Thursday, 13 August 2015

एक डोम राजा और दूसरा काशी नरेश !!!!

आपलोग सोच रहे होंगे कि , आज मैं किसी राजा -वाजा के बारे में कुछ लिखने वाली हूँ।आपके चेहरे पे मुस्कराहट भी होगी ,चलो काफी दिनों बाद राजा -रानी की कहानी पढ़ेंगे।पढ़ने को भले कम मिले पर फिल्मो में राजा -रानी आते रहते है , कभी काल्पनिक तो कभी इतिहासिक रूप में।अभी हाल में ही " बाहुबली " इसका उदाहरण है।पर मैं आज ना राजा की बात कर रही हूँ ,ना बाहुबली की।आज मैं "मसान" मूवी की बात कर रही हूँ।मेरे एक दोस्त प्रशांत ने मुझे इस पर लिखने को कहा।मुझे ख़ुशी है ,आपने मुझे इसके लायक समझा।कभी -कभी शब्द भावनाओं को व्यक्त नही कर पाते ,जबतक आप देखते या महसूस नही करते।फिर भी मैं अपनी सोच के हिसाब से लिख रही हूँ।मसान अपने आप में ही विशाल है।मैं मसान शीर्षक की बात कर रही हूँ।मसान को आम बोल चाल की भाषा में "शमशान" भी कहते है।ये वो जगह है ,जो ज्ञानी के लिए ज्ञान केंद्र ,दुखियो के लिए दुःख का सागर ,संतो के लिए मुक्ति मार्ग ,और आम जनजीवन के लिए मुक्ति स्थल हो सकता है या है।बनारस में दो ही राजा है।इस पार काशी विश्नाथ /काशी नरेश और दूसरी पार हरिश्चान्द्र घाट के डोम राजा।दोनों ही मुक्ति दिलाने में मदद करते है।बात फिल्म की तो ,ये फिल्म नीरज घयवान ने बनाई है।फिल्म में दो कहानी एक साथ चलती है।निर्देशक ने एक तरफ एक लड़की ,देवी (रिचा चड्डा ) को मजबूत औरत के रूप में तो दूसरी तरफ दीपक (विक्की कौशल )की भावनाओ को बहुत अच्छी तरह दिखाया है।फिल्म के लिए बनारस से अच्छी जगह शायद ही कही होती।मसान कोई आर्ट मूवी ,या सैड मूवी नही।ये काफी हद तक छोटे शहरो की सचाई है।फिल्म में प्यार ,जिज्ञासा ,जात -पात ,लालच ,मृत्यु ,बेबसी बहुत अच्छे ढंग से दिखाई गई है।साथ में इंडियन ओशन का बैकग्राउंड म्यूजिक , ग़ालिब और दुष्यंत कुमार की कविताये चार चाँद लगा देती है।मुझे भी अपने भाई की वजह से एक बार इंडियन ओसेन के ग्रुप से मिलने का मौका मिला था।पुणे के ईशानिया मॉल में।तब नही मालूम था इनके बारे में।खैर कहानी कुछ इस तरह है।
देवी एक कम्प्यूटर इंस्टिट्यूट में रिसेप्नलिस्ट के साथ प्रोजेक्ट टाइप करने और बच्चो को पढाई में हेल्प करने का काम करती है।वही उनकी मुलाक़ात पीयूष  नाम के लड़के से होती है।पीयूष बनारस में पढता है।प्रोजेक्ट टाइप करवाने इंस्टिट्यूट में आते रहता है।दोनों को 2 /4 मुलाकातों में प्यार हो जाता है।दोनों को प्यार और सेक्स की जिज्ञासा होती है।देवी शादी - शुदा औरतो की तरह साड़ी ,बिन्दी लगा कर पीयूष के साथ होटल जाती है।होटल के कमरे में पीयूष उसे एक गिफ्ट देता है।दोनों प्यार कर रहे होते है ,तभी पुलिस का छापा पड़ता है।भागने का मौका ना मिलने और पुलिस के डर से पीयूष खुद को बाथरूम में बंद कर लेता है।पुलिसवाला उसे बाहर निकलने को कहता है।नही निकलने पर उसके घर कॉल करने लगता है।शर्म की वजह से पीयूष बाथरूम के शीशे को तोड़ आत्महत्या कर लेता है।वही पुलिसवाला नंगी देवी का विडिओ बना लेता है।पुलिसवाला देवी के पिता विद्याधर पाठक (संजय मिश्रा ) को पोलिस थाने बुलाता है। देवी की जमानत देने को कहता है ,उसे बताता है देवी क्यों पकड़ी गई।आम परिवार की तरह घर आने पर देवी की धुनाई होती है।वही देवी को अपने किये पर कोई शर्म नही है।उसे लगता है ,लड़का अच्छा था ,दोनों प्यार करते थे।पर वो भूल जाती है ,वो बनारस में है ,जहाँ लीव इन रिलेशन तो दूर की बात।प्यार पर चपले गिरती है।पीयूष के मरने के बाद पुलिसवाला दोनों बाप बेटी को ब्लैक मेल करता है।कभी कोर्ट -कचहरी के नाम पर तो कभी उसकी नंगी विडिओ उपलोड करने के नाम पर।उनको 3 महीने में 3 लाख रूपए देने को कहता है।