Wednesday, 15 July 2015

Barish ,Chai or Kajari

आह बाहर बारिश हो रही है।मन किया बाहर निकलू बारिश के बूंदो को महसूस करू ,पर कमबख्त शर्दी -जुकाम ने रोक लिया।बालकनी के शीशे के दिवार के पीछे खड़ी हो कई किस्से को याद करने लगी। कैसे बचपन में कागज का नाव बनाना,ग़ढे में भरे पानी में कूद जाना , भाई के साथ कागज वाले नाव पे चींटी को बैठना और उसको जाते देखना।बर्फ अगर गिरती तो और मजा आता। चुन -चुन के बर्फ खाना और तभी घर के भीतर से माँ की आवाज।आओ घर पे तो बारिश के बाद थपड़ से धुलाई होगी :) आह उस बारिश वाले बर्फ का स्वाद किसी भी कीमती बर्फ से कही ज्यादा है। कोई स्वाद नही फिर भी वो ख़ुशी ,कि भाई मैंने तुमसे ज्यादा चुनके बर्फ खाया ,शायद ही अब मिले।वो यादे तो उम्र भर साथ रहेंगी।उन यादो के साथ मैं भी बड़ी हो रही थी।बड़े होने के साथ अब भीगने में शर्म आने लगी।बारिश में छाते की कमी महसूस होने लगी।साथ में थोड़ा फैशन का ज्ञान भी आ गया तो ,कलर फूल छाते खरीदने लगी।छाते में पानी से बच -बच के चलने लगी।ऐसा लगता था कि नमक की बनी हु ,जो पानी से गल जाऊँगी :P जो मजा पहले भींगने और बर्फ चुनने में था ,अब वो छाता दिखाने में आने लगा।भींगने का मन तो अभी होता था।पर बड़े और समझदार बनने के लिए उसकी क़ुर्बानी देनी पड़ी।कई बार लड़के -लड़कियों को एक छाते के नीछे देख मेरा भी मन करता।काश मेरे छाते के नीचे भी कोई हो।
सिर्फ बारिश के लिए बॉयफ्रैंड ढूढ़ना मुश्किल था ,सो आडिया ड्राप करना पड़ा।मुझे अब उन दोस्तों पे अब गुस्सा आता है ,जो कहते है मैं तुम्हे प्यार करता था।अरे दुष्टों अब क्या फयदा।मेरी छाते में घूमने वाली विश तो अब पूरी हो गई :) फिर थोड़ी और समझदार हुई या यूँ कहे पसंद बदली।
अब किताबे ,म्यूजिक ,आर्ट मूवी अच्छी लगने लगी।फिर भी बारिश मेरी फिलिंग्स से जुड़ा रही।पहले जहां टिप -टिप बरसा पानी ,लगी आज सावन की ऐसी झड़ी ,भींगी -भींगी रातो में ,अभी जिन्दा हूँ तो जी लेने दो ------सुनती थी ,अब मैं हिंदुस्तानी क्लासिकल म्यूजिक सुनने लगी।वैसे दोस्तों के साथ टिप -टिप बरसा पानी ही बेस्ट है :) क्लासिकल गाने अकेले में सुनने ,समझने के लिए ठीक है।वैसे तो मुझे कई सिंगर और म्यूजिशियन पसंद है।पर बात बारिश की तो ,मैं आज "कजरी " के  बारे में लिखती हूँ।
कजरी ;-सेमी क्लासिकल सिंगिंग होता है।ये बिहार और उत्तर -प्रदेश से शुरू हुआ।ऐसी लोक कथा है, मिर्जापुर में  कि कजली नाम की एक औरत थी। जिसका पति शादी के बाद परदेश कमाने चला जाता है।ऐसे में जब बारिश का मौसम आता है,तो वो खूब रोती है।और अपने पति को याद करके कुछ दुःख में गाने लगती है।वही गाने आज कजरी हो गया।वैसे तो कजरी गाने वाले बहुत है।लेकिन उनमे मुझे सबसे अच्छा श्रीमती गिरीजा देवी और श्री छन्नूलाल मिश्रा जी का गया हुआ लगता है।कजरी के कुछ बोल ;
1 - बरसन लगी बदरिया रूम -झूम के 
2 -भीज जाऊ मैं पिया बचाई लियो 
3 -हरी बीन काली बदरिया छाई -2 ,बरसत घेर -घेर चहुँ दिश से ,दामिनी चमक जनाई ,हरी बीन काली बदरिया छाई। कोयल कूह्के ,बादुर बोलत ,ताल -तलैया मनहु काम बढ़ाई ,हरी बीन ----- ,कौन देश छाये नन्द नंदन ,पाती हुना पठाई हरी बीन काली बदरिया छाई। 
4 -काली बदरा रे तू तो जूलम किया रे -2 ,एक तो काली रात दूजे पिया परदेश ,तीजे बदरा रे झमकाये बुंदियाँ रे। बादर गरजे घनघोर ,बिजूरी चमके चहुँ ओऱ ,सूनी सेजिया रे ,मोरा धरके जिया रे ,कारे बदरा रे तू तो जुलम----,कोयल कूह्क सुनावे ,पपीहा सोर मचावे ,बैयरी निंदिया रे ,नाही आवे अंखिया रे.कारे बदरा रे तू तो जूलम किया रे। 
 सोचिये उस वक़्त अगर फ़ोन, इंटरनेट  होता तो ,कजरी आज गाई ना जाती होती।कजली देवी फोन पे ही अपने -दुःख -सुख सुना देती।उनके पति देव भी तुरंत स्काईप पे हाज़िर :) वैसे आज के ज़माने में कोई कहे ,भींग जाऊ मैं पिया बचाई लियो ,तो पिया जी कहेंगे मैंने कहा बारिश में जाने को।मुझे कोई और काम नही जो ऑफिस छोड़ तुम्हे बचाने आऊ :P किसी फिल्म में मैंने देखा , हीरोइन भींग रही है ,तो हीरो हाथ से उनका सिर को ढकता है। मेरी एक फ्रेंड कहती है ,हाउ रोमांटिक।मुझे हंसी आ गई।मैंने कहा भईया अब तो छातो की दूकान बंद।वैसे भी उतना बचने से अच्छा भींग ही लो।फिर अगर प्रेमिका/पत्नी रो-रो के कहेगी ,कारी बदरा रे तू तो जूलम किया रे।तो घरवाले कहेंगे जूलम तो तूने किया है।बेशर्मी की हद है ,पति कमाए नही तो खाओगे क्या ? ये जो माइकल कोर का पर्स है ,कहाँ से आयेगा :)  दुःख तो इस बात का है ,कजली के समय इंटरटेनमेंट के लिए भी तो कुछ नही था।उसपे बारिश तो आस -पास वाले भी घर में कैद।क्या करे बेचारी रोये नही तो ? हमें देखो बारिश है ,तो मस्त चाय बनाओ ,कोई गाना यू टूब पे बजा दो। चाय की चुस्कियो के साथ खूबसूरत बारिश का मजा लो।कजरी सुनो और बारिश को और महसूस करो।

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