जैसा कि पिछले ब्लॉग में आपने पढ़ा हमलोग पिज़्ज़ा खाने के बाद यात्रा फिर शुरू करते है।फिर से बातो का सिलसिला शुरू हो जाता है।आरव को सीट बेल्ट से दिकत हो रही थी।वो उसे लगाना नही चाह रहा था।अमेरिका में रूल है कि ,छोटे से छोटे बच्चे को गोद में लेके गाड़ी में नही बैठ सकते।उसको सीट बेल्ट लगानी पड़ती है।बच्चो को इसमें थोड़ी दिक्कत होती है ,कारण आसानी से मूवमेंट नही होता।आरव महराज को सीट बेल्ट नही लगनी थी। वो बार -बार ममा की गोद में बैठना है कि जिद करने लगा। हम थोड़ी देर उसे पुलिस अंकल की बहाने बहलाते रहे ,पर वो कहाँ मानने वाला था।अंकिता ने थोड़ी देर के लिए उसे गोद में ले लिया ,और ऊपर से सीट बेल्ट रख ली। डेढ़- दो घंटे बाद पाण्डेय जी और शतेश को रेस्टरूम जाना था।गाड़ी को रेस्ट एरिया में रोका गया। अंकिता ने कहा आरव को भी बाथरूम करा लाती हूँ। तब तक थोड़ी बारिश शुरू होगी थी।रेस्ट एरिया से बाहर आने पर मिस्टर पाण्डेय ने कहा मैं आरव को गोद में लेके गाड़ी तक भागता हूँ ,तुमलोग आओ। मैंने कहा रुकिए मैं छाता ओपन करती हूँ।आरव को बारिश नही लगेगी।मैं छाता ओपन कर ही रही थी कि , मिस्टर पाण्डेय आरव को लेके भागने लगे।मैं भी छाता लेके पीछे -पीछे भागी।आगे -आगे मिस्टर पाण्डेय पीछे -पीछे मैं :)पीछे शतेश और अंकिता हँसे जा रहे है।मिस्टर पाण्डेय आगे निकल चुके थे ,सो मैं भी रुक गई और हँसने लगी।गाड़ी तक पहुँचने के बाद हमें हँसता हुआ देख मिस्टर पाण्डेय ने पूछा क्या हुआ ? उन्हें पता ही नही लगा कि मैं छाता लेके उनके पीछे भाग रही थी :) फिर से गाड़ी स्टार्ट हुई और हम निकल पड़े नियाग्रा फॉल की तरफ।ढाई घंटे बाद हमलोग बफेलो नामक शहर में पहुंचे जहाँ होटल बुक किया गया था।बफेलो से नियाग्रा फॉल आधे घंटे की दुरी पर है ,लगभग 15 माइल।अब आपके दिमाग में ये ख्याल आयेगा कि हॉटेल नियाग्रा में ही क्यों नही ले ली ?आधे घंटे और गाड़ी चला लेते।वो ऐसा है ,भाईयो नियाग्रा भारतीयों या यूँ कहूँ एशियन लोगो के लिए तीर्थ स्थल की तरह है।वहाँ पर भर -भर के इंडियन आपको मिल जायेंगे।वहां होटल मिलना आसान नही था।जो मिल रहे थे वो बहुत ही महंगे।शतेश ने सोचा क्यों न थोड़ी दूर पे हॉटेल लिया जाए।हमें मर्रिअट होटल मिल गया उतने ही प्राइस में।हम जैसे हॉटेल पहुंचे आरव पूछता है ,ये किसका घर है ? अंकिता कहती है ,बेटा ये पाण्डेय जी का घर है। आज से 1 0 /15 साल बाद हम इसे ले लेंगे। आरव भी कम स्मार्ट नही तुरंत कहता है ,अच्छा तो टॉयज कहाँ है ? हमलोग हँस रहे थे उसकी बातो से ,तभी शतेश कहते है ,भाई यहां इनडोर स्विमिंग पूल बहुत अच्छा है।मैंने चेंकिंग के टाइम देखा।मिस्टर पाण्डेय का तुरंत दुखी रिप्लाई अरे यार मैं अपना स्विमिंग कौस्टुम लाना भूल गया।सब हँसते -हँसते लोट -पोट हो गए।