सुजॉय घोष ने 14 मिनट की एक छोटी फिल्म बनाई है।जो आज कल सोशल मिडिया में खूब शेयर किया जा रहा है।ये वही सुजॉय है ,जिन्होंने विद्या बालन को लेके कहानी फिल्म बनाई थी।इससे कम से कम आप इनके काम का अंदाजा लगा सकते है। ये जो छोटी फिल्म है ,इसका नाम "अहल्या " है।कुछ लोगो ने मुझसे कहा कहानी अच्छी है ,पर कहानी का अंत समझ नही आया।मैं बहुत बड़ी जानकार तो नही पर अपनी समझ के अनुसार उन्हें समझाया।फिर ख्याल आया ,इसपे भी कुछ लिखू।ये कहानी अहल्या नाम की औरत का ,जिसकी शादी एक अधेड़ उम्र के पुरुष से हो जाती है।फिल्म में शुरु में दिखता है ,एक पुलिस वाला अहल्या के पति के पास ,एक व्यक्ति की खोज में आता है।पुलिस वाला अहल्या को देखता है ,और अहल्या की ओर आकर्षित हो जाता है।घर में टेबल पर कुछ मूर्तियाँ रखी होती है ,जो अचानक गिर जाती है।अहल्या वापस उसे उठा के रख देती है ,और कहती है ,जब भी कोई अंजान व्यक्ति आता है ये गिर जाते है।घर में एक पत्थर भी रखा रहता है।पुलिस वाले की नज़र उसपे पड़ती है। तब तक अहल्या का अधेड़ पति आता है।उससे पुलिस वाले को पता चलता है कि ,अहिल्या शादी -शुदा है।वो पत्थर छूने से पुलिस वाले को मना करता है।पुलिस वाला जिस व्यक्ति की खोज में आया है ,उसके बारे में पूछता है।अहल्या का पति पत्थर को दिखा के कुछ जादू की बाते करता है ,जो पुलिस वाले को मजाक लगती है।उसका पति पुलिस वाले से इसे आजमाने को कहता है।पुलिस वाला थोड़ा घबराता है ,फिर मान जाता है।वो पुलिस वाले को कहता है ,मान लो वो अहल्या का पति है ,और यही सोच के वो अहल्या के कमरे में जाए। पुलिस वाला कमरे में पहुँचता है ,तो अहल्या उसे अपना पति समझती है।पुलिस वाला उसके करीब जाता है।इसके बाद पुलिस वाला खुद को दिवाल में जड़ा पता है।वो बहार निकलने के लिए मदद माँगता है। तभी एक और नया व्यक्ति अहल्या के घर आता है।और इस बार टेबल से पुलिस वाले की मूर्ति गिरती है।फिल्म ख़त्म हो जाती है।ये है कलयुग की अहल्या की कहानी। इसपे अपनी सोच बताने से पहले ,मैं आपको सतयुग की अहल्या के बारे में कुछ बताती हूँ।वैसे तो आपलोगो को मालूम ही होगा ,रामायण में अहल्या के बारे में लिखा /दिखाया गया है।अहल्या महर्षि गौतम (सप्तऋषि ) की पत्नी थी।उनको ब्रह्मा की मानक पुत्री भी कहते है।ब्रह्मा को श्रिस्टी का जनक कहते है। लेकिन पता नही क्या साबित करने के चक्कर में उन्होंने अपने बेटी के भाग्य में अधेड़ पति और पत्थर होना लिखा।अहल्या बहुत ही सुन्दर थी। उनसे विवाह के लिए राजा -महाराजा ब्रह्मा के पास आने लगे। ब्रह्मा ने तय किया जो सबसे पहले तीनो लोक घूम के आयेगा उससे अपनी पुत्री का विवाह करेंगे।अप्सराओ से घिरे रहने वाले इंद्र भी अहल्या पे लट्टू थे।वैसे ये इंद्र के लिए कोई नई बात नही थी।उन्हें देव राज क्यों बनाया गया मुझे आज तक समझ ना आया।भईया लोगन अगर सतयुग में देवताओ द्वारा अपना नेता गलत चुन लिया जाता है ,और उसे हर गलती की माफ़ी है।तो हम तो खैर इंसान है।हम कलयुग वाले इंसान देवताओ से भी आगे है। हम सिर्फ एक इंद्र को ही मौका नही देते। हर 5 /10 /15 साल पर इंद्र बदलते रहते है :) हर किसी को मजा का पूरा मौका देते है।हम मुद्दे से भटक रहे है।तो भाईयो इंद्र ने अपनी शक्तियों का इस्तेमाल किया और टॉप उम्मीदवार बने।लेकिन नारद मुनि ने मामला गड़बड़ कर दिया।उन्होंने ने कहा मुनि गौतम अपनी गाय की सेवा कर रहे थे ,और गाय तीनो लोक के सामान है।तो विजय वो हुए।बेचारी अहल्या कहाँ इंद्राणी बनती ,अब उसे सन्यासनी बनना था :P उसकी शादी अधेड़ गौतम मुनि से हो गई।फिर मेरे मन में प्रश्न आता है ,मुनि गौतम इस उम्र में शादी क्यों कर रहे है भाई ? अगर करना ही था तो ,पहले करते। मुनि होने का ये मतलब नही की अपनी इच्छाओ को दबाओ ,और अगर दबा ही दिया तो एक सुन्दर नारी के लिय तोड़ दो क्या बात है।