर को बहुत मानती है। मेरा भाई चलता -फिरता जब मन किया जो मिले हाथ जोड़ लिया ,और मेरी तो पूछिये मत। बच्पन में माँ की देखा -देखी शिव जी को मानने लगी।दुर्गा पूजा में दुर्गा जी को पूजने लगी।तभी एक टर्निंग पॉइंट आया। दुर्गा पूजा में खास कर बिहार और बंगाल में बहुत बड़ी पूजा होती है। हर घर में लगभग सुबह -शाम  पूजा -आरती होती है।तभी एक दिन मैंने हनुमान चलिशा पढ़ा। अचानक दिमाग की घंटी बजी ओह मै कितनी नादान थी अब तक।उनके चलिशा को अगर आपने पढ़ा हो तो याद होगा। उसमे लिखा है भूत -पिचास निकट नही आवे महावीर जब नाम सुनावे ,और आगे संकट हरे मिटे सब पीरा जो सुमरे हनुमत बल बीरा ,फिर और आगे बल ,बुद्धि ,बिद्या देहु मोहि हरहु कलेश विकार।मैंने सोचा एक भगवान को पूजने से इतने सारे फायदे।फिर क्या मनुष्य जाती भईया ,काम कर गया हनुमान चलिशा और मै हो गई हनुमान भक्त। कॉलेज तक मै हनुमान जी की जबरदस्त फैन थी।पास होने के बाद जॉब लग गई।आम माताओ की तरह मेरी माताजी को भी मेरी ब्याह की चिंता होने लगी।मै तभी शादी नही करना चाह रही थी।उन्हें लगा ये हनुमान जी की पूजा का असर है ,कारण हनुमान जी ब्रह्मचारी है।उन्होंने मेरी हनुमान पूजा पे रोक लगा दी।बोली  दुर्गा जी या शिव जी की पूजा करो।वो अलग बात थी की मै तब शादी ही नही करना चाहती थी।जबतक मेरी शादी नही हुई थी ,में माता जी को रोज अलग -अलग बीमारी होती थी ,पर भगवान की दया से जब से मेरी शादी हुई उनकी सारी बीमारी दूर :) मेरा और हनुमान जी का प्रेम कभी कम न हुआ।आम प्रेमियों की तरह हमारी लुका  -छिपी चलती रही।आज भी हनुमान जी हमारे घर में विराजमान है।बल तो ज्यादा नही दिया पर बिद्या और थोड़ी बुद्धि दे ही दी है।इनसबके बीच मैं शिर्डी भी गई साईं बाबा का दर्शन बहाना था, फ्रेंड्स के साथ घूमना इम्पोर्टेन्ट था।अपने दोस्तों के साथ पुणे खड़की एक जगह है, वहां चर्च भी घूमने गई।पर एक चीज़ अच्छी नही लगी वहां पादरी सिर्फ जीजस और कितने दूसरे लोग क्रिस्तानिती अपनाये यही बताते रह गए।मेरे भाई को हर धर्म से चीड़ है और हर धर्म से प्यार भी।जब मै उसके साथ दिल्ली में रहती थी, तो वो निज़ामुद्दीन औलिया के दरगाह ले गया।वो हर तरह की किताबे पढता है ,उसने कहि इनके बारे में भी पढ़ा था।वो पहले वहां जा चूका था।उससे अच्छा लगा था वहां का माहौल।मेरा भाई मेरा सबसे अच्छा दोस्त है। हमदोनो के रिश्ते में किसी भी चीज़ को लेके कोई पर्दा या बंदिश नही।खैर हम मुद्दे से भटक रहे है।निज़्ज़ामुदीन औलिया एक सूफी संत थे ,जो प्यार ,सचाई और मानवता में बहुत भरोसा रखते थे। और पूरी उम्र उसी रस्ते पे चले।उसने मुझे पहले ही बता दिया था जाने के रास्ते तुम्हे थोड़े अजीब लगेंगे। कारण दोनों तरफ बकरा कटे टंगे थे ,दरगाह के पास पीछा न छोड़ने वाले भिखारी ,ठेले पे दुकाने और सिर्फ सबके सर पे टोपी या बुरका पहनी औरते दिखेंगी। मैंने कहा चलो तुम साथ हो तो फिर क्या डर।