अंकिता कहती है ,जैसे कोई कम्पटीसन में जाना है ,कि कौस्टुम जरुरी ही है।हमलोग केक ,बिस्किट खा के 20 /25 मिनट में हॉटेल से नियाग्रा फॉल के लिए निकले।रास्ते भर आरव पूछता रहा हम नियाग्रा फॉल जा रहे है क्या पस्या ऑन्टी ? फाइनली हमने आपने पावन पैर नियाग्रा की धरती पर रखा :) पैर रखते ही इंद्र देव अपनी कृपा बरसाने लगे। हल्की -हल्की बारिश होने लगी। थोड़ी ठंढ भी हो गई थी ,तो हुमलोगो ने जैकेट भी पहन लिया।प्लान हुआ कि आज वाकिंग थोड़ा मुआयना करते है कल " मैड ऑफ़ द मिस्ट "एक बोट राइड है और दूसरा दूसरा " केव ऑफ़ थे विंड्स "जिसमे फॉल का पानी आपके ऊपर थोड़ा पड़ता है ,देखेंगे। हमलोग विजिटर सेंटर पहुंचे। विज़िटर सेंटर और बारिश से गहरा सम्बन्ध था। जब भी वहाँ जाओ बारिश शुरू। अंकिता कहती है ,भगवान गुस्सा होके कह रहे है ,और आओ हमारी प्रिडिक्शन को नही माना।अब भुगतो :P अंकिता ने आरव को स्ट्रॉलर में बिठाया और ऊपर से छाता ओपन कर दी ,ताकि आरव भींगे ना।आरव को कुछ दिख नही रहा था,तो उसने छाते को आगे से थोड़ा उठा लिया था ,जिससे उसका पैंट भींग गया था।हमलोग को बाद में ये मालूम हुआ।हमलोग कुछ ही दूर चले थे कि, कि हमें ट्राम दिखी। बारिश हो रही थी, सो सोचा ट्राम से ही चकर लगा लेते है अभी।ट्राम का टिकेट 2 डॉलर पर पर्सन था।हमने ट्राम ली और चल पड़े।विज़िटर सेंटर से होते हुए सारे पॉइंट तक ट्राम जाती है।"टेरापिन पॉइंट " तक पहुँचने तक बारिश रुक गई। हमने सोचा उतर कर देख लेते है।वहां पहुंचे ओ माय गॉड मिस्ट हवा में तैर रहे थे। ऐसा लग रहा था ,बादल नीचे आ गये हो ,या धुँआ उठा हो।टेरपिन पॉइंट से हॉर्स शू फॉल का बहुत अच्छा व्यू दिख रहा था।बारिश फिर हल्की -हल्की होने लगी।मैंने अपना चश्मा हटाया।बारिश की बूंदो से दिकत हो रही थी।मैंने चश्मे को बैग के साइड में टाँग दिया।तीन/चार फोटो सेशन के बाद हमलोग भाग निकले बारिश जोर होने लगी थी।दौड़ कर वापस ट्राम पकड़ा।जब हमलोग वापस उतर कर गाड़ी तक जा रहे थे ,अँधेरा हो गया था।मुझे अपना प्यारा चश्मा याद आया।बहुत दुःख के साथ आपलोगो को बताना चाहूंगी कि ,मैंने अपनी नकली आँखे खो दी थी :( शतेश ने कहा चल के ट्राम में देखे। मैंने कहा मुझे याद नही कहाँ गिरा होगा।रहने दो बारिश में क्या परेशान होना।वैसे भी मुझे जो चीज़ खरीदी जा सकती है ,उसके गुमने या टूटने /फूटने पे ज्यादा दुःख नही होता।सो मैं आराम से थी ,शतेश परेशान कि मुझे देखने में परेशानी होगी।पर भगवान का शुक्र है ,मुझे दूर का नही दीखता।तो काम चल सकता था :) उसके बाद हमलोग खाने का ऑप्शन ढूंढने लगे।इतना इंडियन खाने का ऑप्शन शायद ही किसी अमेरिकन टूरिस्ट प्लेस पे मिलता है।हमलोग एक पंजाबी रेस्टुरेंट गए।देख के ही लगा बेकार होगा।