Tuesday, 15 December 2015

कहानी मंदिर और दूकानदार की !!!!

मेरी आज की यात्रा एक मंदिर और कुलदेवी की दन्त कथा से जुड़ी है।मेरी जानकारी के अनुसार लगभग हर हिन्दू परिवार के एक कुलदेवी या कुलदेवता होते है।वैसे उनकी कोई तस्वीर नही होती।पूजा घर के एक कोने में उनका स्थान बना रहता है।कुछ कुलदेवता/ देवी का गाँव से बाहर, किसी खेत में, एक बहुत ही छोटा मंदिर बना होता है।देवी /देवता के नाम पर मिट्टी या सीमेंट का गोल आकृति बना होता है।उस गोलनुमा आकृति को लोग सिंदूर ,कुमकुम से पोत -पोत कर लाल कर दिए रहते है।थोड़ा बचपन में जाये तो मैं हमेशा से थोड़ी कंफ्यूज रहती थी।कि ये कैसे देवी /देवता जिनका कोई रूप नही।नाम भी उनके थोड़े अलग होते है।जैसे मेरे मायका के कुलदेवता "सोखा बाबा" और "नर्शिम्हा भगवान" .नर्शिम्हा भगवान को तो कृष्णा सीरियल में देखा था ,पर ये सोखा बाबा कौन है मालूम नही।घर पर सब लोग इन देवताओ से बहुत डरते है।इनका पूजा बहुत ही नियम से होता है।इतनी श्रद्धा देख के कभी हिम्मत ही नही हुई ,सोखा बाबा के बारे में किसी से पूछने की।खैर शादी के बाद जब ससुराल गई तो वहाँ भी कुलदेवी के दर्शन कराये गए।तब तो इतनी जिज्ञासा नही थी ,उनके बारे में जानने की।उस वक़्त तो लग रहा था ,कब ख़त्म होंगे सारे रस्मो -रिवाज़।इस बार घर गई तो मम्मी बोली तपस्या इतने दिनों बाद आई हो ,जाके तुम और शतेश कुलदेवी के दर्शन कर लो।साथ में "सिल्हौरी के भोले बाबा" का भी दर्शन कर लेना।पास में ही है ,बहुत जगता मंदिर है।अमूमन दो -तीन गाँव के बीच कोई ना कोई एक मंदिर बन जाता है ,जो जगता (हर मनोकामना पूरी करने वाला )हो जाता है।दूर -दूर से गाँव वाले भगवान का आशीर्वाद लेने ,तो कभी अपने बेटा -बेटी का देखउकी (शादी की पहली बातचीत की शुरुआत )कराने आते है यहाँ।एक तरह से वो "मंदिर कम कम्युनिटी हॉल" होता है।सौभाग्य से वो जगता मंदिर मेरे घर से 10 मिनट की दुरी पर ही है।मैं ,मेरा भाई और शतेश मंदिर दर्शन के लिए निकले।मंदिर पहुंचे तो बाहर कुछ पंडित बैठे थे।माथे पर अलग -अलग तरीके का तिलक  लगाये हुए।किसी ने गोल बिंदीनुमा ,तो कही गंगा की लहर बह रही थी ,कही शिव जी का आँख बना था।बगल में बैठा एक भक्त बड़ी प्रेम से खैनी मल रहा था।बाबा आवाज लगा रहे थे ,आइये यजमान आइये।पर हमलोग तो ठहरे खुद पंडित।इतनी आसानी से अपना ओहदा कैसे किसी और को दे देते ? हमने खुद ही पूजा करने का फैसला किया।मंदिर परिसर बूढी गाय और हड्डा -बीरनी का डेरा था।लोगो के अनुसार ये सब शिव जी के सवारी और भक्त थे।साफ -सफाई के नाम पर शिव जी के रूम को छोड़ बाकी जगहों पर सिंदूर ,बेलपत्र ,लड्डू ,बतासे गिरे पड़े थे।कुछ भगवान पर तो कुछ नीचे।शतेश और भाई ने हाथ मिलाने टाइप भगवान जी को प्रणाम किया और आगे बढ़ गए।मैं कभी जल गिरा रही थी ,तो कभी फूल और प्रसाद।