Friday, 27 November 2015

KHATTI-MITHI: शाइनिंग इंडिया और असहिष्णुता

KHATTI-MITHI: शाइनिंग इंडिया और असहिष्णुता: भाईयों और बहनों मैं थोड़ी कंफ्यूज हो गई हूँ।और इसी उम्मीद में कुछ लिख रही हूँ ,ताकि आपलोग  मेरी कन्फ्यूजन दूर कर सके।ये "असहिष्णुता &qu...

शाइनिंग इंडिया और असहिष्णुता

भाईयों और बहनों मैं थोड़ी कंफ्यूज हो गई हूँ।और इसी उम्मीद में कुछ लिख रही हूँ ,ताकि आपलोग  मेरी कन्फ्यूजन दूर कर सके।ये "असहिष्णुता " का सचमुच मतलब क्या है ? माँ रे माँ यहाँ तो ये शब्द टाइप करने में ही मेरी लग गई।कितनी कोशिश के बाद सही लिख पाई।वैसे इंटॉलेरेन्स तो कई बार सुना था ,ये भी सुना था बर्दास्त से बाहर और मेरा पंसदीदा अब झेला नही जाता।पर ये शब्द जो असहि---- आज कल ज्यादा ही प्रचलित हो गया है।माफ़ कीजिये खाली स्थान आप खुद भर ले।मुझे भी दस बार टाइप करना बर्दास्त के बाहर हो रहा है।कई रूपों में इसका आजकल प्रचार हो रहा है।पर मुझे ठीक -ठीक समझ नही आ रहा है।ये भरी -भरकम शब्द का सही मतलब है क्या ? वैसे अमेरिका में थैंक्सगिविंग की छुट्टी है ,और शॉपिंग पर भारी छूट है।लोग मैराथन शॉपिंग कर रहे है।ऐसे में शतेश का ये कहना यार हमसे नही हो पायेगा, कही ये भी असहि ---- तो नही ?ये तो थोड़ा पर्सनल हो गया।पर क्या देश से दूर रहना भी इसी कैटगरी में आता है ? मेरे कहने का मतलब ,यार ऑनसेट कब मिलेगा ? कब ग्रीनकार्ड आयेगा ?कब सिटीजनशिप मिलेगी ? बात चाहे डॉलर /यूरो /दिनार की हो पर आप अपना देश तो छोड़  ही रहे है।इसका मतलब भारत की आर्थिक स्थिती ठीक नही, या जो पैसे मिलते है उससे गुजरा मुश्किल से होता है।या फिर बाहर देश में सुख- सुबिधा ज्यादा है।अरे क्या बात करते हो मतलब भारत में सुबिधाये कम है क्या ? अरे असहि---- लड़की ! तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई ये बोलने की ? या फिर उन शादीशुदा जोड़ो  की भावना कि जीतनी जल्दी हो अमेरिका/यूरोप में बच्चे पैदा करो।बच्चो को नागरिता मिल जाएगी।उनका भविष्य उज्जवल हो जायेगा।इसका क्या मतलब भारत में पैदा होने वाले बच्चो का भविष्य अंधकारमय होगा ? फिर यहां भी कही असहि ---- तो नही लागू होगी ? राम -राम कैसी बात कर रही हो तपस्या ? हम सब तो थोड़े समय के लिए अमेरिका /यूरोप /दुबई या कही और है।फाइनल डेस्टिनेशन तो इंडिया ही है।पर अभी वहाँ बहुत मारा -मारी है ,सैलरी में कुछ ज्यादा बचता नही ,अरे बच्चो के स्कूल फीस भी बहुत है।क्या अपने दोस्तों के बीच में भारत की कुछ ऐसी बातें करना भी असहि---- है ? लालू ,मोदी और केजरीवाल सब एक है ,कहना भी असहि ----- है ? कही सोशल मिडिया पर हम कुछ ज्यादा ही असहि -----तो नही हो रहे है ? हर बात पर बवाल करना हमारी आदत तो नही बन गई ?ऐसे भरी -भरकम शब्द का प्रयोग करने से अच्छा ,की हम हँसी मजाक में ही कहते रहे यार रहीम /राम अब नही झेला जाता।चल यार चाय या दारू पीते है।चाय या दारू  पर राम/रहीम पूछता यार तपस्या ये "शाइनिंग इंडिया " को क्या हो गया है ? इसकी "शाइन " इस हिंदी के "असहिष्णु " शब्द से फीकी तो नही पड़ रही है।
नोट :-मुझे ऐसा लगता है इंडिया में इंटॉलरेंस से ज्यादा ऑपर्चुनिटी की कमी है ,सही मीडिया की कमी है ,शिक्षा की कमी है। वरना जो "हिन्दू " देश के बाहर रह रहे है ,वो अपने देश क्यों नही जाते ? जो हिन्दू दुबई या कुवैत भेड़ चराने या पाइप फिटिंग का काम मुस्लिम देश में करते वो भारत में क्यों नही करते ? मैं अभी भी ठीक से समझ नही पाई हूँ इस शब्द के मायने। कृपया बिना लड़े -झगडे मेरी शंका दूर करे।   

