विश्व विद्यालय मेट्रो स्टेशन के बाहर खड़ी मैं ,किसी का इंतज़ार कर रही थी।मैंने कॉल लगाया और उधर से आवाज आई -हाँ कहाँ पहुँची आप ? मैंने कहा मै तो मेट्रो स्टेशन के बहार खड़ी हूँ।तुम कहाँ हो ?उधर से आवाज आई -आप दो मिनट दीजिये।मै पास ही लाइब्रेरी के पास हूँ।मेट्रो स्टेशन के बाहर खड़ी मै बाहर आने -जाने वालो का मुआयना करने लगी।सच में जो हरियाली दिल्ली में है ,वो और कही नहीं।किसी भी शहर के कॉलेज एरिया की रौनक ही कुछ और होती है।मुआयने के दरमियां सामने नज़र गई।एक जाना पहचाना चेहरा लगभग भागते हुए आ रहा था।मै थोड़ी सोच में की ये वही है या कोई और ? ये थोड़ा स्मार्ट दिख रहा है।पिछली बार तो अलग लगा था।तभी उसकी दूर से ही बत्तीसी दिखी।मै समझ गई भाई लड़का तो वही है ,बस चोला बदल गया है।आते ही कैसी है दीदी के साथ पैर छुआ।मेरे भाई जैसे लड़के का नाम "दीपक दशानन " दशानन को उसने बाद में जोड़ा।शायद वो भी अपने रूप बदलने की कला को जनता होगा।या फिर रावण की तरह दस सिर।पर चेहरे थोड़े अलग -अलग।ये वही लड़का है ,जिसने मेरी पहले की भारत यात्रा में मेरे देवर जी को परेशान किया था।माने सवाल -जबाब से।मेट्रो स्टेशन से आगे हमलोग दिल्ली यूनिवर्सिटी के नार्थ कैंपस पहुँचे।मुझे अपने स्कूल के एक दोस्त से मिलना था।मैंने उसे कॉल लगाया पर कॉल ही नहीं जा रही थी।मैंने कहा अब क्या किया जाय दीपक ? बोला दीदी ऐसा करते है ,थोड़ा कैंपस देख लो।पास में ही एक बहुत अच्छी कॉफी की टपरी है वहाँ कॉफी पीते है।तबतक आपके दोस्त भी आजायेंगे।मैंने कहा ठीक है।वैसे मै कॉफी बहुत पसंद नहीं करती फिर भी साथ देने को पी लिया।बीच -बीच में मैं अपने दोस्त को कॉल भी लगा रही थी।कॉफी खत्म ही हुई थी कि ,दोस्त का कॉल आया।अरे तपस्या कहाँ पहुँची ? मैंने कहा मै तो लौट आई।तुम्हारा कॉल ट्राई किया।लगा नहीं तो चली आई।अफसोस करते हुए बोला -अरे यार मै लाइब्रेरी के अंदर ग्रुप डिसकशन में था।वहाँ नेटवर्क नहीं था शायद।मेरा एक दोस्त आया और बोला मुकुल भाई आपका कॉल नहीं लग रहा है।मै फटाफट बाहर निकला की ,कही तुम भी कॉल नहीं ट्राई कर रही हो।मैंने कहा ओह ,अच्छा तो माफ़ किया।मैं यही हूँ।दीपक है मेरे साथ।आती हूँ कैंपस।मै और दीपक पहुँचे वहाँ।एक जगह देख के बैठ गए।दीपक जो भी लड़का गेट से आता बोलता दीदी ये तो नहीं ?हमलोग बाते कर रहे थे।सामने से मुकुल ,तपस्या बोलते हुए आया।लगभग दौडते हुए हमलोग एक दूसरे के पास पहुँचे।गले मिले।उसके चेहरे से ख़ुशी टपक रही थी।मेरा हाल भी कुछ वैसा ही था।इंसान कही भी चला जाए ,कुछ भी पा ले ,बचपन को भूल नहीं पाता।फिर बचपन के संगी -साथी की तो बात ही कुछ और है।मैंने उसकी टाँग खींचते हुए कहा -तुमने तो कहा था ,तुम्हारे आने पर गाजे -बाजे से स्वागत करूँगा।यहाँ तो फूलमाला भी नहीं ,पान पराग भी नहीं है।अपने खुशमिजाज़ तरीके से उसने मुझसे माफ़ी माँगी।मैंने उसे दीपक से मिलाया।उसने भी अपने कुछ दोस्तो अमित जी ,शशि आनंद जी ,सुशील जी और फहीम साहब से मिलवाया।सब एक साथ सिविल सर्विसेज की तैयारी कर रहे है।सबसे मिलके अच्छा लगा।सुलझे हुए ,नम्र और व्यवहारिक लोग थे ये।मुकुल भाई साहब भाषण स्वरुप बात के लिहाजे से ,फेसबुक और हमारे एक दोस्त रवि रंजन को धन्यवाद देने लगे।