तभी एक गाय मंदिर के कक्ष में चली आई।ऊपर से हड्डा उड़ने लगे ,प्रसाद और पानी की वजह से।डर से मैं चुलबुल (भाई )- शतेश चिल्लाने लगी।चुलबुल और शतेश आवाज सुनकर दौड़ कर आये।मुझे बाहर ला कर चुलबुल गुस्से में बोला।आज पूजा का सारा भूत उतर जाता ,जब गाय मरती या हड्डा कटता।हमलोग वहाँ का मुआयना टाइप करके बाहर निकल आये।बाहर आये तो मंदिर के पंडित लोग गाँजा पी रहे थे।मंदिर के ऊपर वाले भाग में भी कुछ भगवान थे।मतलब मूर्तियां थी।थोड़ा माहौल अजीब सा देख के भाई बोला रहने देते है।शतेश बोले अरे ये इनका रोज का काम है।कुछ नही होगा।चलो ऊपर भी देख लो।जब  हमलोग ऊपर पहुंचे।देखा भगवान की मूर्तियों को जेल जैसा गेट बना कर बंद कर रखा है।लोगो ने गेट को ही सिंदूर से रंग दिया है।उसी के बीच फूल लड्डू और बतासे ठूसे हुए थे।एक आध पत्थर की मूर्तियाँ टूटी -फूटी कोने में पड़ी थी।वो भी लाल -पीली हो गई थी गुस्से में कि, उन्हें जेल में क्यों नही डाला।प्रणाम करके हमलोग वहाँ से बाहर निकले।मंदिर के बाहर छोटे -छोटे दूकान थे।जिसमे प्रसाद ,सिंदूर और लड़कियों के साजो सामान बिक रहे थे।शतेश के यहाँ एक लड़की काम करने आती है।मैंने सोचा उसके लिए कुछ खरीदा जाये।एक दूकान पर गई।भाई और शतेश भी पीछे -पीछे पहुंचे।मैंने एक माला लिया और एक हेयर पिन का दाम पूछा।दूकानवाले ने  हेयर पिन का 35 रूपये बताया।वैसे मोल- भाव मुझे ठीक से नही आते।फिर भी मैंने उसको दाम थोड़ा कम करने को बोला।तभी मेरा भाई बीच में नारद की तरह कूद पड़ा।बोला एक तो गर्मी में ये सामान बेच रहा है ,ऊपर से दो पैसा कमायेगा नही ? मेरी और भाई की वही बहस शुरू हो गई।मेरा भाई दूकानवाले को बोला भाई एक पैसा कम मत करना।दुकान वाला बोला जाने दीजिये 30 रुपया दे दिजीए।उसे भी लग रहा होगा कैसा मुर्गा मिला है ,खुद ही कटने को तैयार।मैंने कहा ठीक है ,दे दीजिये।पर दूस्ट -पापी भाई बोला नही  ! तुम्हे 35 रूपये ही देना होगा नही तो मैं दे दूँगा।मैंने गुस्से में हेयर पिन छोड़ा और बोला अब मैं लूँगी ही नही इसे।हमारा तमाशा देख के शतेश और दूकान वाले दोनों परेशान।हँसते हुए शतेश बोले अरे यार मैं दे देता हूँ।तुमलोग लड़ो मत।दूकानवाले ने मौका हाथ से जाता देख ,बेचारा सा मुँह बना कर बोला ,बहन जी परता नही पड़ रहा है।फिर भी चलिए 28 रुपया दे दीजिये।इनसब के बीच शतेश फ्रस्टेट होके दूकान वाले को 30रूपये दे दिए।पिन लिया और हुमलोगो को बोले जब तुमदोनो का हो जाये तो गाड़ी के पास आ जाना।हुमदोनो एक दूसरे को कोसते शतेश के पीछे -पीछे चल दिए।ये रही मंदिर की तस्वीर
 कल कुलदेवी की कहानी...... 

1 comment:

  1. Ma'am (Tapasya) being a Pandit you have some respect.
    Hope till now you know who they are.

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