Monday, 23 November 2015

KHATTI-MITHI: चलो घर चलते है !!!

KHATTI-MITHI: चलो घर चलते है !!!: छुन्नू लाल मिश्रा जी द्वारा गया भजन "कइसे सजन घर जइबे  हो रामा समझ ना आवे।प्रेम नेम कछू जानत नहीं ,साईं के कइसे रिझबे हो रामा समझ ना आ...

चलो घर चलते है !!!

छुन्नू लाल मिश्रा जी द्वारा गया भजन "कइसे सजन घर जइबे  हो रामा समझ ना आवे।प्रेम नेम कछू जानत नहीं ,साईं के कइसे रिझबे हो रामा समझ ना आवे।कइसे सजन घर जइबे हो रामा समझ ना आवे"।कबीर का ये भजन भक्ति- भाव के संदर्भ में है, पर कही ना कही आज से दो साल पहले मेरे मन की दशा थी।ये दशा प्रेम ,नए परिवेश का डर, अपनों से बिछोह का दुःख सबका मिश्रण था।दो साल के बाद आज फिर से मैं ससुराल जा रही हूँ ,पर आज मन की भावनायें कुछ अलग थी।कबीर की ही भाषा में "मन का भ्रम मन ही थे भागा ,सहज रूप हरि खेलन लागा"।रही बात प्रेम की तो "नयनन की करि कोठरी ,पुतली पलंग बिछाय।पलकन की चिक डारिकै पिय कूँ लियौ रिझाय"।और इन दो सालो में ससुराल को कुछ ऐसा जाना जैसे "हम वासी उस देश के ,जहां बारह मास बसंत ,नीझर झरै महा अमी ,भीजत है सब संत।खैर कबीर मोह से बाहर आते हुए मैं अपनी बिहार यात्रा शुरू करती हूँ।छपरा स्टेशन पर हमारी ट्रैन रात को 1 :30 पर पहुँची।मेरे ससुर जी (शतेश के पिता ) रेलवे के डाक बिभाग में काम करते है।इस विभाग में 24 घंटे काम चलते रहते है।आप अपनी सुबिधा के अनुसार दिन या रात की ड्यूटी चुन सकते है।हाँ रात में काम करने का एक फायदा है कि ,आपको अगले दिन और रात दोनों की छुट्टी मिल जाती है।मतलब सप्ताह में 3 /4 दिन का ही काम करना होगा।मेरे ससुर जी को ये ऑप्शन ज्यादा पसंद है ,इसलिए उन्होंने रात की ही ड्यूटी चुनी है।उनके अनुसार ऐसे घर के काम मसलन खेती गृहस्ती को भी समय मिल जाता है।उस दिन भी उनकी ड्यूटी थी।ऐसे तो ससुर जी घर से ट्रैन या बस से छपरा आते थे ड्यूटी के लिए।पर जब भी घर के किसी सदस्य के आने की बारी होती तो वो घर से गाड़ी और ड्राइवर के साथ आते।स्टेशन पहुँचते उनका फ़ोन आया।कहाँ हो तुमलोग ? शतेश उनको बोले आप वेटिंग रूम के पास रुकिए हमलोग पहुँचते है।पापा मुझे देखते ही बोले "सब केउ मोटा जाई लेकिन तपस्या ना।ई त जइसन गइल रहे वइसन ही आयल बिया।मैंने कहा पापा ई त ख़ुशी के बात बा न की हम बदलनी ना।पापा हँस पड़े।सामान के साथ मुझे मच्छरों के बीच वेटिंग रूम में बिठा कर, पापा मेरे भाई और शतेश के साथ बाहर चले गए।थोड़ी देर में शतेश और भाई आये ,बोले पापा वापस ड्यूटी पर गए।