सच में रास्ता थोड़ा अजीब लगा। मेरे भाई की एक फूल ,चादर बेचने वाले से जान -पहचान हो गई थी ,बार -बार जाने से। उससे हमने फूल और चादर लिया ,चल पड़े दरगाह पर। वहां जाके थोड़ा अजीब लगा सारी औरते बहार बैठी थी ,उन्हें अंदर जाना मना था। मेरे भाई ने मुझे बाहर बैठने को कहा ,और अंदर जेक चादर चढ़ाई।निज़ामुद्दीन औलिया के दरगाह पे रोज कवाली होती है ,कभी छोटे अस्तर पर तो कभी बड़े।मै अपने हिन्दू रिवाज की तरह हाथ जोड़ कर खड़ी थी।तभी कवाली शुरू हो गई और पता नही वो क्या था, कवाली का असर या माहौल का जो अचानक मेरी आँखों से आँसू गिरने लगे।मेरे भाई ने समझया हो जाता है कभी -कभी ऐसा।खैर मुझे दरगाह पे जाना अच्छा लगा। आपलोगो को लग रहा होगा इतना देव दर्शन क्यों ? तो मेरे प्रिय मित्रो, मुझे और मेरे भाई को एक बीमारी है ,हमलोग हर चीज़ जानना ,समझना या महसूस करना चाहते है।मेरा इन सब किस्सों के पीछे यही कहना था ,देखा हम स्त्री ,पुरुष सब को पूजते है।हर घर में दुर्गा जी ,गणेश जी ,शिव जी और भी देव ,देवियाँ मिल जाएँगी बिना लड़ाई -झगड़े के।इंफेक्ट हमारे यहां तो शिव जी खुश करने के लिए पार्वती की पूजा ,और लक्ष्मी जी के लिए गणपति की पूजा जरुरी है :) तो बस ही और शी की चक्करो में न पड़े ,जिनसे ख़ुशी मिलती है उन्ही को पूज डाले।
चेतावनी - अगर महिलाये  हनुमान भक्त है तो अपनी  माताओ से डरे ना सबकी शादी हो ही जाती  है:) मेरा उदाहरण आपके सामने है।तो फिर  हनुमान जी की जय ,दुर्गा मैया की जय। 

Friday 5 June 2015

happy anniversary rashmi masi and mukesh mausa ji :)

आज का ब्लॉग रश्मि मौसी और मुकेश मौसा जी के लिए।लिखने से पहले मैं आप सभी दोस्तों को शुक्रिया करना चाहूंगी की, आप हमेशा मुझे सलाह देते रहते है  ,और आपलोग ने मुझे शादी के बारे में लिखने वाला बना दिया।मुझे ये सोच -सोच के हंसी आ रही है ,कि कल को मेरा ब्लॉग का विज्ञापन करना हो तो क्या लिखे ? शादी के बारे में लिखवाने के लिए हाज़िर हो :) उफ़ ये शादी भी क्या -क्या करवाती है।इतने काम साल के तजुर्बे में भी मुझे एक्सपर्ट बना दिया।इसका सारा श्रेय मैं सिर्फ और सिर्फ शतेश शुभ्रांशु को देना चाहूंगी।वरना इससे पहले तो मैं शाहरुख़ वाली ही दुनिया सही समझती थी।अब समझ आया फिल्मे शुरू होने से पहले ये चेतावनी क्यों देते है ,की इस फिल्म की सारी बाते काल्पनिक है, इसका किसी जीवित या किसी मृत वयक्ति से कोई सम्बन्ध नही:) , इनसबके बीच मैं आप सब को ये बता दूँ कि, सिर्फ शादी वास्तविक है ,इसके बाद की घटनाये ओह मेरा कहने का मतलब अच्छी घटनाये सब काल्पनिक और मोह -माया है।इनके चकरो में न पड़े।अगर बहुत ही दुखी ,परेशान है ,तो आपके लिए है तनु वेड्स मनु रिटर्न टॉनिक। इसको अपनी पति /पत्नी  के साथ ले जब भी परेशान हो :) मैं अपने सारे दोस्तों को जो विवाहित उनसे यही कहना चाहूंगी ,भाई सबका हाल एक सा है।जो अविवाहित है उनसे ये कहूँगी बस कर पगले हमे रुलाओगे क्या ? शादी न करके कौन सी तीर मार ली ?घरवालो का ताना ,पड़ोसियों ने तो बाहर भी निकलना दुबर किया होगा।ऊपर से जब हम जैसे लोग फेसबुक पे अपनी छणिक प्यारवाली तस्वीर लगाते  है ,तुम सोचते होगे यार गलती कर दी।