Friday, 15 April 2016

प्रेम और मर्यादा की पीड़ा ,अध्याय दूसरा !!!!

आज की कहानियाँ वास्तविक है।इसका जीवित और मृत व्यक्तियों से सबंध हो सकता है।इसका उद्देश्य ज्ञान बाँटना तो बिल्कुल भी नहीं है।किसी कारण वश आप संतुस्ट नही हो पाये तो ,ये आपकी जिम्मेदारी है।मेरा उद्देश्य सिर्फ अभिवक्ति है।लिखने के क्रम में एक जानवर के नाम का प्रयोग किया गया है।जो कि जानवर की गलती हो सकती है।या फिर उस शब्द को बनाने वाले की।इस ब्लॉग को आप पिछले ब्लॉग "प्रेम और मर्यादा की पीड़ा" का दूसरा अध्याय भी समझ सकते है।तो फिर कामदेव की जय से कहानी शुरू करती हूँ।हुआ यूँ कि ,बारहवीं की पढ़ाई के लिए मुझे पटना भेजा गया।लड़कियों का हॉस्टल फुल हो चूका था।मेरे रहने का इंतज़ाम माँ के ऑफिस के एक स्टाफ़ के यहाँ किया गया।मैं एक पेइंग गेस्ट की तरह रहने लगी।बाद में मै उस घर की सदस्य जैसी बन गई थी।जिनके यहाँ रहती थी ,उनको दो लड़की और एक लड़का था।अंकल जॉब की वजह से बाहर रहते थे।ऑन्टी पटना रह के बच्चों की पढ़ाई- लिखाई में जुटी हुई थी।उनकी बड़ी लड़की ,मेरे साथ ही मेरे कॉलेज में पढ़ती थी।थोड़ी मुझसे बड़ी थी।मैं उन्हें दीदी कहती थी।एक शाम हमलोग बालकनी में खड़े होकर बाते कर रहे थे।ऑन्टी एक लड़की को जाते देख बोली -हे गे गुडिया देखै छेे की हालत हो गयैल छे ?गुड़िया उनकी बड़ी बेटी।ऑन्टी गुडिया दी को सामने जाती हुई लड़की दिखा रही थी।ये माँ लोग भी ना दूसरों की कहानी सुना -सुना कर इनडायरेक्ट वे में अपनी बेटियों को आगाह करती रहती है।सीधे नहीं कह सकती देखो प्यार -व्यार के चक्कर में मत पड़ना।पढाई पर ध्यान देना।तो सामने जो लड़की जा रही थी ,उसी मुहल्ले की थी।पढ़ने में बहुत होशियार।सिविल सर्विसेज की तैयारी कर रही थी।तूफान तब आया जब उसे अपने पड़ोस के एक लड़के से प्यार हो गया।और लड़का भी क्या उसके घर के आगे जो दूकान थी ,वहाँ दिन भर बैठा रहता था।आने जाने वाली लड़कियों को  छेड़ना उसका काम था।सुना है प्यार अँधा होता है।यहाँ भी अंधेपन वाली बात काम कर गई।दोनों ने भाग के शादी कर ली।दो महीने बाद वापस घर आये।पहले तो दोनों के घरवालों में खूब झगड़ा हुआ।लड़की के घरवालो ने द फेमस डायलॉग मारा - जा तू आज के बाद हमारे लिए मर गई।वही गालियों के साथ ,लड़के के घरवाले ने बेटे का मोह करके दोनों को घर में रख लिया।अब कहनी का सामना सच्चाई से होता है।लड़का तो नालायक था ही।फिर से दोस्तों के साथ दूकान पर बैठने लगा।लड़की पढ़ी लिखी।जाहिर सी बात थी कि ,थोड़ा स्वाभिमान था उसमे अभी।उसने पास के एक प्राइवेट स्कूल में मास्टरनी की नौकरी कर ली।घर के कामकाज़ ,स्कूल, जिम्मेदारियो और समाज के तानो के बीच उसके सारे सपने टूट गए।ऑन्टी कह रही थी -पहले लोग इसकी मिशाल देते थे।और देखो आज भी मिशाल ही दे रहे है।क्या थी और क्या हो गई ? मैंने शादी से पहले उसे देखा नहीं था।मेरे वहाँ रहने के 6 महीने पहले की ये कहानी थी।अभी तो वो मुझे एक बीमार लड़की जैसी दिखती थी।गली में कभी उसे सिर उठा के चलते नहीं देखा।कहीं इसकी वजह इस गली का अब ससुराल बन जाना तो नहीं था ? खैर ,अब दूसरी कहानी पटना की ही।