एक फिल्म आई है ,"माँझी द माउंटेन मैन "।जिसके पोस्टर पर छोटे अक्षरो में नीचे लिखा है ,एक इंसान जिसने प्यार के लिए पहाड़ तोड़ डाला।मुझे स्वर्गीय दसरथ माँझी के बारे में पहले से मालूम था।पर मैंने कभी ये नही सोचा था की ,बिहार की पृष्टभूमि को लेकर कोई भी डायरेक्टर प्रेम कहानी बनायेगा।धन्यवाद केतन मेहता जी।बिहार को लेकर तो बस नफरत ,गुंडागर्दी ,अपहरण जैसी ही मुद्दो पर ही फिल्मे बनी है।सफल भी हुई है।लोगो ने खूब तालिया भी बजाई है।बाद में हमारे दोस्त हम जैसे बिहारी से पूछते भी है ,क्या सच में बिहार में यही सब होता है ? मैं हँसते हुए जबाब देती हूँ।हाँ होता तो है ,पर ये बताओ की किस राज्य में ये नही होता है ? सुपर मॉडल गुजरात ही देख लो।वहां तो कांड की सीमा पार हो गई।फिर भी बदनामी सिर्फ बिहार के नाम।माफ़ कीजिए मैं आज बिहार की वकालत पर नही लिख रही।बस ये छोटे -छोटे टीस है ,जो आपके तानो से भरते नही।हमें अखंड भारत बनाना है।ना की राज्य पर राज्य।मन में इतने सारे ताने -बाने है ,की उलझ ही जाते है।जैसे लिखना था ,मांझी पर पहुँच गई बिहार।खैर दसरथ माँझी कोई राजा दसरथ नही थे ,ना ही पूर्व बिहार के मुख्यमंत्री जीतन राम माँझी के सगे -संबंधी।कही नाम समान है ,तो कही कुलनाम।माँझी बहुत ही गरीब और समाज के बनाये हुए ,सबसे निचले तबके से थे।बिहार के गया जिले के गहलोत गाँव के रहने वाले।गाँव से छोटे शहर के लिए भी लम्बी दुरी तय करनी पड़ती थी।गाँव के पास पहाड़ होने के कारण रास्ता नही था।लोगो को पहाड़ का चकर लगा कर या पहाड़ चढ़ कर पास के छोटे शहर तक जाना होता था।फिल्म में इसी सच्ची घटना को दिखाया गया है।कैसे माँझी जमींदार के यहाँ काम नही करना चाहते।कैसे बाल -विवाह "फगुनिया " से हुआ ? कैसे जमींदार लोगो पर जुल्म करता है ,कैसे किसी की पत्नी को जमींदार का बेटा उठा लेता है ? कैसे उस औरत का पति नक्सलवाद की दहलीज़ तक पहुंच जाता है ? कैसे फगुनिया बिपरीत परिस्तिथि में माँ बनती है ? दसरथ के लिए खाना ले जाते वक़्त पहाड़ नही चढ़ पाती।कैसे पहाड़ से गिर कर फगुनिया की मौत होती है ? कैसे माँझी ने पहाड़ तोड़ने की सपथ ली थी ? आकाल का दर्द।कैसे राजनीती , घूसखोरी ,पत्थर माफिया ,न्यूज़ रिपोटर और माँझी अपनी मंजिल तक पहुँचते है ? एक बार तो माँझी के मिसाल के लिए फिल्म देखनी चाहिए।इसलिए कहानी आधी अधूरी लिखी।पर एक बात तो लिखनी पड़ेगी।आज कल कोई प्यार या फिल्म का ऐसा सीन "बाहुबली " के सीन से न मिले तो प्यार अधूरा ही होगा मानो।फिल्म के गाने में पहाड़ और झरने से गिरते माँझी और फगुनिया।मुझे हँसी आ रही थी ,काश माँझी होते तो कैसा रियेक्ट करते इसपर ? कम से कम एक आम इंसान तो ऐसा प्यार नही कर सकता।हो सकता है ,डायरेक्टर को लगा हो ,भईया रियल के चक्कर में रील के पैसे न डूब जाये।जनता -जनार्दन की भी तो सोचना है।कुछ बनावटी सीन को छोड़ फिल्म इतनी अच्छी है ,कि आपके आँखों में आँसू आ जायेंगे।नवाजुद्दीन की बेहतरीन अभिनय।फिल्म के सवांद बेहतरीन।जैसे बहुत बड़े हो ,बहुत घमंड है ,तोड़ के रखूंगा तुम्हे।