कह रहे थे अभी थोड़ी रात है तो 3 :30 तक निकलते है।दोनों थोड़ी देर बैठे पर गर्मी और मच्छरों ने इलेक्शन कैंपिंग चालू की थी ,कि कौन बाजी मरता है।दोनों मुझसे बोले चलो बाहर बैठते है।बाहर थोड़ी हवा चल रही है।पर मैंने आदर्श बहू का फर्ज निभाते हुए बोला तुम दोनों जाओ।पापा का ऑफिस पास है ,उनके दोस्त या कोई स्टाफ देखेगा तो क्या कहेगा ?दोनों निरमोही।मुझे मच्छरों के बीच छोड़ कर भाग चले।मेरी आँखे वेटिंग रूम का मुआयना करने लगी और हाथ पैर मच्छर भगाओ आन्दोलन में लग गए।वेटिंग रूम में दो और परिवार थे।जिन्होंने इकलौते सीलिंग फैन के नीचे अपना चादर डाल दिया था।एक परिवार में सिर्फ माँ और 4 /5 का बच्चा सो रहा था।माँ बीच -बीच में बच्चे को बाँस के पँखे से भी हवा कर रही थी।पंखे के नीचे होने पर भी उनलोगो को उस मंद गति पंखा का हवा नही लग रह था।उस माँ को देख कर लगा सच में माँ को नींद में भी अपने बच्चो की चिंता होती है।मेरा अच्छा था ,पसीने से कपडा भींग गया था ,और थोड़े से भी हवा से दो पल के राहत जैसा कुछ लग रहा था।पता नही सच था या छलावा।दूसरा परिवार जिसमे पति -पत्नी एक छोटा बच्चा।जो अभी बैठ या खड़ा नही हो पा रहा था।शायद एक साल या उससे छोटा हो ,और बच्चे की दादी।तीनो मिल कर बच्चे को खड़ा करने की कोशिश में लगे थे।थोड़ी देर बाद बच्चे की दादी उसे तेल मालिस करने लगी।उसके पिता ने कपडे बदला।माँ रात के ढाई बजे बच्चे को पाउडर ,काजल से संवारने में लग गई।बच्चा रोने लगा।मैं भी तब से ये देख कर परेशान हो रही थी।एक तो गर्मी ऊपर से बच्चे के ऊपर होते अत्याचार ने मुझे दुखी कर दिया था।बच्चे ने मेरे मन के भाव को समझा और जोर -जोर से चिल्लना शुरू किया।बच्चे की माँ उसे गोद में लेकर दिवाल की तरफ मुड़ गई।उसे दूध पिलाने की कोशिस करती रही ,पर बच्चा नही ,अब तुम सहो मेरा अत्याचार।उसके पिता उसे बाहर घुमाने ले गए।तबी उनकी माता जी मेरी तरफ देख कर बोली गर्मी के कारण परेशान है बच्चा।मैंने मुस्कुरा कर लगभग हाँ जैसा ही कुछ भाव प्रकट किया।मन में तो ये चल रहा था ,माता जी गर्मी ने नही आपलोग ने बच्चे को परेशान किया है।अच्छा -भला खेल रहा था।नही आपको तो मालिश करनी है ,उसपर पाउडर ,टिका ,काजल सब पोतना है।कौन देख रहा आधी रात को जो इसे राजकुमार बना रही थी।पर इसका एक फायदा भी हुआ पुरे वेटिंग रूम में जोंसन बेबी पॉउडर की खुशबू  फैल गई।मैं आँखे मूँदे खुशबू का मजा ले रही थी।इसी बीच थोड़ी आँख भी लग गई थी।थोड़ी देर बाद भाई और शतेश आये और बोले चलो घर चलते है। 