मेरी 11 वी की परीक्षा हो चुकी थी।मै और गुड़िया दी क्लास करके घर आ रहे थे।रास्ते में एक हनुमान मंदिर पड़ता था।वहाँ बहुत भीड़ लगी थी।सोचा जा के देखे।एक तो भीड़ उसपे वहाँ पुलिस को देख हमलोग वापस घर आ गए।दूसरे दिन एक ख़बर आग की तरह हर जगह फैली थी।खबर ये थी कि -हनुमान मंदिर में एक लड़की को किसी लड़के ने सिंदूर लगा दिया था।यहाँ मामला कुछ उल्टा था।लड़की हर मंगलवार को उस मंदिर में पूजा करने जाती थी।लड़के को उससे प्यार हो गया।उसने लड़की को मंदिर में प्रपोज़ किया।और जैसा लगभग हमेशा होता है ,लड़की ने मना कर दिया।लड़का वहाँ से चला गया और लड़की पूजा करने लगी।थोड़ी देर में लड़का सिंदूर लेके वापस आता है और ध्यानमग्न लड़की की माँग में सिंदूर भर देता है।लड़की को बहुत गुस्सा आया और उसने लड़के की पिटाई शुरू कर दी।अब वहाँ भीड़ इकट्ठी हो गई।कुछ लोग लड़की को समझा रहे थे ,जाने दो बेटी अब क्या फायदा माफ़ कर दो।अब तो ये तुम्हारा पति हो गया।वही कुछ लोग लड़के को मारने -पीटने में लगे थे।मामला बिगड़ता देख दोनों के घरवालों को बुलाया गया।पुलिस आई।लड़की भी जिद्दी मानने को तैयार नहीं।बोली राह चलता कोई भी मेरी माँग में सिंदूर भर दे और मैं उसे पति मान लूँ ? वही मज़नू लड़का मार खाने के बावज़ूद भी कहता है  -तुम नहीं मानी तो मैं ज़हर खा लूँगा।अब दोनों के परिवार वाले भी परेशान की क्या करे ? लड़की बोली खा लो ज़हर।मुझे कोई परवाह नहीं।घर वाले लड़की को समझाने लगे की जो होना था हो गया।मान जाओ।मजेदार बात तब हुई जब लड़की बोली -पहली बात तो इसने धोखे से सिंदूर डाला।दूसरी कि ये हनुमान मंदिर है ,तो शादी वैध नहीं।जब शादी वैध नहीं तो मै कहाँ से विधवा होने लगी ? :) अब लड़के के भी होश गुम।लड़के को उसके घरवाले मना बुझा कर ले गए।लड़की घरवालों के मना करने के बावजूद मंदिर में ही सिंदूर धोया।फिर अपने घरवालों के साथ घर गई।एक तरफ कुछ लोग लड़की की बड़ाई कर रहे थे ,तो वही कुछ लोग भगवान् की मर्जी मान कर लड़के को अपनाने की बात कर रहे थे।मुझे उस लड़की से मिलने की बहुत ईक्षा हुई ,पर मालूम नहीं वो किधर रहती थी।अब एक आखिरी कहानी जो कि मेरे भाई ने मुझे सुनाई।हुआ यूँ की मेरे ब्लॉग को पढ़ कर ,वो ये कमेंट करना चाह रहा था।पर बस से कही जाने के क्रम में ठीक से टाइप नहीं कर पा रहा था।उसने सोचा इतना बड़ा कमेंट करने से अच्छा मैं दीदी से जब बात होगी तभी अपने पक्ष रख दूँगा।उसका कहना था -प्यार के दो रूप हो सकते है।एक शारीरिक और एक आध्यात्मिक।आध्यात्मिक तो आजकल होता ही नहीं है।होता भी होगा तो उसकी संख्या बहुत बहुत ही कम है।शारीरिक वालो की तादात ज्यादा है।वो ऐसे कि ,हमलोग बिना किसी को जाने उसकी बाहरी सुंदरता से एट्रैक्ट हो जाते है।उसे प्यार का नाम दे देते है।उसने जो आध्यात्मिक प्रेम की कहानी सुनाई वो थोड़ा बाद में।पहले मैंने सोचा वैज्ञानिक रूप से भी जान लिया जाय की प्रेम है क्या ? होता कैसे है ?  विज्ञान के अनुसार प्रेम तीन चरण में पूरा होता है।तीनो की अपनी -अपनी रासायनिक प्रक्रिया है।