अभी हाल में मैंने न्यूज़ में पढ़ा कि , इंग्लैंड चर्च की कुछ महिला पादरियों ने भगवान को ही(पुरुष )कहने पे आपत्ति जताई है।उनका कहना है कि ,भगवान को शी (औरत ) कहना चाहिए।ही कहने से महिलाओ से भेद -भाव होगा।उनका कहना था कि ,जब किसी को सच्चाई नही मालूम तो शी कहने में क्या बुराई है? मुझे पढ़ के हँसी आई। भारतीय होने का मुझे हमेशा गर्व रहा है ,पर भगवान कसम आज कुछ ज्यादा ही हो रहा है। हमारे देश में महिलाओ की जितनी भी उपेक्छा हो ,पर भगवान के बारे में ना कभी ना। दुर्गा माँ या वैष्णों देवी का डर सबको है। हा वो कभी -कभी अल्ला बड़ा या भगवान या साईं बाबा वो सब चलता रहता है।पर स्त्री -पुरुष वाला मामला नही है।विदेशो में एक ये भी झमेला है मदर मेरी या जीज़स क्राइस्ट। कोई कहता है ,माँ इम्पोर्टेन्ट तो कोई कहता है बेटा।भारत में तो अपनी इच्छा माँ को मानो या बेटे को कोई फर्क नही।विदेशो में जबकि ऑप्शन तीन ही माँ ,बेटा नही तो कुछ नही। इनके पास लड़ाई करने का कोई मुद्दा नही तो भगवान या आतंकवाद ही सही। हमारे यहां तो भईया इतने ऑप्शन है ,फिर भी कोई दिक्कत नही। हर मामले में हमने आबादी बरक़रार रखी है।हमारे पास बिजली ,पानी ,शिक्षा ,भोजन ,मौत और कई ऐसे मुद्दे है, जो भगवान भरोसे ही चलते है। तो क्या भगवान पे विवाद करे ? कई बार तो ऐसा होता है ,हमलोग बेहिचक सारे भगवान को याद कर लेते है। मसलन परीक्षा के समय ,बेटे की चाहत में ,बीमारी के वक़्त ,शादी -ब्याह में। हे भगवान मेरी बेटी को जोरू का गुलाम मिल जाये ,उसकी जिंदगी सेट हो जाये :) फिल्मो को हिट कराने और कभी -कभी प्यार- मुहब्बत में भी।ओह भगवान लवली कितनी प्यारी है ,मेरे साथ सेट हो जाये तो चादर चाढूंगा :P भगवान है या नही हर जगह उनका /उनकी बहुत महत्व ,आस्था है। मेरे इस ब्लॉग का कतई ये मतलब नही कि मै नास्तिक हूँ।मै भी भगवान में विश्वास रखती हूँ।मेरे घर में मेरी माँ भगवान शंकर को बहुत मानती है। मेरा भाई चलता -फिरता जब मन किया जो मिले हाथ जोड़ लिया ,और मेरी तो पूछिये मत। बच्पन में माँ की देखा -देखी शिव जी को मानने लगी।दुर्गा पूजा में दुर्गा जी को पूजने लगी।तभी एक टर्निंग पॉइंट आया। दुर्गा पूजा में खास कर बिहार और बंगाल में बहुत बड़ी पूजा होती है। हर घर में लगभग सुबह -शाम पूजा -आरती होती है।तभी एक दिन मैंने हनुमान चलिशा पढ़ा। अचानक दिमाग की घंटी बजी ओह मै कितनी नादान थी अब तक।उनके चलिशा को अगर आपने पढ़ा हो तो याद होगा। उसमे लिखा है भूत -पिचास निकट नही आवे महावीर जब नाम सुनावे ,और आगे संकट हरे मिटे सब पीरा जो सुमरे हनुमत बल बीरा ,फिर और आगे बल ,बुद्धि ,बिद्या देहु मोहि हरहु कलेश विकार।मैंने सोचा एक भगवान को पूजने से इतने सारे फायदे।फिर क्या मनुष्य जाती भईया ,काम कर गया हनुमान चलिशा और मै हो गई हनुमान भक्त। कॉलेज तक मै हनुमान जी की जबरदस्त फैन थी।पास होने के बाद जॉब लग गई।आम माताओ की तरह मेरी माताजी को भी मेरी ब्याह की चिंता होने लगी।मै तभी शादी नही करना चाह रही थी।उन्हें लगा ये हनुमान जी की पूजा का असर है ,कारण हनुमान जी ब्रह्मचारी है।उन्होंने मेरी हनुमान पूजा पे रोक लगा दी।बोली दुर्गा जी या शिव जी की पूजा करो।