Wednesday, 18 November 2015

KHATTI-MITHI: राग दरबारी या अनिंद्रा का उपाय !!!

KHATTI-MITHI: राग दरबारी या अनिंद्रा का उपाय !!!: राग दरबारी किसी किताब का नाम है ,ये मुझे एक साल पहले ही मालूम हुआ।हुआ यूँ मैंने अमिताभ घोष ,अरुंधति रॉय ,अरविंद अडिगा ,झुम्पा लहरी ,मनिल सू...

राग दरबारी या अनिंद्रा का उपाय !!!

राग दरबारी किसी किताब का नाम है ,ये मुझे एक साल पहले ही मालूम हुआ।हुआ यूँ मैंने अमिताभ घोष ,अरुंधति रॉय ,अरविंद अडिगा ,झुम्पा लहरी ,मनिल सूरी ,खुशवंत सिंह ,अमिस जी "की लिखी कुछ किताबे पढ़ी। इन भारतीय लेखको द्वारा लिखी कुछ बेहतरीन अंग्रेजी की किताबे है।मन में एक ख़्याल आया क्या प्रेमचंद्र के सिवा हिंदी की और किताबे भी होंगी जो पढ़नी चाहिए ? हिंदी किताबो के बारे में मेरा ठीक वैसा ही विचार था ,जैसा इंग्लिश नॉवेल के बारे में हिंदी प्रेमियों को होता है।उन्होंने इंग्लिश की एक -आध किताब पढ़ ली और उसे पॉर्न किताब का नाम दे दिया।वैसे ही मैंने कई बार पुणे से घर जाते रेलवेस्ट्शन या फिर किसी बुक स्टॉल पर हिंदी की कुछ किताबे देखी।मैंने उन्हें आदर से शॉफ्ट पॉर्न का ख़िताब दिया।सभ्यता या शर्म की वजह से कभी खरीदने की हिम्मत नही हुई।हाँ घर में उपलब्ध मसलन सरिता और दो पन्नो की राजनीती के लिए ली हुई सरस सलिल कभी - कभार पढ़ी जरूर।इन दो पत्रिकाओ से लगा हिंदी में कुछ है ही नही पढ़ने को।खैर जब इन भारतीय लेखको की इंग्लिश नॉवेल पढ़ी ,तो सोचा इनमे से किसी ने  तो हिंदी में कुछ लिखा होगा।बस गूगलिंग शुरू।निराशा हाथ लगी।पर गूगल भईया की मदद से कुछ बेहतरीन हिंदी के लेखको को जानने का मौका मिला।धन्यवाद गूगल भईया,आप मुझे हर तरह से मदद करते है।कभी एक माँ के रूप में खाना पकाने में ,तो कभी एक भाई के रूप में हर समस्या का समाधान देने में।माफ़ कीजियेगा पति के रूप में तुलना नही कर सकती।कारण पति मेरे हर सुख- दुःख मेरे साथ है ,मेरे पास है।आपकी कृपा से मुझे कुछ हिंदी की बेहतरीन किताबो के नाम मालूम हुए।मैंने आपकी मदद से ऑनलाइन खरीदने की कोशिस भी की।पर दुःख की बात ये हुई कि हिंदी किताबो के दाम डॉलर में कुछ ज्यादा ही थे।मैंने इंडियन ऑनलाइन साइट का सहारा लिया और इंडिया में ही किताबे आर्डर कर दी।बात शुरू हुई राग दरबारी से तो मुझे इस किताब का शीर्षक ही सुरीला लगा।