अब तो ढंग़ की लड़की /लड़का भी नही मिल रहा।भईया इंडिया में तो 30 की उम्र ही एक्सपाइरी होती है।तो सोच लो अभी भी टाइम है रास्ते पे आ जाओ। वैसे भी कभी न कभी तुम्हे भी आना इसी गली है।सारी महिला मित्रो से आग्रह है ,शाहरुख़ को छोड़ सलमान की फिल्मे देखना शुरू करे।इसका कारण की आधी से ज्यादा तो मसाला मूवी बन रही है, तो क्यों बेकार किसी और की मूवी देखना।एक तो सलमान की फिल्मो में ज्यादा प्यार-व्यार नही होता, तो आप अपने पति देव पे दया करेंगी :) दूसरा वो ज्यादा हैंडसम है, तो थोड़े देर के लिए ही सही आप आपने अनुपम खैर या अमरीश पूरी को भूल सकती है :)
आज के इस सारे उपदेश का तात्पर्य ये है, की शादी कर ही लेनी चाहिए ,जो होगा सो देख लेंगे।एक मिसाल भी बनेगी कि ,कैसे दो दुश्मन कितने अच्छे से एक छत के नीचे रहते है :)वो एक गाना है न ,हमी से मोहब्बत हमी से लड़ाई ,अरे मार डाला दुहाई -दुहाई की ये लाइन विवाहित लोगो के नाम।अब आते है रश्मि और मुकेश पर।
रश्मि जैसा नाम वैसे ही उनका व्यक्तित्व और मुकेश तो शिव जी का ही दूसरा नाम है।जैसे आपलोगो को मालूम हो ही गया होगा इनसे मेरा रिस्ता क्या है?मौसी का जिक्र आते ही दिमाग में ख्याल आता है माँ सी ,और कही न कही ये सच होता भी है या होगा।भाइयो ये 2015 अब सब कुछ बदल रहा है।मौसी मेरी दोस्त ही रहे तो अच्छा है।माँ एक ही काफी है ,ओवरलोडेड प्यार और ओवरलोडेड इमोशनल अत्याचार के लिए :) इसमें मौसी भी आजाये तो बच्चे पागल ही हो जाये हा-हा -हा।खैर आम मौसियों से बिपरीत है, मेरी रश्मि मौसी इंटेलिजेंट ,समझदार थोड़ी नटखट।उनकी शादी मेरी शादी से 3 साल पहले हुई।मै उनकी शादी में जा नही पाई कारण मै पुणे थी ,और कुछ टिकट का पंगा था। भगवान इंडिया में ट्रैन से जाना भी किसी उपलब्धि से कम नही।शादी के बाद वो दोनों लंदन चले गए और मैं कभी उनसे मिल नही पाई।पर जब उनकी शादी पक्की हो गई थी ,तब मै रश्मि मौसी से मिली थी ,तो मौसा जी की तस्वीरें देखी थी।सबने बताया लड़का बहुत इंटेलीजेंट है, रीसर्च कर रहा है। घर में सब यही कहते रहते कि लड़के(मुकेश ) को स्कोलरशिप मिली है ,लंदन में पढ़ रहा है ।लड़का शांत -सुशील है।एक तो मुझे ये नही समझ आता जब शादी की बात होती है तबी से लड़का, लड़का ही रहता है। जबतक शादी न हो कोई उसे उसके नाम से नही पुकारता :)खैर मैंने सोचा हे भगवान अब रश्मि मौसी का क्या होगा ? मुझे टीचर ,प्रोफेसर और ये रिसर्च वाले थोड़े बोरिंग लगते है।हमेशा पढाई की बात ,अरे बस करो जान लोगे क्या ?कोई सेन्स ऑफ़ हयूमर नही।लेकिन मौसी से बात करके उनकी ख़ुशी देख के अच्छा लगा।फिर लगा एक पढ़ाकू को दूसरा पढ़ाकू मिल जाये इससे अच्छा क्या।दोनों मिल के क्वेश्चन ही पूछा करते रहेंगे।आज उनकी शादी की पांचवी सालगिरह है।मेरी एक प्यारी सी बहन यानि की उनकी बेटी आंशी भी है। अब देखिये मेरी कल्पना और उनकी बात-चीत ,साथ में हमारी भी हमेशा की तरह:)
रश्मि :- मुकेश क्या प्लान है वीकेंड का ?
मुकेश :-तुम बताओ या लाईब्रेरी चले ?
