मै अपने ससुराल पहुँच चुकी हूँ।मेरा भाई ऊपर वाले कमरे में आराम करने चला गया।मुझे और शतेश को भी मम्मी ने आराम करने को बोला और अपने कमरे में चली गई।मम्मी के जाने के बाद शतेश तो खर्राटे लेने लगे पर मुझे नींद नही आ रही थी।ये वही कमरा था ,जहाँ से मै और शतेश परमानेंट रूमेंट्स बन गए थे।मेरे कहने का मतलब जो रूम शेयर करे वो रूममेट ही तो होता है।समय के साथ रूमेंट्स बदलते है ,पर अब तो इस जनम का रूममेट मिल गया है,जिसको चेंज नही कर सकते।इस बात की ख़ुशी भी है ,और दुःख भी।ख़ुशी ऐसे की रूममेट के बावजूद पूरा कमरा मेरा ,जैसे चाहूँ चेंजेज कर सकती हूँ।अपना सामान कही भी रख सकती हूँ।इस रूममेट पर अपनी धौंस जमा सकती हूँ।दुःख इस बात की लाख खर्राटों के बावजूद इस रूममेट का मर्डर नही कर सकती।वो तो शुक्र है ,बेड बड़ा है।वरना सुबह मैं नीचे गिरी हुई होती।अच्छा था हॉस्टल लाइफ।कम से कम कमरे में दो बेड तो होते थे।तू कर अपने बेड पे भांगड़ा।तू गिर नीचे ,मै तो आराम से सोऊ।एक दिन मेरा भी दिमाग घूमा।खर्राटे तो आते नही थे ,मैंने वॉलूम तेज करके टेबलेट पर गज़ल सुनने लगी।शतेश को गज़ल या हिंदुस्तानी क्लासिकल कुछ ख़ास पसंद नही।पहले मैंने मालिनी राजूरकर जी को सुना ,फिर जगजीत सिंह जी को,फिर गुलाम अली जी गा रहे थे।पर हद तो तब हुई जो कुम्भकर्ण (शतेश ) को कोई फरक ही नही पड़ा।उसी लय ताल से खर्राटे लेते रहे ,सोते रहे।गुस्से में मैंने दो -चार मुक्का मारा होगा।तभी गुलाम अली का ,हंगामा है क्यों बरपा बजने लगा।मैं जोर से हँस पड़ी।मुक्का खाने और मेरी हँसी सुनकर हड़बड़ा कर शतेश बोले ,क्या हुआ तपस्या सब ठीक है ना।और फिर सो गए।अब तो इस रूममेट की आदत हो गई है।किसी रात खर्राटे नही लेते ,तो मैं डर जाती हूँ।तो शतेश मस्त खर्राटों से घर को बेध रहे थे।मैं लेटी हुई खिड़की से बाहर खेतो के सौंदर्य का मजा ले रही थी।भोर हो गई थी।आस -पास के घरो से बच्चो के जगाने की आवाज आ रही थी।रे रुबिया उठ सबेर हो गईल।नइखू उठत रुकअ आवतानी।तभी मेरे घर से कूकर की सीटी की आवाज आई।समय कुछ 6 या 6 :30 हो रहे होंगे।मैं सौंदर्य पान और बहार की आवाजो से निकल कर किचेन की तरफ गई।देखा तो मम्मी दाल उबाल रही थी कूकर में।मैंने मम्मी को बोला इतनी सुबह क्या कर रही है? आराम से सब होगा।मम्मी बोली सोचा तुमलोग रास्ते में ठीक से खाये नही होगे ,और दाल भर के पूड़ी - खीर बनानी है ,तो समय लगेगा इसमें।मैंने कहा क्या जरुरत दाल भरके पूड़ी बनाने की।मम्मी ने कहा अरे नही तुम आई हो तो ,मैंने सोचा बनाती हूँ।बिहार में शादी के बाद जब नई दुल्हन ससुराल जाती है ,तो ससुराल में दाल भरी हुई पूड़ी ,गुड़ और चावल की खीर और सब्जी बनाया जाता है।इसे पड़ोसियों ,रिश्तेदारो में भी बाँटा जाता है।वैसे ये रस्म मेरा हो चूका था ,फिर भी मम्मी ये सब कर रही थी। उनको ये सब करके ख़ुशी मिल रही थी ,तो दूसरी और मैं भावुक हो रही थी।दाल भरी पूड़ी महाराष्ट्र की पूरन पोली का नमकीन वर्जन है।मतलब सारा प्रॉसेस सेम बस वहाँ दाल में चीनी या गुड़ डालते है ,बिहार में नमक डालते है।क्या करे हम बिहारी है ही नमकीन :) थोड़ी देर बाद शतेश भी जागे।मेरा भाई भी नीचे आँखे मलता हुआ आया।चाय की फरमाइश करके सामने चौकी पर बैठ गया।मैं चाय बना रही थी ,इसी बीच पापा टोकरी में सब्जी ले कर आये।मुझे टोकरी देते हुए बोले "देखअ बेटा अपना खेत में के ह ,हम बोअले बानी"।मैं हँसते हुए शतेश को बोली लो खाओ ऑर्गेनिक सब्जी।अमेरिका में ओर्गानिक ,इनऑर्गेनिक का बहुत ड्रामा है।सब्जी की टोकरी रख कर सबको चाय दिया मैंने।सब एकसाथ चाय पी रहे थे।पापा ने मजाक में मेरे भाई से पूछा , का हो चुलबुल बहिन के साथे ले जाईब का :) (क्या चुलबुल बहन को साथ ही ले जाओगे ) मेरा भाई हँसते हुए बोला ना पापा जी जब आपकी मर्जी हो भेज दीजिये दीदी को।तब तक मैं भी यही रहता हूँ।सबलोग हँसने लगे।
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