एक बार चुनाव जीतो घर एकदम संगमरमर ,नीच जात सब लात की भाषा समझे है , मूस (चूहा ) खाते -खाते जानवर घुस गया है माथा में,दिल्ली दूर है ,जबरदस्त ,शानदार ,जिन्दाबाद।फिल्म देखने के बाद मैं सोच रही थी कि ,प्यार सिर्फ शाहजहाँ ही नही कर सकता, माँझी जैसे भी कर सकते है।लैला -मजनूँ ,हीर -राँझा , रोमिओ -जूलियट ,कृष्णा -राधा से कही बढ़ कर है, "दसरथ -फगुनिया" का प्यार।लैला -मजनूँ ,हीर -राँझा ,रोमियो -जूलियट प्यार में जान दे देते है।प्यार में मारना ही सर्वपरी प्यार नही।वही कृष्ण तो राधा की मटकी फोड़ ,वस्त्र चुरा ,रास रंग में रहने वाले ,उन्हें राधा की क्या पीड़ा महसूस हो ,जब सहस्त्र रानीयाँ हो।शाहजहाँ ने मुमताज के मरने के बाद 22 हज़ार मजदूरो को काम पर लगा कर "ताजमहल " बनवाया।जो प्रमुख मजदुर थे ,उनके हाथ तक काट डाले ,ताकि भविष्य में दूसरा ताज न बने।पर उस ताज का क्या फायदा ,जो न तो उसकी बेगम देख पाई ,ना उसको बनाने वाले हाथ रह पाये।दूसरी तरफ एक अछूत ,गरीब दसरथ माँझी जो ना तो राजा था ,ना पत्नी के मरने पर आत्महत्या की ,ना तो दूसरी शादी और ना पत्नी के मटके फोड़े।अलबत्ता उसे तो पत्नी के मटके फूटने का दुःख हुआ।कारण चाहे गरीबी ही हो।पत्नी के दुःख के साथ और जन कल्याण के लिए अकेला 22 साल पहाड़ को काटता रहा।कोई आधुनिक हथियार नही बस छेनी और हथौड़ी।हो सकता हो उस वक़्त उसे जन कल्याण की सुध ना हो ,पत्नी मोह भी ना हो ,बस एक गुस्सा एक हठ कि तुम्हारे कारण मेरी पत्नी नही रही ,तुम्हारे कारण मुझे रोजगार के लिए तुझे पार करना होता है ,तुम्हारे कारण मेरे बच्चे स्कूल नही जा पाते।कारण जो भी हो ,एक अकेले इंसान की कामयाबी शायद इससे ज्यादा नही हो सकती।वैसे बिहार में हठी लोगो की कमी नही।शतेश बताते है ,इनके गाँव के एक पंडित ने कुरता पहना छोड़ दिया ,कारण समय पर उनकी पत्नी इस्त्री करके नही लाई।एक व्यक्ति बस का इंतज़ार कर रहे थे ,बस टाइम पर नही आई तो पैदल ही 10 /12 किलोमीटर चल दिए।मेरी दादी जब तक रही उन्हें "कियोकार्पिन " तेल ही लगाना था ,चाहे कही से लाओ।प्रोफेसर आनंद कुमार को ही देखे ,उन्हें हर साल 28 /30 आई आईटीएन बनाना है तो बनाना है।अब लालू प्रसाद को ही देख ले ,जितने भी घोटाला किये हो पर राजनीती तो जिद है भाई।खुद नही तो बीबी ,साले, बेटी ,बेटा सब को जोत दो।नीतीश जी की तो बात ही न्यारी है ,इन्होने केंद्र सरकार से हमेसा की तरह दुश्मनी ही रखनी है।खैर जाने दीजिये ,देर से ही सही पर मांझी के प्यार को दुनिया ने जाना।कम से कम फिल्मो के जरिये ही बिहार का दूसरा पहलू लोगो को दिखा।वरना धारणा तो ऐसी है कि , हम तो बन्दूक की नोक पर लड़कियाँ उठाते है।ऊ काहे है भाई आर्यभट ,चाणक्य ,गुरुगोविंद सिंह ,शेर शाह सूरी ,वीर कुंवर सिंह ,राजेन्द्र प्रसाद ,जयप्रकाश नारायण ,जगजीवन राम ,रामधारी सिंह दिनकर ,विद्यापति ,गोपाल सिंह नेपाली ,नागार्जुन ,बिश्मिल्ला खान ,शारदा सिन्हा ,प्रकाश झा ,इम्तियाज़ अली ,मनोज वाजपई ,हो तो बिहारी ही ना।जाने बिहार की त्रासदी कब ख़त्म होगी ? कब तक माँझी को आज के युग में छेनी हथौड़ी उठानी होगी ?
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