पिछली यात्रा स्मरण से कहानी आगे बढ़ती है।मेरा भाई कहता है ,चलो घर चले।छपरा वेटिंग रूम से निकल कर हमलोग गाड़ी की तरफ जाते है।गाड़ी के पास पहुँच कर पापा ड्राइवर को जगाते है।ड्राइवर मस्त शर्ट खोल कर बनियान में, पैर गाड़ी के खिड़की पर रख कर सोया हुआ था।पापा की आवाज सुनकर जागा।सामान गाड़ी में रखने के बाद वो बोला बाबा (मेरे ससुर जी ,को गाँव में सब बाबा कहते है ,ब्राह्मण होने की वजह से )रुकिए गाड़ी घुमा लेते है तो बैठियेगा आपलोग।गाड़ी स्टार्ट करने गया तो गाड़ी स्टार्ट ही नही हो रही।फिर हँसते बोलता है ,बाबा लागत ता धक्का देवे के पड़ी।बैट्री ख़त्म हो गइल बा।गरमी के वजह से पंखा चला के सूत गईल रहनी ह।पापा थोड़ा झल्लाते हुए बोले साफ़ बोका (मेल बकरी ) बाड़े ,गाड़ी के पंखा चला के सुते के चाही ? इस पूरी वार्तालाप का मतलब ड्राइवर गाड़ी में पंखा चला कर सो गया था ,जिससे बैट्री खत्म होगई थी ,और पापा झल्ला रहे थे।पापा को गाड़ी चलनी नही आती इसलिए एक ड्राइवर रखा है।ड्राइवर है तो बुद्धि से ठीक -ठाक पर थोड़ा और ज्यादा बुद्धिमान बनने की कोशिश करता है।खैर ये तो मनुष्य का स्वभाव ही है।पापा ,मेरा भाई और शतेश गाड़ी को धक्का दे रहे है रात के कोई 3 :30 हो रहे होंगे।मैं पीछे खड़ी सोच कर मुस्कुरा रही थी ,कि कही बीच में गाड़ी स्टार्ट हो जाये और धक्का देने वाला कोई झटके से गिर जाए तो ड्राइवर का क्या होगा।यही तो होता है ,पापी दिमाग की उपज।मुझे उनके गिरने की सोच की हँसी आ रही थी ,उनकी तकलीफ नही दिख रही थी जो वो धक्का लगाने में कर रहे थे।खैर ऐसा कुछ नही हुआ।गाड़ी स्टार्ट भी हो गई ,कोई गिरा भी नही।गाड़ी में जब बैठी तो मच्छरों का आक्रमण शुरू।खिड़की खुली होने से मच्छर गाड़ी के अंदर डेरा जमाये बैठे थे।या फिर हो सकता है ,ड्राइवर का "मजदुर खून" उन्हें पसंद आ गया हो।जो थकान की वजह से सोये ड्राइवर पर हर तरह से प्रहार कर रहे हो।ड्राइवर भी जैसे आँखे मूँदे सोच रहा हो ," खून ही तो है मेरा " ,पी लो।जब इंसान इंसान का खून पी रहा है ,तो तुम तो मच्छर- मक्खी हो।तुम्हारा काम ही खून पीना है।वैसे भी गरीबो का खून तो पसीने के बराबर होता है।"महत्वहीन" पर मैं भी ज्ञानी हूँ ,अकड़ू हूँ मैं तुम्हे अपने शरीर पर से नही हटाउँगा ,जब पेट भर जाए खुद उड़ जाना।हाँ मच्छर ज्यादा मत पी लेना ,नही तो उड़ा नही जायेगा तुमसे।और गलती से मेरा हाथ हिला तो नरक के अलावा कही और शरण नही मिलेगी।मैं भी क्या मच्छर और ड्राइवर के बीच उलझ गई।मेरा भाई, शतेश ,ड्राइवर और पापा बाते करते जा रहे थे।मैं अँधेरे में ,टिमटिमाते रौशनियों के बीच खिड़की से बहार देखती हुई पुराने दिन याद कर रही थी।मेरी विदाई भी ऐसे ही अँधेरे में हुई थी।समय कुछ 2 /3 घंटे आगे पीछे रहा होगा।ऐसा था कि सूर्योदय से पहले मुझे ससुराल पहुंचना था।तो मेरे भाई ने ठीक से रोने या लोगो से मिलने तक का मौका नही दिया।शादी के बाद कुछ रस्मो के पूरा होते ही मुझे गाड़ी में बिठा दिया।एक बार फिर से वही रास्ते ,वही शतेश।साथ में पापा और भाई का होना, ख़ुशी को और बढ़ा रहा था।सड़क के किनारे एक चाय के ढाबे पर पापा ने गाड़ी रुकवाई।सबने चाय पी और फिर घर के लिए रवाना हुए।बीच -बीच में ड्राइवर रास्ते और हमारी गाड़ी को कहाँ -कहाँ ठोक चूका था, बताते जा रहा था।शतेश की तो जान जा रही थी।उनकी रामप्यारी को ड्राइवर ने कितना कस्ट दिया था।इसी बीच हमलोग घर पहुँच गए। सुबह के 4 :30 हो रहे होंगे।गाड़ी की आवाज सुनकर मम्मी ने गेट खोला।मुझे और शतेश को देख खुद को रोक नही पाई।शतेश और मुझे गले लगाकर खूब रोइ।मैं भी रोने लगी ,शतेश भी थोड़े इमोशनल हो गए।मैं अपने रूम में पहुँची तो मम्मी ने मेरे रूम को काफी साफ़ और सजा कर रखा था।मुझे बहुत अच्छा लगा।मैंने मम्मी को थैंक यू बोला।तो बोली की मेरे लिए तो तुम आज दूसरी बार विदा होकर आई हो।तुम नही होती हो तो बेड मोड़ कर रख देती हूँ ,सारी खिड़की भी नही खोलती।धूल आता है और चूहे गद्दे काट देते है।मुझसे अब रोज -रोज इतनी साफ-सफाई नही हो पाती।पैर में दर्द रहता है ,लोग बोल रहे है गठिया हो गया है।रूबी(काम करने वाली लड़की )को कुछ एक्स्ट्रा पैसे देके सब करवाया है।देखो तुम्हारी शादी वाली बेडशीट बिछाई है।मैं और मम्मी फिर से रोने लगे।तभी पापा आते है ,और कहते है ये क्या रोना -धोना लगा रखी है सब। ये तो ख़ुशी का टाइम है।बेटा -पतोह के लिए कुछ बनाओ खिलाओ।फिर बोले काहो पिंटू लाल (शतेश )अब मत जा अमेरिका इहे रह।फिर रुक कर बोले ,चल ये पर बाद में बात होइ।अभी वैसे भी बहुत सुबह है ,इनलोगो को आराम करने दो और तुम (मम्मी ) भी सो जाओ।मम्मी आराम करने को बोल कर चली गई ,पर मेरी आँखों में नींद कहाँ। मच्छर ,ड्राइवर ,खून ,गठिया और मम्मी
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