पहला लस्ट(कामुकता ,अभिलाषा ) - एस्ट्रोजन और टेस्टोस्टेरॉन दो ऐसे हार्मोन है जो इसके लिए जिम्मेदार है।दूसरा अट्रैक्शन (आकर्षण)-सबसे ख़ूबसूरत समय।जिसके जिम्मेदार एड्रेनलिन ,डोपामाइन और सेरोटोनिन हार्मोन है।तीसरा और आखिरी अटैचमेंट(अनुराग ,लगाव ,मोह ) -इसके लिए जिम्मेदार ऑक्सीटोसिन और वैसोप्रेसिन हार्मोन है।जहाँ डोपामाइन हार्मोन एक तरह के ड्रग की तरह काम करता है, वही वैसोप्रेसिन आपके रिलेशनशिप को मजबूत बनाता है।तो इस तरह से प्रेम के किसी भी घटना के जिम्मेदार हम नहीं ,हमारा दिमाग और हमारे हार्मोनस है।अगली बार किसी से प्यार हो तो डरने की जरुरत नहीं।कहिये हम क्या करे हम तो नादान अनाड़ी है।ये तो केमिकल लोचा है :) अब आते है भाई की कहानी की तरफ।महात्मा बुद्ध के प्रिय शिष्य में एक आनंद।आनंद देखने में बेहद ख़ूबसूरत नौजवान था।एक दिन भिक्षा माँगने के क्रम में उसे प्यास लगी।पानी पीने के लिए वो वो कुएँ पर गया।पानी भरती एक लड़की से उसने पानी माँगी।लड़की आनंद के रूप से इतनी मोहित हुई कि ,उसने आनंद से ही ब्याह करने की हठ कर ली।आनंद ने उसे बहुत समझया फिर भी वो पीछे -पीछे मठ तक चली आई।आनंद परेशान हो भगवान् बुद्ध के पास गया।अपनी सारी व्यथा सुनाई।भगवान् बोले कोई बात नहीं।उस लड़की को मेरे पास लेकर आओ।लड़की से भगवान् ने पूछा -तुमने आनंद में ऐसा क्या देखा जो इससे विवाह के लिए हठ कर बैठी ? लड़की बोली -आनंद की आँखे भगवान्।भगवान् बोले तुम सुबह उठ के देखना ,इसकी आँखों में कितना कीचड़ भरा होता है।लड़की फिर बोली अच्छा ,तो इसका मुँह भगवान।भगवान् बोले सुबह तो उससे और बास आती है।लड़की थोड़ा परेशान होकर बोली -मुझे आनंद का सुन्दर शरीर पसंद है भगवान्।भगवान् बोले शरीर का क्या है ?आनंद तीन /चार रोज नहीं नहायेगा तो उसमे भी मैल और बदबू हो जायेगी।लड़की को अपनी भूल का अहसास हो गया था।भगवान् के चरणों में गिरकर माफ़ी माँगी उसने।भगवान् से उसे भी आश्रम में रखने और भिक्षु बनने की प्रार्थना करने लगी।भगवान् ने उसे बहुत समझया की अभी तुम युवा हो।अपने दूसरे सामजिक कर्तव्यों का वहन करो।पर लड़की का मोह भंग हो गया था।बुद्ध की अनुमति से वो आश्रम में रहने लगी।आजीवन वो आनंद के साथ आश्रम में रही।पर वो प्रेम अब आध्यात्मिक हो गया था।
एक के बाद एक इन कहानियों में मैंने प्रेम के अलग -अलग रँग लिखे है।कही मृग तृष्णा है ,तो कही छल।आध्यत्मिक और वैज्ञानिक दोनों पहलुओं को ही मैंने अपने समझ के अनुरुप लिखा है।कहीं किसी की बातें अच्छी है ,किसी की सुंदरता ,किसी का बुद्धिजीवी होना तो किसी का सरल होना।पर क्या ये प्रेम की माप दण्ड हो सकती है ? दुनिया में एक से बढ़ कर एक सुन्दर ,ज्ञानी लोग मिलेंगे।कब तक हम मृग तृष्णा में डूबे रहेंगे? रही बात हार्मोन्स की तो भाई इसका आपसब ख़ुद इलाज़ समझे :) कहानी ख़त्म हुई।प्रसाद के रूप में ये तस्वीर।हर दिल से एक घंटी लगी है।हर दिल का एक अलग कोना है -कोई प्यार का कोई समर्पण का ,कोई दया का कोई छल का।आपकी पसंद और आपकी जिम्मेदारी की किस घंटी को आप बजाते है।अंत में बोलिए कामदेव की जय हार्मोन्स की जय :)

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