रश्मि :- ओ ग्रेट मै आंशी को रेडी करती हूँ ,तुम बुक्स ले लो जो रिटर्न करनी है। 
तपस्या :- शतेश मैंने नॉवेल आर्डर कर दी है ,ये रहा तुम्हे क्रेडिट कार्ड। 
शतेश :- अच्छा, मै  सोच रहा हूँ मै भी कुछ पढ़ूँ।कोई एक नॉवेल तो देना। 
रश्मि :-मुकेश मुझे पीएचडी करनी है। 
मुकेश :-ओह रश्मि तुम कितनी अच्छी हो।तैयारी शुरू कर दो।मै आंशी को संभालने में मदद करूँगा। 
रश्मि :-मुकेश मै तो पहले से ही पढ़ाकू थी ,उसपे तुम मिल गए। लाइफ में कोई एडवेंचर ही नही। बस किताबे ही किताबे। 
मुकेश :-ओह प्यारी रश्मि ये भी तो किसी एडवेंचर से काम नही कि ,दो पागल एक साथ मिल गए (सॉरी मौसी )
अलग -अलग शादी हुई होती तो ,बेचार ,बेचारी वो :)
तपस्या :-यार शतेश हमारी लाइफ में कोई एडवेंचर नही है।मै जो कहती हूँ , मान लेते हो शॉपिंग छोड़ कर।
शतेश :-माफ़ करो माँ ,एडवेंचर के लिए डिस्नी या रोलरकोस्टर है।यहां तो बिना कुछ किये डर रहता है ,कि  तुम अब क्या एडवेंचर करने वाली हो :) 
मुकेश :-रश्मि मै जो रिसर्च कर रहा हूँ ,उसके लिए इंडिया में प्रोजेक्ट लगाना चाहता हूँ,क्या कहती हो ?
रश्मि :-मुकेश मै तुम्हारे साथ हूँ ,और मै जानती हूँ तुम अच्छा ही करोगे। 
शतेश :-तपस्या मै सोच रहा हूँ ,कुछ सालो बाद प्रोफेसर बन जाऊ ,मेरा जी.आर.ई  में भी हुआ था। 
तपस्या :-तुम पागल तो नही हो गए हो।अच्छा हुआ तुम प्रोफ़ेसर नही बने वरना शादी भी नही होती हमारी रश्मि :-मुकेश आज हम शॉपिंग चले ?
मुकेश :-चलो। 
रश्मि :-आधे घंटे बाद चलो होगया शॉपिंग ,घर जाके एसाइनमेंट भी करनी है। 
मुकेश :-मन में सोच के हँस रहे होते है ,अच्छा है पीएचडी करने लगी। बिना लड़ाई शॉपिंग काम हो गई। 
रश्मि :-यार मुकेश शादी के पहले हम कितनी बाते करते थे।अभी तो बस आंशी और पढाई।  
मुकेश :-वही तो सारी बेकार की बाते तो हो गई ,अब अच्छा है पढाई -लिखे पे थोड़ा ध्यान है। 
रश्मि :-ठीक है इतने ही रिसर्च करते हो तो ये बता दो ,क्यों कोई महिला अपने पति से पूरी तरह खुश क्यों नही?ये क्या केमिकल लोचा ही शादी से पहले शाहरुख़ शादी के बाद अमरीश पूरी हो जाता है ?
मुकेश :-माफ़ करो रश्मि कितनी किताबे लिख दी गई इसपे ,पर आज भी ये रहस्य ही है।मै तो क्या भगवान शिव सती को समझा नहीं पाये ,और देखा जली न सती। 
रश्मि :-तो तुम्हारे कहने का क्या मतलब है ?सारी प्रॉब्लम महिलाओ की है ? शिव जी कौन से महान थे ,जब उनको मालूम था ,तो पहले ही आके आग बुझाते। बाद में तांडव क्यों ?
शतेश :-यार तपस्या  हमने शादी से पहले काफी काम बात की थी ,अब समझ आया चुलबुल तुम्हे गाय क्यों कहता था :)
तपस्या :-अच्छा तो अब ज्यादा होती है क्या :)गनीमत कहो गाय मिली ,भैंस ,शेरनी मिली होती तो क्या होता   :P 
तो इस तरह ये सिलसिला चलता रहेगा।रश्मि मौसी और मौसा जी को शादी के पांचवे साल की ढेर सारी बधाइयाँ। वैसे मैंने किसी से सुना है  ,शादी के पांच साल के बाद पति -पत्नी नार्मल बिहेव करने लगते है।शायद झेलते हुए आदत पड़ जाती होगी।एक बार फिर से आपलोग हमेशा खुश रहे।मैंने कुछ उल्टा -सीधा लिखा हो तो मौसा जी माफ़ी। मौसी से तो डर नही लगता ,मालूम है बिना कहे माफ़ कर देंगी।