वो अलग बात थी की मै तब शादी ही नही करना चाहती थी।जबतक मेरी शादी नही हुई थी ,में माता जी को रोज अलग -अलग बीमारी होती थी ,पर भगवान की दया से जब से मेरी शादी हुई उनकी सारी बीमारी दूर :) मेरा और हनुमान जी का प्रेम कभी कम न हुआ।आम प्रेमियों की तरह हमारी लुका -छिपी चलती रही।आज भी हनुमान जी हमारे घर में विराजमान है।बल तो ज्यादा नही दिया पर बिद्या और थोड़ी बुद्धि दे ही दी है।इनसबके बीच मैं शिर्डी भी गई साईं बाबा का दर्शन बहाना था, फ्रेंड्स के साथ घूमना इम्पोर्टेन्ट था।अपने दोस्तों के साथ पुणे खड़की एक जगह है, वहां चर्च भी घूमने गई।पर एक चीज़ अच्छी नही लगी वहां पादरी सिर्फ जीजस और कितने दूसरे लोग क्रिस्तानिती अपनाये यही बताते रह गए।मेरे भाई को हर धर्म से चीड़ है और हर धर्म से प्यार भी।जब मै उसके साथ दिल्ली में रहती थी, तो वो निज़ामुद्दीन औलिया के दरगाह ले गया।वो हर तरह की किताबे पढता है ,उसने कहि इनके बारे में भी पढ़ा था।वो पहले वहां जा चूका था।उससे अच्छा लगा था वहां का माहौल।मेरा भाई मेरा सबसे अच्छा दोस्त है। हमदोनो के रिश्ते में किसी भी चीज़ को लेके कोई पर्दा या बंदिश नही।खैर हम मुद्दे से भटक रहे है।निज़्ज़ामुदीन औलिया एक सूफी संत थे ,जो प्यार ,सचाई और मानवता में बहुत भरोसा रखते थे। और पूरी उम्र उसी रस्ते पे चले।उसने मुझे पहले ही बता दिया था जाने के रास्ते तुम्हे थोड़े अजीब लगेंगे। कारण दोनों तरफ बकरा कटे टंगे थे ,दरगाह के पास पीछा न छोड़ने वाले भिखारी ,ठेले पे दुकाने और सिर्फ सबके सर पे टोपी या बुरका पहनी औरते दिखेंगी। मैंने कहा चलो तुम साथ हो तो फिर क्या डर।सच में रास्ता थोड़ा अजीब लगा। मेरे भाई की एक फूल ,चादर बेचने वाले से जान -पहचान हो गई थी ,बार -बार जाने से। उससे हमने फूल और चादर लिया ,चल पड़े दरगाह पर। वहां जाके थोड़ा अजीब लगा सारी औरते बहार बैठी थी ,उन्हें अंदर जाना मना था। मेरे भाई ने मुझे बाहर बैठने को कहा ,और अंदर जेक चादर चढ़ाई।निज़ामुद्दीन औलिया के दरगाह पे रोज कवाली होती है ,कभी छोटे अस्तर पर तो कभी बड़े।मै अपने हिन्दू रिवाज की तरह हाथ जोड़ कर खड़ी थी।तभी कवाली शुरू हो गई और पता नही वो क्या था, कवाली का असर या माहौल का जो अचानक मेरी आँखों से आँसू गिरने लगे।मेरे भाई ने समझया हो जाता है कभी -कभी ऐसा।खैर मुझे दरगाह पे जाना अच्छा लगा। आपलोगो को लग रहा होगा इतना देव दर्शन क्यों ? तो मेरे प्रिय मित्रो, मुझे और मेरे भाई को एक बीमारी है ,हमलोग हर चीज़ जानना ,समझना या महसूस करना चाहते है।मेरा इन सब किस्सों के पीछे यही कहना था ,देखा हम स्त्री ,पुरुष सब को पूजते है।हर घर में दुर्गा जी ,गणेश जी ,शिव जी और भी देव ,देवियाँ मिल जाएँगी बिना लड़ाई -झगड़े के।इंफेक्ट हमारे यहां तो शिव जी खुश करने के लिए पार्वती की पूजा ,और लक्ष्मी जी के लिए गणपति की पूजा जरुरी है :) तो बस ही और शी की चक्करो में न पड़े ,जिनसे ख़ुशी मिलती है उन्ही को पूज डाले।
चेतावनी - अगर महिलाये हनुमान भक्त है तो अपनी माताओ से डरे ना सबकी शादी हो ही जाती है:) मेरा उदाहरण आपके सामने है।तो फिर हनुमान जी की जय ,दुर्गा मैया की जय।
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