आगे लिखा था ,पहले बिल भरे फिर खाये। मतलब की खाना इतना गन्दा होगा कि कोई बिना बिल दिए न भाग जाये :) हमलोग वहां से निकल लिए और "जायका "रेस्टुरेंट पहुंचे। थोड़ी वेटिंग थी ,पर खाना ओ माय गॉड इतना स्वादिस्ट।मैंने ये दूसरी बार किसी टूरिस्ट प्लेस पे इतना अच्छा इंडियन खाना खाया।वरना तो थाई ,चिपोटले ,पिज़्ज़ा ही सहारा होते थे :)आरव को भी पालक पनीर खानी थी ,वो भी मिल गया।अच्छा खाने के बाद मन वैसे ही खुश हो जाता है,इतना खाया था ,कि चलने पर पेट दुःख रहा था। हमलोग फिर से फॉल के पास पहुंचे।वहां रात में लाइटिंग होती हैं फॉल के ऊपर तो अच्छा दीखता है ,ऐसा हमने सुना था।हाँ इसी बीच शतेश के एक पुराने दोस्त मिस्टर बाजपेयी जी भी वहां आये थे ,अटलांटा से।शतेश और इनकी मुलाकात सात साल पहले इंफोसिस की ट्रेनिंग में हुई थी। ये शतेश के रूममेट थे।तो शतेश ने इनसे मिलने का भी प्लान बनाया था।वो भी अपनी वाइफ और वाइफ के भाई के साथ लाइटिंग देखने आये थे।शतेश ने कॉल किया और हमलोग मिले।इसी बीच मैं और अंकिता लाइटिंग देख के आये।हमें कुछ खाश नही लगा।हमने झूठी तारीफ करके मिस्टर पाण्डेय और शतेश को देखने भेज दिया :) उन्ही लोग के साथ मिस्टर वाजपेयी और उनकी वाइफ आये।अच्छा लगा उनसे मिल कर।हमलोग बाते करने लगे ,पाण्डेय जी ने कहा हमलोग गाड़ी में वेट करते है तुमलोग आओ बात करके।हमलोग भी 5 मिनट में निकल लिए बारिश होने लगी थी फिर से।वहां से हम हॉटेल पहुंचे। नींद तो आ नही रही थी ,तो फिर से बात -चीत शुरू।अंकिता अपने गाँव की कुछ-कुछ बाते बता रही थी। जो की इतनी मजेदार थी ,हँसते हुए मेरी आँखों से पानी आ रहे थे।वो सब कभी और वरना खाम - खाह एक और पार्ट लिखना पड़ जायेगा :)अगले दिन का सोच के सोने की कोशिश करने लगे ,पर मन किसी का नही था। दूसरे दिन हमलोग 9 बजे तक फिर से फॉल देखने निकल पड़े। आज मौसम अच्छा था ,बारिश भी नही हो रही थी। हमने मेड ऑफ़ द मिस्ट की टिकेट ली ,पर पर्सन आपको 17 डॉलर पेय करना होगा। वो आपको अमेरिकन फॉल एंड हॉर्स शू फॉल दोनों दिखता है।आपको शीप पे जाने से पहले एक नीले रंग का रेनकोट मिलता है। सबको वो पहना जरुरी है, ताकि आप भींग न जाये। पर पता नही क्यों आरव को वो अच्छा नही लग रहा था। वो रोये जा रहा था नही पहना।किसी तरह अंकिता ने उसे पहनाया। भगवान आज कल इतने छोटे बच्चे भी फैशन के मारे है :)इतना सुन्दर नजारा ओह बयां नही किया जा सकता।उसकी तस्वीर यहां है।