अब तक मुझे राग दरबारी एक "हिंदुस्तानी राग " का नाम है, यही मालूम था।इस राग को सुर सम्राट "तानसेन जी" ने अकबर के दरबार में गया था पहली बार।तभी से इस राग का नाम  राग दरबारी पड़ा।इसे राग को रात्रि के पहर सुना जाता है।प्यार और ख़ुशी को व्यक्त करता ये राग,अब आपकी मर्जी जब चाहे सुन सकते है।हिंदी फिल्मो के काफी गाने राग दरबारी पर बने है। मुझे जो पसंद है वो "बाहों के दरमियाँ "या "आपकी नज़रो ने समझा"।राग दरबारी से ज्यादा मुझे यमन ,भैरवी ,पीलू पसंद है।रागों के बारे में फिर कभी लिखूंगी।फिलहाल बारी अभी राग दरबारी किताब की।ये किताब हिंदी की एक बेहतरीन व्यंग कथा।जो व्यंग ना होके समाज का सच्चा आईना है।ये किताब 1968 में श्री लाल शुक्ला जी ने लिखी थी।मुझे आश्चर्य है की 1968 से 2015 तक कुछ नही बदला।या फिर शुक्ला जी को मालूम था ,चाहे 47 साल बीते या 100 साल।ये कथा हर साल दर साल लागू होती रहेगी।गबन ,धोखाधड़ी ,भ्रष्टाचार ,वंशवाद ,राजनीती अपनी जड़े और साल दर साल मजबूत करते जायेंगे।हमजैसे लोग या तो रंगनाथ या गयादीन बनकर रह जाते है।कहानी एक गाँव की है ,पर लगता है ये कहानी हर जगह व्याप्त है।कही छोटे अस्तर पर तो कही बड़े।अगर आप राजनेता बनना चाहते है तो ,एक बार आप इस किताब को जरूर पढ़े।वैध जी या प्रिंसपल साहब से आप बहुत कुछ सीख सकते है।किताब पढ़ने के बाद आपको वैध जी की राजनीती अच्छी ना लगे।पर क्या करे उनका नुस्खा पहले क्या आज भी मार्केट में अपनी जगह बनाये हुए है।कभी -कभी किताब आपको उबाऊ भी लगती है।पर वो क्या है ना हर सीधी -सच्ची चीज़ एक अंतराल के बाद उबाऊ हो जाती है।फिर भी बहुत सी चीज़े है ,जो आप इस किताब से सीख सकते है।मुझे ऐसा लगता है शुक्ला जी किताबो के धर्म गुरु या योग गुरु रहे होंगे।जिन्हे मालुम था ये सब्जेक्ट कभी फेल नही होगा।पर शीर्षक राग दरबारी क्यों ? वैसे  मैंने कही पढ़ा था ,राग दरबारी सुनने वालो को नींद की बीमारी या मानसिक बीमारी में बहुत लाभ मिलता।शायद यही वजह हो शीर्षक का या फिर उनका राग प्रेम।किताब पढ़ के आप खुद ही निर्णय ले।

Monday, 9 November 2015

KHATTI-MITHI: हाँ हम है गँवार !!!

KHATTI-MITHI: हाँ हम है गँवार !!!: माफ़ करना दोस्तों यात्रा को बीच में रोक कर मुझे राजनीतिक दंगल में कूदना पड़ रहा है।मुझे राजनीती की कुछ खास समझ नही।बस एक आम आदमी की तोर पर अप...

हाँ हम है गँवार !!!