कहने लगे फेसबुक और रवि ने ही हमसब स्कूल के दोस्तों को मिलाया है।मुकुल के बात करने के अंदाज से कोई दुखी नहीं हो सकता।मैंने उसको कई बार बोला है, तुम पॉलिटिक्स ज्वाइन कर लो।आजकल मार्किट भी गर्म है।युवाओं में भी पॉलिटिक्स का क्रेज़ बढ़ा है।फेसबुक के द्वारा मेरे क्लास के दोस्तों में मै अकेली लड़की मिली।बाकि के 5 /6 लड़के।लड़को को दुःख इस बात का था कि, चलो क्लास के अच्छे विद्यार्थी तो मिल गए ,पर वो जो सुन्दर -सुन्दर बालिकाएँ थी वो कहाँ गई ? जब भी उन लड़को से बात होती है ,भगवान् दिमाग का दही कर देते है।फलाना लड़की कहाँ गई ? तुम उसके टच में हो क्या ? अरे भाइयों मैं खुद "टच मी नॉट थी " मुझे तो तुमलोगो ने ढूँढा।तुम्हारी सो कॉल्ड क्रश जाने कहाँ खो गई।मै कहाँ से ढूँढू।मुकुल जी तो एक ऐसी लड़की के बारे में पूछते है ,जो की भुत है।अरे -अरे वो मरी नहीं।पर हाँ उस नाम की लड़की को कोई दोस्त नहीं जानता या देखा।बेचारा मुकुल अकेला उसे जानता है।पागल क्लास में ही सपने देखा करता होगा।इसलिए बचपन से मोटा रहा :) इसी बीच हमारे एक कॉमन दोस्त आचार्य शैलेश तिवारी जी का कॉल आया।मुकुल ने बताया तपस्या आई है।वो बहुत जिद्द करने लगे की उनसे भी मिल लिया जाए।मै ,मुकुल और दीपक उनके घर पहुंचे।ऑटो में ही दीपक और मुकुल की पॉलिटिक्स शुरू हो गई।दोनों जोर -जोर से बहस करने लगे।मानो संसद भवन में बैठे हो।मैंने कहा भाइयों बस करो।ये दीपक भी ना मौका नहीं छोड़ता कभी।ऑटो वाला बहस का मजा लेते हुए हमें घुमाए जा रहा था।हमलोग को गलत जगह उतार के चलता बना।हमने आस -पास के लोगो से रास्ता पूछा। फिर दूसरा ऑटो लिया और पहुँच गए शैलेश जी के यहाँ।दिल्ली के पॉश इलाके में जबरदस्त घर ,साजो सामान देख के ऐसा लगा आईटी के जॉब में कुछ नहीं रखा।इसी मिलन -मिलाप में मैंने एक कांड कर दिया था।घर की चाभी साथ ले आ थी।मुझे लगा नहीं था ,इतनी देर हो जायेगी।रात के 9 :30 हो गए थे।मेरे देवर ऑफिस से आकर बाहर इंतज़ार कर रहे थे।मैं थोड़ी परेशान हो रही थी।शैलेश जी जाने नहीं दे रहे थे।उनकी वाइफ से मिली।उन्होंने मुझे एक प्यारी सी साड़ी गिफ्ट की।उनको धन्यवाद बोलने के साथ ही ,मै वहां से भागी।शैलेश जी गाड़ी से हमलोग को छोड़ने निकले पड़े।मैने रात की वजह रास्ता समझ नहीं पाई और उलटी तरफ गाड़ी को मुड़ा दिया था।आगे जाने पर रास्ता याद आया।मैंने शैलेश जी को कहा गाड़ी को साइड में रोक ले।रोड क्रॉस करके यहाँ से वाकिंग चली जाऊँगी।वो बोले नहीं मैं छोड़ देता हूँ ना।मैंने मना किया वापस से टर्न ले के आने में और टाइम लगता।मुकुल और दीपक मुझे छोड़ने के लिए आने लगे।मैंने मुकुल को बोला अरे रहने दो।यही वेट कर लो तुमलोग दीपक का।शैलेश जी और मुकुल से विदा ले ,मैं और दीपक घर की तरफ चल पड़े।सामने मेरे देवर दिखे।पागल दीपक मुझे बोलता है -मै बात करूँ क्या दीदी ?आप परेशान मत होना।और अगर आपके देवर आपपे गुस्साए तो बताइयेगा।मुझे हँसी आ गई।मैंने बोला भाई इसकी जरूरत नहीं है।मेरे देवर भी मेरे भाई सामान है।मैं इसलिए परेशान हूँ कि वो मेरी वजह से बाहर खड़े होंगे।उससे बिदा लिया और घर पहुँच गई।आगे जारी -------
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