Wednesday 16 December 2015

हमारे गाँव की कुलदेवी !!!

सिलौहरी मंदिर में पूजा करने के बाद हमलोग गाँव की  कुलदेवी के पूजा को गए।अच्छा एक और बात है ,घर के कुलदेवता या देवी और गाँव के कुलदेवता या देवी अलग -अलग होते है।घर के कुल देवता /देवी को एक परिवार पीढ़ी दर पीढ़ी परंपरागत तरीको से पूजते आते है।वही गाँव के कुलदेवता /देवी को पूरा गाँव पूज सकता है।वैसे ज्यादातर लोग किसी शुभ काम के होने या शादी व्याह जैसे मौके पर ही इनकी पूजा करते है।नही तो घर में है ही शिव जी ,विष्णु जी ,हनुमान जी ,दुर्गा माँ आदि -आदि।मेरे ससुराल के भी कुलदेवता "सोखा बाबा" ही है। इनके बारे में मम्मी ने कुछ नही बताया।शायद उन्हें भी इतना ही मालूम हो की, ये कुलदेवता है।हाँ गाँव की कुलदेवी है "सती मईया "उनकी कहानी मम्मी ने हमलोग को सुनाई।मुझे बड़ी खुशी हुई चलो कही तो मईया है।नही तो हर जगह बाबा ,बाबा।इस भावना का मेरे नारी होने से कोई सम्बन्ध नही।मैं तो बस शक्ति सामंजस्य की बात कर रही थी।अगर हर जगह मईया- मईया होता तो, मुझे बाबा के होने पर ख़ुशी होती।खैर छोड़े इस बवाल की बात को। हमलोग गाँव के एक सिंगल लेन वाले रास्ते से जा रहे थे।करीब 10 /15 मिनट चलने के बाद शतेश ने गाड़ी एक चौड़ी पगडंडी की तरफ मोड़ी।मैंने पूछा क्या हमलोग सही रास्ते पर जा रहे है ? शतेश बोले हाँ।रास्ता कच्चा है ,पर गाड़ियां जाती है वहाँ तक।शतेश मुझे दूसरी तरफ दिखाते हुए बोले ,वो देखो यहाँ हमलोग छठ पूजा करते है।हमलोग को वही उतरना था।चारो तरफ खेत ,पेड -पोधे।छठ पूजा के लिए बना एक तालाब।तालाब के किनारे कुछ छठ के स्तूप बने हुये।आस -पास में कुछ औरते घास काट रही थी।हमलोग को देख के आपस में बात करने लगी।घास काटना छोड़ कर हमें देख रही थी।शायद यही बात कर रही होंगी ,केकर बेटा -पतोह ह लोग ,या कहाँ से आइल बा लोग ? उनकी तरफ देखना छोड़, मैंने पास में एक यज्ञ मंडप देखा।वहां कुछ महीनो पहले बहुत बड़ा यज्ञ हुआ था।यज्ञ में एक आदमी को किसी ने मार डाला था।वो अलग कहानी है फिर कभी।वही पास में एक चापाकल लगा था।हमलोग हाथ पैर धो कर पहुंचे "सती मईया "के स्थान पर।स्थान के नाम पर एक बहुत बड़ा चबूतरा बना था।उसकी के ऊपर एक छोटा सा मंडप, जो ऊपर से खुला था।उसको चुनरी से छत बनाने की कोशिश की गई थी।दो गोलाकार आकृतियाँ।उनके ऊपर पीतल का एक परत चढ़ा हुआ।जिसको लोगो ने लाल -पीला कर रखा था।यही थी सती मईया।एक छोटा सा गेट भी था।मंडप से ठीक सटे ,पीछे की तरफ बहुत बड़ा पीपल और नीम का एक पेड़।ओह वहाँ से आने का मन नही कर रहा था।इतनी गर्मी में एक वही जगह थी जहाँ इतनी प्यारी हवा और मन को मोहने वाला वातावरण था।पूजा करके हम तीनो चबूतरे के पास खड़े होकर सती मईया और खेत- खलिहान की बाते करने लगे।ना चाहते हुए भी वहाँ से घर जाना पड़ा।बहुत सारे सवाल सती मईया के बारे में सोचती हुई, घर के लिए निकल पड़ी।आखिर कौन थी "सती मईया" ? मम्मी ने जो( दन्त कथा) सुनी -सुनाई कहानी हमलोग को सुनाई थी।वो ये थी।शतेश के पूर्वज में एक लड़की थी।उनकी शादी हो गई थी, पर कोई  बच्चा नही था।एक दिन उनके पति का देहांत हो गया।पति की अंतिम यात्रा की तैयारी शुरू हो गई।जब पति को श्मशान घाट ले जाने लगे ,वो अपने पति से लिपट -लिपट के रोने लगी।उन्हें जाने नही दे रही थी। लोग परेशान की अब क्या करे ? वहाँ गाँव का एक तेली भी था।जो अपना आपा खो बैठा और ताने देकर बोला ,रो तो ऐसे रही है ,जैसे सती बन जायेगी।एक तो पति का दुःख ,ऊपर से ऐसी बाते सुनकर उनको बहुत दुःख हुआ।वो बोली हाँ मैं "सती बनूँगी" ,पर मेरी भावना का मजाक बनाने वाले तुम भी गल -गल के मरोगे।तुम्हारा  परिवार भी मेरे श्राप का भागी होगा।इसके बाद वो सती हो गई।उस तेली को भी कुछ समय बाद कुष्ठ रोग हो गया।उनके सती होने के बाद ,उन्हें गाँव की कुलदेवी की उपाधी दी गई।तेली के यहाँ कोई न कोई एक कोढ़ी होता गया, पीढ़ी दर पीढ़ी।अब मेरी दुबिधा ये थी ,क्या एक जीती -जागती स्त्री जल रही थी , दुःख से या समाज के ताने से ? क्या उसको रोकने की किसी ने कोशिश की होगी ?या सच में उसके मन में पति के साथ ही दुनिया छोड़ने की भावना रही होगी ?या फिर उसे जबरदस्ती जलाने के बाद सती माँ का नाम दे दिया गया।वाह समाज तुमने उसके पति के मरने के बाद उसके अंदर जीने की भावना तो नही भरी हाँ !उसके मौत को दैविक जरूर बना दिया।रहा उनके श्राप की बात तो पहले कोढ़ की कोई दवा न थी ,छुआ -छूत की बीमारी थी।घर में किसी को हो तो स्वभाविक है ,दूसरे को भी हो सकती थी।सचाई जो भी हो।आज वो हमारे गाँव की कुलदेवी है।मुझे माफ़ कीजियेगा सती माई।काश उस वक़्त मैं होती ,आपको बचा पाती।
आपसे हमेशा के लिए माफ़ी ,आपको सादर प्रणाम है ,"सती मईया" 

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