साबित होता है ,इस केस में भी सतयुग वाले हमसे पीछे थे।मुनि गौतम ,हमारे पास श्री आसाराम बापू जी है।हमलोग इंद्र की तरह आपके श्राप से डरे नही।आप तो सर्वज्ञानी है ,आपको मालूम ही है उनका आश्रम आज कल कारागाह में है :P फिर मुद्दे से भटकी मैं ,क्या करू मन बड़ा चंचल जीव है। तो शादी के बाद अहल्या मुनि की पत्नी बन कर आश्रम में रहने लगती है। इंद्र को अभी चैन नही। वो चन्द्रमा से मिलकर चाल चलते है। भईया वो सतयुग ही था ना ,या ग्रंथो में गलती हो गई :)दुस्ट को राजा बनाना ,बुढ़ापे में काम उम्र की कन्या से विवाह ,पराई नारी से प्यार ,चाल और ...... खैर चन्द्रमा भोर होने का सिग्नल देते है। सर्वज्ञानी मुनि गौतम को कुछ पता नही चलता है ,और गंगा स्नान को सुबह समझ के चले जाते है। उघर उनके जाते ही इंद्र मुनि गौतम का रूप धर कर ,अहल्या के पास आते है।अहल्या भी भोली उसे शक नही होता ,की स्वामी इतनी जल्दी कहाँ से पधार गए ? :) कही -कही पढ़ा या सुना है ,अहल्या को मालूम था ,वो इंद्र है।दोनों एक होते है ,तभी गंगा मईया मुनि को बताती है। अरे मूरख मुझमे अपनी लुटिया ना डूबा ,तेरी लुटिया डूब गई है (हा -हा -हा) घर जा ,इंद्र तेरे घर आया है।मुनि घर आते है ,और इंद्र और अहल्या को देखते है।गुस्से में अहल्या को श्राप देते जा पत्थर बन जा।इंद्र को श्राप देते है ,कुरूप और पुरुसार्थ हीन हो जा।दोनों माफ़ी माँगते है। इंद्र को कहते है प्राश्चित कर तेरे पाप की अवधि कम हो जायेगी ,तू फिर राज करेगा।हा हा हा सतयुग में स्वर्ग के लिए योग्य व्यक्ति की राजा पद के लिए कमी थी। लेकिन यहां भी हम आगे है ,आपके पास ब्रह्मा ,बिष्णु ,महेश ,वरुण देव,अग्नि देव ,ये देव ,वो देव सब थे ,फिर भी इंद्र। हमने टोपी वाले ,साड़ी वाली ,पगड़ी वाले ,कोट वाले ,कुरता वाले ,लुंगी वाले ,मफलर वाले ,चाय वाले ,झाड़ू -पोछा ,हाथी ,लालटेन ,कूड़ा -करकट सबको मौका दिया।मुनि अहल्या को कहते है ,त्रेता युग में राम आएंगे ,उनके चरण स्पर्श से फिर नारी बन जाओगी।अंतर्यामी मुनि देव हद हो गई हद सतयुग को ख़त्म होने में 1 ,728 ,000 साल लगे। इसके बाद त्रेता युग आता है।आपको इतने आगे का मालूम है की,राम आएंगे ,पर 1 /२ घंटे पहले का पता न चला की इंद्र आयेंगे ;) आपने श्राप में भी पक्षपात किया ,आपको अहिल्या को कुरूप बनाना था और इंद्र को पत्थर।आपको क्या पता एक औरत के लिए कुरूपता किसी श्राप से कम नही :) इंद्र को तपस्या से मुक्ति और अहल्या को पैर से छुने से।अहल्या इंद्र के पास नही इंद्र अहल्या के पास आया था।अगर उसे मालूम भी था ये इंद्र है ,तो इसमें आपकी और ब्रह्मा की गलती थी।जब आप जैसे ज्ञानी को इच्छा हो सकती बुढ़ापे में सुंदर ,युवा कन्या से शादी की।तो उसको क्यों नही ,वो आपकी तरह ज्ञानी और मैचोयोर नही।सजा का निवारण भी ऐसे के पैर से जो व्यक्ति (राम )अपनी पत्नी पे भरोशा नही करेगा।वाह गौतम मुनि आपने भी साबित किया सतयुग हो या कलयुग सजा हमेशा महिलाओ को ही ज्यादा मिले और उनका स्थान पुरुषो के चरणो में हो।पुरुषो को हर चीज़ में छूट।मुझे बहुत ख़ुशी है ,मैं कलयुग में हूँ।यहां बहुत सारे इंद्र ,गौतम ,अहल्या है।फिर भी हमेशा तो नही पर कभी -कभी अहल्या की जीत होती है।ऐसी ही जीत की कहानी है ,सुजॉय घोष अहल्या। इसकी कहानी काफी मिलती है ,सतयुग की अहल्या से।अलग है तो ये की, इस बार अहल्या को श्राप नही ,इंद्र को मिलता है।और इस बार गौतम यानि अहल्या का पति अहल्या के साथ होता है।बहुत -बहुत धन्यवाद घोष साहब जो आपने अहल्या का दर्द समझा।आपके फिल्म को आये 2 वीक से ज्यादा हुए। पर कोई हंगामा नही संस्कृति के नाम पे। एक तरह से ये अच्छा है ,या फिर हो सकता है ,लोग अब तक गजेन्द्र चौहान की नियुक्ति ,हिंदुत्व ,मांसाहार पे ही अटके हो। या बिहार की चुनाव की रणनीति बना रहे हो।
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