माफ़ करना दोस्तों यात्रा को बीच में रोक कर मुझे राजनीतिक दंगल में कूदना पड़ रहा है।मुझे राजनीती की कुछ खास समझ नही।बस एक आम आदमी की तोर पर अपनी कुछ भावनाओ का लीपापोती कर रही हूँ।मुझे आश्चर्य है ,कितने मेरे दोस्त जो महीनो से मेरा हाल -चाल तक नही पूछा अचानक उनको मेरी याद आ गई।कोटि -कोटि नमन बिहार भूमि।कोटि -कोटि नमन लालू जी।आपसे कोई नाता ना होने के बावजूद ताने और गालियों का आनंद ले रही हूँ।पर खुशी से मिला जुला दुःख भी है, कि लोगो ने याद तो किया।ये आजकल के बुद्धिजीवी लोगो की दया दृस्टी है।उनकी कृपा है की वो भारत के हर राज्य को अपना समझते है।बिहार को अपना प्यार देने के लिए आप सब का बहुत -बहुत धन्यवाद।बिहारियों को गालियाँ देने , ताना देने के लिए और भी दिल से धन्यवाद।वो क्या है ना बिहार और उससे थोड़े बेहतर उत्तरप्रदेश के लोगो को गाली की आदत है।लोग हमें जातिवादी कह रहे है ,गवार कह रहे है।तो भईया जातिवादी तो है हम।हमारे खून में ही है जाति।बड़ी ख़ुशी की बात है ,आप जाति को नही मानते।तो इसी बात पर दिवाली की खुशियाँ मनाइये,पाकिस्तान में नही अपने देश में पटाके फोडिये।दिवाली की दिन किसी डोम या चमार से अपनी लक्ष्मी का पूजन करवाइये।मान लीजिये डोम पढ़ा लिखा ना हो , मंत्र -तंत्र नही जनता हो ,तो किसी लोहार ,सोनार राजपूत या मुसलमान को ही बुला लीजिये।जबतक धर्म से जाति नही जाती तबतक राजनीती से निकलना मुझे तो मुश्किल लगता है।रही चुनाव में हमारी बेवकूफी की बात तो हाँ हम बेवकूफ है।हमलोग आपसी प्रेम के बदले जातिगत दंगे वाला विकास नही झेल सकते।हम विकास के नाम पर उन अल्पसंख्यको को खून के आंसू नही रुला सकते।हमारे घर के मर्द दूसरे राज्यों में कमाने जाये तो जाये ,लेकिन हमारे घर के बच्चे , बूढ़े और महिलाये तो चैन से रह सके।हम धीरे -धीरे खुद अपना विकास करेंगे।कुछ बिहार के बुद्धिजीवी युवा इसको पलायन से जोड़ रहे है। अरे भाइयो किसने आपको रोक है।आप बिहार में भी रहकर 15 /20 हज़ार की नौकरी पा सकते है।पर आपको तो चाहिए आई बी एम ,कॉग्निजेंट ,इनफ़ोसिस या फिर मिक्रोसोफ़्ट।आप तो पलायन की बाते ना ही करे।ये निचले गरीब तबके कहे तो शोभा भी देता है।मुझे ऐसा लगता है बुद्धिजीवी वर्ग के लिए सोशल मिडिया ने उनकी बुद्धिता पास सर्टिफिकेट के लिए बना दिया।देश की किसी भी समस्या का समाधान ये हो हल्ला या कभी हिंदी गाली तो कभी अंग्रेजी गाली से कर सकते है।अंग्रेजी वालो की गाली शहद में लिपटी नीम के पत्तो जैसी होती है।ये लोग ज्ञानी नही महाज्ञानी ,सर्वोत्तम ज्ञानी की श्रेणी में आते है।भाई  हमें मालूम है आप ज्ञानी हो।तो क्यों ना ये बेकार का बुरा - भला छोड़ ,थोड़ी अपनी सुख सुबिधा छोड़ बिहार जाए।अपने ज्ञान का प्रयोग विकल्प बनाने में करे।अपने लाखो की नौकरी छोड़ एक नए विकल्प बनाये।बिहार ही क्यों किसी और राज्य को सुधारना चाहते हो तो वही चले जाए।वरना इस बेकार की गालबाजी में कुछ रखा नही है।वो कहावत है ना ,जाके पैर फाटे ना बेवाई वो क्या जाने पीर पराई।वोट देने वाली जनता कही की भी हो उसका काम वोट देकर सबकुछ भगवान पर छोड़ना है।कही कोई सही विकल्प ही नही है।विचार बहुत जरुरी है ,पर उसकी- अपनी सीमा होनी चाहिए।वरना हर जगह नीतीश और लालू तो है ही।मेरे कुछ शुभ चिंतक सोच रहे होंगे अंत में इसने गवारों वाली बात कर ही दी।तो भईया बड़े बुलंद आवाज में और कैपिटल लेटर में "हाँ है हम गवार"।वो कहते है न क्यों गवार के मुँह लगना ?अपना तो इज्जत लेगा ही तुम्हरा भी नही छोड़ेगा।इसे अनुरोध समझे वरना फिर कहियेगा देखा जंगलराज शुरू हो गया !!!

