Friday 31 July 2015

Aasha ,Nirasha or Ummid !!!!!!

मेरा मन आशा ,निराशा से भर गया जब मैंने अपने कल के ब्लॉग "कलाम और याकूब आये" की प्रतिक्रिया देखी।ख़ुशी है कुछ लोगो ने इसकी बातो को समझा।वही मुझे दुःख हुआ ,मेरे भाई के एक दोस्त की प्रतिक्रिया पे हुई।इतनी कम उम्र और इतनी नफरत।उसका कहना था,अच्छा हुआ मर गया ,इसके घर वाले को इसका शव तो मिल गया ,मुंबई में तो  मरे हुए लोगो के शव भी नही मिले।क्या करोगे बच्चे तुम शव लेके ? जिनको जाना था वो चले गए। उनके जलती लाशो को देख खुद को जलना कहाँ तक सही है ? उन्होंने ने जाते वक़्त तुमसे ये नही कहा तुम उनके गुनहगार को मार डालो।जो घायल भी होंगे, उस वक़्त वो भी सब भूल के कह रहे होंगे ,मैं जीना चाहता हूँ।मुझे बचा लो।जब आखरी वक़्त मरते हुए की कामना जीवन है ,तो जीवन से बड़ा क्या ? मेरे पिता नही है ,उनकी भी अकाश्मिक मृत्यू हुई ,तो क्या मेरी माँ या हमलोग भगवान से लड़ने लगे।या फिर जिंदगी से हताश हो जीना छोड़ दिया। हमे बहुत अच्छा परिवार मिला ,दोस्त मिले ,जीवन साथी मिला।क्या ये जीने और खुशियाँ बांटने के लिए कम है  ?जो दिल में नफरत भर के मरते रहो या मारते रहो।बात याकूब की है ,तो आज से ज्यादा नही 6 महीने पहले तक कहाँ थे याकूब के साथ /खिलाफ लड़ने वाले।आज अचानक मिडिया और पॉलिटिक्स की बात सुनकर सब दो भागो में बट गए।सबने पन्ने रंग डालें ,सोच रंग डाली।मैं भी उनमे से एक हूँ। मुझे भी न्यूज़ मिली।लोगो को लड़ते देख मैंने भी अपनी सोच के मुताबिक ब्लॉग लिख डाला।पर एक बात मैं साफ़ कर दूँ ,मैंने किसी को न तो उपदेश दिया, या कही भी फांसी हो या ना हो लिखा या पूछा। मैंने सिर्फ कलाम साहब और याकूब के जरिये ये जानने की कोशिश की ,कि आखिर गुनहगार कौन हो सकता है ? मीडिया ,पॉलिटिक्स ,आतंकवाद ,जातिवाद ,हथियार बनाने वाले या हम ? मुझे भारत की संस्कृती या भारतीय होने पे गर्व है।दुःख तो इस बात का है,कि  भारत में इतने योग्यवान व्यक्तियों के होते हुए  ,आज भी राजनीती ,आंतकवाद या तो हिन्दू होते है या मुस्लमान।मीडिया या इनके भाड़े के लोग इसी बात का फायदा उठाते है ,और अपनी दाल -रोटी चलाते है।कलाम की श्रद्धांजली भूल ,पंजाब के गुरदासपूर की घटना भूल सब याकूब के पीछे लग गए।अगर आपको लगता है ,फांसी से लोगो में डर बना रहेगा।तो ये भी सच है 20 साल बाद फांसी से भी कोई डर नही बनता।राजनीती होती है बस।इसको इतना उछालने की जरुरत ही नही थी ,जिससे देश दो हिस्सों में बट जाये।कही न कही हमारी न्याययिक प्रणाली भी इसकी दोषी है।जहां पूरा देश कसाब के मौत पे एक मत था ,याकूब पे अलग -अलग क्यों ? मैंने सुना है ,फेसबुक या कोई भी शोसल साइट दंगा या भड़काने वाले पोस्ट को पब्लिश नही करती।पर दुःख के साथ कहना पड़ रहा है ये बिल्कुल झूठ है। इनको भी कमाना है।फेसबुक भरा पड़ा है, याकूब के पक्ष /नपक्ष पे। इतने बुरे- बुरे कॉमेंट पढ़े जिनकी आशा न थी।फर्ज कीजिए मैंने कोई पोस्ट की और, लोग उसपे गन्दी भाषा का प्रयोग कर रहे है ,तो मेरे दोस्त ,भाई ,बहन या पति को गुस्सा नही आयेगा ? अब मुझे समझ आया कैसे और क्यों लोग आतंकवादी बनते है।इसका एक ही उपाय है ,ऐसे कोई भड़काऊ पोस्ट ना  करो या इनपे ढंग का कमेंट करो या तो न करो।कमसे कम हम इसको बढ़ावा न दे।अपने मन की बात लिखना सही है ,सबको लिखने ,सोचने या बोलने की आजादी मिले।पर नफरत फैलाने की कीमत पर ,तो कतई नही।आज न्यूज़ में पढ़ा याकूब की वाइफ को संसद बना दो।क्यों बना दो ? माना उसका पति दोषी /निर्दोष था।इसका ये मतलब तो नहीं अनुभवहीन को सत्ता दे दो।अगर कलाम साहब की पत्नी के बारे में बात होती, तो भी मैं यही कहती।शुक्र है कलाम जी आपने शादी नही की।वरना आपकी बीबी पे भी राजनीती होती।आप सारे हिंदुस्तानी से यही विनती है ,""जैसे आपने एक होके  देल्ही की सत्ता पलट की""।जातिवाद को करारा जवाब दिया।वैसे ही देश का उद्धार करे ,किसी के बहकावे में ना आये। हम सब एक है।या फिर इन राजनेताओ को कहे अगर कर सकते हो तो, सारे मुसलमान भाइयो को उनकी और उनके दोस्तों की सहमति से पाकिस्तान भेज दो।और अगर ऐसा नही कर सकते तो अपनी राजनीति कम से कम जात -पात पे ना करो।आतंकवाद को इससे ना जोड़े। हम जैसे लोगो को न भड़कावो।हमें हिंदुस्तानी बने रहने दो।हम सब में कलाम और याकूब है। किसी कारण वाश अगर हम याकूब बनने की राह पर हो तो ,उम्मीद करती हूँ, हमरे अंदर का कलाम या हमारे भाई -बंधू कलाम हमें सही रास्ते पे जरूर लायेंगे।मुझे उम्मीद है,कि किसी की मौत , जश्न का दिन नही हो सकता। ये हो सकता है, किसी के मरने पर दुःख भी ना हो।मुझे उम्मीद है ,मेरे भाई का दोस्त समझ गया हो।मुझे उम्मीद है ,हमारा भारत भी समझ जायेगा।मुझसे उम्मीद है  !!!!

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