दोनों बाप -बेटी मिल कर हर महीने रूपये का इंतज़ाम करते है। कभी फिक्स डिपॉज़िट तोड़ कर ,कभी देवी की नई रेलवे की कांट्रेक्टिंग नौकरी की मदद से तो कभी पिता की छोटी सी पूजा -पाठ की सामग्री की दुकान से तो कभी दूकान पर काम करने वाले अनाथ बच्चे झोटला के ऊपर दांव लगा के।एक सीधे -साधा संस्कृत शिक्षक ,कर्म कांड करवाने वाले पिता अपनी उसूलो को छोड़ बच्चे के ऊपर दांव लगता है ,सिर्फ लोक -लाज के भय से।दूसरी तरफ दीपक डोम जाती का होता है।ये बनारस के डोम घाट /हरिश्चंद्र घाट पर रहता है।इनका पुश्तैनी काम लाशों को जलना है।दीपक इन सब से निकलना चाहता है।वो सिविल इंजीनिरिंग में डिप्लोमा कर रहा है।इसी बीच उसे एक बड़ी जाती वाली लड़की शालू गुप्ता (श्वेता त्रिपाठी) से प्यार हो जाता है।प्यार की शुरुआत फेसबुक पर बात -चीत से होती है।शालू को जब मालूम होता है ,दीपक छोटी जाती है ,उसे कोई फर्क नही पड़ता। दीपक को कहती है ,तुम्हे अच्छी नौकरी लग जाये ,तो घरवालो से बात करेगी।घरवाले नही मानेगे तो उसके साथ भाग जाएगी।दीपक प्लेसमेंट की तैयारी में जी -जान से जुट जाता है।शालू अपने परिवार वालो के साथ तीर्थ को जा रही होती है ,तभी उनकी बस नदी में गिर जाती है।शालू की मौत हो जाती है।उसे हरिश्चंद्र घाट पे जलाने को लाते है।आज घाट पर बहुत भीड़ होने और दीपक का पिता के दारू पीने की वजह से।दीपक को आपने भाई की मदद लाश जलने में करने थी।घाट पे उसे मालूम होता है ,शालू की बस का एक्सीडेंट हो गया है।सामने चिता पर शालू लेटी है।शालू की मौत के बाद दीपक टूट जाता है। काफी मुश्किल से उसे इलाहाबाद बाद में नौकरी लगती है।उधर देवी भी पुलिसवाले का पूरा पैसा चूका कर ,रेलवे की नौकरी छोड़ देती है।आगे पढ़ने के लिए इलाहाबाद चली जाती है।इलाहाबाद जाने का एक और कारन पीयूष के माता -पिता से माफ़ी मांगना और सचाई बताना भी है।पीयूष के पिता देवी को समझ नही पाते है ,देवी को गली दे घर से जाने को कहते है।देवी गंगा मैया में ,पीयूष का दिया गिफ्ट बहा कर फुटफुट कर रोने लगती है।वही पास बैठा दीपक उसे रोता देख ,पानी पीने को  देता है।सामने एक नाव वाला सवारी की तलाश में इनको अपने साथ संगम देखने जाने को कहता है।दोनों तैयार हो जाते है।नाव में बैठ कर दोनों बात करना शरू करते है। दीपक बताता है ,संगम दो बार आना चाहिए।एक बार अकेले एक बार जब आपके साथ कोई हो।फिल्म खत्म हो जाती है।साथ में छोटे शहरो की सच्चाई दिखा जाती है।कैसे दो बालिग लोगो को मिलने के लिए शादी -शुदा होने का ढोंग करना पड़ा।पकडे जाने पर शर्म से जान देनी पड़ती है। कुछ घटिया पुलिसवाले मौके का फयदा उठाते है।लाचार माँ -बाप अपनी उसूलो को छोड़ लोक -लाज के चक्कर में पड़ जाते है।दूसरी तरफ छोटी जाती का होने के बवजूद दीपक आखिर है ,तो एक इन्सान।उसे भी पढ़ना है ,कुछ करना है।उसे भी प्यार हो सकता है,सुन्दर भविष्य की कल्पना कर सकता है।कैसे आज भी फेसबुक छोटे जगहों के लिए बड़ी बात है।कैसे दीपक शालू को घूमाने के लिए दोस्तों से मोटरसाइकिल मांगता है ,पेट्रोल भरवाने के शर्त पर।शालू के साथ रेस्तरॉ जाना और ऐसे बरताव करना ,जैसे वो सेजवान सॉस रोज खाता हो।दीपक के दोस्तों का कहना लड़की अपर कास्ट है ,ज्यादा सेंटी मत होना ,जरुरी नही शहर में सब समझदार हो।शालू का शेरो -शायरी से प्यार।कैसे देवी और दीपक दोनों अपना प्यार खोते है।पर हिम्मत नही हारते।साहस के साथ जीवन जीना और दुःख को भूलने की कशिश करते है।किसी के जाने से दुनिया रुक तो नही जाती।आगे बढ़ना ही पड़ता है ,या उन्हें उन्हें ग़ालिब के शेर रास आ गई होगी।  
आँखों में महफूज रखना सितारों को 
अब दूर तलक सिर्फ रात होगी 
मुसाफिर तुम भी हो मुसाफिर हम भी है 
किसी ना किसी मोड़ पर फिर मुलाकात होगी।   

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