Monday, 2 November 2015

बच्चो के साथ शानदार यात्रा !!!

दोस्तों हमारी यात्रा आगे बढ़ती है।दिल्ली आये हुए हमलोग को चार दिन हो गए थे।मेरा तीज का व्रत था।तीज बिहारी बहनो का करवा चौथ होता है।फर्क इतना है ,कि हमलोग छन्नी के सहारे चाँद में अपने पति देव को नही ढूँढ़ते ,और ना ही शाम को पकवान खाते है।हमलोग को मालूम होता है कि ,चाहे कितना भी छन्नी से छान कर देखो पति तो बदलने वाला नही।तो क्यों पकवान खाए और क्यों किसी ग्रह -गोचर से पति की तुलना करे ? हमलोग बस सचाई को अपना कर चौबीस घंटे कुछ खाते पीते नही।पति के उम्र का तो पता नही पर हमें डिहाइड्रेशन जरूर हो जाता है।हाँ फिल्मे देख कर मेरी कुछ बिहारी दोस्त अब करवाचौथ करने लगी है।पर बहनो फिल्मो में तो शाहरुख़ ,सलमान होते है।वैसे भी फिल्मो जैसा प्यार तो मिल नही रहा तो फिल्मो की नक़ल से व्रत क्यों ?अगर पति देव भी साथ में व्रत करते तो कुछ बात होती।खैर जैसे -तैसे गर्मी में मरमरा कर मैंने तीज का व्रत किया।पारन मतलब व्रत तोड़ने के दिन हमलोग की ट्रेन थी।छूटी कम थी और घर जाने की जल्दी।इसलिए मेरे पापी पति की कृपा ,जो सुबह 9 :30 की डिबुरूगढ़ राजधानी की टिकेट ली थी।पारन करना था और शतेश के भाई की काम वाली बाई 7 बजे तक आई नही।मैं और मेरा भाई सब्जी काटने में लग गए।तभी बाई भी आ गई।जैसे तैसे उसने सब्जी रोटी बनाई।8 बजे तक हमलोग को निकलना था।ठीक से पारन भी नही हो पाया।अब आप ही बताइये जिस पति के लिए व्रत रखा उसने ही मेरी बैंड बजा दी।तो कैसे पति देव लिखू ? पापी पति माफ़ी माँग रहे थे ,पर उससे पेट थोड़े भरता है।टिफिन में पैक किया हुआ खाना खिला रहे थे।पर जो कैब बुक हुई थी ,उसका ड्राईवर मना करने लगा ,कि गाड़ी गन्दी हो जाएगी।वैसे ड्राईवर छपरा (बिहार ) का ही था।उसने अपनी बकवास चालू की।एक पूछो तो दस जवाब।उसकी लिखने बैठी तो पूरा ब्लॉग कम पडेगा।फेकू एक नंबर का।आराम से अपने चार मडर के तो कभी गाँव के ,तो कभी दिल्ली के किस्से सुनता जा रहा था।मेरे भाई को गुस्सा आया ,बोला आप बोलिए कम गाड़ी थोड़ा तेज चलाइये वरना हमलोग की ट्रेन छूट जाएगी।वो भी अपनी अजीब से स्टाइल में बोला तेज चलाऊँगा तो कही और पहुँच जायेंगे।शतेश बोले जाने दो उज्जवल चुप हो जाओ।हमलोग के चुप होने पर वो गाड़ी और धीरे चलाने लगा।शायद वो दुखी होगा कि ,कैसे सवारी है जो चुप चाप जा रहे है।सारी गाड़ियां हमलोग को छोड कर आगे जा रही थी।