उसके बाद हमलोग ब्रीज़ से होते हुए दूसरे पॉइंट ब्राइडल वेल फॉल पहुंचे वो भी इतना खूबसूरत बयां नही किया जा सकता है।हमें घर भी वापस आना था,तो हमलोग वहाँ से निकल लिए।हमलोग एक गिफ्ट शॉप पहुंचे।आरव शतेश के साथ बाहर था।अपलोगो को तो मालूम है शतेश और शॉपिंग :( आरव ग्रिल पे पड़े बारिश की बूंदे देख ,शतेश को कहता है ,अंकल मैं गन्दा पानी पी जाऊंगा।शतेश उसे समझा रहे थे कि मैं पहुंची।आरव अभी भी शतेश को दिखा के पानी पीने का नाटक करने लगा।शतेश उसे डरा रहे थे फेस बना के।आरव हँसते हूए मुझसे कहता है ,पस्या ऑन्टी शतेश अंकल को डरा दो।मैंने तभी मान लिया बच्चो में भगवान होते है।वरना आरव को कैसे पता पति सबसे ज्यादा अपनी बीबी से डरते है :) 2 बज गए थे सोचा खाना खा के निकलते है। हमने सोचा आज कही और खाते है हमलोग पंजाबी हट रेस्टुरेंट गए। वहाँ बुफे था।हमे खाना कुछ खास नही लगा।सो बहाने बना कर निकल लिए।दूसरा 13 डॉलर पर पर्सन तो बींइंग इंडियन हमने अपनी कैलकुलेशन की ,कल भी तो 13 डॉलर ही पेय किया था और खाना भी अच्छा था।तो वही चलते है :)हमलोग फिर जायका पहुंचे।खाना खा कर घर की तरफ निकल लिए।फिर बाते शुरू हो गई :) तभी आरव की नजर मेरी ड्रेस पे गई।मैंने ओवरऑल (बेब ) पहन रखी थी।जिसका जींस फटा हुआ था।उसने मुझसे पूछा ये कैसे फट गया ?मुझे कुछ सुझा नही तो कह दिया गिर गई थी।उसको शायद मेरा जवाब सही न लगा।बोलता है शतेश अंकल आपने पस्या ऑन्टी का पैंट क्यों फाड़ा ? हमलोग हँस -हँस के लोट -पोट हो गए।शतेश बोलते है मैंने नही फाड़ा आरव ये स्टाइल है।जैसे उसे मालूम हो स्टाइल क्या है :)फिर शतेश से पूछता है अंकल हमलोग कहाँ जा रहे है ? शतेश मजाक में बोलते है नियाग्रा।आरव हँसते हुए कहता है अब बस। नियाग्रा अभी तो देखा। फिर हँसी का माहौल छा गया।शाम होने लगी थी।अब सब थक गए थे सो ,सोचा बाते बंद गाने सुनते है।भईया शतेश ने जो लाइन से " पंकज उदास" के गाने बजाये की उदासी का माहौल बन गया :) मेरा सिर थोड़ा -थोड़ा दुखने लगा।वही मिस्टर पाण्डेय और शतेश गाने का मजा लिए जा रहे थे।अंकिता से भी रहा ना गया।बोलती भईया चेंज कर दीजिये।शतेश बोलते है ,माहौल बना रहा हूँ। पाण्डेय जी ने भी शतेश का साथ दिया।मै सो गई। आरव भी मुझे सोता देख सो गया।थोड़े देर बाद आरव को पोटी लगी। बोलता है ममा छिछि करना है। अंकिता बोलती है ,बेटा अभी रास्ते में कही कोई बाथरूम दिखेगा तो चलते है।पर आरव बार -बार कहने लगा।शतेश कहते है ,इसका माइंड डाइवर्ट करो।मैंने हँसते हुए कहा चलो तुम कर के दिखाओ।साथ ही देख लेंगे तुम कितना बच्चा संभाल सकते हो।शतेश आरव को कहते है ,आरव तुम अपना ध्यान पोटी की तरफ से हटाओ। हमलोग फिर हँसने लगे। अंकिता कहती है ,भईया आप माइंड डाइवर्ट कर रहे है या उसे याद दिला रहे है :) यहाँ ये भी एक मुसीबत है, बच्चे को भी रोड साइड बाथरूम नही करा सकते।थोड़ी देर में एक पेट्रोल पंप आया ,आरव को वहां ले जाया गया।और इस तरह हँसते ,सोते ,जागते हमलोग वापस घर आगये।
सलाह :-एक बार नियाग्रा जरूर जाये। जो भी टूर या खाने -पीने की जगहे और चार्ज है वो मैंने लिख रखी है।
No comments:
Post a Comment