शतेश के भाई ने ड्राईवर को ताना मारा ,आरे ड्राईवर साहब मोटर साइकिल भी आपसे तेज निकल रही है।हमलोग हँसने लगे।उसके स्वाभिमान पर बात आ गई और उसने गाड़ी की रफ़्तार बढ़ाई।भगवान की दया से हमलोग ठीक -ठाक स्टेशन पहुंचे।जब शतेश ड्राईवर को पैसे देने लगे।उसने फिर से राम कहानी शुरू की।किसी भी ड्राईवर को हड़बड़ाई नही ,वो तो मैं था जो सही सलामत पहुँच गए।हमलोग को देरी हो रही थी।पर उसकी बुजुर्गियत का ध्यान रखते हुए हाँ हाँ कहते हुए पीछा छुड़ा कर हमलोग प्लेटफार्म तक पहुँचे।ट्रेन सामने खड़ी थी।फटाफट सामान चढ़ाया गया।शतेश के भाई को विदा कह हमलोग की बिहार के लिए यात्रा शुरू हुई।हमारी बोगी में जोरहाट जिले(असम )के केंद्रीय विद्लाय के बच्चे भरे पड़े थे।वेलोग दिल्ली में खेल प्रतियोगिता के लिए आये थे।इतना शोर मचा रखा था ,कि शतेश और मेरे भाई को हल्ला कम करने को बोलना पड़ा।एक तो ड्राईवर ने दिमाग का तेल किया था ,उसपे बच्चे।पर बच्चे तो बच्चे ही होते है।मैंने दोनों को बोला जाने दो ना कितने खुश है सब।मैंने बच्चो से बात -चीत शुरू की।शतेश नास्ता करके सोने चले गए।जब भी बच्चे थोड़ा शोर करते ,मैं बोलती अंकल जाग जाएँगे।सब फिर धीरे -धीरे बात करने लगते।अपने स्कूल और प्रतियोगिता की बात करते ,फिर हल्ला शुरू करते।तो उन्ही में से कोई बोलता अबे धीरे बोल अंकल जाग जायेगा।मुझे उनकी हिंदी पर हँसी आती।बच्चो ने हुमलोगो को अपने मेडल दिखाए।अपने स्कूल की काफी बाते की।स्वागत कुमार और अभिनव राज से मेरी अच्छी दोस्ती हो गई।फिर क्या था ,मेरे भाई और शतेश की भी बच्चो से दोस्ती हो गई।वे और भी घुलमिल गए।हमारे ही कम्पार्टमेंट में और भी बच्चे आ गए।उनके स्कूल की बहुत सी बाते फिर कभी।उन बच्चो को अमेरिका के बारे में इतना कुछ मालूम कि मैं अचम्भे में थी।मालूम हुआ सब डिस्कवरी और गूगल का कमाल था।कुछ तो खाने के ऐसे व्यंजन का नाम बता रहे थे ,जो मुझे भी नही मालूम था।मैंने बच्चो को चॉकलेट दिए।कुछ और मांग रहे थे ,तो कुछ शरमा रहे थे।सबके साथ फोटो ली।वो भी बहुत खुश थे।कुछ ने नंबर दिया तो किसी ने फेसबुक पर ऐड किया।हुमलोगो को रात 1 :30 मिनट पर छपरा उतरना था। मेरे भाई ने कुछ बच्चो को बोल रखा था ,रात को जगा दे।उन्हें तो जीतने की खुशी में नींद ही नही आ रही थी।रात को एक लड़के ने भाई को जगाया।हमलोग जब जगे तो एक आध को छोड़ सब बच्चे सो रहे थे।उन्हें अलविदा भी नही कह पाई।उनका साथ हमारी यात्रा को और भी सुखद बना गया।उनकी ट्रॉफी के साथ एक तस्वीर।